प्रख्यात विचारक नोम चोम्स्की का मानना है कि दुनिया (ख़ास कर लैटिन अमरीकी और एशियाई देश) अंतत: अमरीकी प्रभाव से मुक्त होने की राह पर है.
चोम्स्की मूलत: एक भाषाविद हैं. उनके भाषा की उत्पत्ति और व्याकरण संबंधी कार्यों का फ़ायदा मनोविज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में भी उठाया जा रहा है. हालाँकि मैसेच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में भाषा विज्ञान के प्रोफ़ेसर चोम्स्की की ख्याति एक समाजवादी विचारक, युद्ध विरोधी और अमरीकी नीतियों के मुखर विरोधी के रूप में ज़्यादा है.
गार्डियन में छपे चोम्स्की के संक्षिप्त लेख की मानें तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमरीका की सबसे बड़ी चिंता रही है यूरोप और एशिया का आत्मनिर्भरता की ओर क़दम बढ़ाना. अमरीका की यह चिंता हाल के दिनों में और बढ़ गई है क्योंकि एक त्रिध्रुवीय व्यवस्था का आकार लेना जारी है. उभर रहे ये तीन ध्रुव हैं- यूरोप, उत्तर अमरीका और एशिया.
चोम्स्की कहते हैं कि बात इतने पर ही थमी नहीं है बल्कि अमरीका की चिंता को और बढ़ा रहा है दिन-प्रतिदिन लैटिन अमरीकी देशों का भी आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ना. आज एक ओर अमरीका मध्य-पूर्व में पूरी तरह उलझा पड़ा है, वहीं एशिया और लैटिन अमरीका के देश लगातार परस्पर क़रीब आ रहे हैं.
चोम्स्की कहते हैं कि वर्तमान में अमरीका के लिए एक बहुत ही बड़ी चिंता का सबब है एशिया और लैटिन अमरीका के भीतर चल रहा क्षेत्रीय एकजुटता का प्रयास. और इस नए भौगोलिक समीकरण के बीच में है ऊर्जा यानि तेल.
बात एशिया से शुरू करें तो अमरीका को सर्वाधिक सिरदर्द दे रहा है चीन. उसने जता दिया है कि वह कोई यूरोप नहीं कि अमरीकी ठसक स्वीकार कर ले. अमरीका की मज़बूरी है कि वह चीन से खुला टकराव मोल नहीं ले सकता क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था चाहे-अनचाहे ड्रैगन राष्ट्र पर बुरी तरह आश्रित हो गई है. इसके अलावा चीन का वित्तीय रिज़र्व मात्रा में जापान के रिज़र्व के बराबर पहुँच चुका है, इसे देखते हुए भी अमरीका उससे सीधे पंगा लेने की नहीं सोच सकता.
ख़ैर, बात हो रही थी क्षेत्रीय एकजुटता और इस प्रक्रिया में तेल की भूमिका की. इसी साल जनवरी में सउदी अरब के शाह ने चीन की यात्रा कर द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नई दिशा देने वाले समझौते किए. इसमें तेल, प्राकृतिक गैस और निवेश के क्षेत्रों में संबंधों को प्रगाढ़ करने वाले उपाय शामिल हैं. याद रखें कि मध्यपूर्व में अमरीका का सबसे क़रीबी रहा है सउदी अरब. जहाँ तक ईरान की बात है तो पहले से ही उसके तेल उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा चीन को जा रहा है, बदले में उसे चीन से लड़ाई के साजोसामान मिल रहे हैं.
चोम्स्की के अनुसार एशिया के एक और बड़े देश भारत के पास भी विकल्प हैं- या तो वह अमरीका से प्रगाढ़ता बढ़ाए, या फिर पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान से जिनके मध्य-पूर्व के तेल उत्पादक देशों से निकट संबंध लगातार मज़बूत होते जा रहे हैं. यहाँ जनवरी में भारत और चीन के बीच हुए समझौते का ज़िक्र करना ज़रूरी होगा. इस समझौते के बाद न सिर्फ़ दोनों देश प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं बल्कि दोनों ने तेल और गैस की खोज और उत्पादन के क्षेत्र में भी हाथ मिला लिए हैं. यह समझौता तेल और प्राकृतिक गैस के अंतरराष्ट्रीय सेक्टर का चेहरा बदल कर रख सकता है. चोम्स्की मानते हैं कि नए बनते समीकरणों को देखते हुए बुश का भारत जाना और उसे अपने साथ रखने के लिए परमाणु सहयोग और अन्य तरह की साझेदारी का चारा डालना आश्चर्यजनक नहीं है.
लैटिन अमरीका में क्षेत्रीय एकजुटता के बारे में चोम्स्की लिखते हैं कि वेनेज़ुएला से अर्जेंटीना तक वामपंथी रूझान वाली सरकारें सत्ता में आ चुकी हैं. इन देशों, ख़ास कर बोलीविया और इक्वाडोर, में मूल निवासी बहुत ज़्यादा प्रभावी हो गए हैं और उनकी माँग है कि तेल और गैस सेक्टर में दूसरे देशों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दखल बिल्कुल नहीं हो. लैटिन अमरीकी देश एक मज़बूत क्षेत्रीय आर्थिक ब्लॉक के विकास की दिशा में भी क़दम बढ़ाते जा रहे हैं, ताकि अमरीकी प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों पर निर्भरता कम हो. इस संबंध में चोम्स्की वेनेज़ुएला-अर्जेंटीना और बोलीविया-वेनेज़ुएला के साथ-साथ क्यूबा-वेनेज़ुएला निकट संबंधों का भी ज़िक्र करते हैं.
जहाँ तक एशिया से लैटिन अमरीका के बढ़ते संबंधों की बात है तो इस क्षेत्र के सबसे बड़े तेल उत्पादक वेनेज़ुएला ने चीन के साथ बहुत ही प्रगाढ़ता विकसित कर ली है. वेनेज़ुएला ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में तेल चीन को बेचना चाहता है ताकि खुली शत्रुता रखने वाले अमरीका पर उसकी निर्भरता कम हो सके. (यहाँ चोम्स्की के लेख में विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और ब्राज़ील की प्रभावपूर्ण एकजुटता की बात भी जोड़ी जा सकती है.)
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1 टिप्पणी:
एक बात नोट की कि चीन की वैनेनजुएला, ईरान और सऊदी अरब तीनों से अच्छी पट रही है और ये तीनों राष्ट्र तेल उत्पादन में टॉप पर आते हैं।
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