रविवार, अक्तूबर 26, 2008

वित्तीय संकट और काला हंस

नसीम निकोलस तालेबविकसित देशों को पूरी तरह गिरफ़्त में ले चुके वैश्विक वित्तीय संकट को अब पूरी दुनिया महसूस कर रही है, लेकिन इस संकट को समझना अब भी बहुत दुष्कर माना जा रहा है. बड़े-बड़े अर्थशास्त्री और बाज़ार-विशेषज्ञ अभी तक ये तय नहीं कर पाए हैं कि वित्तीय संकट का असर अंतत: अर्थव्यवस्था के किन-किन हिस्सों में बुरी तरह महसूस किया जाएगा. कितने दिनों तक रहेगा ये संकट और वित्तीय बाज़ार में अरबों डॉलर झोंकने के सरकारों के क़दम का कब और कितना असर होगा, ये बताना इस वक़्त असंभव-सा लग रहा है.

लेकिन एक पूर्व बैंकर को कम-से-कम ये ज़रूर पता है कि मौजूदा संकट की आहट तक क्यों नहीं सुनी जा सकी. इस पूर्व बैंकर का नाम है- नसीम निकोलस तालेब. हालाँकि अब इनकी ख़्याति वित्तीय मामलों के जानकार के रूप में नहीं, बल्कि एक दार्शनिक के रूप में है. तालेब की इस पहचान के पीछे उनकी दो लोकप्रिय किताबों का हाथ है- Fooled by Randomness: The Hidden Role of Chance in Life and in the Markets और The Black Swan: The Impact of the Highly Improbable.

दोनों ही किताबों के मूल में है- जीवन के हर क्षेत्र में आकस्मिकता, अनियमितता और अनिश्चितता की भूमिका पर तालेब का बिल्कुल अलग नज़रिया. दोनों ही किताबों का बीसियों भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. दोनों ही किताबों के शीर्षक यानि 'fooled by randomness' और 'the black Swan' को अंग्रेज़ी भाषा के प्रचलित मुहावरों/कथनों में बिना किसी देरी के जगह मिल चुकी है.

तालेब का मानना है कि अत्यंत सीमित संख्या में घटने वाली अनपेक्षित घटनाओं से पता चल जाता है कि दुनिया में क्या कुछ चल रहा है. उनके अनुसार ये समझ लेने में ही हमारी भलाई है कि हम कितना कुछ कभी नहीं समझ सकेंगे. तालेब के प्रिय वाक्यों में से एक है- "हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, वह उससे बहुत अलग है जिसे कि हम दुनिया मानते हैं."

तालेब अपने इन्हीं सामान्य से लगने वाले सिद्धांतो के आधार पर बैंकरों और अर्थशास्त्रियों को पानी पी-पीकर कोसते हैं. हालाँकि पूर्व में एक सफल बैंकर होने के नाते उनके इस दृष्टिकोण में दर्शन के अलावा उनके अनुभव का भी हाथ निश्चय ही होगा. मौजूदा वैश्विक वित्तीय संकट के बारे में तालेब कहते हैं- "शेयर बाज़ारों में जो कुछ भी हो रहा है उसे समझने के लिए हमारे पास जो साधन हैं वे पिछली कुछ सदियो के दौरान विकसित हुए हैं. अब हमें नए साधन चाहिए. लेकिन तब तक हमें भारी नासमझी की क़ीमत चुकानी पड़ेगी."

इस नासमझी पर और रोशनी डालते हुए तालेब का कहते हैं, "इसमें हमारे इस विश्वास का हाथ है कि बैंकर और वित्तीय विश्लेषक ज्ञान के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर चुके हैं. किसान पूरे भरोसे के साथ कहेंगे कि वो भविष्य का खाका नहीं खींच सकते, लेकिन वॉल स्ट्रीट के बैंकर दावे के साथ कहेंगे कि वे ऐसा कर सकते हैं."

बैंकरों की आलोचना करते हुए तालेब कहते हैं कि काले हंसों के अस्तित्व के ख़िलाफ़ सट्टा लगाते हुए बैंक मौजूदा वित्तीय संकट में 10 खरब डॉलर गँवा चुके हैं, जो कि बैंकिंग के पूरे इतिहास में हुई कमाई से भी ज़्यादा है.

दरअसल तालेब अपने दार्शनिक सिद्धांतों को छोटे-छोट उदाहरणों या कथा-कहानियों के ज़रिए समझाना पसंद करते हैं. उनकी किताब The Black Swan: The Impact of the Highly Improbable के शीर्षक के पीछे भी उनका एक प्रिय उद्धरण है कि कैसे मध्यकाल में ये सर्वमान्य तथ्य था कि काले हंस होते ही नहीं हैं. इसलिए उन दिनों जिस चीज़ का अस्तित्व नहीं हो उसे काले हंस के रूपक से व्यक्त किया जाता था. लेकिन सत्रहवीं सदी में आकर जब ऑस्ट्रेलिय में काले हंस दिखे तो सैंकड़ो वर्षों की सर्वस्वीकृत मान्यता एक झटके में ख़त्म हो गई.

तालेब का कहना है कि ज़्यादातर लोग 'Mediocristan' में रहते हैं जोकि वास्तविकता का एक फ़र्जी मॉडेल है, जहाँ दुर्लभ घटनाएँ कभी नहीं घटती हैं. ऐसे लोग वास्तविक जटिल दुनिया से आँखें मूँदे रहते हैं. जबकि वास्तविकता जटिल दुनिया वाली ही है जहाँ दूरगामी प्रभावों वाली लेकिन बिना निश्चित पैटर्न वाली घटनाएँ नियमित रूप से घटती हैं. ऐसी दुर्लभ घटनाओं की श्रेणी में तालेब मौजूदा वित्तीय संकट के अलावा डॉटकॉम का बुलबुला फटने और 11 सितंबर के हमलों को भी शामिल करते हैं.

अर्थशास्त्र को एक विभीषिका बताते हुए तालेब कहते हैं कि पूरी दुनिया उन कुछ आर्थिक विचारों के आधार पर चलाई जा रही है, जो कि समग्र या पर्याप्त साबित नहीं हुए हैं. अर्थशास्त्रियों से तालेब को इतनी चिढ़ है कि वे अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार दिए जाने की परंपरा का खुल कर विरोध करते हैं. तालेब अर्थशास्त्र को 'बोगसगणित' और लाखों डॉलर बोनस के रूप में लेने वाले बैंकरों की पंडिताई को ज्योतिषशास्त्र के बराबर मानते हैं.

तालेब के सिद्धान्त न सिर्फ़ आमजनों के बीच लोकप्रिय हैं, बल्कि अपने को बड़ा तोप मानने वाली शख्सियतें भी उनका इस्तेमाल करती हैं. इराक़ पर हमले का आधार तैयार करते समय तत्कालीन अमरीकी रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफ़ील्ड ने तालेब के सरल विचारों का इस्तेमाल करते हुए एक बड़ा ही जटिल बयान दिया था- "There are known knowns. There are things we know that we know. There are known unknowns. That is to say, there are things that we now know we don't know. But there are also unknown unknowns. There are things we do not know we don't know."

तालेब का बताया परमसत्य- 'आकस्मिकता पर नियंत्रण असंभव है!'

1 टिप्पणी:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

सशक्त और सामयिक पोस्ट। नसीम तालेब को पढ़ने का यत्न करूंगा।