रविवार, मार्च 30, 2008

एक बुशल गेहूँ, एक बुशल टमाटर

बुशल टोकरीख़बरों की दुनिया में घूमते हुए कई ऐसी चीज़ें सामने आती हैं, जिन्हें विस्तार से जानने की या तो ज़रूरत नहीं होती या फिर ज़रूरत होने पर भी उन्हें नज़रअंदाज़ किया जाता है. इकाइयों या यूनिट्स के मामले में भी ऐसा ही होता है. लेकिन आम प्रचलन में ऐसी कई इकाइयाँ हैं जिनके बारे में जिज्ञासा रखने पर बड़ी ही रोचक जानकारियाँ मिलती हैं. कुछ महीनों पहले मेरी नज़र से ऐसी एक इकाई गुजरी थी- तोरिनो. इसके बारे में विस्तार से जानने का अनुभव रोमाँचक रहा था.

पिछले दिनों गेहूँ की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती क़ीमत के बारे में एक ख़बर पढ़-सुन रहा था. पता चला कि पश्चिमी देशों में उत्पादक के स्तर पर गेहूँ के व्यापार में किलोग्राम या क्विंटल या टन नहीं बल्कि बुशल(Bushel) नामक इकाई प्रयुक्त की जाती है. (ठीक उसी तरह जैसे तेल के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में लीटर-किलोलीटर नहीं बल्कि गैलन-बैरल का इस्तेमाल होता है.) सच कहें तो न सिर्फ़ गेहूँ बल्कि बाक़ी खाद्यान्नों, फलों आदि के लिए भी बुशल का ही उपयोग किया जाता है. बुशल दरअसल एक निश्चित आकार की टोकरी होती है(अमरीका में 64 पाइंट, जबकि ब्रिटेन में 8 गैलन आयतन के बराबर) जिसे किसी सूखे कृषि उत्पाद से भर कर उस उत्पाद की एक व्यापारिक इकाई तय की जाती है. मतलब हर उत्पाद के लिए एक बुशल का मतलब अलग-अलग होगा. उदाहरण के लिए अमरीका में एक बुशल गेहूँ या सोयाबीन का वज़न 60 पाउंड निश्चित किया गया है, जबकि एक बुशल में 48 पाउंड सेब और 53 पाउंड टमाटर आते हैं.

टीईयू

इसी तरह साइंटिफ़िक अमेरिकन के अप्रैल 2008 अंक में परमाणु तस्करी के ख़तरों के बारे में एक लेख पढ़ते हुए बार-बार TEU नामक इकाई सामने आई. ये दरअसल ग्लोबलाइज़ेशन को आसान बनाने वाली एक प्रमुख चीज़ कंटेनर से जुड़ी हुई है. जैसा कि सर्वविदित है, आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ैरपेट्रोलियम पदार्थों का ज़्यादातर व्यापार कंटेनरों में होता है. लेकिन व्यापार बढ़ने के साथ-साथ कंटेनर भी अलग-अलग आकार में आने लगे हैं. लेकिन हिसाब-क़िताब की सहूलियत के चलते इस मामले में भी एक मानक तय किया गया है- TEU या Twenty-foot Equivalent Unit. यानि सबसे ज़्यादा प्रचलित 20 फ़ुट लंबे कंटेनर को मानक माना गया है. साइंटिफ़िक अमेरिकन के लेख से ही उदाहरण लें तो वर्ष 2007 में दुनिया भर में जहाज़ों के ज़रिए लगभग 30 करोड़ TEUs ढोए गए. और यदि एक व्यस्त बंदरगाह की बात करें तो न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी बंदरगाह पर प्रतिदिन औसत 10 हज़ार TEUs की आमद होती है.

यूटीसी/जीएमटी

यूनिटों की बात को आगे बढ़ाएँ तो अंतरराष्ट्रीय मानक समय को UTC(Universal Time Coordinated या Coordinated Universal Time) कहा जाने लगा है. हालाँकि गणना के तरीके की महीनियों पर नहीं जाएँ तो UTC और GMT(Greenwich Mean Time) के बीच व्यावहारिक स्तर पर कोई अंतर नहीं है. दिलचस्प बात ये है कि यूटीसी की देखरेख पेरिस से होती है, जबकि जीएमटी को लंदन स्थित ग्रीनिच से सँभाला जाता है.

सेंटीग्रेड/सेल्सियस

इसी तरह तापमान की सर्वमान्य इकाई को 'डिग्री सेंटीग्रेड' की जगह 'सेल्सियस' कहा जाने लगा है. बारीकियों पर ध्यान नहीं दें तो व्यावहारिक तौर पर दोनों हैं लगभग एक समान ही. इकाई के रूप में 'सेंटीग्रेड' के 'ग्रेड' का सौवाँ हिस्सा होने का भ्रम बनता है, जबकि 'ग्रेड' तो कोण की इकाई होती है. सेल्सियस इकाई की व्यवस्था के ज़रिए तापमानों को लेकर व्यापक शोध करने वाले Anders Celsius नामक स्वीडिश वैज्ञानिक को सम्मानित भी किया गया है. ध्यान रहे कि अधिकतर बड़े मीडिया संस्थानों ने सेल्सियस से पहले 'डिग्री' शब्द लगाने की बाध्यता ख़त्म कर दी है.

मंगलवार, मार्च 11, 2008

एक भूगर्भशास्त्री का मोबाइल फ़ोन

मोबाइल फ़ोनों का चलन इतना व्यापक हो गया है कि आधुनिकता से दूर माने जाने वाले किसी इलाक़े में भी कुछ लोग ऐसे ज़रूर मिल जाते हैं जो संचार के इस क्रांतिकारी साधन को भलीभाँति जानते हैं. लेकिन स्टेटस-सिंबल के रूप में महँगे और दसियों अतिरिक्त सुविधाओं से लैस मोबाइल फ़ोन लेकर चलने वालों में से भी कुछ ही को पता होता है कि आख़िर यह बेतार-यंत्र काम कैसे करता है. जानने की कोई ज़रूरत भी नहीं है.

लेकिन यदि किसी भूगर्भशास्त्री को उसके मोबाइल फ़ोन सेट के बारे में पूछें तो वो गर्व से बताएगा कि धरती की कोख से निकले कितने तत्वों की सहायता से काम करता है यह स्मार्ट यंत्र. आप भी जानिए एक भूगर्भशास्त्री के मोबाइल फ़ोन को-

1.एबीएस और पॉलिकार्बोनेट-Acrylonitrile Butadiene Styrene/Polycarbonate alloy- इस पदार्थ का उपयोग मोबाइल फ़ोन का बाहरी प्लास्टिक आवरण बनाने में होता है. एक मोबाइल फ़ोन के ABS/PC आवरण के निर्माण में लगभग दो किलोग्राम पेट्रोलियम का इस्तेमाल होता है. एबीएस की तरह ही पॉलिकार्बोनेट भी एक हल्का प्लास्टिक उत्पाद है, लेकिन कहीं ज़्यादा मज़बूत, इसलिए अपेक्षाकृत महँगा भी.

2. ताँबा- मोबाइल फ़ोन के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का महत्वपूर्ण अंग ताँबे का बना होता है. ताँबे की ख़ासियत है कि इसे किसी भी रूप में ढाल सकते हैं, और यह बिजली का बेहतरीन सुचालक भी है. इन्हीं दो गुणों के कारण सर्किट की बारीक संचार व्यवस्था के लिए ताँबा उपयुक्त माना जाता है. यह मानव को सबसे पहले ज्ञात धातुओं में से है. प्राचीन सभ्यताओं के ईसा पूर्व 8700 के ताम्र आभूषणों के अवशेष मिल चुके हैं. इस समय चिली दुनिया के एक तिहाई ताँबे का उत्पादन करता है.

3. काँच- पाषाण युग में पहली बार मानव ने ज्वालामुखी से निकले नैसर्गिक काँच को काटने के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया होगा. कृत्रिम काँच बनाने की विधि मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता में सामने आई, जब किसी ने भट्टे में पड़े रेत को काँच के मनके के रूप में परिवर्ति पाया. किसी स्तरीय मोबाइल फ़ोन के कैमरे की लेंस में उच्च कोटि के काँच का उपयोग किया जाता है, जो कि आज भी रेत में पाए जाने वाले सिलिका से ही बनाया जाता है.

4. अल्युमिनियम- इसका उपयोग भी ताँबे की ही तरह ही मोबाइल फ़ोन के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में होता है. अल्युमिनियम भी बिजली का बढ़िया सुचालक है, लेकिन ताँबे के मुक़ाबले 65 प्रतिशत ही. इसके बावजूद चूँकि अल्युमिनियम ताँबे के मुक़ाबले बहुत हल्का और बहुत सस्ता है, इसलिए मोबाइल फ़ोनों में इसकी भी मौजूदगी होती है. धरती के गर्भ में भारी मात्रा में अल्युमिनियम है, लेकिन बॉक्साइट के रूप में. बॉक्साइट से अल्युमिनियम बनाने की विधि 1827 में खोजी जा सकी. चीन, रूस, कनाडा और अमरीका अल्युमिनियम के बड़े उत्पादकों में से हैं.

5. लोहा- मोबाइल फ़ोन के महँगे मॉडलों का बाहरी आवरण आमतौर पर स्टेनलेस स्टील का होता है, जो कि लोहा, कार्बन और क्रोमियम के मिश्रण से तैयार होता है. क़रीब 6000 साल पहले मिस्र के लोगों द्वारा लोहे का इस्तेमाल किए जाने के सबूत उपलब्ध हैं.

6. सिलिकॉन- अपने मूल रूप में सिलिकॉन मोबाइल फ़ोन के माइक्रोचिप और लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले में प्रयुक्त होता है. जबकि इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में इसका उपयोग डाइऑक्साइड के रूप में होता है. धरती की ऊपरी सतह में सबसे ज़्यादा मात्रा में पाया जाने वाला तत्व सिलिकॉन ही है.

7. निकेल- इस धातु का उपयोग मोबाइल फ़ोन के माइक्रोफ़ोन में होता है. इसकी खोज 1751 में तब हुई जब कुपरनिकल(शैतानी ताँबा) नामक एक अयस्क से ताँबा निकालने की कोशिश हो रही थी. जब एक्सेल फ़्रेडरिक को अपने प्रयास में ताँबे की जगह एक श्वेत धातु मिला तो उसने इसे ओल्ड निक(शैतान) नाम दिया था. आज दुनिया का 30 प्रतिशत निकेल कनाडा के एक ऐसे इलाक़े से आता है जहाँ 1.85 अरब साल पहले एक बड़े उल्का-पिंड की टक्कर से धरती पिचक गई थी.

8. टिन- टिन की सहायता से ही प्राचीन मानव ने कांस्य युग में कदम रखा था. मोबाइल फ़ोन में इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्ज़ों को सही जगह टिका कर रखने के लिए टिन की सोल्डरिंग की जाती है. चीन और इंडोनेशिया टिन के बड़े उत्पादक हैं. माना जाता है कि अगले 40-50 वर्षों में दुनिया में टिन के ज्ञात स्रोत समाप्त हो जाएँगे.

9. लिथियम- बिग बैंग के दौरान अस्तित्व में आए कुछेक तत्वों में से एक माने जाने वाले लिथियम का उपयोग मोबाइल फ़ोन की बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट के रूप में होता है.

10. कोबाल्ट- मोबाइल फ़ोन की बैटरी के कैथोड छोर(ऋणाग्र) में कोबाल्ट लगा होता है. विटामिन बी12 में भी इसका अंश होता है, जबकि इसके एक अन्य रूप कोबाल्ट-60 का रेडियोथेरेपी में उपयोग होता है.

11. ग्रैफ़ाइट- मोबाइल फ़ोन की लिथियम ऑयन बैटरी के एनोड छोर(धनाग्र) में इसका उपयोग होता है. ग्रैफ़ाइट को कार्बन के सर्वाधिक स्थाई रूपों में गिना जाता है. ग्रैफ़ाइट को उच्चतम स्तर का कोयला भी मान सकते हैं, लेकिन ईंधन के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि इसमें आग लगाना लगभग असंभव है.