मंगलवार, अक्तूबर 04, 2005

एक विशेषांक, पाँच मुखपृष्ठ

अभी दो अक्तूबर की शाम भारत की एकमात्र विश्वसनीय समाचार एजेंसी पीटीआई(दूसरी है यूएनआई) ने एक ख़बर चलाई. ख़बर को अगले दिन अधिकतर अख़बारों में कमोबेश यही हेडलाइन दी गई थी- ''मशहूर अंतरराष्ट्रीय साप्ताहिक टाइम ने अपने ताज़ा अंक के मुखपृष्ठ पर सानिया मिर्ज़ा को स्थान दिया''.

शब्दजाल से यह भी साबित करने की कोशिश की गई भारतीय टेनिस बाला सानिया के लिए ये अब तक सबसे बड़ा सम्मान है. सीना फुला कर ये भी कहा गया कि टाइम ने उन्हें एशियाई नायक-नायिकाओं की सूची में भी शामिल किया गया है.(सानिया के चयन पर तो कोई सवाल ही नहीं उठा सकता, लेकिन पिछले साल के 'टाइम नायक' आइएएस अधिकारी गौतम गोस्वामी के पीछे लगी पुलिस से उनके कथित कारनामों के बारे में पूछें तो पता चलेगा टाइम की कसौटी के स्टैंडर्ड का.)

ख़ैर, गूगल करने पर पता चला कि अकेले अंग्रेज़ी में 36 समाचार संस्थानों ने इस ख़बर को पीटीआई के हवाले से पूरा का पूरा उठाया. पता नहीं हिंदी और अन्य भाषाओं के कितने समाचार संस्थाओं ने इस ख़बर को हूबहू लिया होगा.

समस्या ये है कि पीटीआई ने ख़बर अधूरी दी थी, सो सारे समाचार माध्यमों ने अर्द्ध-सत्य को ही पूर्ण-सत्य के रूप में परोसा. अब पीटीआई को टाइम के मीडिया-संपर्क विभाग ने अधूरी ख़बर दी थी या यह भारतीय समाचार एजेंसी की चूक थी, ये तो इन दोनों प्रतिष्ठित संचार माध्यमों को ही पता होगा.

तो भला पूर्ण सत्य क्या है? पूरी सच्चाई ये है कि टाइम ने अपने 10 अक्तूबर 2005 के अंक के एशिया संस्करण के पाँच अलग-अलग मुखपृष्ठ बनाए हैं. बाज़ार को ध्यान में रख कर एक चीन के ग्राहकों के लिए, एक भारत के ग्राहकों के लिए, एक इंडोनेशिया वालों के लिए, एक जापान वालों के लिए और एक दक्षिण कोरिया को ध्यान में रख कर. तो पीटीआई की ख़बर इसलिए अधूरी थी कि उसने ये नहीं बताया कि पाँच में से एक मुखपृष्ठ पर सानिया मिर्ज़ा को स्थान दिया गया है. कहने की ज़रूरत नहीं कि कोई सानिया, ऐश्वर्या या सचिन जैसे भारतीय नायक-नायिका दक्षिण एशिया में बिकने वाली किसी भी पत्रिका के कवर पर स्थान पाने की पात्रता रखते हैं. लेकिन कोई इन्हें मुखपृष्ठ पर स्थान देकर इस बात ढिंढोरा पीट रहा हो तो भारतीय बाज़ार पर उसकी नज़र की अनदेखी नहीं होनी चाहिए.

बहरहाल, आइए पाँचों मुखपृष्ठों पर एक नज़र डालें-






तो ये कहा जाए कि पीटीआई को टाइम की प्रचार मशीन ने अपना मोहरा बनाया? (जहाँ तक मुझे याद आता है टाइम का भारतीय कार्यालय संसद मार्ग पर पीटीआई बिल्डिंग में ही है.)

3 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

आप जैसे सम्यक विचारक और ऐसे जागृत करने वाले लेख ही टाईम की प्रचार मशीन को विफल कर सकते हैं ।

ધવલ ने कहा…

An astute observation. Very sneaky of Time to do this kind of stuff.

Tarun ने कहा…

Good observation....aati uttam