रविवार, अक्टूबर 16, 2005

ईरानी मुल्ला से सीख लेंगे हमारे नेता?

ईरान का नाम लेते ही हमारे दिमाग में पश्चिमी मीडिया द्वारा निर्मित एक देश और उसके लोगों की छवि बन जाती है. यह छवि कमोबेश ये होती है कि वहाँ एक मुल्ला तंत्र सत्ता में है, वहाँ के युवा इस तंत्र से आज़ादी चाहते हैं लेकिन बहुमत अभी भी देश को इस्लामी तंत्र के रूप में देखने वालों की है.

इसी ईरान के एक मुल्ला का विस्तृत साक्षात्कार विज्ञान पत्रिका न्यू साइंटिस्ट के 15 अक्टूबर 2005 के अंक में छपा है. इस मुल्ला का नाम है मोहम्मद अली अबताही. बहुत दिनों तक ये सांसद रहने के अलावा राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के शासन में ये उपराष्ट्रपति के पद पर थे, खातमी के प्रमुख सलाहकारों में माने जाते थे. लेकिन न्यू साइंटिस्ट ने उनका साक्षात्कार एक प्रगतिशील राजनेता के रूप में नहीं बल्कि एक ब्लॉगर के रूप में छापा है.

जी हाँ, ईरान वही देश है जहाँ सबसे ज़्यादा संख्या में ब्लॉगरों पर पुलिस की मार पड़ती है. ऐसे में अभी भी सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़ा एक हाई-प्रोफ़ाइल मुल्ला ब्लॉग लिखे और वो ब्लॉग ईरान के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में जाना जाता हो, तो ज़रूर ही कोई विशेष बात होगी.

जी हाँ, 48 साल के मोहम्मद अबताही का ब्लॉग वेबनेवेश्तेहा ईरान का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग माना जाता है. यह अंग्रेज़ी समेत तीन भाषाओं में है.

प्रस्तुत है मोहम्मद अली अबताही का साक्षात्कार-


आपने ब्लॉग क्यों शुरू किया?
मैं अपने आधिकारिक और सरकारी दायित्वों से अलग रहते हुए अपने विचार व्यक्त करना चाहता था. ब्लॉग की कोई विरासत नहीं होती और वो किसी के बाप की अमानत भी नहीं होता. कोई भी, किसी भी तरह के विचार वाला ब्लॉगों में लिख सकता है. लोगों की इसमें दिलचस्पी है.

आपके राजनीतिक सहयोगी इस बारे में क्या सोचते हैं?
अधिकतर को मेरे ब्लॉगिंग करने की बात तब तक नहीं पता चलती जब तक उनके बच्चों को इस बात का पता न चल जाता हो और बच्चे उन्हें जाकर यह बात बताते न हों...कई बार मेरा यह कार्य विवादास्पद भी बना. मैं अधिकारियों की तस्वीर लेकर इंटरनेट पर डाल देता हूँ. मेरे ब्लॉग को शासन के तरफ़ से कई बार चुनौती मिली, हालाँकि मैंने स्पष्ट कर रखा है कि ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और सरकार की राजनीति से इसका कुछ लेना-देना नहीं है.

आपको अपने ब्लॉग के चलते कोई नुक़सान भी हुआ?
मुझे बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. ईरानी सत्ता के रूढ़ीवादी तत्वों ने कई आरोप लगाए और मेरी व्यक्तिगत ज़िंदगी के बारे में कई झूठी बातें फैलाई. मसलन, पिछले साल उन्होंने ये अफ़वाह फैलाई कि मैंने उपराष्ट्रपति का पद छोड़ दिया है, क्यों..क्योंकि मैंने तेहरान के एक ऐसे स्विमिंग-पूल में तैराकी की जिसमें कि औरतें भी तैर रही थीं. आपको भले ही यह आरोप गंभीर नहीं लग रहा हो, ईरान में यह बहुत ही गंभीर बात है.

इससे पहले इसी साल सुरक्षा बलों ने सात दिनों के लिए मेरे ब्लॉग को हैक कर लिया था. ये इसलिए कि क्योंकि मैं अपने विचार व्यक्त करने के कारण जेल भेजे गए ब्लॉगरों की आवाज़ बन गया था. मैंने यह लिखा था कि कैसे उन ब्लॉगरों को प्रताड़ित किया गया.

हैकिंग की इस घटना के बाद मैं ईरान से बाहर के एक वेब-सर्वर की सेवाएँ लेने को बाध्य हो गया ताकि सुरक्षा बल फिर से परेशानी खड़ा नहीं कर सकें.

कौन से तत्व आपकी वेबसाइट को निशाना बनाते हैं?
सारा दबाव रूढ़ीवाद शासन का है. हमेशा से यही स्थिति रही है. जनता साथ देती है, लेकिन अधिकतर ब्लॉगर युवा हैं और जल्दी डर जाते हैं. ब्लॉगरों को जले भेजे जाने का असर उन पर गहरा होता है. मैं वेबसाइटों को सेंसर किए जाने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता रहा हूँ. अभी भी ईरान में इंटरनेट की फ़िल्टरिंग होती है. सर्विस प्रोवाइडर्स को सरकार की बात माननी पड़ती है वरना उन्हें बंद कर दिया जाएगा.

लेकिन इतनी निगरानी के बाद भी आप बिना ज़्यादा परेशानी के कैसे बच निकलते हैं?
मैं बच जाता हूँ राजनीतिक एक्टिविस्ट की अपनी पृष्ठभूमि के कारण. मैं इस कारण बच जाता हूँ कि मुझे सब जानते हैं. यदि शासन मेरे ब्लॉग को सेंसर करने की कोशिश करेगा तो जनता के विरोध के रूप में उन्हें ख़ामियाज़ा भुगतना होगा.

ईरानी समाज और राजनीति पर ब्लॉगिंग का क्या असर हो रहा है?
सुधार पहले समाज में होता है, फिर सरकार में. राष्ट्रपति खातमी के शासन में ईरान में कुछ सुधार हुआ, लेकिन सुधार की गति से लोग ख़ुश नहीं थे. नेट भी समाज द्वारा उपयोग में लाया जा रहा एक माध्यम है. इसका विकास हो रहा है और यह बदलाव भी ला रहा है. नेट प्रभावशाली है और यह परिवर्तन के लिए और ज़्यादा दबाव पैदा करेगा. यह नई पीढ़ी का औजार है, और चूँकि युवा वर्ग ख़ुद को विश्वव्यापी समाज का हिस्सा मानता हो सो उनकी आकांक्षाएँ बड़ी हैं.

एक एक्टिविस्ट के रूप में अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएँ?
मैं एक धार्मिक परिवार से हूँ. मेरे पिता एक धार्मिक विद्वान थे. ईरान की 1979 की क्रांति से पहले जब मैं एक किशोर था, मेरे पास एक सुपर8 कैमरा हुआ करता था. जहाँ भी मैं जाता था शॉर्ट फ़िल्में बना लेता. मेरी सहायता से मेरे पिता इन फ़िल्मों और स्लाइडों को अपनी धार्मिक तक़रीरों के दौरान इस्तेमाल करते थे. उस समय के माहौल में ये बिल्कुल ही अस्वाभाविक चीज़ थी.

क्रांति के दौरान मैं बहुत सक्रिय रहा. मैंने भाषण दिए, फ़िल्में बनाईं और पर्चे बाँटे. सड़क पर निकल कर आंदोलन में शामिल होना बड़ा ही उत्तेजक अनुभव होता था. मैं शाह के शासन को अन्यायपूर्ण मानता था और मैं बहुत ही आदर्शवादी था, लोगों को आज़ादी दिलाना चाहता था.

जब मैं 18 साल का था, अयातुल्ला खुमैनी के भाषण प्रकाशित करने और ख़ुद के भाषण के कारण मुझे गिरफ़्तार भी होना पड़ा था.

मैं ख़ुद को क्रांति की संतान मानता हूँ. मुझे लगता है मौजूदा शासन उन सिद्धांतों के ख़िलाफ़ काम कर रहा है, जिनके लिए मैंने आंदोलन में भाग लिया था. सुधार होगा, लेकिन 1979 के जैसा ही जनता की अगुआई में. जनता खेल में आगे है और नेट समाज सुधार के सबसे महत्वपूर्ण माध्यमों में शामिल है.

लोग आपके ब्लॉग पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं?
मैं बड़ी मुश्किल स्थिति में हूँ. क्योंकि मैं एक मीडिया शख़्सियत हूँ, कुछ रूढ़ीवादी मुझे रैडिकल मानते हैं. दूसरी ओर जनता का एक वर्ग मुझे सत्ता प्रतिष्ठान का हिस्सा मानता है. हालाँकि सार्वजनिक जीवन में सक्रिय एक व्यक्ति के साथ इंटरएक्ट करना लोगों को उत्साहित करता है. ब्लॉग पर मैंने एक सवाल-जवाब का हिस्सा बना रखा है जहाँ लोग आपस में बहस करते हैं- राजनीति पर, शासन पर और बाकी विषयों पर जिनमें से कुछ मैं उन्हें देता हूँ. वे सवाल पूछते हैं, वे मेरा अपमान भी करते हैं, वे रूढ़ीवादियों का भी अपमान करते हैं, लेकिन बहुमत मेरे साथ सहानुभूति रखता है. मैं अपने ब्लॉग पर सबकी राय छापता हूँ जब तक कि वो अनैतिक न हो.

(ज़रूरत है कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े कुछ लोग मोहम्मद अली अबताही जैसा ही साहस दिखाएँ और देश के युवा वर्ग से सीधा संवाद क़ायम करें. वरना मौजूदा माहौल में लोकतंत्र के दंभ और तकनीकी विकास के हमारे दावे का क्या मतलब?)

2 टिप्‍पणियां:

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत अच्छा,ये इन्टरव्यू भारत के नेताओ के लिये आँखे खोलने(आइ ओपनर) वाला साबित हो सकता है। ईरान और चीन मे ब्लागर तो हजारों की संख्या मे है।लेकिन हिन्दुस्तान मे ब्लागिंग को अभी इतनी गम्भीरता से नही लिया जाता। अभी ब्लागिंग सिर्फ़ क्म्प्यूटर प्रोफ़ेशनल्स मे ही ज्यादा देखी जाती है। लेकिन एक दिन आयेगा, हर भारतीय अपना ब्लाग बनायेगा। उस दिन होगा असली स्वतन्त्रता दिवस।

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger ने कहा…

मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. जिस दिन हर नागरिक बिना किसी डर के अपने विचार व्यक्त करने की स्थिति में आ जाएगा, देश सचमुच का लोकतंत्र बन जाएगा.