ब्रिटेन के आम चुनाव में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर लगातार तीसरी बार अपने नेतृत्व में लेबर पार्टी को जीत दिलाने के लिए आशान्वित दिखते हैं. लेकिन पाँच मई को होने वाले मतदान से पाँच दिन पहले उन्होंने भी मान लिया है कि उनकी पार्टी का बहुमत शायद उतना न रहे. ब्लेयर ने माना कि उनपर लगाए जाने वाले आरोपों से आख़िरकार उनकी पार्टी को कुछ-न-कुछ नुक़सान होगा.
ब्लेयर पर सबसे बड़ा आरोप है कि उन्होंने ब्रिटेन को इराक़ युद्ध में झोंकने के लिए बार-बार झूठ का सहारा लिया.
लेबर पार्टी के लगातार तीसरी बार जीतने के भरोसे के पीछे मुख्य विपक्ष कंज़र्वेटिव पार्टी की दिशाहीनता का बड़ा हाथ है.मतलब स्थिति कुछ ऐसी ही है जैसे बँटे विपक्ष का फ़ायदा उठाकर भारत में वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए का राज करना.
पारंपरिक लेबर समर्थकों तक में ब्लेयर की अलोकप्रियता का मुख्य कारण है- इराक़ युद्ध. लेकिन कंज़र्वेटिव नेता माइकल हॉवर्ड ने अभी पिछले सप्ताह अपना यह रुख़ दोहरा कर अपना नुक़सान कर लिया कि चाहे महाविनाशकारी हथियार मिलते या नहीं, उनकी पार्टी हमेशा ही इराक़ पर हमले का समर्थन करती.
ऐसी स्थिति में हमेशा से ब्रितानी राजनीति में तीसरी पार्टी मानी जाती रही लिबरल डेमोक्रेट्स ही एकमात्र पार्टी दिखती है जो कि पाँच मई के चुनाव में अपना वोट प्रतिशत और सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद कर सकती है. लिबरल डेमोक्रेट्स नेता चार्ल्स केनेडी ने शुरू से ही इराक़ पर हमले का विरोध किया. इसका भारी फ़ायदा उपचुनावों में उनकी पार्टी ने उठाया भी. इस बार लिबरल डेमोक्रेट्स के संभावित शानदार प्रदर्शन से अंतत: साबित हो जाएगा कि ब्रितानी राजनीति के दोदलीय होने के दिन गए और आ गया है त्रिपक्षीय राजनीति का दौर.
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