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शुक्रवार, अप्रैल 11, 2008

सवाल-जवाब: ओलम्पिक मशाल

लोगो1. क्या ये सच है कि नाज़ियों ने ओलम्पिक मशाल दौड़ की शुरुआत की थी?
हाँ, मौजूदा रूप में मशाल दौड़ की शुरुआत 1936 के बर्लिन ओलम्पिक के दौरान हुई थी. माना जाता है कि हिटलर के प्रचार मंत्री जोज़ेफ़ गोयबल्स को मशाल दौड़ की योजना डॉ. कार्ल डीम ने बताई थी. डीम ने ओलम्पिक के प्रचार का काम भी देख रहे गोयबल्स को बताया कि एथेंस में माउंट ओलिम्पस के हेरा मंदिर से बर्लिन तक की 3422 किलोमीटर की दूरी 3422 आर्य युवा मशाल के साथ पूरा करें तो दुनिया को एक ख़ास तरह का संदेश मिलेगा. मशाल के रूट में बुल्गारिया, युगोस्लाविया, हंगरी, ऑस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया आया. इन सभी देशों पर आगे चल कर नाज़ियों का क़ब्ज़ा हुआ.

वैसे, सही मामलों में पहली विश्वव्यापी ओलम्पिक मशाल दौड़ 2004 के एथेंस ओलम्पिक के लिए आयोजित की गई.

2. मशाल की बनावट के बारे में कुछ बताएँ, और ये भी कि इसमें ईंधन के रूप में क्या होता है?
मशाल का डिज़ायन मेज़बान देश तय करता है. बीजिंग ओलम्पिक की मशाल 72 सेंटीमीटर ऊँची है. मशालअल्युमिनियम निर्मित मशाल का वज़न 985 ग्राम है. मशाल में ईंधन के रूप में प्रोपेन नामक हाइड्रोकार्बन का उपयोग किया जाता है. मौजूदा मशाल 65 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार वाली हवा को झेल सकती है. इतना ही नहीं प्रति घंटे 50 मिलिमीटर की दर से बारिश हो तो उसे भी ये मशाल भलीभाँति झेल सकती है. एक मशाल सामान्य परिस्थितियों में क़रीब 15 मिनट तक जल सकती है. यानि अधिकारियों का लक्ष्य होता है कि दौड़ के समय हर 10-12 मिनट में किसी जल रही मशाल से दूसरी मशाल जलाई जाती रहे.

3. किसी कारणवश कभी मशाल बुझी भी है?
पेरिस में यात्रा के दौरान 7 अप्रैल 2008 को मशाल को तीन बार बुझाना पड़ा. ऐसा चीन विरोधी प्रदर्शनों के कारण ऐहतियात के तौर पर करना पड़ा. इससे पहले मात्र दो अवसर और आए जब ओलम्पिक मशाल बुझी. 1976 में मॉन्ट्रियल में अचानक हुई तेज़ बारिश के कारण मशाल बुझ गई. किसी ने आनन-फ़ानन में सिगरेट लाइटर से उसे जला दिया जो कि ठीक बात नहीं मानी गई. इसलिए फिर बैकअप लैम्प से दौड़ में प्रयुक्त मशाल को नए सिरे से जलाया गया. 2004 में भी एक बार मशाल तेज़ हवा के कारण बुझी थी.मातृज्योति लैम्प

जहाँ तक एक देश से दूसरे देश की यात्रा की बात है, तो हवाई जहाज़ पर ले जाने से पहले मशाल को बुझा दिया जाता है. लेकिन दौड़ के लिए एथेंस में तापक शीशे के सहारे जो अग्नि जलाई जाती है, उस मातृज्योति को सुरक्षित लैम्पों में जलते रहने दिया जाता है. इन लैम्पों को आयोजक देश के अधिकारी विमान में संभाले रखते हैं. मशाल दौड़ के विभिन्न चरणों के बीच रातों में विश्राम के वक़्त भी मशाल बुझा दी जाती है, सिर्फ़ लैम्प ही हमेशा जलते रहते हैं.

4. मशाल दौड़ में शामिल होने के लिए लोगों का चुनाव कौन करता है?
ओलम्पिक मशाल थामने के लिए लोगों का चुनाव कई तरह से किया जाता है. ज़्यादातर तो उस देश के अधिकारियों की सलाह पर चुने जाते हैं, जहाँ कि मशाल दौड़ हो रही होती है. इस कोटि में खेल की दुनिया के लोगों की तादात ज़्यादा होती है, हालाँकि समाज के दूसरे तबकों के प्रतिष्ठित लोगों को भी मौक़ा दिया जाता है. मशाल लेकर दौड़ने के लिए कुछ लोगों का चुनाव आयोजक देश की सरकार की तरफ़ से होता है. जैसे लंदन में मशाल थामने वालों में ब्रिटेन में चीन की राजदूत भी शामिल थीं. तीसरी कोटि के लोग मशाल दौड़ के प्रायोजकों की तरफ़ से लगाए जाते हैं. इस बार की प्रायोजक कंपनियाँ हैं- सैमसंग, कोका-कोला और लेनोवो.

5. इस बार मशाल के इर्दगिर्द प्रथम सुरक्षा घेरा बना कर चल रहे नीली-सफ़ेद ट्रैकसूट वाले रक्षकों का क्या मामला है?
ब्लू-एंड-व्हाइट ब्रिगेड के ये लोग दरअसल चीनी सुरक्षा बल के अतिविशिष्ट दस्ते के सदस्य हैं. इस बार लंदन में मशाल दौड़ में शामिल कुछ धावकों की मानें तो चीनी मशाल-रक्षकों का शालीनता से कोई वास्ता नहीं है. टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में ये धावकों को 'हाथ ऊपर उठा कर रखो, सीधा चलो...' जैसे आदेश देते रहते हैं. लंदन में 2012 के ओलम्पिक आयोजन से जुड़े एक बड़े खेल अधिकारी ने चीनी मशाल रक्षकों को 'Thugs' की उपमा दी है.

नीले-सफ़ेद पहनावे वाले चीनी मशाल रक्षकों का सबसे ज़्यादा विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि ये चीनी सुरक्षा बलों की उन्हीं टुकड़ियों से हैं जिन पर कि तिब्बत में दमनात्मक कार्यों में शामिल होने का आरोप रहा है. और अंतत:, मशाल दौड़ में शामिल ब्रिटेन, फ़्रांस, अमरीका और अर्जेंटीनी जैसे देशों की चुप्पी के बाद जापान ने चीनियों से ये कहने का साहस किया है कि उसके यहाँ चीनी रक्षकों को मशाल के साथ दौड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि जापान अपने दम पर मशाल की सुरक्षा-व्यवस्था सुनिश्चित कर सकता है.

बुधवार, अप्रैल 09, 2008

चाइना रेडियो की एक रिपोर्ट

लंदन में बीजिंग ओलंपिक मशाल बुझाने की कोशिशमीडिया के लिए पूरी तरह नहीं खुले किसी देश का सूचना-प्रवाह सत्य से कितना दूर हो सकता है, उसकी मिसाल चाइना रेडियो इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में देखा जा सकता है, जिसे हिंदी श्रोताओं/पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया.

मैंने सुना था कि चीनी मीडिया या तो अपनी मर्ज़ी से या सरकारी दबाव में अपने लोगों को आधी-अधूरी या बनी-बनाई ख़बरें देता है. लेकिन भारतवासियों और हिंदीभाषियों के लिए सफेद झूठ प्रसारित करने का कोई मतलब समझ में नहीं आता. क्योंकि भारत में मीडिया के क्षेत्र में खुलापन कई मामलों में तो पश्चिमी देशों से भी ज़्यादा है.

चाइना रेडियो इंटरनेशनल की ख़बर लंदन में ओलंपिक मशाल दौड़ के बारे में है. सब को पता है कि लंदन में 50 किलोमीटर के पूरे रास्ते में मशाल दौड़ को तिब्बत समर्थक और चीन विरोधी प्रदर्शनकारियों का सामना करना पड़ा. क़रीब 35 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया. मशाल छीनने और उसे अग्निशामक से बुझाने की कोशिशों की तस्वीरें दुनिया भर ने देखीं. मशाल थामने के लिए चीनी राजदूत को तयशुदा स्थान से दूर चाइना-टाउन जाना पड़ा. लेकिन ये देखिए ओलंपिक मशाल दौड़ के लंदन चरण के बारे में चाइना रेडियो की रिपोर्ट, सब कुछ कितना व्यवधानरहित और आनंदमय रहा! (कृपया मज़े के लिए पढ़ें.)-

2008-04-07 16:16:49
पेइचिंग ओलिंपिक मशाल रिले लंदन में संपन्न हुई

6 मार्च को 2008 पेइचिंग ओलिंपिक की मशाल रिले ब्रिटेन की राजधानी लंदन में चली , उसी दिन लंदन में बड़ी बर्फबारी पड़ी , विशाल जमीन पर सफेद चादर सा बिछा हुआ , जान पड़ता था कि पूरा शहर एक सफेद दुनिया में आच्छादित था , मौसम ठंडा था , लेकिन ओलिंपिक मशाल के स्वागत में लंदन निवासियों और ब्रिटेन में रह रहे चीनी मूल के लोगों और प्रवासी चीनियों का उत्साह बहुत ऊंचा था ।

ओलिंपिक मशाल रिले 6 मार्च के सुबह सफेद बर्फों से ढके लंदन में हुई । लंदन के उत्तरी भाग में स्थित वेम्बली स्टेडियम के पास आरेना चौक पर रंगबिरंगे झंडे हवा में लहरा रहे थे , बैंड की ध्वनि आकाश में गूंज उठी और चौक पर हजार से अधिक लोग एकत्र हुए , उन में से सपरिवार आए लोग बहुत अधिक थे । सुबह दस बज कर तीस मिनट पर मशाल वेम्बली स्टेडियम में प्रज्ज्वलित किया गया और उस के स्वागत में इकट्ठी भीड़ में हर्षोल्लास गूंज उठा , जो आरेना चौक तक सुनाई पड़ा था। अपने तीन बच्चों को ले कर मशाल रिले देखने आए लंदन निवाली श्री अर्वांद बाटेल और उन के बच्चे हाथों में चीनी राष्ट झंडे , ब्रिटिश राष्ट्र झंडे और ओलिंपिक पताकाएं थामे हर्षोल्लास कर रहे थे । उन्हों ने कहाः

हम स्टेडियम के निकटस्थ स्थान पर है । आज की गतिविधि उत्साहजनक है , मुझे इस प्रकार के संगीत बहुत पसंद है ।

सुश्री काटिए.पोल मशाल रिले के अपने पास से गुजरते देख कर बहुत प्रफुल्लित हुई , वह स्थानीय चीनियों द्वारा प्रस्तुत रंगीन फीता नृत्य से बरबस आकर्षित हुई । उन्हों ने कहाः

यह नृत्य बेहद सुन्दर है । मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि रंगीन फीतों से इस किस्म का मनोहर नृत्य पेश किया जा सकता है । यह नृत्य बहुत मोहक है । मुझे बड़ी खुशी हुई कि मशाल रिले यहां से गुजर कर लंदन और अन्य स्थानों को चली जाएगी ।

उसी दिन की मशाल रिले गतिविधि के लिए लंदन के उन सभी स्थलों , जहां मशाल रिले पहुंचेगी , ने अनेक प्रकार के रंगबिरंगे जश्न आयोजित किए । आरेना चौक पर जाकोब .माट्वीजसन ने लाल सफेद रंगों की धारीदार नृत्य पोशाक पहना था और उन के हाथों में अग्नि का प्रतीक वाला पकाता था । वे अपने सहपाठियों के साथ रंगमंच पर कार्यक्रम पेश करने की प्रतीक्षा में थे । उन्हों ने संवाददाता से कहा कि वह लंदन के एक मिडिल स्कूल का छात्र है ।

हम रंगमंच पर प्रोग्राम पेश करेंगे । जब मशाल पहुंचा , तो हमारा एक भाग चक्कर लगाए गोलाकार दिखाएंगे और दूसरा भाग रंगीन झंडे फहराएंगे ।

प्रोग्राम पेश करने वाले स्कूली छात्र दल के नेता ब्रेंट सामुदायिक बस्ती से आई सुश्री क्लारी. सालंडी है । उन्हों ने कहाः

आज बहुत से नौजवान यहां आए हैं । उन्हों ने खुद प्रोग्राम के लिए पोशाक बनाये है । वे पेइचिंग ओलिंपिक मशाल के ब्रिटेन में आने का जोशीला स्वागत करते हैं । उन का यह प्रोग्राम शांति वाहक कबूतरे की आकृति में है , जिस का अर्थ ओलिंपिक भावना शांति है । प्रोग्राम का यह हिस्सा लहराती पवित्र अग्नि का द्योतक है । मैं बहुत भावविभोर हूं, यह एक महान घड़ी है । मैं समझती हूं कि ओलिंपिक मशाल की अग्नि विश्व के सभी देशों के एकता के सूत्र में बांध देगी और खेल समारोह के जरिए लोगों को और बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करेगी , यह ओलिंपिक द्वारा प्रवर्तित मुख्य विषय है ।

मशाल रिले के लंदन में चलने के समय ब्रिटेन में रह रहे चीनी मूल के लोग और प्रवासी चीनी सब से अधिक प्रभावित हुए । जब मशाल रिले लंदन की चाइना टाउन में खड़े चीनी तौरण तक पहुंची , तो वहां इंजतार में खड़े चीनियों में जोरदार उमंग और उत्साह की लहर दौड़ने लगी । लाल रंग की लाइट , सड़क के दोनों किनारों पर फहराती रंगीन झंडियां , घूम रहे स्वर्णिम ड्रैगन व सिंह नाच और प्यारे प्यारे पेइचिंग ओलिंपिक के पांच शुभंकर यहां के खुशगवार वातावरण को चार गुना बढ़ा गए। लंदन के चीनी व्यापारी संघ के अध्यक्ष श्री तङ चुथिंग ने कहाः

हम पिछले अनेक महीनों से तैयारी कर रहे हैं । देखो , वहां के कंडीलों और रंगीन ध्वजों को देखो , ओलिंपिक के पांच शुभंकर भी आ पहुंचेंगे , हम ड्रैगन व सिंह नाच भी नाचेंगे । और वे चीनी राष्ट्र झंडे , ओलिंपिक ध्वज और ब्रिटिश राष्ट्र झंडे सभी हम ने तैयार कर रखे हुए हैं ।

चीनी मूल की युवती सुश्री कामेन वु सिंह नाच दल की सदस्या है । उस ने अपने सहपाठियों के साथ सिंह नाच नाचते हुए ब्रिटेन स्थित चीनी राजदूत सुश्री फु श्यन और उन के हाथ में थामे मशाल को चाइना टाउन के अंतिम छोर तक पहुंचाया । कामेन .वु ने कहा कि यद्यपि उन की चीनी भाषा अच्छी नहीं है, तथापि वह पेइचिंग ओलिंपक मशाल के साथ निकट संपर्क के इस मौके को बहुत मूल्यवान समझती है । उस ने कहाः

हम ने इस बार की गतिविधि के लिए दो महीनों तक तैयारी की है , हम हर हफ्ते तीन दिन अभ्यास करते थे । मैं बहुत प्रभावित हुई हूं , मैं समझती हूं कि मेरी यह कोशिश मूल्यवान है । आम स्थिति में हमें ओलिंपिक मशाल के इतने नजदीक पहुंचने का मौका नहीं मिलता है ।

लंदन की सड़कों पर बहुत से लोग मशाल रिले के साथ एक स्थल से दूसरे स्थल तक दौड़ने चले जाते थे । उन में से लंदन युनिवर्सिटी के छात्र , अखिल ब्रिटिश चीनी छात्र मित्रता संघ के अध्यक्ष श्री ये हाईथाओ भी हैं । उन की नजर में 6 मार्च की यह हिमपात शुभसूचक है । उन का कहना हैः

आज सुबह बड़ी बर्फबारी हुई , यह बड़ी खुशी की बात है । क्योंकि यह बर्फबारी इस साल के ओलिंपिक की सफलता का शुभसूचक है । यों मौसम ठंडा है , किन्तु लोगों के दिल में गर्मी भरी हुई है । ओलिंपिक एक शानदार खेल समारोह है , वह मातृभूमि का शानदार जश्न है , जिस से मातृभूमि की प्रतिष्ठा और उपलब्धि अभिव्यक्त हुई है।

मशाल रिले के जोशीले वातावरण से ब्रिटिश पक्ष के कर्मचारी भी प्रभावित हुए । मशाल रिले के दौरान सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के काम में तैनात सुश्री मारिया. आर्मस्ट्रांग ने कहा कि मौसम ठंडा है , पर वह सभी लोगों की भांति बहुत उत्साहित हुई है ।

आज इतने ज्यादा लोग एकत्र हुए हैं , बड़ी खुशी है कि इतने ज्यादा मुस्कराते चेहरे देखे । मौसम सर्द है , लेकिन ओलिंपिक मशाल रिले की कार्यवाही बहुत उम्दा है । मैं पेइचिंग ओलिंपिक देखने के आतुर हूं । मैं और मेरे सहकर्मी सभी आज यहां काम मिलने पर प्रसन्न हुए हैं ।

लंदन में मशाल रिले 50 किलोमीटर लम्बे रास्ते से गुजरी , जो मौजूदा रिले में सब से लम्बी है। रिले ग्रेट ब्रिटेन संग्रहालय , लंदन टावर पुल , चाइना टाउन और बिग बेन क्लॉक आदि दर्शनीय स्थलों से गुजरी । लंदन की मशाल रिले विशिष्ट ऊंचे दर्जे की है । जब मशाल रिले डाउनिंग स्ट्रेट नम्बर 10 पहुंची , उस के स्वागत में ब्रिटिश प्रधान मंत्री गोर्डुन ब्रोन खुद द्वार पर आए और रिले के अंतिम स्थल पर आयोजित समारोह में राजकुमारी आन्ने भी उपस्थित हुई ।

मशाल रिले जब लंदन के पूर्वी भाग में स्थित ग्रीनविच के प्रायद्वीप चौक पर पहुंची , तो वहां अग्नि कुंड को प्रज्ज्वलित करने की रस्म आयोजित हुई । इस के उपरांत मशाल रिले लंदन की गतिविधि समाप्त कर आगे के पड़ाव यानी फ्रांस के पैरिस शांति का संदेश पहुंचाने चली जाएगी ।

पेइचिंग ओलिंपिक मशाल रिले लंदन में अपनी कार्यवाही संपन्न करके 7 मार्च को फ्रांस के शहर पेरिस पहुंची । 7 तारीख को पेरिस के प्रतीकात्मक वास्तु निर्माण यानी एफेर टावर के नीचे से रिले की शुरूआत होगी । इस भव्य रस्म के स्वागत में फ्रांस के पूर्व प्रधान मंत्री , सीनेटर श्री जेन.पिएर . राफिरिन ने 6 तारीख को विशेष कर एफेर टावर के नीचे चीनी संवाददाताओं को इंटरव्यू दिया और कहा कि उन्हें बड़ी खुशी हुई है कि ओलिंपिक पेइचिंग में आयोजित होगा । उन्हों ने कहाः

हालांकि पेरिस को 2012 ओलिंपिक के आयोजन का अवसर नहीं मिला , लेकिन मुझे बड़ी खुशी हुई है कि ओलिंपिक चीन में भी होगा । विश्व के सभी देशों को औलिंपिक आयोजित करने का अधिकार है । चीनी जनता को भी ओलिंपिक का आयोजन करने का अधिकार है । 2008 पेइचिंग ओलिंपिक निश्चय ही चीनी व विश्व युवा का शानदार खेल समारोह होगा । ओलिंपिक का आयोजन चीन द्वारा खुलेपन की नीति लागू करने की अभिव्यक्ति है , साथ ही ओलिंपिक भावना की व्यापकता का महत्व व्यक्त होगा ।


ये रहा रिपोर्ट का- असल लिंक.

चाइना रेडियो इंटरनेशनल ने ल्हासा में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी एकतरफ़ा रिपोर्टों का एक विशेष पन्ना भी तैयार किया है. नज़र डालने पर पता चलेगा कि राज्यनियंत्रित मीडिया सच्चाई से कितने कोस दूर होता है.

लंदन के बाद पेरिस में भी हंगामा होने के बाद चाइना रेडियो का स्वर थोड़ा बदला, लेकिन फिर भी सच्चाई से कोसों दूर. बाद की रिपोर्टों में 'पवित्र अग्नि' के पथ में बाधा डालने के लिए प्रदर्शनकारियों को लानत दी गई है.

मंगलवार, अप्रैल 03, 2007

'चीन गणतंत्र' के डाक-टिकट पर 'ताइवान'

ताइवान के नाम का डाक-टिकटचीन नाम से दो देश हैं. पहला है चीन लोकतांत्रिक गणराज्य, जिसे कि आमतौर पर सिर्फ़ चीन कहा जाता है. दूसरा है चीन गणतंत्र, जिसे आमतौर पर ताइवान के नाम से जाना जाता है.

संपूर्ण चीन के प्रतिनिधि के रूप में ताइवान (चीन गणतंत्र) संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक राष्ट्रों में से एक था. सुरक्षा परिषद का सदस्य था. लेकिन 1971 में संयुक्त राष्ट्र में ताइवान की जगह चीन (चीन लोकतांत्रिक गणराज्य) को दे दी गई. इतना ही नहीं चीन ने अपनी 'एक चीन' नीति पर सख़्ती से अमल करते हुए ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व को अवैध करार दिया. चीन ने खुलेआम घोषणा कर दी कि जो कोई देश ताइवान को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा, उसके साथ चीन कोई संबंध नहीं रखेगा. अब आलम ये है कि मात्र 24 देशों का ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्ता है. यानि, दो दर्जन देश ही ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता देते हैं. इन देशों में से कुछ इतने पिद्दी हैं कि चीन उनके ताइवान को मान्यता देने की बात पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत ही नहीं समझता. इसके बाद भी कोई संदेह नहीं कि आने वाले महीनों और वर्षों में 24 देशों की ये सूची छोटी होती जाएगी.

चीन ने संयुक्त राष्ट्र ही नहीं, बल्कि उन सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों से ताइवान को बाहर करा रखा है, जिनका थोड़ा-सा भी महत्व है. स्काउट आंदोलन के विश्व संगठन में ताइवान को चीनी प्रतिनिधि के रूप में जगह सिर्फ़ इसलिए मिली हुई है, क्योंकि ख़ुद चीन इस संगठन का सदस्य नहीं है.

ओलंपिक खेलों में ताइवान की टीम चीनी टीम से अलग जाती तो है, लेकिन उसे 'चीन गणतंत्र' या 'ताइवान' के नाम से भाग नहीं लेने दिया जाता. ओलंपिक में ताइवान की टीम 'चीनी ताइपेई' की टीम के नाम से जानी जाती है. ताइपेई ताइवान का सबसे बड़ा नगर और राजधानी है. ओलंपिक खेलों में चीनी ताइपेई के नाम से भाग लेने वाले ताइवानी खिलाड़ी अपना राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहरा सकते हैं, अपना राष्ट्रगान नहीं गा सकते हैं. इतना ही नहीं ताइवानी दर्शक भी ओलंपिक खेलों के दौरान अपने खिलाड़ियों के समर्थन में राष्ट्र ध्वज नहीं लहरा सकते.

अमरीका और जापान के ताइवान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, लेकिन ये दोनों देश भी चीन को नाराज़ नहीं करना चाहते, और ताइवान को परोक्ष रूप से ही मान्यता देते हैं. मसलन, ताइवान में अमरीका की मौजूदगी 'अमेरिकन इंस्टीट्यूट इन ताइवान' के नाम से है, जबकि अमरीका में ताइवान की उपस्थिति 'ताइपेई इकॉनोमिक एंड कल्चरल रिप्रेजेन्टेटिव ऑफ़िस' के मुखौटे के साथ है.

अमरीका को नाम से कोई ख़ास मतलब नहीं है. उसे तो बस इस बात से मतलब है कि चीन की नाक के नीचे ताइवान रूपी उसका चेला खड़ा है. अमरीका ताइवान पर चीन का क़ब्ज़ा बिल्कुल नहीं चाहता, लेकिन वह ये भी नहीं चाहता कि ताइवान ख़ुलेआम अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करे. मतलब अमरीका अभी तक तो यथास्थिति के पक्ष में है. लेकिन, तेज़ी से बदलती भूराजनैतिक परिस्थितियों के मद्देनज़र पता नहीं कितने वर्षों तक वह ताइवान के ख़िलाफ़ चीन के शक्ति-प्रदर्शन को टाल पाएगा.

जहाँ तक चीन सरकार की बात है तो वह ताइवान को 'चीन गणतंत्र' के बजाय 'ताइवान प्रांत' के रूप में प्रचारित करती है. चीन के सरकारी नक्शों में उसे ताइवान प्रांत के रूप में ही चित्रित किया जाता है. यानि 'प्रांत' शब्द के साथ जुड़ा हो तो चीन को 'ताइवान' शब्द से चिढ़ नहीं है. लेकिन सिर्फ़ 'ताइवान' या फिर 'ताइवान गणतंत्र' जैसे नाम चीन को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं.

इसके बावजूद पिछले कुछ महीनों से ताइवानी सरकार ताइवान शब्द का प्रयोग बढ़ाते जा रही है. कई मामलों में तो नामों में चीन शब्द की जगह ताइवान शब्द डाला गया है. सरकारी डाक-विभाग को पहले 'चाइना पोस्ट' के नाम से जाना जाता था, जो अब 'ताइवान पोस्ट' है. सरकारी पेट्रोलियम और जहाज़रानी कंपनियों के नामों में भी चीन की जगह ताइवान डाल दिया गया है. इसी तरह ताइपेई के 'चियांग काइ-शेक स्मारक' का नाम बदल कर 'ताइवान लोकतंत्र स्मारक' कर दिया गया है.

ज़ाहिर है ताइवान शब्द का प्रचलन कर मौजूदा ताइवानी सरकार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को धार दे रही है, चीन के आगे सीना फुलाने की कोशिश कर रही है. ताइवानी सरकार के इसी नए रवैये का उदाहरण है फ़रवरी में जारी डाक-टिकट जिसमें पहली बार चीन गणतंत्र की जगह ताइवान शब्द छापा गया है. ताइवानी सरकार ने विदेश में स्थित अपने अनौपचारिक कूटनीतिक केंद्रों के नामों में भी ताइवान शब्द डालने की मंशा जताई है.

चीन गणतंत्र के नाम से ताइवानी डाक-टिकटलेकिन चीन की बढ़ती ताक़त को देखते हुए लगता नहीं कि अपने नए रूप में ताइवानी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ज़्यादा ऊँची उड़ान भर पाएगा. ताइवान के नाम से डाक-टिकट जारी किए जाने को चीन के विरोध की थाह लेने की एक कोशिश के रूप में देखा जाना ही ज़्यादा उचित लगता है.

रविवार, फ़रवरी 18, 2007

स्वर्णिम सूअर वर्ष

चीनी जनता और दुनिया के कोने-कोने में फैले चीनी लोग आज नए साल की शुरुआत कर रहे हैं. चंद्र कैलेंडर के हिसाब से हर चीनी वर्ष बारी-बारी से 12 जीवों में से एक का होता है. और आज से आरंभ चंद्र-वर्ष सूअर के नाम है.

सूअर के अलावा बाक़ी ग्यारह जीव हैं(क्रमवार): चूहा, बैल, बाघ, खरगोश, ड्रैगन(मिथकीय जीव), साँप, घोड़ा, भेड़, बंदर, मुर्ग़ा और कुत्ता.

यदि चीनी परंपरा के जानकारों की मानें तो ये हर बारहवें साल आने वाला सामान्य सूअर वर्ष नहीं, बल्कि विशेष स्वर्णिम सूअर वर्ष है जो 60 साल में आता है.

सूअर चीनी परंपरा में धन और संपन्नता से जुड़ा जीव है. चीनी समाज में अधिकतर लोग ये मानते हैं कि सूअर वर्ष हर परिवार के लिए किसी न किसी रूप में ख़ुशियाँ लेकर आता है.

सूअर वर्ष में पैदा हुए बच्चों को भाग्यशाली माना जाता है. ऐसे बच्चे आमतौर पर ईमानदार, सभ्य, मेहनती और भरोसेमंद होते हैं. माना जाता है कि ये बच्चे हमेशा दूसरों का प्यार पाते हैं. लोग उनकी मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते. सूअर वर्ष में जन्मे बच्चे ख़ुश रहते हैं, ज़िंदगी में नाम कमाते हैं.

सूअर वर्ष में पैदा हुए बच्चों की ख़ासियत को देखते हुए अस्पतालों में विशेष तैयारियाँ की जा रही हैं. अधिकतर अस्पतालों में जच्चा-बच्चा वॉर्ड का या तो विस्तार किया जा रहा है, या फिर अतिरिक्त बेड की व्यवस्था की जा रही है.

अधिकारियों का अनुमान है कि अकेले राजधानी बीजिंग में इस साल 1,70,000 बच्चे पैदा होंगे. जो कि बीते साल की तुलना में 50,000 ज़्यादा है.

याद रहे कि चीन में अब भी एक बच्चा की नीति लागू है. हालाँकि हांगकांग में इसे उतनी सख़्ती से लागू नहीं किया जाता. वहाँ चीनी मुख्य भूमि के मुक़ाबले बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था भी है. इस तथ्य के मद्देनज़र हांगकांग प्रशासन को डर है कि इस साल 'गोल्डन पिग बेबी' की चाहत लिए भारी संख्या में महिलाएँ मुख्य भूमि से हांगकांग का रुख़ कर सकती हैं. और ऐसा हुआ तो हांगकांग का स्वास्थ्य तंत्र चरमरा जाएगा.

इस आशंका को देखते हुए हांगकांग प्रशासन ने इस महीने से एक नया क़ानून लागू किया है. इसके तहत मुख्य भूमि से हांगकांग आने वाली किसी गर्भवती महिला को ये सबूत देना पड़ेगा कि उसने पहले से ही अस्पताल में अपनी सीट बुक करा रखी है. यदि कोई महिला गर्भावस्था के सातवें महीने में पहुँच चुकी है, लेकिन उसने किसी अस्पताल के जच्चा-बच्चा वार्ड में सीट नहीं बुक कराया है, तो उसे हांगकांग की ज़मीन पर पाँव नहीं रखने दिया जाएगा.(ये है 'एक देश, दो व्यवस्था' की नीति का कमाल.)

चीनियों के लिए सूअर का वर्ष बहुत ही बढ़िया होता है, लेकिन बाक़ी दुनिया पर इसका क्या प्रभाव रहेगा? भविष्यवक्ताओं की मानें तो इस सवाल का जवाब उतना अच्छा नहीं है. अनेक भविष्यवक्ता मानते हैं कि ये साल बड़ा ही उतार-चढ़ाव वाला होगा, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएँ आएँगी, संघर्षों का विस्तार होगा.

चीनी मान्यता के अनुसार चंद्र कैलेंडर के हर साल पर ब्रह्मांड के अस्तित्व के आधारभूत पंचतत्वों(धातु, जल, लकड़ी, अग्नि और मिट्टी) में से कुछ का विशेष असर होता है.

सूअर के साल पर पंचतत्वों में से दो; अग्नि और जल का असर है. और, कुछ भविष्यवक्ताओं के अनुसार यही चिंता की बात है. पानी पर आग; यानि चीनी शास्त्रों के अनुसार संघर्षों और युद्धों का संकेत.

चलते-चलते एक ऐसा तथ्य जो कि सूअर के वर्ष के भयानक असर का एक बढ़िया उदाहरण माना जा सकता है: लाखों मौतों का ज़रिया बनने वाली एके-47 राइफ़ल का आविष्कार एक सूअर वर्ष में ही हुआ था! ...ग़ौर करें कि इस समय पाँच करोड़ से ज़्यादा एके राइफ़लें प्रचलन में हैं.

शनिवार, जनवरी 20, 2007

अमरीका को चुनौती, भारत को सीख

उपग्रहभेदी व्यवस्थादोगलेपन के लिए अमरीका को चिढ़ाने का काम कई देश कर सकते हैं और करते भी रहे हैं, लेकिन इस मुद्दे पर चुनौती देने का काम दो देश ही कर सकते हैं- रूस और चीन. अमरीकी सामरिक नीतिकारों के लिए ताज़ा चुनौती चीन के तरफ़ से आई है, जो कि भारत के लिए सीख है.

प्रतिष्ठित पत्रिका एविएशन वीक ने 17 जनवरी को अपनी वेबसाइट पर यह रहस्योदघाटन कर सनसनी फैला दी कि चीन ने सप्ताह भर पहले एक उपग्रहभेदी मिसाइल का सफल परीक्षण किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने 11 जनवरी को अपने ही एक बुढ़ा चुके मौसम-उपग्रह को अंतरिक्ष में ही सफलतापूर्वक मार गिराया. चीन ने आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन अमरीका तथा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे उसके पिछलग्गों के खुल कर विरोध जताने से साफ़ है कि चीन स्टार-वॉर्स के क्षेत्र में अमरीका को चुनौती देने की दिशा में पहला क़दम बढ़ा चुका है.

अमरीका को अंतरिक्षीय युद्ध के क्षेत्र में चीन की प्रगति की भनक बहुत पहले लग चुकी थी और पेंटागन ने The Military Power of the People’s Republic of China 2005 नामक अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुल का ज़िक्र भी किया था. लेकिन चूँकि रिपोर्ट में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया था, इसलिए तब इस बात का अनुमान नहीं लगाया जा सका था कि चीन को इतनी जल्दी सफलता मिल जाएगी.

इससे पहले किसी उपग्रहभेदी हथियार का परीक्षण अंतिम बार 1985 में अमरीका ने किया था. वह परीक्षण राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन के स्टार-वॉर्स के सपने को साकार करने के प्रयासों के तहत किया गया था. उसके बाद विभिन्न कारणों से (जिनमें से प्रमुख था आर्थिक कारण) अमरीका की अंतरिक्षीय युद्ध नीति में व्यापक बदलाव किया गया, और स्टार-वॉर्स के अपेक्षाकृत सीमित रूप वाले National Missile Defense(NMD) नामक योजना को आगे बढ़ाया गया. इसमें सारा ज़ोर अमरीकी हितों की ओर बढ़ने वाले किसी मिसाइल को रास्ते में ही मार गिराने पर है.

रक्षात्मक उपाय के रूप में पेश की गई NMD योजना ही लगातार शक्तिशाली बनते जा रहे चीन को चिढ़ाने के लिए काफ़ी थी, क्योंकि अमरीका न सिर्फ़ जापान बल्कि ताइवान को भी अपने मिसाइलरोधी कवच के भीतर रखना चाहता है. ग़ौरतलब है कि चीन की नज़र में ताइवान एक विद्रोही प्रांत भर है, और उसका कहना है कि अंतत: ताइवान को चीन का हिस्सा बनना ही पड़ेगा.

चीन ने रूस के साथ मिल कर अंतरिक्ष को हथियार-रहित बनाने के लिए खुल कर अभियान चलाया है, लेकिन पिछले एक दशक के दौरान जब कभी भी इसके लिए किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते की संभावना बनी, अमरीका ने उसमें अड़ंगा लगाने में कोई देर नहीं की. इतना ही नहीं जैसा कि इस ब्लॉग में पिछले साल अप्रैल में विस्तार से ज़िक्र किया गया था, अमरीका ज़्यादा शोर मचाए बिना तरह-तरह के एंटी-सैटेलाइट(एसैट) हथियार बनाने में भी जुटा हुआ है. इन फ़्यूचरिस्टिक हथियारों से हर उस देश को ख़तरा होगा जो कि अमरीका के सुर में सुर मिलाने से इनक़ार करेंगे.

भविष्य में चीन भी निश्चय ही फ़्यूचरिस्टिक अंतरिक्षीय युद्ध लड़ने में सक्षम होगा, लेकिन उसके पहले सफल उपग्रहभेदी हथियार के पीछे बिल्कुल सरल सिद्धांत है- निशाने पर उपग्रह को लो, उसकी सही-सही अवस्थिति सुनिश्चित करो, और उसमें तेज़ गति से बैलिस्टिक मिसाइल टकरा दो. न बारूद, न बम, न लेज़र विकिरण, और न ही कोई आणविक हथियार...सिर्फ़, तेज़ टक्कर मारने वाली मिसाइल यानि Kinetic Kill Vehicle!!

मतलब दुश्मन के उपग्रहों को चकनाचूर करने के लिए चीन को सिर्फ़ अपनी टोही क्षमता पक्की करने की ज़रूरत होगी. इतना भर जानना होगा कि उपग्रह विशेष की अवस्थिति क्या है. बाक़ी, बैलिस्टिक मिसाइल को उपग्रह से टकराने की क्षमता का प्रदर्शन तो उसने कर ही दिया है.

चीन ने धरती से कोई 800 किलोमीटर दूर की कक्षा में स्थापित अपने एक बेकार होते जा रहे उपग्रह को सफलापूर्वक निशाना बनाया स्वविकसित KT-1 बैलिस्टिक मिसाइल से. लेकिन ऐसी ख़बरें भी हैं कि चीन KT-2 और KT-2A पर भी काम कर रहा है. इन बूस्टरयुक्त मिसाइलों के ज़रिए 20,000 किलोमीटर दूर मध्यवर्ती उपग्रहीय कक्षा ही नहीं, बल्कि 36,000 किलोमीटर दूर भूस्थिर कक्षा के उपग्रहों को भी निशाना बनाया जा सकेगा. यदि ऐसा हुआ, तो अमरीका के 40-50 उपग्रहों को निशाना बना कर चीन कुछ ही घंटों के भीतर अमरीकी सैन्य तंत्र को अंधा-गूंगा-बहरा बना सकेगा.

दरअसल हाल के वर्षों में किसी भी लड़ाई में उपग्रहों ने अमरीकी युद्ध मशीनरी के तंत्रिका-तंत्र की भूमिका निभाई है. तस्वीरें उतारने समेत अधिकतर ज़मीनी ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने का काम निचली कक्षाओं में स्थापित उपग्रहों के ज़रिए होता है. (चीनी परीक्षण की भेंट चढ़ा उपग्रह ऐसी ही कक्षा में था.) इससे आगे बढ़ें, तो अत्यंत सटीक क्रूज़ मिसाइलों और अन्य Smart Weapons की जान होते हैं GPS उपग्रह, जो कि धरती से 15,000 से 20,000 किलोमीटर दूर की कक्षा में होते हैं. और आगे बढ़ें तो अमरीका के हाईटेक युद्ध में तीन चौथाई से भी ज़्यादा सैनिक संचार 36,000 किलोमीटर दूर भूस्थिर कक्षा के उपग्रहों पर निर्भर करता है.

चीन की ताज़ा सफलता निश्चय ही अमरीका के लिए चुनौती है. संभव है वो एक बार फिर बैलिस्टिक मिसाइलों को सीमित करने और अंतरिक्षीय युद्ध के डर को समाप्त करने के लिए एक नई अंतरराष्ट्रीय या बहुपक्षीय संधि पर बातचीत के लिए तैयार हो जाए. यदि ऐसा नहीं होता है...तो भारत जैसे चीन के पड़ोसी देश के पास एंटी-सैटेलाइट हथियार विकसित करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाएगा. जैसे, परस्पर विनाश की गारंटी देने वाले परमाणु हथियार भरोसेमंद सुरक्षा का उपाय माने जाते हैं, उसी तरह एंटी-सैटेलाइट मिसाइल भारतीय उपग्रहों की सुरक्षा की गारंटी बन सकेंगे.