गुरुवार, जुलाई 07, 2005

ब्रिटेन को आतंकवाद का नया अनुभव

आख़िरकार इस्लामी चरमपंथियों को ब्रिटेन पर हमले का मौक़ा मिल ही गया. सात जुलाई को लंदन की परिवहन व्यवस्था चरमपंथियों का निशाना बनी. तीन धमाके भूमिगत रेल(ट्यूब) में हुए और चौथा धमाका लंदन की पहचान मानी जाने वाली लाल रंग की एक डबल-डेकर बस में हुआ. यह पोस्ट लिखे जाते समय 37 लोगों की मौत और क़रीब 700 के घायल होने की पुष्टि हो चुकी है. घायलों में से दर्जनों ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं.

ब्रिटेन को आतंकवाद का अनुभव दुनिया के कई देशों से ज़्यादा है. ब्रिटेन ने दशकों तक उत्तरी आयरलैंड के आईआरए चरमपंथियों के हमलों को झेला है. लेकिन ऐसे हमले किसी न किसी तरह की पूर्व चेतावनी के बाद होते थे और आमलोगों को कम से कम निशाना बनाने की कोशिश की जाती थी. दूसरी ओर इस्लामी चरमपंथियों के काम करने के तरीक़े बिल्कुल अलग हैं. और इसी अलग तरह के आतंकवाद का पहला अनुभव ब्रिटेन को हुआ है.

ट्यूब लंदनवासियों की ज़िंदगी का अहम अंग हैं. और किसी वर्किंग-डे में पौने-नौ बजे सुबह ट्यूब पर कितनी भीड़ रहती है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि आम तौर पर पीक-ऑवर में लंदन की पटरियों पर क़रीब 500 ट्रेनें होती हैं. और पीक-ऑवर में 15 से 20 लाख लोग सफ़र कर रहे होते हैं.

लंदन 9-11 के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय इस्लामी चरमपंथियों की हिट-लिस्ट में नंबर वन माना जाता रहा है. और जब मैड्रिड में रेलों पर एक साथ कई धमाके हुए तो
लंदन पर हमला निश्चित माने जाने लगा था. पुलिस कई बार सतर्कता स्तर बढ़ा चुकी थी और कहा जा रहा था कि लंदन पर हमला तो होना तय है, सिर्फ़ ये तय नहीं है कि ये कब होगा.

और चरमपंथियों ने जी-8 सम्मेलन के शुरूआती दिन लगभग एक ही साथ केंद्रीय लंदन के चार स्थानों पर ये हमले किए. दुनिया के सबसे धनी आठ देशों के समूह जी-8 के सम्मेलन के लिए मनमोहन सिंह समेत पाँच अन्य उभरते देशों के नेता भी स्कॉटलैंड के ग्लेनइगल्स में जमे हैं. इसके अलावा अभी कल ही तो पूरे ब्रिटेन ने 2012 ओलंपिक का आयोजन लंदन को मिलने की ख़ुशी मनाई थी. मतलब पार्टी मूड बिगाड़ने का इससे बेहतर मौक़ा चरमपंथियों को शायद ही मिलता. इस हमले से साबित कर दिया कि अल-क़ायदा का यूरोप गुट अब भी सक्रिय है, जो कि आमतौर पर सुसुप्तावस्था में रहता है और मौक़ा पाते ही सक्रिय होकर दुनिया के किसी भी कोने में हमले को अंज़ाम दे देता है.

उम्मीद है भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ग्लेनइगल्स में ब्रिटेन, अमरीका और अन्य प्रभावशाली नेताओं को बता सकेंगे कि कैसे भारत अकेले अपने दम पर आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है. इसी सप्ताह अयोध्या में हुए नाकाम चरमपंथी हमले का उदाहरण दुनिया के सामने ताज़ा ही है.

लेकिन भारत को आतंकवाद के मुद्दे पर अमरीका-पाकिस्तान जैसा कोई गठजोड़ बनाने के बज़ाय बराबरी के सहयोग पर ज़ोर देना चाहिए. मसलन खुफ़िया जानकारियों में साझेदारी और हमले के बाद राहत और बचाव कार्य के संयुक्त अभ्यास जैसे सहयोग. यह बात उल्लेखनीय है कि लंदन में सुनियोजित हमले के बावजूद कोई अफ़रातफ़री नहीं मची, और अपेक्षाकृत बहुत कम लोग हताहत हुए. भारत इस अनुभव का लाभ ले सकता है क्योंकि भारतीय भीड़तंत्र को नियंत्रित करना अब तक संभव नहीं हो पाया है.

किसी देश में हुए आतंकवादी हमले का कोई दूसरा देश किस प्रकार फ़ायदा उठा सकता है ये सात जुलाई को धमाकों के बाद लंदन में अनुभव किया गया. दरअसल धमाकों के बाद कुछ देर के लिए मोबाइल-फ़ोन नेटवर्क ठप कर दिया गया. ऐसा मैड्रिड धमाकों से सीख लेकर किया गया क्योंकि वहाँ रेलगाड़ियों में धमाके मोबाइल फ़ोनों के ज़रिए कराए गए थे. भारतीय नेता इस बात से भी सीख ले सकते हैं कि कैसे ब्रितानी प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर दिन भर में तीन बार स्वयं टेलीविज़न और रेडियो के ज़रिए जनता से मुख़ातिब हुए और ताज़ा स्थिति से अवगत कराया.

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