ब्रिटेन के संसदीय चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप टोनी ब्लेयर अपनी लेबर पार्टी को ऐतिहासिक लगातार तीसरी जीत दिलाते हुए सत्ता में वापस लौटे हैं. लेकिन उनकी आभा मंद हो चुकी है.
वैसे भी संसद में उनका बहुमत पिछली बार के 161 के मुक़ाबले इस बार 67 का रह गया है. लेबर को पिछले चुनाव से 47 कम सीटें मिली हैं. ब्लेयर की सरकार आधुनिक काल में ब्रिटेन की पहली सरकार है कि जिसने लोकप्रिय मत का मात्र 35.2 प्रतिशत हासिल कर अगले कार्यकाल में प्रवेश किया है.
जीत के बाद ब्लेयर ने माना कि इराक़ युद्ध संबंधी उनकी नीति के कारण पारंपरिक लेबर समर्थकों के मत भारी संख्या में अन्य दलों को गए हैं.
परिणामों से ज़ाहिर है कि लेबर से छिटके ज़्यादातर मत लिबरल डेमोक्रेट्स को मिले हैं. शुरू से ही इराक़ युद्ध का मुखर विरोधी रही इस पार्टी को कुल 62 सीटों पर सफलता मिली है. यह इस पार्टी के अब तक के सबसे अच्छे प्रदर्शनों में से है. इसे कुल 22 प्रतिशत मत मिले हैं, और पहले से 11 ज़्यादा सीटें. ऐसे में पार्टी नेता चार्ल्स केनेडी का कहना सही है कि ब्रिटेन की राजनीति अब दो-दलीय नहीं रही है, और त्रिदलीय राजनीति की पुख़्ता नींव पड़ चुकी है.
लिबरल डेमोक्रेट्स को मिले समर्थन का परोक्ष लाभ उठाया मुख्य विपक्ष कंज़र्वेटिव पार्टी ने. उसे मिले 32.3 प्रतिशत मत लगभग पिछले चुनाव जितने ही हैं, लेकिन पार्टी को इस बार 33 ज़्यादा सीटें मिली हैं. ज़ाहिर जहाँ लेबर से छिटके वोट लिबरल डेमोक्रेट्स को सीट नहीं दिला सके वहाँ कंज़र्वेटिव को इसका फ़ायदा मिला.
अब जबकि कंज़र्वेटिव नेता माइकल हॉवर्ड ने पार्टी को सत्ता तक पहुँचाने में नाकाम रहने की ज़िम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ने की घोषणा की है, इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि ब्लेयर कब पार्टी और सरकार की कमान अपने वित्त मंत्री गॉर्डन ब्राउन को सौंपेंगे.
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