आज चर्चा सुर्खियों में मौजूद एक चमत्कारी औषधि की. कहते हैं P57 नामक यह औषधि भूख को शरीर पर कोई बुरा असर डाले बिना बहुत हद तक ख़त्म करने में सफल रहती है. ज़ाहिर है भुखमरी से जूझ रही दुनिया की एक बड़ी आबादी को तो इससे फ़ायदा होगा ही, ज़्यादा आरामदायक ज़िंदगी के कारण या फिर अनियमित जीवनचर्या के कारण मोटापे की बीमारी झेल रहे लोग भी इससे लाभांवित होंगे.
चित्र: हूदिया गोर्दोनी
ऐसा नहीं है कि P57 को पहली बार मीडिया में छाने का मौक़ा मिला है. दस वर्ष पहले इसका लाइसेंस ब्रिटेन की दवा कंपनी फ़ायटोफ़ार्म को मिलने के बाद से इसे न जाने कितनी बार मीडिया में सुर्खियाँ मिली है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि अफ़्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में खानाबदोश ज़िंदगी जीने वाली सान जनजाति को हज़ारों वर्षों से इस औषधि की जानकारी रही है. दरअसल इन्हें जब खाने के लिए कुछ नहीं मिलता तो ये हूदिया गोर्दोनी(hoodia gordonii) नामक कैकटस प्रजाति के पौधे को चबाते हैं. इस कँटीले पौधे के कड़वे रस की कुछ बूँदें उदर में गई नहीं कि भूख ग़ायब. बहुत कड़वा स्वाद होने के कारण वे भुखमरी की नौबत आने पर ही इसका सेवन करते हैं.
पहली बार दक्षिण अफ़्रीका के वैज्ञानिकों के एक दल ने जनजातियों द्वारा प्रयुक्त उपचारों पर केंद्रित एक अध्ययन के दौरान हूदिया गोर्दोनी में ऐसे रसायन पाए जिनकी जानकारी पहले से नहीं थी. वैज्ञानिकों ने भूख मिटाने के जादू की वज़ह रसायनों के इसी मिश्रण को माना और इसे नाम दिया गया P57.
दक्षिण अफ़्रीका की सरकारी अनुसंधान संस्था काउंसिल फ़ॉर साइंटिफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च(CSIR) ने इसका पेटेंट कराने में देर नहीं की, और बाद में ब्रिटेन के फ़ायटोफ़ार्म कंपनी ने P57 के व्यावसायिक उपयोग का एकमात्र लाइसेंस प्राप्त किया. इस सौदे के साथ ही एक अच्छी बात यह हुई कि सान जनजाति का प्रतिनिधित्व करने वाली एक संस्था के साथ भी क़रार किया गया. क़रार इस बात का कि P57 के व्यावसायिक उपयोग का लाइसेंस बाँटने से CSIR जो भी आय होगी उसका एक बड़ा हिस्सा सान जनजाति के हित में ख़र्च किया जाएगा. यह व्यवस्था इसलिए अत्यंत ज़रूरी थी कि आख़िर सान जनजाति की पारंपरिक जानकारी के आधार पर ही P57 का पता चला और इसके उपयोग के लिए हूदिया गोर्दोनी पौधे भी तो उन्हीं की पारिस्थितिकी से उखाड़े जाएँगे.
शुरुआती परीक्षणों में फॉयटोफ़ार्म ने पाया कि P57 के सेवन से शरीर को रोज़ाना की ख़ुराक में 1,000 कैलोरी कम की ज़रूरत रह जाती है. परीक्षण में शरीर पर इसका कोई नकारात्मक असर भी नहीं दिखा.
फ़ायटोफ़ार्म ने P57 उत्पादों के अपने एक्सक्लुसिव लाइसेंस के आधार पर फ़ाइजर कंपनी के साथ क़रार किया ताकि इसे गोलियों के रूप में उत्पादित किया जा सके. लेकिन ढाई करोड़ डॉलर और कई साल की मेहनत ख़र्च करने के बाद फ़ाइजर ने पाया कि P57 के जटिल रसायनों को कृत्रिम रूप से फ़ैक्ट्री में बनाना संभव नहीं है. ऐसे में पिछले साल उपभोक्ता बाज़ार की अगुआ कंपनी यूनीलीवर सामने आई. फ़ॉयटोफ़ार्म के साथ हुए क़रार के मुताबिक यूनीलीवर गोलियों के बजाय P57 का उत्पादन खाद्य-उत्पाद या खाद्य-मिश्रण के रूप में करेगी. ज़ाहिर है यूनीलीवर P57 से कड़वापन निकालने का कोई उपाय खोजने में लगी होगी.
यूनीलीवर का कहना है कि अभी P57 के प्रायोगिक परीक्षण शुरू करने की ही तैयारी हो रही है. मतलब इस उत्पाद के घरों में पहुँचने में कुछ साल लग सकते हैं. लेकिन इंटरनेट पर हूदिया गोर्दोनी और P57 के नाम पर बाज़ार खुला हुआ है, वो क्या बेच रहे हैं? इस सवाल के जवाब में यूनीलीवर के एक प्रवक्ता ने लंदन से प्रकाशित अख़बार गार्डियन को बताया कि ज़्यादातर मामलों में ऐसे किसी उत्पाद के नाम पर लोगों को बेवकूफ़ बनाया जा रहा है, लेकिन यदि किसी उत्पाद में सचमुच में P57 रसायन पाया गया तो यूनीलीवर उसकी निर्माता कंपनी को अदालत में घसीटेगी.
चित्र: सान जनजाति
मतलब सारा मामला मुनाफ़े का है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों से और क्या उम्मीद की जा सकती है? सान जनजाति की भलाई और लुप्तप्राय कैकटस प्रजाति हूदिया गोर्दोनी के बगान लगाने के इनके दावे कितने सही होते हैं ये तो वर्षों बाद ही पता चलेगा!
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1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक आलेख है। मेरे लिये यह नागफनी बहुत फ़ायदेमन्द साबित हो सकती है, क्योंकि मुझे भूख बहुत लगती है। भारत में यह नागफनी का पौधा कहाँ मिलेगा? :)
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