शनिवार, अक्टूबर 22, 2005
एपोफ़िस और तोरिनो पैमाना
अभी कश्मीर में भयानक भूकंप आया और एक बार फिर आम लोगों की ज़ुबान पर रिक्टर पैमाने का नाम चढ़ गया. कोई मुज़फ़्फ़राबाद के पास केंद्रित इस भूकंप को रिक्टर पैमाने पर 7.6 बता रहा था तो कोई 7.8 या और ज़्यादा.
इसी तरह अमरीका में तबाही मचाने वाले कैटरीना तूफ़ान ने जनसामान्य को फिर से याद दिलाया कि तूफ़ानों की एक से पाँच तक की कैटगरी के क्या मायने होते हैं.
लेकिन हमें नहीं लगता प्राकृतिक आपदा के एक और अहम पैमाने 'तोरिनो' की आमलोगों को ज़्यादा जानकारी है. जानकारी हो भी कैसे, क्योंकि इस पैमाने से जुड़ी कोई तबाही अभी हमें देखने को जो नहीं मिली है. भगवान न करे ऐसा कभी हो क्योंकि ऐसी तबाही में हज़ारों या लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों की संख्या में लोगों के मरने की आशंका होगी. और एक महाटक्कर से होने वाली इस तबाही के कारण पर्यावरण में होने वाला बदलाव भी बाद के वर्षों में करोड़ों अन्य लोगों की मौत का सीधा कारण बनेगा.
तोरिनो पैमाना है क्या बला? पहले तो ये बता दूँ कि तोरिनो नाम इटली के मशहूर शहर तूरिन से लिया गया है जिसे पश्चिमोत्तर इटली में तोरिनो नाम से ही जाना जाता है.(आपको आश्चर्य होगा कि इटली में मिलान को मिलानो, रोम को रोमा, फ़्लोरेंस को फ़िरेंज़ी और वेनिस को वेनित्सिया नाम से जाना जाता है.) तोरिनो से जुड़ी एक और रोचक बात यह है कि भारत की कांग्रेस पार्टी की भाग्य-विधाता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की विधवा सोनिया का ताल्लुक इसी शहर से है.
तो, तोरिनो में 1999 में खगोल भौतिकशास्त्रियों की एक बैठक हुई एस्टेरॉयड या उल्का-पिंडों और पुच्छल तारों के ख़तरे पर विचार के लिए.(एस्टेरॉयड मंगल और बृहस्पति के बीच लाखों की संख्या में मौजूद पत्थर और धातु के उन पिंडों को कहा जाता है जो कि एक ग्रह के समान ही सूर्य का चक्कर लगा रहे हैं. क्या पता किसी बड़े ग्रह से ही टूट कर बिखरे हों. इनमें से कुछ तो 1,000 किलोमीटर व्यास के हैं तो अनेक साधारण कंकड़-पत्थर जितने बड़े.)
पुच्छल तारों और एस्टेरॉयड के अपनी कक्षा से भटक कर धरती की ओर आने का ख़तरा हमेशा से बना रहा है. इस ख़तरे को हॉलीवुड ने बढ़ा-चढ़ाकर डीप इम्पैक्ट जैसी फ़िल्मों के ज़रिए बेचा भी है. हाल के इतिहास में तो ऐसी किसी टक्कर का ज़िक्र नहीं है, लेकिन माना जाता है कि ऐसी ही टक्करों से धरती के कई बड़ी झीलें बनी हैं और ऐसी ही किसी बड़ी टक्कर ने डायनोसोरों का काम तमाम किया होगा.
तो भैया, तोरिनो के सम्मेलन में एमआईट के वैज्ञानिक रिचर्ड बिन्ज़ेल द्वारा कुछ साल पहले प्रतिपादित पैमाने को स्वीकार कर लिया गया और उसे तोरिनो पैमाने के नाम से जाना जाने लगा. जहाँ तक एस्टेरॉयड के ख़तरे की बात है तो 1994 में ऐसी किसी टक्कर में मारे जाने की आशंका को किसी भयावह भूकंप के ख़तरे से ज़्यादा प्रबल बताया गया यानि 20 हज़ार में एक. लेकिन चार साल बाद अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने ऐसे सारे संभावित ख़तरों की गिनती की. नासा ने बताया कि कोई 700 एस्टेरॉयड ऐसे हैं जो कभी न कभी धरती का रुख़ कर सकते हैं. ऐसे में एस्टेरॉयड की टक्कर से मरने की आशंका घट कर 2,00,000 में एक कर दी गई. हालाँकि इस तरह की वैज्ञानिक गणनाओं पर पूरी तरह भरोसा भी नहीं किया जा सकता.
ख़ैर, दिसंबर 2004 में वैज्ञानिकों ने पाया कि 400 मीटर आकार का एक उल्का-पिंड वर्ष 2029 में धरती से टकरा सकता है. इस एस्टेरॉयड को विनाश के ग्रीक देवता एपोफ़िस का नाम दिया गया. और तोरिनो पैमाने पर इसे नंबर दिया गया 4. विश्वास करें कि किसी भी उल्का-पिंड को ख़तरे की दृष्टि से दिया गया यह सबसे बड़ा नंबर है. हालाँकि हाल के महीनों में ज़्यादा सही गणना का दावा करते हुए कहा गया है कि शायद एपोफ़िस धरती के बगल से गुजर जाए. लेकिन बेफ़िक्र होने की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि वैज्ञानिकों को मालूम नहीं कि 2029 में धरती के पास गुजरते वक़्त धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति एपोफ़िस की कक्षा और गति पर क्या असर करेगी. और भगवान न करे, कुछ गड़बड़ हुआ तो एपोफ़िस 2035-36 में एक बार फिर धरती माता को टक्कर देने की स्थिति में होगा.
भगवान बचाए. शुभ-शुभ!
चलते-चलते प्रस्तुत हैं 'गूगल अर्थ' के सौजन्य से दो अंतरराष्ट्रीय सामरिक ठिकानों के चित्र. (चित्र भारतीय सनसनी मीडिया के लिए हैं, न कि चरमपंथियों के लिए)-
पेंटागन, वाशिंग्टन, डीसी
बकिंघम पैलेस, लंदन
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1 टिप्पणी:
Good information. Thanks!
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