शुक्रवार, फ़रवरी 29, 2008

लीप वर्ष का जादू

कहते हैं तारीख़ डायरी का एक पन्ना मात्र होती है. तीन मार्च हो या नौ अप्रैल या फिर 15 नवंबर, यदि कोई तिथि किसी कारण आपकी ज़िंदगी में किसी मील के पत्थर के समान नहीं हो या किसी ख़ास याद से नहीं जुड़ी हो तो शायद ही आप उसकी नोटिस लेंगे. यानि अधिकांश तारीख़ें बिना अपना महत्व जताए आती-जाती रहती हैं. सिर्फ़ एक तारीख़ ही इसका अपवाद है- 29 फ़रवरी...हर चौथे साल कैलेंडर पर दिखने वाला एक विशेष दिन.

लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन 29 फ़रवरी इसलिए महत्वपूर्ण है कि ये प्रकृति द्वारा...सौर मंडल और इसके नियमों के सौजन्य से आता है. ये धरती के सूर्य की परिक्रमा करने से जुड़ा हुआ है.

जैसा कि स्कूलों में शुरू से ही बताया जाता है, धरती को सूरज का एक चक्कर लगाने में 365.242 दिन लगते हैं. मतलब एक कैलेंडर वर्ष से चौथाई दिन ज़्यादा. इसीलिए हर चौथे साल कैलेंडर में एक दिन अतिरिक्त जोड़ना पड़ता है. इस बढ़े दिन वाले साल को लीप वर्ष या अधिवर्ष कहते हैं. ये अतिरिक्त दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप वर्ष का 60वाँ दिन बनता है, यानि 29 फ़रवरी.

यदि 29 फ़रवरी की व्यवस्था नहीं हो तो हम हर साल प्रकृति के कैलेंडर से लगभग छह घंटे आगे निकल जाएँगे, यानि एक सदी में 24 दिन आगे. ऐसा होता तो मौसम को महीने से जोड़ कर रखना मुश्किल हो जाता. मसलन यदि लीप वर्ष की व्यवस्था ख़त्म कर दें तो आजकल जिसे मई-जून की सड़ी हुई गर्मी कहते हैं वैसी 'सूरज तपता धरती जलती' की स्थिति 500 साल बाद दिसंबर में आएगी.

ईसा पूर्व 46 में जूलियस सीज़र द्वारा लाए गए जूलियन कैलेंडर में लीप वर्ष की व्यवस्था की गई. उन दिनों कैलेंडर का अंतिम महीना फ़रवरी होता था, जोकि सबसे छोटा महीना भी था. इसलिए अतिरिक्त दिन फ़रवरी में जोड़ा गया. जूलियस सीज़र ने मौसम को महीने से ठीक-ठीक मिलाने की कोशिश में उस साल यानि 46BC में कुल 90 अतिरिक्त दिन भी जोड़े..यानि कुल 445 दिनों का वर्ष जिसे ख़ुद सीज़र ने 'भ्रम का अंतिम वर्ष' कहा था.

हालाँकि 42BC में पहला लीप वर्ष अपनाए जाने के बाद भी भ्रम बना रहा, जब जूलियस सीज़र के किसी अधिकारी की ग़लती के कारण हर तीसरे साल को लीप वर्ष बनाया जाने लगा. इसे 36 साल बाद ठीक किया जूलियस के उत्तराधिकारी ऑगस्टस सीज़र ने. उसने तीन लीप वर्ष बिना किसी अतिरिक्त दिन जोड़े गुजर जाने दिए और 8AD से दोबारा हर चौथे साल लीप वर्ष को नियमपूर्वक लागू करना सुनिश्चित किया.

लेकिन जूलियन कैलेंडर को लागू किए जाने के बाद भी एक कमी रह गई थी. जिसे दूर किया लुइजि गिग्लियो ने. गिग्लियो ने 1580 के आसपास ये सिद्ध किया कि प्रकृति की घड़ी के साथ पूरी तरह ताल मिला कर चलने के लिए हर चौथे वर्ष एक दिन जोड़ने की व्यवस्था में कुछ अपवाद लगाने होंगे. उसने कहा कि कोई वर्ष जो कि 4 से विभाजित होता हो, उसमें फ़रवरी 29 दिन का होगा. लेकिन यदि 4 से विभाजित साल 100 से भी विभाजित होता है तो उसमें फ़रवरी 28 दिन का ही होगा. इसके ऊपर गिग्लियो ने एक और व्यवस्था दी, वो ये कि 4 और 100 से विभाजित होने वाला साल यदि 400 से भी विभाजित होता हो तो उसे लीप वर्ष माना जाए. इसीलिए 1700, 1800 और 1900 जहाँ सामान्य वर्ष माना गया, वहीं 2000 को लीप वर्ष का सम्मान मिला.

पोप ग्रेगोरि के आदेश के बाद कैथोलिक देशों ने संशोधित जूलियन कैलेंडर या नए ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में लागू किया. नए कैलेंडर में साल का अंतिम महीना फ़रवरी नहीं, बल्कि दिसंबर निश्चित किया गया.(हालाँकि लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन फ़रवरी के लिए ही रहने दिया गया.) उस साल नए कैलेंडर लागू करने की प्रक्रिया में 5 से 14 अक्टूबर की तारीख़ ग़ायब करनी पड़ी. इसी तरह जब 1752 में ब्रिटेन और उसके अधीनस्थ देशों ने अंतत: ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया तो उन्हें उस साल 3 से 13 सितंबर की तिथियाँ हटानी पड़ीं.

लेकिन इसके बाद भी सर्वमान्य ग्रेगोरियन वर्ष अभी सौर वर्ष से 27 सेकेंड बड़ा है. मतलब कैलेंडर में कोई सुधार नहीं किया गया तो दस हज़ार साल बाद हम प्रकृति के कैलेंडर से तीन दिन आगे होंगे. यानि इससे बचने के लिए कोई 3236 साल बाद एक बार फ़रवरी को 30 दिन का बनाना पड़ सकता है.
लीप्लिंग थे मोरारजी देसाई
क़ानून में 29 फ़रवरी को लेकर बड़ी ही अज़ीबोग़रीब स्थिति है. कई देशों में ऋण से जुड़े अदालती फ़ैसलों में इसके अस्तित्व तक को नकार दिया गया है. इस दिन पैदा हुए लोगों (लीपर्स या लीपलिंग्स) ने हर साल अपना जन्मदिन मनाने के लिए एक अतिरिक्त जन्मदिन तय कर रखा होता है- आमतौर पर 28 फ़रवरी या 1 मार्च. (अपने स्वर्गीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी 29 फ़रवरी को ही पैदा हुए थे.)

नौकरीपेशा लोगों को लीप वर्ष में एक अतिरिक्त दिन काम करना पड़ता है, वो भी बिना किसी अतिरिक्त वेतन के. शायद इसीलिए ब्रिटेन में नौकरीपेशा लोगों ने 29 फ़रवरी के बदले एक दिन का अतिरिक्त अवकाश घोषित करने के लिए प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर एक माँग पत्र डाला है.

ये तो हुई लीप वर्ष की बात. यानि एक ऐसा प्रयास जो सूरज के साथ क़दम मिला कर चलने की कोशिश है. लेकिन एक पचड़ा लीप सेकेंड का भी है. ये हमें प्रकृति से भी कहीं ज़्यादा सटीक 'टाईमकीपर' बनाने के दावे के साथ शुरू किया गया है. लीप सेकेंड के पचड़े पर चर्चा फिर कभी.

शुक्रवार, फ़रवरी 01, 2008

चाँद छूने के बाद (भाग-2)

चंद्रोदयइस लेख के पहले हिस्से में हमने चाँद पर क़दम रखने वाले लोगों में से सात के बारे में पढ़ा. आइए बाक़ी के पाँच मूनवॉकर के बारे में जानते हैं कि धरती से इतर किसी ज़मीन पर क़दम रखने की उपलब्धि हासिल करने के बाद उनकी ज़िंदगी कैसी रही-

8. जेम्स इरविन, अपोलो 15 (30 जुलाई 1971)
इरविन की मानें तो चाँद पर क़दम रखने के साथ ही उनका ईश्वर से साक्षात्कार हुआ था. भगवान से इस मुलाक़ात ने उनकी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया. धरती पर वापस लौटते ही उन्होंने नासा छोड़ दिया. वे न सिर्फ़ धर्म की शरण में आ गए, बल्कि High Flight Foundation नामक एक संगठन की स्थापना भी की जो कि ईसाइयत की विभिन्न शाखाओं को साथ लेकर चलती है. इस संगठन का नेतृत्व करते हुए वो चार बार मिशन लेकर तुर्की गए Noah's Ark की खोज करने. यानि उस नौका के अवशेष ढूंढने जो कि मिथकों के अनुसार महाप्रलय के दौरान ईश्वरीय निर्देश पर तत्कालीन दुनिया के एकमात्र सदचरित्र व्यक्ति नोह और उसके परिवार तथा प्रमुख जीव प्रजातियों को बचाने के लिए बना था. इरविन को इस मिथकीय नौका को ढूँढ निकालने के अपने प्रयास में हर बार नाकामी ही मिली. इरविन का 1991 में निधन हुआ.

9. जॉन डब्ल्यू यंग, अपोलो 16 (21 अप्रैल 1972)
यंग छह बार अंतरिक्ष यात्राएँ करने वाले पहले व्यक्ति बने. ये रिकॉर्ड अभी भी उनके नाम है. चंद्रयात्रा के बाद 32 साल तक वे नासा के साथ रहे और 74 साल की उम्र में 2004 में सेवानिवृति ली. अत्यंत प्रतिभावान यंग ने नासा के 50 वर्षों के इतिहास में लगभग सभी प्रमुख परियोजनाओं में अपना योगदान दिया. उनके साथी अंतरिक्षयात्रियों की मानें तो यंग विनम्रता की प्रतिमूर्ति हैं.

10. चार्ल्स ड्यूक, अपोलो 16 (21 अप्रैल 1972)
ड्यूक को चाँद पर जा कर इतनी ख़ुशी हुई कि उन्हें वहाँ हेलमेट उतारने की इच्छा पर काबू करने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी. चंद्रयात्रा के बाद वे बोरियत का शिकार हो गए. उन्होंने नासा को छोड़ दिया और ढेर सारा पैसा बनाने का फ़ैसला किया. उन्होंने बीयर के धंधे में ख़ूब पैसा बनाया भी. लेकिन बोरियत एक बार फिर उन पर हावी हो गई, और वे दिन-रात बीयर में डूबे रहने लगे. उनकी पत्नी डॉटि को भी ड्यूक पर चंद्र की कुदृष्टि पड़ने का अहसास हुआ. उन्होंने चंद्रयात्रा के बाद ड्यूक के ग़ुस्सैल हो जाने और परिवार से दूर काम में ही मशगूल रहने की शिकायत की. इन सबके बीच डॉटि भी नशाखोरी में डूब गई. लेकिन बाद में वह ईश्वर की शरण में आ गई. इसके बाद ड्यूक ने भी बीयर का धंधा छोड़ धर्म की राह पकड़ ली. इस तरह अंतत: पति-पत्नी चंद्रमा के अभिशाप से मुक्त हुए. अब दोनों ईसाइयत का प्रचार करते हैं, लोगों को सदकर्म के लिए प्रेरित करते हैं.

11. यूजिन कर्नेन, अपोलो 17 (11 दिसंबर 1972)कर्नेन
कर्नेन चंद्रमा पर उतरने वाले ग्यारहवें लेकिन चंद्र सतह पर चलने वाले अंतिम व्यक्ति हैं. दरअसल वापसी के दौरान वे बारहवें मूनवॉकर श्मिट के बाद अपोलो चंद्र मॉड्यूल में वापस लौटे थे. कर्नेन 1975 में प्राइवेट सेक्टर में आ गए, लेकिन नासा की परियोजनाओं में योगदान देते रहे. कर्नेन मानव अंतरिक्ष मिशन के बड़े पैरोकारों में से हैं. वर्षों से वे चाँद पर दोबारा मानव मिशन भेजे जाने के साथ-साथ मंगल ग्रह पर भी मनुष्य को पहुँचाने के लिए जनमत बनाने का प्रयास करते रहे हैं.

12. हैरिसन जैक श्मिट, अपोलो 17 (11 दिसंबर 1972)
चाँद पर उतरने वाले बारहवें व्यक्ति और एकमात्र वैज्ञानिक श्मिट 1975 में नासा को छोड़ कर राजनीति में आ गए. वे 1977 में अमरीकी सीनेट के लिए चुने गए. लेकिन अगले कार्यकाल के लिए नहीं चुने जाने पर 1982 में उन्होंने राजनीति को नमस्कार कह दिया. अब उनका समय हीलियम-3 पर रिसर्च में बीतता है. माना जाता है कि चाँद पर बहुतायत में उपलब्ध हीलियम-3 भविष्य में ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत साबित हो सकता है.