सर्च इंजन की दुनिया पर गूगल के आधिपत्य से कोई इनकार नहीं कर सकता. ताज़ा आंकड़े को ही देखें तो पिछले नवंबर में अमरीका में सर्च इंजन सेक्टर का 40 फ़ीसदी हिस्सा गूगल के क़ब्ज़े में था. माना जाता है कि अमरीका से बाहर गूगल का झंडा इससे भी कहीं ज़्यादा बुलंद है.
अमरीका की ही याहू और माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियाँ करोड़ों डॉलर ख़र्च करने के बावजूद गूगल का बाल बाँका नहीं कर पाई हैं. लेकिन सब कुछ योजनानुसार चला तो अगले दो-एक हफ़्ते में गूगल को पहली वास्तविक चुनौती मिल सकती है. और चुनौती देने का काम करेंगे यूरोप के दो बड़े देश फ़्रांस और जर्मनी, और इन दोनों देशों की शक्तिशाली कंपनियाँ.
चर्चा के केंद्र में है क़्वैरो परियोजना. लैटिन भाषा के शब्द क़्वैरो(Quaero) का मतलब होता है- ढूंढना, खोजना या तलाश करना. क़्वैरो परियोजना को फ़्रांस के राष्ट्रपति ज्यॉक शिराक़ की अमरीकी प्रौद्योगिकी का सामना करने की दृढ़ इच्छा का मूर्त रूप माना जा सकता है. पिछले साल उन्होंने यूरोपीय सर्च इंजन का विचार सामने रखा था लेकिन इसके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी अब जाकर बाहर आनी शुरू हुई है. और छन कर आ रही ख़बरों की मानें तो अगले दो-एक सप्ताह में क़्वैरो के बारे में विस्तृत जानकारी सामने आ सकती है.
अब तक मिली जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि फ़्रांस और जर्मनी की इस परियोजना को सरकारी क्षेत्र और निजी क्षेत्र की साझेदारी के आधार पर चलाया जाएगा जो कि यूरोप की बड़ी योजनाओं के लिए कोई नई बात नहीं है. दोनों देशों की सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों फ़्रांस टेलीकॉम और डॉयच टेलीकॉम के अलावा थॉमसन और सीमेन्स जैसी निजी क्षेत्र की शक्तिशाली कंपनियाँ भी इसमें बराबर की साझीदार होंगी. क़्वैरो एक टेक्स्ट आधारित सर्च इंजन न होकर मल्टीमीडिया आधारित सर्च इंजन होगा. मतलब इसमें स्पीच और इमेज रिकॉग्निशन तकनीक का खुल कर प्रयोग होगा. यानि क़्वैरो चित्र, वीडियो, ऑडियो और टेक्स्ट के अनुवाद और इंडेक्सिंग का काम बख़ूबी कर सकेगा.
अभी तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार क़्वैरो परियोजना पर अगले दो से चार वर्षों में एक से दो अरब यूरो ख़र्च किया जाएगा. फ़्रांस की तरफ़ से तो क़्वैरो के लिए पूरी तैयारी है. इंतजार है जर्मन कंपनियों और वहाँ की सरकार की पूर्ण सहमति, तथा यूरोपीय संघ से हरी झंडी मिलने भर का.
यूरोपीय देश पहले भी जीएसएम मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म और एयरबस जैसी कई प्रमुख परियोजनाओं को पूरा कर अमरीका और अमरीकी कंपनियों के प्रभुत्व को सफलतापूर्वक चुनौती दे चुके हैं. अभी पिछले महीने ही यूरोप की अपनी जीपीएस प्रणाली गैलीलियो के निर्माण की शुरूआत हो चुकी है. ऐसे में क़्वैरो परियोजना को संदेह की दृष्टि से देखने वालों की संख्या ज़्यादा नहीं होनी चाहिए.
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