गुरुवार, जून 12, 2008

निम चिम्पस्की की करूण कथा

निम चिम्पस्कीबन्दरों पर पंकज अवधिया जी का रोचक शोध पढ़ने के तुरंत बाद एक चिंपांज़ी पर हुए दुखद शोध के बारे में पढ़ने का मौक़ा मिला.

ये कहानी है निम चिम्पस्की नामक चिंपांज़ी की. मशहूर भाषाविद नोम चोम्स्की के नाम पर उसे ये पहचान दी गई थी.

बात है 1973 की, जब अमरीका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में वानरभाषा पर एक अभूतपूर्व प्रयोग करने का फ़ैसला किया गया. इस प्रयोग को 'प्रोजेक्ट निम' नाम दिया गया, और प्रयोग में शामिल चिंपांज़ी को निम चिम्पस्की नाम देना तय किया गया. दरअसल मनोविज्ञानी प्रोफ़ेसर हर्बर्ट टेरेस नोम चोम्स्की के एक मशहूर सिद्धांत को ग़लत साबित करके दिखाना चाहते थे. चोम्स्की का मानना है कि हमारी भाषाएँ मानव मस्तिष्क में केंद्रित कुछ विशेष नियमों से बंधी होती हैं, इसलिए ये मनुष्य मात्र के लिए ही संभव हैं. वानर जाति में मनुष्यों जैसा भाषा ज्ञान होने की संभावना को चोम्स्की सिरे से ख़ारिज करते हैं. अधिकांश वैज्ञानिकों की राय भी यही है कि दो जीव प्रजातियों के बीच भाषाई संबंध की बात कपोल कल्पना है, न कि अनुसंधान का विषय.

लेकिन प्रोफ़ेसर टेरेस चिंपांज़ी को मूक-बधिर समुदाय की भाषा अमेरिकन साइन लैंग्वेज सिखा कर न सिर्फ़ चोम्स्की को ग़लत साबित करना चाहते थे, बल्कि इस मान्यता के ख़िलाफ़ भी सबूत जुटाना चाहते थे कि मनुष्य और जानवरों के बीच मुख्य अंतर का आधार भाषा ही है.

ओकलाहोमा के Institute for Primate Studies की एक 18 वर्षीय मादा चिंपांज़ीं के एक दुधमुंहें बच्चे को इस प्रयोग के लिए चुना गया. उसे निम चिम्पस्की नाम देकर प्रोफ़ेसर टेरेस की शिष्या रही स्टेफ़नी लाफ़ार्ज नामक महिला को सौंप दिया गया. स्टेफ़नी ओकलाहोमा से चिम्पस्की को अपने घर न्यूयॉर्क ले आई.

स्टेफ़नी, उसके पति और उसकी 12 वर्षीय बेटी के साथ चिम्पस्की पलने लगा. कुछ महीनों के भीतर वह एक शरारती बच्चा साबित होने लगा. डाँटने और पिटाई करने से भी जब चिम्पस्की की शरारत नहीं रुकती, तो सिर्फ़ एक उपाय हमेशा काम करता. चिम्पस्की को किसी कमरे में अकेला छोड़ कर सारे लोग बाहर निकल जाते. इस तरह बहिष्कार किए जाने पर उसे होश आ जाता कि शायद वह कुछ ग़लत कर रहा होगा, और वह शरारत करना बंद कर देता. जल्दी ही उसने साइन लैंग्वेज में 'सॉरी' कहना सीख लिया.

वैसे स्टेफ़नी ने जब चिम्पस्की को विधिवत प्रशिक्षण देना शुरू किया तो उसे साइन लैंग्वेज में पहला शब्द सिखाया- पीना. इस शब्द को सिखाने में मात्र दो सप्ताह लगे. दो महीने के भीतर चिम्पस्की के शब्दकोश में 'लाओ', 'ऊपर', 'मिठाई' और 'ज़्यादा' जैसे कई शब्द जुड़ गए.

इस तरह 'प्रोजेक्ट निम' चल निकला. मीडिया में चिम्पस्की की चर्चा होने लगी. न्यूयॉर्क पत्रिका के कवर पर तस्वीर छपने के बाद तो उसे सब जानने लगे. 'टॉकिंग चिम्प' चिम्पस्की को टीवी शो में आमंत्रित किया जाने लगा, जहाँ वह सेट पर उछलकूद करने के साथ-साथ साइन लैंग्वेज के ज़रिए प्रस्तुतकर्ता से पानी की माँग कर सबको हतप्रभ कर देता.

साइन लैंग्वेज प्रशिक्षणअपने प्रयोग में हो रही प्रगति से प्रोफ़ेसर टेरेस इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने प्रशिक्षण का स्तर और सघन करने का फ़ैसला किया. इसके लिए चिम्पस्की को स्टेफ़नी के घर से निकाल कर कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञान विभाग के एक विशेष कक्ष में रखा गया. उसके लिए एक कठोर शिक्षक कैरोल स्टीवार्ट को नियुक्त किया गया. पहले ही अवसर में स्टीवार्ट ने चिम्पस्की के मस्ती के दिन ख़त्म कर दिए. उसे छोटी सी बेंच पर बिठा कर रखा जाता. चिम्पस्की से उम्मीद की जाने लगी कि वो अपना कोट हैंगर पर टांगे. खों-खों करने, काटने या मस्ती के मूड में आने पर सज़ा के तौर पर उसे चार फ़ुट के खिड़कीरहित बक्से में डाल दिया जाता.

ये सब बातें जब चिम्पस्की की पहली शिक्षिका स्टेफ़नी को पता चलीं तो उसने अपना विरोध जताया. उसने कहा कि चिम्पस्की अपने को मनुष्यों के साथ जोड़ कर देखता है, इसलिए उसके साथ जानवर जैसा व्यवहार करना कतई ठीक नहीं है. दरअसल एक बार चिम्पस्की को मनुष्यों और चिंपाज़िंयों की कुछ तस्वीरें देख कर उसे दो समूहों में बाँटने को कहा गया था. उनमें से एक तस्वीर ख़ुद उसकी भी थी. चिम्पस्की ने इस काम को कर दिखाया, लेकिन अपनी तस्वीर मनुष्यों के बीच रखी.

जब स्टीवार्ट के कड़क प्रशिक्षण का ज़्यादा उत्साहजनक परिणाम नहीं निकला, तो उसे परियोजना से बाहर कर दिया गया. अब चिम्पस्की को एक 21 कमरों वाली बड़ी हवेली में स्थानांतरित कर दिया गया. हडसन नदी के किनारे बनी इस हवेली में चिम्पस्की की ज़िंदगी थोड़ी आसान हो गई. नए प्रशिक्षक भी उसके साथ बढ़िया से पेश आते थे. लेकिन माँ(पहली प्रशिक्षक स्टेफ़नी) की कमी उसे यहाँ भी महसूस होती. इस कारण वह चिड़चिड़ा भी हो गया. इसके बाद भी उसने 100 शब्द सीख लिए, जिनके ज़रिए वह हज़ारों तरह के विचार व्यक्त कर लेता था. लेकिन साथ ही वह आसपास मौजूद लोगों को कभी-कभी काट भी खाता. चिम्पस्की ने हद तब पार कर ली जब उसने अपने एक प्रशिक्षक के चेहरे को बुरी तरह नोंच डाला. यही वो वक़्त था जब प्रोफ़ेसर टेरेस ने चिम्पस्की को वापस चिंपांज़ियों के बीच ओकलाहोमा भेजने का फ़ैसला किया. उनका कहना था कि अध्ययन के लिए ज़रूरी आंकड़े वैसे भी जुटाए जा चुके हैं.

वर्षों तक चिम्पस्की लोगों के बीच रहा था. उसकी किसी अन्य चिंपांज़ी से मुलाक़ात तक नहीं हो पाई थी. इसलिए जब उसे चिंपाज़ियों के बाड़े में भेज दिया गया, तो वहाँ वह लोगों से संवाद करने के लिए तरसता. न सिर्फ़ उसकी ज़रूरत को नज़रअंदाज़ किया गया, बल्कि उल्टे उसे चिंपांज़ियों के साथ संवाद करने की ट्रेनिंग दी जाने लगी. इसी दौरान इस ओकलाहामा स्थित इंस्टीट्यूट पर वित्तीय संकट आ गया. इसके निदेशक का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था. ऐसे में उन्होंने चोरी-चुपके चिम्पस्की समेत 20 चिंपांज़ियों को चिकित्सा अनुसंधान प्रयोगशाला Laboratory of Experimental Medicine and Surgery in Primates को बेच दिया. न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की इस प्रयोगशाला में चिम्पस्की पर हेपटाइटिस से जुड़ा एक अध्ययन किया जाना था. यहाँ चिम्पस्की को बुरी परिस्थितियों में रखा जा रहा था. बाक़ी चिम्पांज़ियों के साथ ही उसे पिंजड़े में बंद रखा जाता. प्रयोगशाला के एक सहायक ने ग़ौर किया कि वहाँ न सिर्फ़ चिम्पस्की बल्कि उसके प्रभाव में अन्य चिंपांज़ी में साइन लैंग्वेज में पानी, सिगरेट आदि की माँग कर रहे होते थे. शायद ज़रूरत के तौर पर नहीं, बल्कि हताशा में.

ये ख़बर बाहर आते ही राष्ट्रीय स्तर पर विरोध शुरू हो गया. अख़बारों और टीवी चैनलों ने एक चिंपांज़ी के मानवीकरण की कोशिश करने और बाद में उसे चिकित्सीय प्रयोग के लिए त्याग देने की नैतिकता पर बहस शुरू कर दी. इस बीच प्रोफ़ेसर टेरेस अपने अध्ययन की रिपोर्ट जारी कर चुके थे, जिसमें उन्होंने अपने शुरुआती विचार से बिल्कुल उल्टा जाते हुए कहा कि चिंपांज़ी मनुष्यों की भाषा नहीं समझ सकते. अपने 'प्रोजेक्ट निम' को नाकाम बताते हुए उन्होंने कहा कि चिम्पस्की जैसे चिंपांज़ी सिर्फ़ नकल भर कर पाते हैं, संवाद करने का नाटक कर वैज्ञानिकों को मूर्ख बनाते हैं. प्रोफ़ेसर टेरेस के इस तरह पलटी मारने से पूरा अमरीका हतप्रभ रह गया.

लेकिन प्रोफ़ेसर टेरेस ने भी न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में चिम्पस्की को जानवरों के जैसा रखे जाने पर हो रहे विरोध में बढ़-चढ़ कर भाग लिया. इस दौरान एक वकील ने चिम्पस्की के समर्थन में अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की घोषणा की. चौतरफ़ा दबाव की रणनीति काम आई और महीने भर के भीतर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय ने चिम्पस्की को छोड़ने का फ़ैसला किया. संयोग से उस पर किसी तरह के प्रयोग अभी शुरू नहीं किए गए थे.

अंतत: पशु अधिकारवादी लेखक क्लीवलैंड एमोरि ने चिम्पस्की को ख़रीद कर टेक्सस स्थित अपने पशु अभ्यारण्य में डाल दिया. लेकिन वहाँ भी उसे ज़्यादातर पिंजरे में ही रखा जाता. एमोरि ने अपने अभ्यारण्य में साइन लैंग्वेज जानने वाले किसी कर्मचारी की व्यवस्था नहीं की थी. इसलिए चिम्पस्की वहाँ भी लोगों से संवाद करने के लिए तरसता ही रहा. उसके अकेलेपन पर तरस खाकर एमोरि ने एक मादा चिंपाज़ी सैली को उसके पिंजरे में डाल दिया. इसका ज़्यादा असर नहीं हुआ, लेकिन एमोरि के लिए चिम्पस्की को सैली के साथ खेलते देखना सुखद था.

जब कभी चिम्पस्की को पिंजरे से निकलने का मौक़ा हाथ लगता, वह अभ्यारण्य के मैनेजर के आवास में जा धमकता. वहाँ फ़्रिज से खाने-पीने का सामान निकालता. टकटकी लगा कर टीवी देखता. ज़ाहिर है उसे मनुष्यों का साथ अभी भी पसंद था. चिम्पस्की को रोज़ मन बहलाने के लिए सचित्र किताबें-पत्रिकाएँ दी जाती थीं. अधिकतर किताबों-पत्रिकाओं को वह खेल-खेल में फाड़ डालता था. अपवाद थी सिर्फ़ दो किताबें- एक थी साइन लैंग्वेज सिखाने वाली किताब, और दूसरी 1980 में प्रकाशित उसके फ़ोटो-एलबम जैसी किताब The Story of Nim:The Chimp Who Learned Language.

एक दिन चिम्पस्की की पहली प्रशिक्षक स्टेफ़नी वहाँ उससे मिलने पहुँची. वह एमोरि की हिदायतों के बावजूद पिंजरे के भीतर जा पहुँची. चिम्पस्की ने कुछ देर अपनी माँ समान स्टेफ़नी को घूर कर देखा, फिर उसे ज़मीन पर गिरा दिया और घसीट कर पिंजरे के एक कोने में लगा दिया. वह ख़ुद दरवाज़ा छेंक कर खड़ा हो गया मानो वह स्टेफ़नी को भागने नहीं देगा. स्टेफ़नी को चोट ज़रूर लगी लेकिन उसका कहना था कि चूंकि उसने आरंभ में अपनाने के बाद चिम्पस्की का परित्याग किया है, इसलिए वह उसके ग़ुस्से को समझ सकती है.

सैली का 1997 में बीमार होने के बाद निधन हो जाने के बाद चिम्पस्की एक बार फिर अकेला पड़ गया. अंतत: उसकी भी 10 मार्च 2000 को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. वह अभी 20 साल और जी सकता था. लेकिन शायद मानव की तरह पलने और जानवर जैसा बर्ताव सहने ने उसकी ज़िंदगी छोटी कर दी!

(निम चिम्पस्की की करुण कथा पिछले दिनों Nim Chimpsky: The Chimp Who Would Be Human के रूप में प्रकाशित हुई है.)

सोमवार, जून 09, 2008

राज़ खोलो, पहचान गुप्त रहेगी

स्मार्ट बमअमरीका का GPS-निर्देशित स्मार्ट बम किस हद तक सटीक निशाना साधता है? इसके निशाने से कितना दूर तक छिटकने के आसार होते हैं? ये सारी सूचनाएँ इंटरनेट पर उपलब्ध हैं. पेंटागन के खुलेपन के कारण नहीं, बल्कि विकिलीक्स के सौजन्य से. वर्ष 2002 के इस दस्तावेज़ को सार्वजनिक किए जाने के बाद से यों तो अमरीका ने स्मार्ट बम या Joint Direct Attack Munition के डिज़ायन में कुछ बदलाव किए हैं, लेकिन विकिलीक्स के सौजन्य से ही हमें पता चल पाया कि दो दशकों में अमरीकी आयुध भंडार में आए इस सबसे महत्वपूर्ण बम के 2.8 मीटर तक निशाना चूकने की बात ग़लत थी, क्योंकि ये परीक्षण स्थिति का आँकड़ा था. वास्तविक युद्ध में ये 7.8 मीटर तक छिटक सकता है.

मुझे विकिलीक्स के बारे में पहली बार साल भर पहले ख़बरों की दुनिया में विचरण करते वक़्त पता चला था, लेकिन इसके काम करने के तरीके के बारे में आसान शब्दों में ढंग की जानकारी अब जा कर मिली है, विज्ञान पत्रिका न्यू साइन्टिस्ट के ज़रिए.

ख़ुशी की बात है कि साल भर से कुछ ज़्यादा समय मात्र काम करके विकिलीक्स ने 2008 Economist Index on Censorship Freedom of Expression award हासिल कर दिखाया है. हाल के दिनों में इसने हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम का डिज़ायन सार्वजनिक किया है, साथ ही ये भी बताया कि ब्रिटेन ने कैसे परमाणु हथियार क्षमता का जुगाड़ किया. इसने तिब्बत में पिछले दिनों हुए प्रदर्शन को दबाने के लिए किए चीन के शक्ति-प्रदर्शन के सैंकड़ो दिल दहला देने वाले चित्र और वीडियो क्लिप्स भी उपलब्ध कराए हैं.

बमुश्किल डेढ़ साल पुरानी इस वेबसाइट को चलाने वालों ने अमरीका सरकार, चीन सरकार, पूर्व कीनियाई राष्ट्रपति, सबसे बड़े निजी स्विस बैंक, रूसी कंपनियों, सिंटोलोजी-कैथोलिक-मॉरमन चर्चों आदि के क़ानूनी-ग़ैरक़ानूनी हमलों का सफलतापूर्वक सामना किया है.

विकिलीक्स से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें

-विकिलीक्स के के पहले ही पन्ने पर आमंत्रण और आश्वासन इन शब्दों में दिया गया है- Have documents the world needs to see? We protect you and get your disclosure out to the world.

-विकिलीक्स को किस तरह के गोपनीय दस्तावेज़ों की ज़रूरत है ये एक पंक्ति में स्पष्ट किया गया है- Wikileaks accepts classified, censored or otherwise restricted material of political, diplomatic or ethical significance.

-इसके ठीक बाद एक और पंक्ति में स्पष्ट किया गया है कि विकिलीक्स को किस तरह की जानकारी नहीं चाहिए- Wikileaks does not accept rumour, opinion or other kinds of first hand reporting or material that is already publicly available.

-विकिलीक्स को सार्वजनिक किए जाने योग्य गुप्त दस्तावेज़/रिकॉर्डिंग भोजपुरी और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में भी भेजे जा सकते हैं.

गोपनीयता प्याज़ की परतों के सहारे

विकिलीक्स को मिलने वाले दस्तावेज़ों की परख दुनिया भर में फैले इसके स्वयंसेवक करते हैं. ये लोग या तो जानेमाने वक़ील हैं, या फिर मान्यता प्राप्त पत्रकार. गोपनीयता मुहैया कराने के सच्चे भरोसे के कारण विकिलीक्स को हाल के महीनों में इतनी बड़ी संख्या में दस्तावेज़ प्राप्त हुए हैं, कि उनको शीघ्रता से परखने के लिए स्वयंसेवक कम पड़ गए हैं.

दस्तावेज़ लीक करने वालों को गोपनीयता मुहैया कराने का बड़ा ही सरल आधार है, उनके वेब कनेक्शन के IP address को ज़ाहिर नहीं होने देना. ये काम करता है The Onion Router या टोर नामक एक नेटवर्क. टोर विकिलीक्स को भेजे गए दस्तावेज़ को हज़ारों सर्वरों के एक नेटवर्क के ज़रिए रूट करता है. दस्तावेज़ इन सर्वरों में एक से दूसरे में अनियोजित तरीके से कई बार स्थानांतरित होने के बाद अंतत: विकिलीक्स के इनबॉक्स में पहुँचता है.

दरअसल विकिलीक्स के स्वयंसेवक टोर का क्लाइंट सॉफ़्टवेयर अपने कंप्यूटर पर डाउनलोड कर उसे एक ओनियन प्रॉक्सि में बदल देते हैं. जब कोई गुप्त दस्तावेज़ी संदेश भेजता है तो टोर इसे तीन बार प्याज़ की परतों जैसा इनक्रिप्ट करता है. तीनों परतों के लिए अलग-अलग कुंज़ी देकर उन्हें अनियोजित तरीके से अचानक चुने गए टोर नेटवर्क के तीन प्रॉक्सि सर्वरों को भेज दिया जाता है. इनमें से एक सर्वर पहली परत को डिक्रिप्ट करके चुने गए दूसरे सर्वर को बढ़ा देता है. दूसरा सर्वर एक और परत को डिक्रिप्ट करता है. और अंतत: तीसरे सर्वर से पूरी तरह डिक्रिप्टेड संदेश बाहर आता है. और, आमतौर पर यही लगता है कि संदेश का स्रोत ये तीसरा सर्वर ही है, जबकि असलियत कुछ और है!

इस तरह उछलकूद मचाते हुए गंतव्य तक पहुँचे संदेश का स्रोत का पता हर देश की सुरक्षा एजेंसियों के बूते से बाहर की बात है. अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के पास इसकी क्षमता ज़रूर है, लेकिन इसके लिए उसे सही समय पर सही सर्वर को लक्ष्य करना पड़ेगा. यानि सिद्धांत: संभव, लेकिन व्यावहारिक तौर पर लगभग असंभव काम! कंप्यूटर सुरक्षा विशेषज्ञ Bruce Schnier इसे एक सरल उदाहरण से समझाते हैं, "कल्पना करें लोगों से भरे एक बड़े कमरे की. कमरे में मौजूद लोगों में से अनेक एक-दूसरे को लिफ़ाफ़े सौंप रहे हैं. भला कैसे पता लगाएँगे कि कौन-सा लिफ़ाफ़ा शुरूआत में किसके हाथ में था?"

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध दल ने कुछ टोर प्रॉक्सि सर्वरों की पहचान कर दिखाने का दावा किया है. लेकिन उनके शोध में भी गुप्त संदेश का पता नहीं चल पाया, सिर्फ़ टोर क्लाइंट सॉफ़्टवेयर का उपयोग करने वाले की पहचान भर हो पाई है. यानि विकिलीक्स पर दस्तावेज़ लीक करने के लिए किसी को दोषी साबित करना अभी तक लगभग असंभव ही है.

विचित्र किंतु सत्य

अमरीकी ख़ुफ़िया सैनिक सूचनाओं को बड़ी मात्रा में परोसने वाला विकिलीक्स जिस टोर तकनीक पर आश्रित है, उसका विकास वाशिंग्टन डीसी स्थित अमरीकी नौसैनिक अनुसंधान प्रयोगशाला(NRL) में किया गया था. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि अमरीकी रक्षा मंत्रालय इस नेटवर्क में किसी भी तरह घुसपैठ कर सकता है. विकिलीक्स के प्रवक्ता Julian Assange ने इस तथ्य को इन शब्दों में कहा है, "इंटरनेट की तरह ही, टोर उन लोगों के हाथ से बाहर निकल चुका है, जो कभी इसके निर्माण में शामिल रहे होंगे."

किसी एक देश में क़ानूनी पेंच में फंसाए जाने का तोड़ भी विकिलीक्स ने पहले से ही निकाल रखा है. विकिलीक्स.ऑर्ग के अनेक मिरर साइट्स हैं जिन्हें बेल्जियम, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, क्रिसमस आइलैंड और कैलीफ़ोर्निया समेत कई देशों में रखा गया है. यानि किसी एक देश में विकिलीक्स वेबसाइट को बंद करने के लिए क़ानूनी कार्रवाई करेंगे, फिर भी वेबसाइट पूरी तरह बंद नहीं होगी. ये बात हाल ही में एक स्विस बैंक को समझ में आ गई जब उसने विकिलीक्स के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने की पहल की. ख़ास कर स्वीडन और बेल्जियम के कड़े सेंसरशिप-विरोधी क़ानूनों का बख़ूबी लाभ उठाया है विकिलीक्स ने.

आलोचना और उसका जवाब

विकिलीक्स किसी सरकार या संस्था के प्रति जवाबदेह नहीं है, इसलिए सामरिक महत्व की गोपनीय सूचनाएँ लीक करने के इस प्लेटफ़ॉर्म को लेकर कुछ हलकों में असहजता देखी जा सकती है. इनमें से अमरीकी संस्था Federation of American Scientists(एफ़एसए) भी है जो ख़ुद अपनी Project on Government Secrecy के तहत गोपनीय दस्तावेज़ लीक करती है. एफ़एसए के एक प्रवक्ता Steven Aftergood विकिलीक्स को गोपनीय सूचनाएँ लीक करने की प्राचीन कला को एक पेशेवर रूप देने का श्रेय देते हैं, साथ ही शिकायत भी करते हैं कि विकिलीक्स क़ानून के दायरे बाहर रह कर काम करता है और इसलिए आगे चल कर यह सुरक्षा के लिए ख़तरा बन सकता है.

इस पर विकिलीक्स के प्रवक्ता का जवाब है, "जब सरकार लोगों को प्रताड़ित करना और लोगों को मौत के घाट उतारना बंद कर देगी, जब बड़ी-बड़ी कंपनियाँ क़ानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग करना छोड़ देंगी, तब शायद ये पूछने का समय का होगा कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक जवाबदेह हैं."