अभी पिछला पोस्ट लिखते वक़्त मैं कितना ख़ुश था ये कह नहीं सकता. ख़ुश इसलिए कि पैगंबद मोहम्मद कार्टून विवाद पर भारत में कोई ख़ास बवाल नहीं हुआ. हालाँकि मेरा पोस्ट छपने के बाद कश्मीर में हड़ताल और दिल्ली में जामिया मिलिया के छात्रों के प्रदर्शन की बात सामने आई. लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश में इतनी कम मात्रा में उपद्रव होना निश्चय ही संतोष करने वाली बात है. भारत के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में लोगों के कार्टून विवाद से कमोबेश बेपरवाह रहने की अदा से पूरी दुनिया अभिभूत है.
पिछले पोस्ट में मैंने चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन का भी ज़िक्र किया था कि कैसे प्रचार पाने के उनके सस्ते नुस्ख़ों ने देवी-देवताओं-पैगंबरों की अपमानजनक तस्वीरों के प्रति अधिकांश आबादी की बेरूख़ी का माहौल बनाने में मदद की.
लेकिन कहते हैं कला की दुनिया प्रचार की दुनिया बन गई है. जितना ज़्यादा प्रचार या दुष्प्रचार पाओगे, उतनी ज़्यादा क़ीमती मानी जाएँगी तुम्हारी कृतियाँ! इस फ़ार्मूले को दादा मक़बूल से बेहतर कौन जानेगा. सरस्वती की नग्न तस्वीर बनाने से मिले दुष्प्रचार से मिले फ़ायदे को अभी तक भुना रहे इस बुज़ुर्ग ने एक नया काँड कर डाला है. गज भर की कूँची लेकर नंगे पाँव लेकर चलने वाले इस चित्रकार ने इस बार करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था को नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान को बेचकर अपनी दुकान चमकाने की कोशिश की है. मक़बूल फ़िदा हुसैन ने इस बार भारत माता को नंगा दिखाने की नंगई कर डाली है!
कला, ख़ासकर माडर्न ऑर्ट, की ज़्यादा समझ नहीं होने के बावज़ूद मुझे भी मक़बूल फ़िदा एक बड़ा कलाकार लगते हैं. लेकिन मैं महिला शरीर को घोड़ा, हाथी और बैल जैसे जानवरों के बीच परोसने की उनकी अदा पर मरने वालों में से नहीं हूँ. न ही नग्नता, ख़ास कर महिला शरीर को वस्त्रहीन अवस्था में परोसते रहने की उनकी आदत मुझे समझ में आती है. रही इस बार के विवाद की बात, तो उनकी ताज़ा करतूत तो मेरी समझ से बिल्कुल ही परे है क्योंकि उन्होंने एक अच्छे उद्देश्य से भारत माता की पेंटिंग बनाई थी. मिशन कश्मीर प्रोजेक्ट के तहत भारत माता को चित्रित किया था.
काफ़ी माथापच्ची करने के बाद मुझे तो यही लगता है कि भारत जैसे बड़े देश में अच्छे चित्रकार हज़ारों की संख्या में हैं लेकिन उनमें से अधिकांश को दाल-रोटी के इंतज़ाम की भी जुगत लगानी पड़ती है, दूसरी ओर मक़बूल फ़िदा हुसैन करोड़ों में खेलते हैं. इसका सीधा कारण है विवाद खड़ा कर प्रचार पाने की हुसैन की कला. और प्रचार की इस कला में उन्होंने राष्ट्र की गरिमा पर कालिख पोतने की नाकाम कोशिश की, भारत माता की नग्न पेंटिंग बना कर. हुसैन ने इस बार बिना कोई देरी किए माफ़ी माँग ली क्योंकि इस चालाक बुज़ुर्ग को पता है कि पैगंबर मोहम्मद के कार्टून के विवाद के इस दौर में भारत के स्वनामधन्य बुद्धिजीवियों को भी उनका खुलकर बचाव करने में मुश्किलें पेश आएंगी.
हर कोई जानता है कि नग्नता बिकती है, लेकिन कम से कम लोगों की धार्मिक आस्था और राष्ट्र की गरिमा के मामले में तो बड़े से बड़े से कलाकार को भी अपनी नंगई नहीं दिखानी चाहिए.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
आपके लेख और आपके विचारों से मैं बिल्कुल सहमत हूं. जो कार्टून लगाया गया है वो सोने पर सुहागा है. काश हमारे देशवासी ऐसे तथाकथित कलाकारों के पिछे न भागकर कला के सच्चे पुजारियों की कद्र करें जो पैसे के लोभ के बिना अपना काम करते हैं.
एक टिप्पणी भेजें