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नैनो तकनीक क्या है?
नैनो शब्द का इसके मूल ग्रीक भाषा में मतलब होता है- वामन या छोटे आकार का. नैनो तकनीक का क्षेत्र विज्ञान या इंजीनियरिंग का वो अंग है जिसमें परमाणु और अणु के पैमाने पर काम होता है. इसके तहत जिस आकार की चीज़ों या पदार्थों का निर्माण होता है, उनसे छोटे आकार में निर्माण संभव नहीं है. नैनो तकनीक के तहत बने उत्पाद मूलत: 0.1 से लेकर 100 नैनोमीटर आकार के होते हैं. यहाँ ये उल्लेखनीय है कि एक नैनोमीटर एक मीटर के अरबवें हिस्से के बराबर होता है.
इस आकार को समझने के लिए इस बात पर ग़ौर करना होगा कि अधिकांश परमाणु 0.1 से 0.2 नैनोमीटर आकार के होते हैं. डीएनए की लड़ी 2 नैनोमीटर चौड़ी होती है. एक लाल रक्त कोशिका का व्यास 7000 नैनोमीटर का होता है, जबकि हमारे सिर के बाल की औसत मोटाई 80,000 नैनोमीटर होती है.
नैनोमीटर और सेंटीमीटर के बीच के अंतर को हमारे पदचिन्ह और अटलांटिक महासागर के आकारों में अंतर से की जा सकती है.
सूक्ष्म आकार की चीज़ों की प्रकृति अलग क्यों होती है?
जैविक जगत की मूल क्रियाएँ नैनोमीटर के स्तर पर ही होती हैं. यदि आप एक मीटर के अरबवें भाग के पैमाने पर देखें तो सामान्य लगने वाले पदार्थ भी आश्चर्यजनक नए प्रभाव दिखाने लगते हैं. किसी पदार्थ से बनी किसी सूक्ष्म वस्तु की भौतिक और रासायनिक विशेषताएँ, उसी पदार्थ से बनी किसी बड़ी चीज़ के मुक़ाबले बिल्कुल अलग हो सकती है. नैनो पैमाने पर सूक्ष्माकार दिया जाए तो किसी पदार्थ की मज़बूती, चिपकने और सोखने जैसी क्षमताएँ कई गुणा बढ़ सकती है. इसलिए वैज्ञानिक नैनो तकनीक का इस्तेमाल कर नई-नई चीज़ें बनाने में जुट गए हैं.
उदाहरण के लिए सोने-चाँदी के जेवरात इसलिए बनाए जाते हैं कि दोनों तत्व अपेक्षाकृत अक्रियक होते हैं यानि उनकी चमक और प्रकृति लंबे समय तक जस की तस बनी रहती है. वहीं नैनो पैमाने पर सोने और चाँदी के कण-समूह विशेष गुण प्रदर्शित करते हैं. नैनो स्तर पर सोने के 8 या 22 परमाणुओं का समूह जहाँ किसी उत्प्रेरक के समान सक्रिय रहता है, वहीं 7 या 20 परमाणुओं का समूह अक्रिय पदार्थ की तरह व्यवहार करता है. इसी तरह चाँदी के नैनो-कण बैक्टेरियारोधी गुण प्रदर्शित करते हैं, इसलिए घाव भरने की आधुनिक दवाओं में उनका खुल कर उपयोग किया जाने लगा है. नैनो स्तर पर रवाकृत किए गए धातुओं की बात करें तो उनमें सामान्य प्रकार की तुलना में कहीं ज़्यादा मज़बूती और लचीलापन होता है.
क्या कारण है नैनो पदार्थों के इस क़दर अलग व्यवहार का?
इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण माने जाते हैं. पहली बात ये कि नैनो-कणों में घनत्व के अनुपात में सतह का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है जो इन्हें ज़्यादा सक्रिय बनाता है. दूसरी बात ये कि अमूमन 100 नैनोमीटर से छोटे आकार के पदार्थों पर क़्वांटम प्रभाव बढ़ जाता है जो इनके प्रकाशीय, इलेक्ट्रॉनिक और चुंबकीय प्रभावों में व्यापक रद्दोबदल कर डालता है.
हालाँकि इसका मतलब ये नहीं है कि सूक्ष्म जगत में प्रकृति के अलग नियम चलते हैं. इससे मात्र ये साबित होता है कि छोटों की दुनिया में प्रकृति के नियम अलग तरह से लागू होते हैं. उदाहरण के लिए यदि एक इलेक्ट्रॉन को एक नैनोमीटर व्यास के तार से गुजारा जाए तो इलेक्ट्रॉन की गतिविधियाँ बुरी तरह नियंत्रित हो जाएँगी जिसके चलते वहाँ वोल्टेज और सुचालकता के संबंध नए तरह से परिभाषित होने लगेंगे.
आम उपयोग की किन चीज़ों या उपकरणों में इस समय नैनो तकनीक का उपयोग किया जा रहा है?
वर्ष 2006 तक दुनिया भर में 1600 नैनो पदार्थों का पेटेन्ट कराया जा चुका था और अमरीका के Project on Emerging Nanotechnologies के अनुमानों के अनुसार इस समय दुनिया भर में कम से कम 600 उत्पाद ऐसे हैं जिनमें नैनो पदार्थों का उपयोग किया जाता है. इसी साल वैज्ञानिकों ने मैग्नीज़ ऑक्साइड के नैनो तार की सहायता से एक ऐसा कागज़ तैयार किया है जो पानी पर फैले तेल को पूरा का पूरा सोख लेता है, वो भी एक बूँद पानी सोखे बिना. इससे मिलते-जुलते तरीक़े से किसी भी कपड़े को शत-प्रतिशत वॉटरप्रूफ़ बनाया जा सकता है.
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नैनो तकनीक से क्या कुछ संभव हो सकता है?
अनंत संभावनाएँ हैं. वर्ष 1986 में ही के. एरिक ड्रेक्सलर नामक अमरीकी वैज्ञानिक ने अपनी प्रकृति ख़ुद तैयार करने में सक्षम नैनो आकार के रोबोट की परिकल्पना की थी जो कि उनके अनुसार समाज के बहुत सारे काम करने में सक्षम होंगे. इतना ही नहीं नैनोरोबोट मनुष्य के शरीर की मरम्मत भीतर से कर उसे दीर्घायु बना सकेंगे. ऐसे रोबोट वायुमंडल से प्रदूषणकारी तत्वों की सफाई उनके उत्सर्जन के तुरंत बाद करने में सक्षम होंगे.
ख़ैर, ये तो हुई बहुत बाद की भविष्यवाणी जिनमें से कुछ आज 20 साल बाद भी कोरी कल्पना मात्र दिख रही हैं. लेकिन ये तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में नैनो तकनीक से कंप्यूटिंग, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों के अलावा पर्यावरण और सैन्य क्षेत्र में भी काफ़ी कुछ नया देखने को मिलेगा. यदि चिकित्सा क्षेत्र की ही बात करें तो ऐसे छोटे उपचारी स्मार्ट-बम बनाए जा चुके हैं जो कैंसरयुक्त कोशिकाओं तक सीधे दवा पहुँचाएँगे. दरअसल ह्यूस्टन के राइस विश्वविद्यालय में नैनोबुलेट के ज़रिए ऐसी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने का सफल प्रयोग किया जा चुका है, जिनका कि ऑपरेशन संभव नहीं था. निकट भविष्य में मानव शरीर की धमनियों में गश्त लगाने वाले नैनो उपकरण बनने की भी पूरी संभावना बताई जा रही है जो संक्रमणों का मुक़ाबला करेंगे और रोगों की सूचना जुटाएँगे. पर्यावरणीय वैज्ञानिक भूमिगत जलस्रोतों को ज़हरीले प्रदूषकों से मुक्त करने के अलावा ज़्यादा समर्थ सौर-पैनल बनाने में नैनो तकनीक का प्रयोग पहले से ही कर रहे हैं.
नैनो तकनीक को लेकर इतना डर क्यों?
ये बिल्कुल स्पष्ट है कि सूक्ष्म आकार के किसी पदार्थ का व्यवहार समान स्रोत वाले किसी बड़े आकार के पदार्थ से बिल्कुल ही अलग होता है. लेकिन नैनो पदार्थों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों के बारे में विस्तृत अध्ययन अभी नहीं हुआ है. हालाँकि पिछले दिनों छिटपुट अध्ययन ज़रूर हुए हैं. उदाहरण के लिए हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि वाहनों के धुएँ के साथ निकलने वाले अतिसूक्ष्म आकार के रासायनिक कण हृदय रोगों के कारकों में शामिल हैं.
इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं कि धूप से त्वचा की सुरक्षा करने वाले क्रीम में जिन नैनो-कणों का उपयोग किया जाता है वे नुक़सानदेह हैं, लेकिन उनसे स्वास्थ्य को कोई नुक़सान नहीं होगा इस बारे में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है.
कई संस्थाओं ने कृत्रिम नैनोकण युक्त पदार्थों के बहिष्कार का आहवान किया है, मानो प्राकृतिक रूप से निर्मित नैनो-कणों के ग़ैरनुक़सानदेह होने की गारंटी हो, जबकि ऐसी कोई बात नहीं है. उदाहरण के लिए कोयला, लकड़ी आदि को जलाते समय धुएँ के साथ जो कालिख या राख उड़ती है वो भी वास्तव में कार्बन से बने नैनो कण ही हैं, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुक़सानदेह हैं और जिनसे हर कोई बचना चाहता है.
ब्रिटेन के Royal Commission on Environmental Pollution की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नैनो तकनीक से बने उत्पाद स्वास्थ्य संबंधी ख़तरों की पड़ताल किए बिना बाजार में ठेले जा रहे हैं. ब्रिटेन में ही उपभोक्ता अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था 'व्हिच?' ने पिछले महीने जब सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली 67 कंपनियों से पूछा कि क्या वे अपने उत्पादों में नैनो पदार्थों का इस्तेमाल करती हैं, तो मात्र 17 कंपनियों ने जवाब दिया जिनमें से 8 ने हामी भरी.
दरअसल इन उत्पादों के निर्माताओं का बहाना ये है कि इनके द्वारा प्रयुक्त नैनो पदार्थों में से अधिकतर सिल्वर और कार्बन जैसे रासायनिक पदार्थों के ज़रिए बनते हैं, और आमतौर पर सुरक्षित स्रोत माने जाते हैं. लेकिन नैनोमीटर जितने सूक्ष्म पैमाने पर इन उत्पादों का मनुष्यों, पशुओं और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी क़ायदे से पड़ताल किसी ने नहीं कराई है.
किस तरह के नैनो उत्पादों को लेकर विशेष चिंताएँ हैं?
अभी जिन उत्पादों को लेकर ख़ास चिंताएँ हैं वे हैं- नैनोसिल्वर और कार्बन नैनोट्यूब. नैनोसिल्वर एक जीवाणुरोधी पदार्थ है जो मोजे, जाँघिए और टीशर्ट जैसे कपड़ों में दुर्गंध पैदा करने वाले जीवाणुओं के विकास पर रोक लगाती है. जबकि कार्बन नैनोट्यूब से बने कपड़ों को डाई करने की ज़रूरत नहीं होती है, क्योंकि नैनोफ़ाइबर की मोटाई से उसका रंग निर्धारित किया जाता है जोकि कार्बन रेशों के परावर्तक गुणों से संभव होता है.
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नैनो-चिकित्सा की बात करें तो नॉर्थ कैरोलाइना विश्वविद्यालय के एक विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि शरीर के भीतर अपना काम करने के बाद नष्ट नहीं होने वाले और भीतर ही बने रहने वाले नैनो पदार्थ अंगों की नाकामी का कारण बन सकते हैं.
कैसे बनते हैं नैनो पदार्थ?
पारंपरिक तरीक़ों से नैनो पदार्थ या औजार तैयार करना आसान नहीं है. इन्हें बनाने के लिए आमतौर पर दो तरीक़े अपनाए जाते हैं. पहला तरीक़ा बॉटम-अप का है यानि सूक्ष्तम इकाई से शुरुआत की जाती है. कई मामलों में एक-एक परमाणु से शुरुआत की जाती है. टाइटेनियम डाइऑक्साइड और आइरन ऑक्साइड जैसे कम जटिल नैनो पदार्थ रासायनिक प्रक्रिया के ज़रिए बनाए जाते हैं. जबकि कार्बन नैनोट्यूब या 60 परमाणुओं वाले गेंद जैसे यौगिकों को स्वत: आकार ग्रहण के लिए बाह्य दशाएँ मुहैया कराई जाती हैं.
दूसरे टॉप-डाउन तरीक़े में किसी पदार्थ के एक बड़े टुकड़े शुरुआत की जाती है उन्हें काटते-छीलते हुए सूक्ष्म आकार दिया जाता है. सिलिकॉन चिप्स और सर्किट बोर्ड आदि बनाने में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है. ये भी कोई आसान प्रक्रिया नहीं मानी जाती है.