गुरुवार, मई 12, 2005

सहाराश्री की 'गुमशुदगी'

भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनियों में से एक सहारा इंडिया के प्रमुख सुब्रत राय के बारे में अफ़वाहों का बाज़ार गर्म रहना कोई आश्चर्यजनक नहीं है. अपने आप को सहाराश्री कहने वाले सुब्रत राय पहली अप्रैल से देखे नहीं गए हैं. उनके कथित रूप से ग़ायब होने पर लोगों की चिंता स्वाभाविक है--इसलिए नहीं कि वह इतने बड़े पूँजीपति हैं, बल्कि इसलिए कि उनकी कंपनी में ग़रीब-गुरबों ने अपनी ज़िंदगी भर की कमाई जमा कर रखी है.

सहारा इंडिया अपने बही-खाते गुप्त रखती है. इसने ख़ुद को भारतीय शेयर बाज़ार में भी निबंधित नहीं करा रखा है, कि इस पर भारतीय प्रतिभूति नियामक बोर्ड या सेबी नज़र रख सके.

ऐसे में सहारा इंडिया के प्रमुख(कंपनी की शब्दावली में मुख्य प्रबंध कार्यकर्ता)के सार्वजनिक जीवन से ग़ायब होने से सहारा में अपनी बचत का निवेश करने वालों का चिंतित होना स्वाभाविक है. चिंता सहारा इंडिया के विभिन्न उपक्रमों में काम करने वाले लाखों लोगों को भी है. लाखों परिवारों की रोज़ी-रोटी और जमा-पूँजी दाँव पर लगे होने से भारत सरकार भी निश्चय ही चिंतित ही होगी.(कांग्रेस की अगुआई वाली केंद्र सरकार मुलायम-अमर जोड़ी से सहाराश्री की नजदीकी से यों भी नाख़ुश रहती होगी.)

ज़ाहिर है लाखों-करोड़ों लोग सुब्रत राय के अच्छे स्वास्थ्य की कामना कर रहे होंगे क्योंकि उनका भविष्य सहाराश्री की सलामती से जुड़ा हुआ है. ऐसे में सहारा इंडिया के शीर्ष नेतृत्व से अपेक्षा की जानी जायज़ है कि वे सुब्रत राय के बारे में सही और बिल्कुल ताज़ा जानकारी दें.

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