शनिवार, मार्च 28, 2009

बड़ी संख्याओं की बड़ी दुनिया

बड़ी संख्याओं की अपनी ही एक बड़ी दुनिया है. इस दुनिया में मिलियन, बिलियन और ट्रिलियन जैसी भारी-भरकम संख्याओं की चर्चा होती है. पहले मिलियन-बिलियन से ऊपर की संख्याएँ आम समाचारों में कभी-कभार ही दिखती थीं, लेकिन हाल के दिनों में ट्रिलियन या खरब वाले आंकड़े मीडिया में रोज़ाना दिखने लगे हैं. कारण है पूरी दुनिया ख़ास कर पश्चिमी देशों को अपनी चपेट में ले चुका वित्तीय संकट. एक उदाहरण- 'अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वित्तीय संस्थाओं को संभालने के लिए एक ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त व्यवस्था करने की घोषणा की.'

बड़ी संख्याओं को बड़ा बनाता है शून्य या ज़ीरो. किसी संख्या में जितने ज़्यादा शून्य, उतना ही उसका वज़न. हालाँकि इसका अपवाद ज़िम्बाब्वे में देखा जा सकता है. ज़िम्बाब्वे के डॉलर में पिछले कुछ महीनों के दौरान नियमित रूप से अतिरिक्त शून्य जुड़ता रहा, लेकिन नोट की क़ीमत फिर भी घटती ही गई क्योंकि मुद्रास्फीति की दर भयानक रूप से तेज़ रही. इस साल के शुरू में ज़िम्बाब्वे में डॉलर की एक करेंसी में 1 के आगे 11 शून्य लगाए गए थे, यानि- 100,000,000,000.

पिछले दिनों ऑक्सफ़ार्ड विश्वविद्यालय के गणितज्ञ Marcus Du Sautoy का एक लेख ब्रितानी अख़बार गार्डियन में छपा, जिसमें बड़े अंकों पर बड़ी रोचक जानकारी दी गई है. प्रस्तुत है एक अंश-

0 (शून्य)-

अंकों की दुनिया में काफ़ी देर से शामिल किया गया था शून्य को. सातवीं सदी में भारतीय गणितज्ञों द्वारा प्रचलन में लाए जाने तक शून्य को अंक तक का दर्जा नहीं दिया गया था. (भारत को 1 से 9 तक के अंकों के संकेतों का भी जनक माना जाता है जिनके ज़रिए तमाम संख्याएँ बनती हैं. इस व्यवस्था को अरबी-हिंदू अंक प्रणाली कहा जाता है.) शून्य को यूरोप लाया इतालवी गणितज्ञ फ़िबोनाचि ने 12वीं सदी में. शुरू में शून्य को इटली में संदेह के साथ देखा गया और 1299 में फ़्लोरेंस की सरकार ने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था.

जहाँ तक भारत की बात है तो संस्कृत के प्राचीन शास्त्रों से पता चलता है कि शुरू से ही भारत में गणना और बड़ी संख्याओं के प्रति रुझान रहा है. ललितविस्तार नामक ग्रंथ के एक आख्यान में बताया गया है कि कैसे एक बार गौतम बुद्ध को 1 से लेकर 421 शून्य वाली संख्या तक को गिनाने के लिए कहा गया था.

10 (दस)-

गणना के लिए 10 अंकों वाले आधार के उपयोग के पीछे बुनियादी कारण है हमारे हाथों में 10 अंगुलियों का होना. लेकिन इसके बाद भी सभी सभ्यताओं को 10 के आधार पर गणना करना रास नहीं आया. प्राचीन बेबिलोनिया में 60 के आधार पर गणना का चलन था. उसकी छाप आज तक नहीं मिटी है. जैसे- 60 सेकेंड, 60 मिनट, वृत के 360 डिग्री आदि.

1,000,000 (एक मिलियन/दस लाख)-

इस संख्या तक आकर साफ़ पता चल जाता है कि अरबी-हिंदू अंक प्रणाली कितनी ज़्यादा व्यवस्थित और प्रभावशाली है. प्राचीन रोमन गणितज्ञ बड़ी होती जाती संख्याओं को अलग-अलग अक्षरों से दर्शाते थे- 100 के लिए C, 500 के लिए D, 1000 के लिए M आदि. (एक मिलियन सेकेंड बराबर क़रीब साढ़े ग्यारह दिन!)

1,000,000,000 (एक बिलियन/एक अरब)-

ब्रिटेन में पहले इस संख्या को 1000 मिलियन कहा जाता था, जबकि एक अरब एक-मिलियन-मिलियन (1 के आगे 12 शून्य) को कहा जाता था. लेकिन अमरीकी अंक प्रणाली से समानता के दबाव के चलते 1974 में सरकार ने फ़ैसला किया कि आगे से सरकारी आंकड़ों में 1 के आगे 9 शून्य लगाने से बने अंक को ही बिलियन कहा जाएगा.

बिलियन में 9 या 12 शून्यों के भ्रम के पीछे फ़्रांस का हाथ माना जाता है. सन 1480 में फ़्रांस ने बिलियन के लिए 1 के आगे 12 शून्यों की व्यवस्था की, जिसे बाद में ब्रिटेन ने भी अपना लिया. लेकिन 17वीं सदी में आकर फ़्रांस ने बिलियन से 3 शून्य हटा दिए यानि मात्र 9 शून्य ही रखे, जिसे अमरीका ने अपनाया. लेकिन 1948 में फ़्रांस ने फिर से अपनी पुरानी व्यवस्था को अपना लिया. (गणना के इस अलग-अलग तरीके को 'लाँग स्केल- शॉर्ट स्केल' के विवाद के रूप में जाना जाता है.)

1,000,000,000,000 (एक ट्रिलियन/दस खरब)-

बिलियन के भ्रम के बाद ट्रिलियन का भ्रम तो बनना ही था.(दरअसल मिलियन से आगे हर बड़ी संख्या को लेकर एकाधिक नामावली प्रचलन में हैं.) लेकिन बुरा मानें या भला, गिनती का अमरीकी तरीका स्टैंडर्ड बनता जा रहा है और अमरीका में 1000 बिलियन से एक ट्रिलियन बनता है. यानि भारतीय अंक प्रणाली में 10 खरब.(एक ट्रिलियन सेकेंड का मतलब हुआ 31,709 साल.)

1,000,000,000,000,000 (एक क़्वाड्रिलियन/एक पद्म)-

गणितज्ञ इस संख्या को 10 पर पॉवर 15 के रूप में जानते हैं. दस के पॉवर के रूप में आई संख्या एक के बाद आने वाले शून्य को दर्शाती है. जैसे- 10 पर पॉवर 2 का मतलब हुआ 1 के आगे दो शून्य, यानि 100.

अमरीका और ब्रिटेन में जिसे क़्वाड्रिलियन कहा जाता है उसे यूरोप बिलिआर्ड के नाम से भी जानता है. वित्तीय संसार की बात करें तो डेरिवेटिव नाम इन्स्ट्रुमेंट की कुल मात्रा आधा क़्वाड्रिलियन डॉलर बताई जाती है ,यानि पूरे विश्व के वार्षिक उत्पाद के दस गुना के बराबर. शायद इसीलिए कुछ विश्लेषक डेरिवेटिव बाज़ार को कभी भी फट सकने वाला टाईम बम बताते हैं.

10 पर पॉवर 100 (एक गूगोल)-

इस नंबर का नामकरण 1938 में एक नौ वर्षीय बच्चे मिल्टन सिरोटा ने किया. उसके चाचा ने उसे 1 के आगे 100 शून्य लगाने के बाद बनी संख्या का नाम रखने को कहा था. इंटरनेट सर्च इंजन गूगल का नाम भी इसी संख्या से लिया गया है.

316470269330...66697152511-

ये अब तक ज्ञात सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है. एक महाकंप्यूटर की सहायता से ढूंढी गई इस संख्या में 1 करोड़ 30 लाख अंक हैं. पिछले साल अगस्त में मिली इस संख्या को लिखने के लिए 30 मील लंबा पेज चाहिए. अगर कोई इसके हर अंक को बोल कर पढ़ना चाहे तो उसे दो महीने लगेंगे. एक करोड़ से ज़्यादा अंकों वाली अभाज्य संख्या की खोज पर एक लाख डॉलर का इनाम घोषित था. इसी कड़ी में अगला इनाम है डेढ़ करोड़ डॉलर का 10 करोड़ से ज़्यादा अंकों वाली अभाज्य संख्या की खोज पर.

यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड सदियों पहले बता गए हैं कि चाहे जितने अंकों तक की कल्पना करो, उतने अंकों की अभाज्य संख्या का अस्तित्व है.

एक ज़िलियन-

अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े किसी बच्चे से वृहतम संख्या की बात करें तो शायद वो एक ज़िलियन की बात करे. लेकिन ज़िलियन दरअसल कोई संख्या विशेष नहीं है. शब्दकोशों में आ चुके इस शब्द का मतलब है अनंत अंकों वाली कोई महासंख्या. ये शब्द अमरीकी लेखक डैमन रुनयन की कल्पना की उपज है.

इनफ़िनिटी या अनंत-

किसी बहुत ही होशियार बच्चे से वृहतम संभव संख्या के बारे में सवाल करें तो शायद उसका जवाब हो- इनफ़िनिटी. उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक इनफ़िनिटी को अगम या अबूझ के तौर पर देखा जाता था, लेकिन 1874 में Georg Cantor नामक गणितज्ञ ने साबित किया कि इनफ़िनिटी कई प्रकार के हो सकते हैं- कुछ छोटे, कुछ बड़े. यहाँ तक कि उसने इनफ़िनिटी-इनिफ़िनिटी के बीच जोड़-घटाव और गुना-भाग को भी संभव बताया. इस खोजबीन की क़ीमत भी उसे ही चुकानी पड़ी. उसने ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा जर्मनी की एक मानसिक आरोग्यशाला में बिताया.