भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीमारहित कश्मीर का शिगूफ़ा छोड़ा है. उनका कहना है कि कोई कश्मीरी श्रीनगर में रहे या मुज़फ़्फ़राबाद में, उसके पूरे कश्मीर में बेरोकटोक आने-जाने लायक स्थिति बनाने की तरफ़ भारत और पाकिस्तान मिलकर क़दम बढ़ा सकते हैं.
यहाँ ये स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ये क़दम बढ़ा भी चुके हैं. हाँ, ये पहली बार है कि मनमोहन सिंह ने इस तरह की किसी प्रक्रिया में भारत के शामिल होने का संकेत दिया है. जबकि मुशर्रफ़ तो कई बार खुलेआम 'सॉफ़्ट बॉर्डर' की बात कर चुके हैं.
चलिए अच्छा है कि कश्मीर में शांति की दिशा में या फिर कश्मीरियों को सहूलियतें देने की दिशा में दोनों सरकारें मिलकर कुछ करना चाह रही हैं. लेकिन ये तदर्थवाद नहीं है? और सीमारहित कश्मीर के अस्तित्व में आने के बाद एक संप्रभु कश्मीर की माँग उठने में कोई देरी होगी? और एक संप्रभु कश्मीर में इस्लामी चरमपंथियों की पैठ बनाते कितनी देर लगेगी?
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