पहली बार कुछ साल पहले सुना था एस्पेरांतो का नाम. अब इस सप्ताह एक नामी अख़बार में भूली-बिसरी ख़बरों के कॉलम में इसके बारे में दोबारा पढ़ा तो सोचा क्यों न इसके बारे में जानकारी जुटाई जाए.
जिन्होंने पहली बार इस इस शब्द एस्पेरांतो(esperanto) के बारे में सुना है, उन्हें पहले बता दें कि ये एक भाषा का नाम है. एक कृत्रिम भाषा यानि कन्सट्रक्टेड लैंग्वेज. एक अनुमान के अनुसार इस समय सौ से ज़्यादा देशों में 16 लाख लोग ढंग से एस्पेरांतो पढ़-लिख-बोल लेते हैं. गूगल में यह शब्द डालें तो क़रीब साढ़े पाँच करोड़ पेज सामने आते हैं.
एस्पेरांतो पोलैंड के एक नेत्र विशेषज्ञ और भाषा विज्ञानी डॉ. लुडविक लाज़ारुस ज़ैमनहॉफ़ की एक दशक के परिश्रम का परिणाम है. उन्होंने एक सार्वभौम उपभाषा या यूनीवर्सल सेकेंड लैंग्वेज के रूप में इसे 1887 में दुनिया के समक्ष पेश किया. वह स्वनिर्मित भाषा को बढ़ाने के लिए डॉ. एस्पेरांतो या डॉ. आशावादी नाम से लेख लिखा करते थे. और इसी से उनकी बनाई अंतरराष्ट्रीय भाषा को नाम मिला. ज़ैमनहॉफ़ ख़ुद नौ भाषाओं के जानकार थे और उनका मानना था कि अगर दुनिया के हर कोने के लोगों की दूसरी भाषा एक ही हो तो इससे शांति और सदभाव को बढ़ावा मिलेगा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग आसान बन सकेगा.
ज़ैमनहॉफ़ ने पश्चिमी यूरोप और अफ़्रीका की कुछ भाषाओं को आधार बनाकर एस्पेरांतो का विकास किया. उनका मुख्य उद्देश्य था इसे सीखने और उपयोग में ज़्यादा से ज़्यादा आसान बनाना. एस्पेरांतो 23 व्यंजन और 5 स्वर वर्णों से बना है. यह हिंदी की तरह ही एक फ़ोनेटिक भाषा है यानि इसमें जो लिखा हुआ है वही बोला जाता है. इसके अतिरिक्त एस्पेरांतो में क्रिया के विभिन्न रूपों और स्त्रीलिंग-पुल्लिंग का भी झमेला नहीं है.
ज़ैमनहॉफ़ का प्रयास शुरू में तो रंग लाते दिखा जब रूस और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों में इसे अपनाने का रुझान दिखा. बीसवीं सदी के पहले दशक में पश्चिमी यूरोप के कुछ देशों और अमरीका में भी लोगों ने एस्पेरांतो में दिलचस्पी दिखाई. बाद में चीन और जापान में इसे जानने-समझने वालों की संख्या बढ़ी. लेकिन ज़ैमनहॉफ़ की यूनीवर्सल सेकेंड लैंग्वेज की कल्पना सच्चाई में तब्दील नहीं हो पाई.
एक सार्वभौम द्वितीय भाषा का काम अब तक अंगरेज़ी नहीं कर पाई है तो एस्पेरांतो से कितनी उम्मीद रखी जा सकती है, यह स्पष्ट है. लेकिन सौ से ज़्यादा देशों में इसके चाहने वालों का लाखों की संख्या में मौजूदा होना भी कोई मामूली उपलब्धि नहीं है. चीन, हंगरी और बुल्गारिया में कई स्कूलों में इसे पढ़ाया जाता है. जापान के ऊममोत संप्रदाय के अलावा बहाई संप्रदाय में भी एस्पेरांतो को बढ़ावा दिया जाता है. इस भाषा में हज़ारों किताबें उपलब्ध हैं, और सौ से ऊपर पत्रिकाएँ छपती हैं. एस्पेरांतो के प्रशंसकों की इंटरनेट पर भारी मौजूदगी है.
उल्लेखनीय है कि इतनी लोकप्रियता के बावजूद एस्पेरांतो को किसी भी देश में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं है. लेकिन सैंकड़ों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ एस्पेरांतो को बढ़ावा देने के लिए हर स्तर पर काम कर रही हैं. एस्पेरांतो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में हर साल दुनिया भर के हज़ारों भाषा प्रेमी भाग लेते हैं. वर्ष 2006 का एस्पेरांतो वर्ल्ड कांग्रेस इटली के फ़्लोरेंस में आयोजित किया जाएगा. और तो और लगातार दो वर्ष 1999 और 2000 में स्कॉटलैंड के एस्पेरांतो कवि विलियम ऑल्ड को साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है.
यह बात भी ग़ौर करने की है कि यूनीवर्सल एस्पेरांतो एसोसिएशन का संयुक्त राष्ट्र की यूनेस्को और यूनीसेफ़ जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं के साथ औपचारिक रिश्ता है.
वैज्ञानिकों की राय की बात करें तो कहते हैं एस्पेरांतो को 'स्प्रिंगबोर्ड टू लैंग्वेजेज़' के रूप में इस्तेमाल करना अच्छी बात है. मतलब एक छोटे बच्चे को किसी और भाषा से पहले एस्पेरांतो सिखाई जाए तो वह बाकी भाषाएँ कहीं ज़्यादा आसानी से सीख सकेगा.
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5 टिप्पणियां:
एस्पेरान्तो भाषा के अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन का प्राग इश्तिहार -
http://www.geocities.com/bharato/pragajhoj/praag_ishtihaar-d.htm
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