रोम के बीचोंबीच एक नन्हें लेकिन अत्यंत प्रभावशाली संप्रभु राष्ट्र के रूप में बसे वैटिकन का बड़ा ही घटनापूर्ण इतिहास रहा है. ये अपने साथ अनेक विचित्र परंपराओं को साथ लेकर चल रहा है.
याद करें मौजूदा पोप बेनेडिक्ट सोलहवें (जोज़फ़ रैत्सिंगर) के चुनाव के दौरान कैसे पूरी दुनिया टेलीविज़न से चिपकी रहती थी ये देखने के लिए कि सिस्टीन चैपल की चिमनी से काला धुआँ निकलता है या सफेद. काला धुआँ यानि कार्डिनल की बैठक में नए पोप के नाम पर सहमति नहीं, और सफेद धुआँ यानि नया पोप चुन लिया गया.
इन्हीं विचित्र परंपराओं में से एक है- वैटिकन की सेना. कहने की ज़रूरत नहीं कि मौज़ूदा काल में वैटिकन को किसी सेना की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन पुराने दिनों में यानि शताब्दियों पहले ऐसा नहीं था. धर्म के नाम पर आज की तरह तब आतंकवाद हमले नहीं होते थे, बल्कि खुला युद्ध हुआ करता था. ऐसी ही लड़ाइयों के लिए पोप ने भी अपनी सेना बना रखी थी, या यों कहें कि भाड़े के सैनिक जमा कर रखे थे. पोप के भड़ैती सैनिकों को एक संस्थागत रूप दिया गया था आज से ठीक पाँच सौ साल पहले. और आधी सहस्राब्दी बाद भी ये संस्था आज भी मौज़ूद है. आज भी वैटिकन की एक सेना है जिसे स्विस गार्ड के नाम से जाना जाता है.
मुझे पहली बार 2003 में वैटिकन जाने का मौक़ा मिला था. सेंट पीटर्स स्क़्वायर, सेंट पीटर्स गिरजाघर, सिस्टीन चैपल और वैटिकन म्यूज़ियम के बाद सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा था सतरंगा ड्रेस पहने स्विस गार्ड्स ने. वैटिकन पहुँचने वाला शायद ही कोई पर्यटक लंबा-सा भाला लिए और खंभे की तरह स्थिर रहने वाले स्विस गार्ड की तस्वीर क्लिक करना भूलता हो.
यदि स्विस गार्ड्स के इतिहास को देखें तो कई बातें चौंकाने वाली लगती हैं. पहली बात ये कि मध्ययुगीन यूरोप में भाड़े के सैनिकों की आपूर्ति मुख्य तौर पर स्विटज़रलैंड से हुआ करती थी. (आज के शांतिपूर्ण और तटस्थ स्विटज़रलैंड से तुलना करें.) स्विस भाड़े के सैनिकों के चलन का मुख्य कारण था स्विटज़रलैंड की ग़रीबी.(उस समय पर्यटन का धंधा शुरू नहीं हो पाया था, और न ही गुप्त खाते वाले बैंकों की शुरुआत हुई थी. आज प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से स्विटज़रलैंड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊपर की पाँत में आता है.) इसके अलावा स्विस भड़ैती सैनिकों को अत्यंत भरोसेमंद भी माना जाता था.(आज दो नंबर के काम से पैसा कमाने वालों के लिए स्विस बैंकों जितना विश्वसनीय कोई और नहीं.) स्विस गार्ड के मौज़ूदा कमांडर-इन-चीफ़ हैं पोप बेनेडिक्ट सोलहवें.
पोप जूलियस द्वितीय ने 1505 में स्विस परिसंघ से कुछ भड़ैती सैनिकों की माँग की. (ग़ौर करें, पाँच सौ साल पहले सैनिकों की आपूर्ति को संस्थागत रूप दिया जा चुका था.) उस साल सितंबर में रवाना हुए 150 स्विस लड़ाके जनवरी 1506 में पोप की नगरी में पहुँचे. तब से लगातार स्विस गार्ड वैटिकन के इतिहास के अभिन्न अंग बने हुए हैं. पोप के प्रति इनके अगाध समर्पण और इनके अदम्य साहस का पहला बड़ा उदाहरण सामने आया 6 मई 1527 को जब रोमन शासक चार्ल्स पंचम की आक्रणकारी सेना से पोप क्लीमेंट सप्तम का सफलतापूर्वक बचाव करते हुए वैटिकन स्विस गार्ड के 189 में से 147 सैनिकों ने अपनी जान दे दी थी.
वैटिकन स्विस गार्ड को कभी-कभार प्रतिबंधित भी किया गया. सैनिकों की संख्या भी कम-ज़्यादा होती रही. अभी इस सेना में कुल 110 सैनिक हैं (पोप षष्ठम के कार्यकाल में 1970 में मात्र 42 रह गए थे).
आज वैटिकन स्विस गार्ड की प्रसिद्धि दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे छोटी सेना के रूप में है. ये मत समझें कि चटक नीले, केसरिया और नारंगी रंग के ढीली वर्दी पहने ये गार्ड पर्यटकों के फ़ोटो और वीडियो का हिस्सा बनने मात्र के लिए तैनात हैं. हर गार्ड स्विटज़रलैंड की सेना में नियमित प्रशिक्षण लेने के बाद ही वैटिकन की सेना में स्थान पाता है. उसे स्विस नागरिक और रोमन कैथोलिक होना चाहिए. भर्ती के समय उसकी उम्र 19 से 30 साल की हो. रंगरूट अविवाहित हो, हाई स्कूल पास हो और कम से कम 174 सेंटीमीटर लंबा हो.
स्विस गार्ड को आधुनिक हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.वैसे वैटिकन में तैनात किसी गार्ड के पास शायद ही आपको कोई बंदूक दिखे. हथियारबंद गार्ड के नाम पर आप एक ख़ास भाला लिए सैनिक को देखते हैं. इसमें भाले के फ़लक के नीच कुल्हाड़ी का फ़लक भी जुड़ा होता है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सदियों पुराने ढर्रे पर चल रहे स्विस गार्ड की अपनी वेबसाइट भी है. (वैटिकन की वेबसाइट पर इस सेना को 'स्विस गार्ड' कहा गया है, लेकिन इनकी अपनी वेबसाइट पर 'स्विस गार्ड्स'.)
स्विस गार्ड के मौज़ूदा कमांडर एल्मर थियोडोर मैडर की मानें तो आज वैटिकन का एक भी सैनिक ऐसा नहीं है जिसने नौकरी के दौरान कभी बंदूक चलानी पड़ी हो. पिछले दिनों न्यूयॉर्क यात्रा के दौरान उन्होंने कहा, "हमारे सैनिक 'मिर्ची स्प्रे' से लैस होते हैं. लेकिन आठ वर्षों के अपने सेवा काल के दौरान मुझे सिर्फ़ एक बार सुनने को मिला कि किसी सैनिक को इस स्प्रे का इस्तेमाल करने की ज़रूरत पड़ी."
पोप की विदेश यात्राओं में कुछ बहुत ही अनुभवी स्विस गार्ड उनके साथ होते हैं, लेकिन सादे कपड़ों में ही. पोप की सुरक्षा की ज़िम्मेवारी ज़ाहिर है मेज़बान देशों पर होती है, लेकिन ऐसे में भी स्विस गार्ड की उपयोगिता है. कमांडर मैडर इस बारे में कहते हैं, "हमें ये पता होता है कि कब कहा जाए कि 'पोप थक गए हैं इसलिए उन्हें आराम दिया जाए', या फिर वो हाथ मिलाना चाहते हैं या नहीं."
वैटिकन की सेना को किसी से ख़तरा नहीं दिखता, लेकिन कई बारे अपनों से भी ख़तरा हो जाता है. अभी कुछ ही साल पहले 1998 में सेना के कमांडर और उनकी पत्नी की हत्या एक स्विस गार्ड ने ही कर दी. बाद में हत्यारे गार्ड ने आत्महत्या कर ली. (वैटिकन की सेना के जवान को सेवा काल के दौरान शादी करने की मनाही है, लेकिन एक अधिकारी ब्याह रचा सकता है.)
हर साल 25 से 30 पुराने गार्ड रिटायर होते हैं और उनकी जगह रंगरूटों की भर्ती की जाती है. इस साल 6 मई को स्विस गार्ड के रंगरूटों की खेप को शपथ दिलाई जाएगी, यानि एक मध्युगीन रोचक परंपरा को जीवंत बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम!
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7 टिप्पणियां:
बहुत ज्ञानप्रद है|
जानकारी पूर्ण लेख!
काफी रोचक और ज्ञानवर्धक लेख है, लेख के लिये धन्यवाद ।
ये स्वीस गार्डो की वेशभुषा बडी विचित्र है, जोकरों जैसी.
बहुत अच्छा लेख है, लगता है आपने काफ़ी शोध किया है इस विषय पर।शिक्षाप्रद होने के साथ साथ, लेख बहुत ही रोचक है।
I wish I could understand... Beautiful language!
बहुत अच्छा
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