स्वच्छतम छवि वाले नेता होने के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जाने-अनजाने किसी न किसी विवाद में फंसते ही रहते हैं. नया विवाद ऑक्सफ़ोर्ड विश्विद्यालय में उनके भाषण पर उठा है. मनमोहन डॉक्टरेट की मानद उपाधि लेने ऑक्सफ़ोर्ड गए थे.
उन्होंने अपने भाषण में अन्य बातों के अलावा भारत को अंग्रेज़ों की देन का भी ज़िक्र किया. बस गिद्ध दृष्टि वाले टेलीविज़न चैनलों को और क्या चाहिए था, तोड़-मरोड़ कर उनके कथन को इस प्रकार पेश किया मानो मनमोहन अंग्रेज़ों और अंग्रेज़ियत के सबसे बड़ पैरोकार हों. भारत में बीजेपी ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया. कोई शक नहीं कि व्यापक संघ परिवार और कम्युनिस्ट भी इस पर राजनीति करने का मौक़ा नहीं गँवाएँगे.
यदि मनमोहन के भाषण के पूरे टेक्स्ट को देखें तो साफ है कि उन्होंने भारत में विलायती राज पर बहुत ही संतुलित टिप्पणी की. उन्होंने ख़ास तौर पर कहा कि कैसे अंग्रेज़ी शासन के शुरू में विश्व अर्थव्यवस्था में भारत का योगदान 22.6 प्रतिशत होता था(पूरे यूरोप का योगदान थोड़ा ही ज़्यादा यानी 23.3 प्रतिशत था) और कैसे अंग्रेज़ी आर्थिक शोषण के चलते आज़ादी के समय यह योगदान घटकर 4 प्रतिशत से भी कम रह गया.
मनमोहन सिंह ने अंग्रेज़ों के अच्छे प्रशासन की ज़रूर बात की, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कैसे महात्मा गाँधी समेत आज़ादी के तमाम दीवाने सेल्फ़ गवर्नेंस इज़ बेटर दैन गुड गवर्नेंस के सिद्धांत में यक़ीन करते थे.
मतलब टीवी पत्रकारों ने तिल का ताड़ बनाया और राजनीतिक दलों ने घटिया राजनीति का नमूना दिया. ये बात न सिर्फ़ आम भारतीय बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कम्युनिस्ट समर्थक भी स्वीकार करेंगे कि विलायती राज ने भारत से बहुत-बहुत कुछ लिया, लेकिन क़ानून का राज, विश्वविद्यालय, रेल, पुरातत्व विभाग, डाक-तार, प्रेस और सिविल सेवाओं जैसे महत्वपूर्ण आधुनिक प्रतिष्ठानों की स्थापना में सहयोग भी किया. भले ही इनमें से कई प्रतिष्ठान अंग्रेज़ों ने अपने राज की सहूलियत के लिए किए हों, लेकिन इस बात से क्यों इनक़ार किया जाए कि इनमें उनका योगदान था.
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1 टिप्पणी:
आपकी बात बिल्कुल सही है अगर "गुलामी के सुप्रबंध" को ही " गुड गवर्नेंस " कहने लगें ।
अगर देशवासी अंगरेजी राज में दिन पर दिन गरीब होते चले गये , पूरा देश कंगाल हो गया , तो भाड मे गयी उनकी रेल , विश्वविद्यालय और कोर्ट !
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