
दिएगो गार्सिया हिंद महासागर का एक द्वीप है. छोटे-बड़े कुल 52 टापूओं वाले चैगोस द्वीप समूह के इस सबसे बड़े द्वीप पर अमरीका का सबसे महत्वपूर्ण सैनिक अड्डा है. हालाँकि यह द्वीप अमरीका के बगल-बच्चे की तरह व्यवहार करने वाले ब्रिटेन का है. दिएगो गार्सिया को उसने अमरीका को पट्टे पर दे रखा है. अमरीका ने 1966 में 50 साल की इस लीज़ के बदले ब्रिटेन को परोक्ष रूप से 1.4 करोड़ डॉलर का भुगतान किया था. अमरीकी सैनिक भाषा में इसे '7.20S, 72.25E' यानि इसकी भौगोलिक स्थिति के नाम से जाता है. इस द्वीप का नाम दिएगो गार्सिया शायद सोलहवीं सदी में इसे खोजने वाले किसी पुर्तगाली अन्वेषक के नाम पर पड़ा होगा.

दिएगो गार्सिया के इस सप्ताह फिर से ख़बरों में आने की वज़ह है यहाँ से बेदखल किए गए मूल निवासियों यानि चैगोसियनों(उनकी मूल क्रेओल भाषा में 'इलोइस' यानि आइलैंडर) के एक संगठन का ब्रितानी सर्वोच्च अदालत में अपील करना कि उन्हें अपनी ज़मीन पर लौटने दिया जाए. दरअसल ब्रिटेन ने जब दिएगो गार्सिया को अमरीका को सौंपा तो अमरीकी आग्रह पर उसने वहाँ से 2000 मूल निवासियों को भी बेदखल कर मारीशस(कुछ को सेशल्स में भी) में ले जाकर पटक दिया. यह घिनौना काम 1971-73 के दौरान किया गया. आज अपनी ज़मीन से दूर लाकर रखे गए चैगोसियन समाज के क़रीब 8000 लोग घोर ग़रीबी और उपेक्षा की ज़िंदगी जी रहे हैं.
चैगोसियोनों की व्यथा पर प्रसिद्ध पत्रकार जॉन पिल्जर की बनाई डॉक्युमेंट्री 'स्टीलिंग ए नेशन' को पिछले साल कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं. इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है ब्रितानी सरकार ने दिएगो गार्सिया को खाली कराने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए, कैसे-कैसे सफेद झूठों का सहारा लिया. उल्लेखनीय है कि पहले ब्रितानी अधिकारियों ने एक बार दावा किया था कि दिएगो गार्सिया पर कभी कोई मूल निवासी रहे ही नहीं थे, और वहाँ के लोग वास्तव में बगानों में काम करने के लिए मारीशस, सेशल्स और दक्षिण भारत से लाए गए बंधुआ मज़दूर हैं जिन्हें बेदखल करना पूरी तरह वैध है. लेकिन बाद में वैज्ञानिक परीक्षणों से यह साबित होने पर कि चैगोसियन कई पीढ़ियों से वहाँ रहते आए हैं, सरकार ने कभी इस दावे पर ज़ोर नहीं दिया.
चित्र: सुनामी को चकमा देने के बाद का दिएगो गार्सिया

चैगोसियनों के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए पाँच साल पहले ब्रितानी हाइकोर्ट ने ब्रितानी सरकार की कार्रवाई को अवैध क़रार दिया था. लेकिन इसके जवाब में सरकार ने महारानी की तरफ़ से असाधारण आदेश निकलवा दिया कि चैगोसियनों को उनकी ज़मीन पर लौटने नहीं दिया जाएगा. इस तरह के आदेश पर संसद में बहस की भी गुंज़ाइश नहीं होती.
अब चैगोसियनों के प्रतिनिधि ओलिवर बैन्कोल्ट ने मामले को नए सिरे से ब्रितानी हाई कोर्ट में पेश किया है. उनका कहना है कि जब दिएगो गार्सिया में क़रीब 3500 अमरीकी सैनिक और ठेका कर्मचारी रह सकते हैं तो वहाँ के मूल निवासियों को क्यों नहीं जगह मिल सकती. उनकी करुण प्रार्थना है कि उन्हें दिएगो गार्सिया में नहीं तो कम-से-कम चैगोस द्वीप समूह के बाकी टापूओं पर तो रहने की इजाज़त दी जाए जैसा कि पाँच साल पहले तत्कालीन ब्रितानी विदेश मंत्री रॉबिन कुक ने आश्वासन दिया था. लेकिन ब्रिटेन सरकार और उसके अमरीकी आका को ये भी मंज़ूर नहीं. दुनिया की नज़रों से दूर चैगोसियन कुछ गैरसरकारी संस्थाओं और साहसी पत्रकारों के सहारे ही अपनी लड़ाई लड़े जा रहे हैं.
2 टिप्पणियां:
आपके लेख निरंतर लकीर से हट कर ,महत्वपूर्ण होते है। बधाई।
भई अगर उन्हें वापस आने और बसने की छूट दे दी तो अमरीकी बेस और उसकी सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा हो जाएगा क्योंकि अभी तो वहाँ अमरीका की अनुमति बिना कोई जा नहीं सकता, परन्तु लोगों के बसने के बाद उन्हें बाहरी दुनिया से संपर्क तोड़ कर रखने को मजबूर करना अत्यधिक कठिन होगा। और यदि बाहरी दुनिया से संपर्क रखा तो सबकी आवाजाही को नियंत्रित करना और सब पर नज़र रखना अमरीकियों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या हो जाएगी। और अमरीका के तलवे चाटने वाले ब्रिटेन को यह कैसे स्वीकार हो सकता है!! ;)
एक टिप्पणी भेजें