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शनिवार, जनवरी 31, 2009

उपग्रहीय चित्रों का बेवज़ह डर

पिछले दिनों अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के शपथ-ग्रहण समारोह के समय की उपग्रहीय तस्वीर सार्वजनिक की गई. इसमें जहाँ वाशिंग्टन डीसी के राजपथ पर उमड़े जनसैलाब का विहंगम दृश्य चकित करने वाला लगता है. वहीं यदि कोई चाहे तो चित्र से उसे सुरक्षा व्यवस्था का भी अंदाज़ा लग सकता है. मसलन छोटे आकार में यहाँ प्रस्तुत उस तस्वीर में देखा जा सकता है कि कैपिटल बिल्डिंग के ठीक पीछे किस पोज़ीशन में एक हेलीकॉप्टर तैयार खड़ा है.

चित्र साभार जिओआईयह विहंगम दृश्य जिस बड़ी तस्वीर का हिस्सा है उसे जिओआई नामक कंपनी ने ओबामा के शपथ ग्रहण करने के कुछ घंटों बाद जारी किया था. कंपनी अपने ग्राहकों को 50 सेंटीमीटर तक की स्पष्टता वाले उपग्रहीय चित्र उपलब्ध कराती है.

जिओआई की वेबसाइट पर वाशिंग्टन डीसी की ही नहीं, बल्कि अमरीका के अधिकतर बड़े स्टेडियमों, विश्वविद्यालयों, बाँधों के साथ-साथ सैनिक-असैनिक हवाईअड्डों की भी तस्वीरें मिल जाती हैं. अमरीका के अलावा दुनिया के अन्य हिस्सों की रोचक तस्वीरें भी उपलब्ध हैं. कुछ साल-दो साल पुरानी तस्वीरें, तो कुछ बस हफ़्ते-महीने भर पुरानी. जिओआई ने पिछले साल नवंबर में सोमालिया के तट पर बंधकों के क़ब्ज़े में खड़े सुपर टैंकर सीरियस स्टार का काफ़ी स्पष्ट चित्र जारी किया था.

जिओआई की तरह की ही एक और कंपनी है- डिजिटल ग्लोब. दोनों कंपनियाँ 'गूगल अर्थ' जैसे वेबटूल के साथ-साथ तमाम तरह के उपयोगों के लिए उपग्रहीय चित्र उपलब्ध कराती हैं. इनमें से हर एक की मौजूदा क्षमता प्रतिदिन औसत 10 लाख वर्गकिलोमीटर ज़मीन को स्कैन करने की है.

गूगल अर्थ को लेकर रह-रह कर विवाद उठता रहता है. भारत में ये विवाद कुछ ज़्यादा ही होता है. कुछ साल पहले राष्ट्रपति भवन की तस्वीर गूगल अर्थ पर पहली बार देखे जाने के बाद भारत में बहस छिड़ गई थी कि आतंकवादी उस चित्र विशेष का इस्तेमाल हमले की योजना बनाने के लिए कर सकते हैं. मुंबई पर हुए हमले में शामिल चरमपंथियों के गूगल अर्थ की सहायता लेने की बात सामने आने के बाद तो इस वेबटूल को लेकर डर का माहौल बनाने की ज़ोरदार कोशिशें की गईं. जबकि आतंकवादियों ने इस वेबटूल के अलावा जीपीएस और ब्लैकबेरी जैसे कई हाईटेक उपकरणों का भी इस्तेमाल किया था. तो क्या इन उपकरणों पर भी रोक न लगा दी जाए! गूगल अर्थ पर निशाना साधने वालों ने ये सोचने की ज़रूरत नहीं समझी कि यदि कुछ साल पुरानी तस्वीरें दिखाने वाले गूगल अर्थ पर रोक लगा दी भी जाए, तो जिओआई और डिजिटल ग्लोब जैसी कंपनियों का क्या करेंगे जिनका मुख्य धंधा है- ताज़ा उपग्रहीय तस्वीरें बेचना?

आतंकवादियों और अपराधियों के डर से विज्ञान प्रदत्त सुविधाओं पर रोक लगाना समस्या का स्थायी समाधान हो ही नहीं सकता है. याद कीजिए उस समय को जब 'फ़ोटो खींचना मना है' वाले निषेधात्मक बोर्ड का कोई मतलब होता था. पहले कॉम्पैक्ट कैमरे ने उक्त बोर्ड पर लिखी चेतावनी की गंभीरता को कम किया, फिर डिजिटल कैमरे ने उसे और हल्का बनाया, अंतत: मोबाइल फ़ोनों में लगे कैमरे ने उसे बिल्कुल ही अप्रासंगिक बना दिया.

उपग्रहीय चित्रों पर प्रतिबंध की कोशिशें तो अभी ही लगभग बेअसर है, इसलिए आने वाले दिनों में ऐसी कोशिशों का बिल्कुल अप्रासंगिक होना तय है. आँकड़े भी यही कहते हैं- पिछले दशक में दुनिया की तस्वीरें खींचने के लिए सात निजी उपग्रह छोड़े गए, अगले 10 वर्षों में ऐसे 30 उपग्रह छोड़े जाने हैं. इसके अलावा विभिन्न देशों के जासूसी उपग्रहों की संख्या भी तो लगातार बढ़ती जा रही है.

ये सच है कि हर सार्वजनिक सुविधा या औजार में सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों तरह की संभावनाएँ होती हैं. अधिकतर मामलों में सदुपयोग की संभावनाएँ, दुरुपयोग की संभावनाओं से कई-कई गुना ज़्यादा होती हैं. इसलिए उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है.

टेलीफ़ोन के आविष्कार के समय से ही अपराधी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं- योजनाएँ बनाने में भी, और लोगों को धमकाने या फ़िरौती माँगने में भी. इंटरनेट की सहायता से धोखाधड़ी और जालसाज़ी विश्वव्यापी स्तर पर की जा रही है- नाइजीरिया में बैठा जालसाज़ लॉटरी का सब्ज़बाग दिखा कर भारत के लोगों को ठग रहा है! लेकिन अपराध में इस्तेमाल के आधार पर फ़ोन या इंटरनेट पर रोक की कल्पना भी की जा सकती है?

इंटरनेट पहले-पहल जब विश्वविद्यालयों और विज्ञान संस्थानों से निकल कर आमलोगों के घरों में आया, तो तमाम तरह की आशंकाओं में एक ये भी शामिल थी कि बम और अन्य विस्फोटक अत्यंत सुलभ हो जाएँगे क्योंकि इंटरनेट पर उन्हें बनाने के तरीके आसानी से उपलब्ध हैं. आगे चल कर ये आशंका निराधार निकली. हमेशा से ही आबादी का अत्यंत छोटा अंश अपराधी प्रवृति का रहा है, विस्फोटक बनाने की जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध होने के बाद भी वही स्थिति है.

अपराधियों ने हर काल में नवीनतम जानकारियों का इस्तेमाल किया है, इसलिए ज़ाहिर है आगे भी करते रहेंगे. अच्छी बात ये है कि अपराधियों के हाथों इस्तेमाल की आशंका में विज्ञान ने पहले कभी रास्ता नहीं बदला है. इसलिए आगे भी विज्ञान अपनी राह बढ़ता ही रहेगा, चाहे कितना भी डर फैलाया जाये.

शनिवार, मई 24, 2008

नाम के पीछे क्या है? (2)

गतांक से आगे...

BASF- इस जर्मन रसायन कंपनी का नाम Badische Anilin und Soda Fabrik से लिया गया है. इसमें BASF के शुरूआती उत्पादों और उत्पादन स्थल का समावेश है. यानि जर्मनी के बाडेन प्रांत स्थिति एनलिन और सोडा बनाने वाली कंपनी.

BMW- Bayerische Motoren Werke यानि बावेरियन मोटर वर्क्स की स्थापना 1917 में जर्मनी के बावेरिया क्षेत्र के मुख्य नगर म्यूनिख में हुई थी. कंपनी की स्थापना मूल रूप से विमानों के इंजन के निर्माण के लिए हुई थी. शायद इसीलिए कंपनी का लोगो एक घूमता प्रोपेलर है.

Bridgestone- इस जापानी टायर निर्माता कंपनी को इसके संस्थापक Shorijo Ishibashi का नाम मिला है. दरअसल Ishibashi का जापानी भाषा में अर्थ होता है- Stone Bridge.

Canon- The Precision Optical Instruments Laboratory का नया नाम इसके द्वारा निर्मित पहले कैमरे Kwannon पर आधारित है. इसे Kannon से भी जोड़ कर देखा जाता है जो कि करुणा के बोधिसत्व का जापानी नाम है.

Casio- कंपनी के संस्थापक Kashio Tadao के नाम से बना है ये ब्रांड. टोक्यो में 1946 में स्थापित ये कंपनी कैलकुलेटरों के अलावा भी अनेक तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाती है.

Coca-Cola- ये नाम कोका की पत्तियों और कोला की फली से लिया गया है, जो कि 1885 में बाज़ार में स्वास्थ्यवर्द्धक दवाई के रूप में उतारे गए पेय पदार्थ के मूल फ़्लेवर में शामिल था.

Daewoo- कोरियाई भाषा में इसका मतलब है- Great Universe. इस उद्योग समूह को 1990 के दशक में संकट से गुजरना पड़ा. हालाँकि 1999 में दिवालिया घोषित होने के बाद भी इस उद्योग समूह की कई कंपनियाँ अभी सक्रिय हैं. वैसे अब इसकी मोटर निर्माण इकाइयाँ अमरीका के जेनरल मोटर्स और भारत के टाटा समूह के नियंत्रण में हैं.

eBay- इस ऑनलाइन बाज़ार को इसके संस्थापक Pierre Omidyar ने अपनी इंटरनेट कंसल्टेंसी Echo Bay Technology Group का नाम देने का मंसूबा बनाया था. लेकिन Echo Bay नाम एक स्वर्ण खनन कंपनी पहले ही रजिस्टर्ड करा चुकी थी.

Fiat- यह नाम Fabbrica Italiana Automobili Torino यानि Italian Automobile Factory of Turin का संक्षिप्त रूप है. सोनिया गांधी भी उत्तरी इटली के Turin शहर की हैं.

Google- ये नाम googol शब्द से बना है जो एक बहुत बड़ी संख्या होती है. 1 के आगे 100 बार शून्य लगाने से बनी संख्या. संस्थापकों का दावा था कि उनका सर्च इंजन इतनी बड़ी संख्या में सूचनाओं को खंगाल सकता है. अब तो google को प्रमुख शब्दकोशों में भी एक क्रिया के रूप में शामिल किया जा चुका है जिसका मतलब होता है गूगल सर्च इंजन की सहायता से इंटरनेट पर जानकारी जुटाना.

Hewlett-Packard- कहा जाता है कि कंपनी के संस्थापकों Bill Hewlett और David Packard ने एक सिक्का उछाल कर इस बात का फ़ैसला किया कि दोनों में से किसका नाम शुरू में आएगा.

Ikea- इस प्रमुख स्वीडिश फ़र्नीचर कंपनी का नाम इसके संस्थापक Ingvar Kamprad ने अपने नाम में अपने पैतृक घर यानि Elmtaryd नामक फ़ार्म और पास के गाँव Agunnaryd के पहले अक्षरों को मिला कर बनाया है.

Intel- संस्थापक Bob Noyce और Gordon Moore अपनी माइक्रोचिप कंपनी को Moore Noyce नाम देना चाहते थे, लेकिन एक होटल कंपनी ने पहले ही ये नाम ले रखा था. मजबूरी में Integrated Electronics के हिस्सों को जोड़ कर Intel बनाया गया.

Kodak- ये एक अनूठा ब्रांड नाम है. कैमरा कंपनी के संस्थापक जॉर्ज ईस्टमैन ने सिर्फ़ इसलिए ये नाम चुना कि ये सुनने में अच्छा लगता है. हालाँकि, अपनी माँ के साथ सलाह-मशविरा कर ये नाम चुनते वक़्त उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि नाम को बिगाड़ा नहीं जा सके, उसका ग़लत उच्चारण नहीं किया जा सके. ईस्टमैन ने इस बात का भी ध्यान रखा कि इसे किसी और उत्पाद, कंपनी या स्थान से नहीं जोड़ा जा सके.

>......जारी........>

रविवार, दिसंबर 16, 2007

गूगल नॉल या गूगलपीडिया


अंतत: गूगल ने अपनी विकिपीडिया शुरू करने की घोषणा कर ही दी. गूगल विकिपीडिया को नॉल(Knol) नाम दिया गया है. नॉल यानि नॉलेज का गूगलावतार!

जैसा कि गूगल की इससे पहले की बड़ी परियोजनाओं या टेकओवर के बारे में होता आया है, नॉल के बारे में भी ख़बर हल्के से लीक की गई. गूगल के एक इंजीनियर यूडि मैनबर ने पिछले हफ़्ते The Official Google Blog पर इस परियोजना की जानकारी सार्वजनिक की.

मैनबर ने नॉल शब्द को नॉलेज की इकाई के रूप में परिभाषित किया है. आइए देखें नॉल परियोजना के बारे में वे और क्या-क्या कहते हैं, ख़ुद मैनबर के ही शब्दों में:

'दुनिया में लाखों लोगों के पास उपयोगी ज्ञान है, जिसका फ़ायदा अरबों लोग उठा सकते हैं. अधिकांश लोग अपने ज्ञान को सिर्फ़ इसलिए बाँट नहीं पाते हैं क्योंकि उनके पास इसका कोई सरल तरीका नहीं है. हमें ऐसा ज़रिया ढूंढने के लिए कहा गया जिसके ज़रिए लोग अपना ज्ञान बाँट सकें. यही हमारा मुख्य उद्देश्य है.'

'हमारा लक्ष्य है किसी ख़ास विषय का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को उस विषय पर एक आधिकारिक आलेख लिखने के लिए प्रेरित करना.'

'नॉल परियोजना के पीछे एक प्रमुख विचार लेखक के नाम को रेखांकित करने का भी है. किताबों के कवर पर ही लेखक का नाम होता है, सामयिक लेखों के साथ लेखक का नाम जाता है और विज्ञान लेखों के साथ तो अनिवार्य रूप लेखक का नाम छपता है. लेकिन वेब का विकास कुछ इस तरह हुआ है कि लेखकों के नाम को प्रमुखता देने का प्रचलन स्थापित नहीं हो पाया. हमें लगता है कि लेखक का नाम देने से लोगों को वेब सामग्री के बेहतर उपयोग में मदद मिलेगी.'

'गूगल लेखन, संपादन आदि के लिए आसान टूल्स उपलब्ध कराएगा. ये नॉल की मुफ्त होस्टिंग की भी व्यवस्था करेगा. आप सिर्फ़ लिखें भर, बाक़ी काम हम करेंगे.'

'किसी विषय विशेष पर नॉल की भूमिका वैसे बुनियादी लेख की होगी, जो कि उस विषय की जानकारी पहली बार ढूंढ रहा कोई व्यक्ति पढ़ना चाहता हो.'

'गूगल नॉल लेखों पर किसी तरह का संपादकीय नियंत्रण नहीं रखेगा, न ही किसी नॉल विशेष की तरफ़दारी करेगा. तमाम संपादकीय नियंत्रण और ज़िम्मेदारी ख़ुद लेखक की होगी. लेखक अपनी साख दाँव पर लगाएगा.'

'हम ये अपेक्षा नहीं करते कि सभी लेख उच्च स्तर के होंग. लेकिन जब एक ही विषय पर अलग-अलग नॉल गूगल सर्च में दिखेंगे तो उनकी रैंकिंग गुणवत्ता के हिसाब से होगी. वेब पेज की रैंकिंग का हमारा अच्छा अनुभव है, और हमें पूरा विश्वास है कि हम इस चुनौतीपूर्ण काम को भी ढंग से संभाल सकेंगे.'

ज़ाहिर है, यदि गूगल उपरोक्त बातों को कार्यान्वित कर पाएगा तो एक बिल्कुल ही नए तरह की विकिपीडिया तैयार हो सकेगी. गूगल नॉल में विकिपीडिया जैसा 'संपादन युद्ध' देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इसमें सामूहिक संपादन की व्यवस्था नहीं होगी.

गूगल नॉल एक अन्य मामले में विकिपीडिया से बिल्कुल अलग होगा. चूँकि गूगल का बिज़नेस मॉडल वेबजाल के हर पन्ने पर विज्ञापन डालने की कोशिशों को बढ़ावा देता है. इसलिए गूगल नॉल के पन्नों पर भी विज्ञापन डालने की भी गुंज़ाइश होगी. हालाँकि अभी गूगल का कहना है कि विज्ञापन उन्हीं नॉल पन्नों पर होंगे जिसका लेखक इसके लिए ख़ुद हामी भरेगा. नॉल के विज्ञापनों से होने वाली आय का एक हिस्सा लेखक को मिलेगा. (कहने की ज़रूरत नहीं कि इस आय का बड़ा हिस्सा गूगल के पास रहेगा!)

सीमित स्तर पर गूगल की नॉल परियोजना शुरू हो चुकी है. और अगले कुछ महीनों में इसे सबके के लिए खोल दिया जाएगा.