अपनी भारत यात्रा के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफ़ी अन्नान ने कहा कि उन्होंने सुरक्षा परिषद के विस्तार का जो प्रस्ताव रखा है उसमें नए सदस्यों को वीटो का अधिकार दिए जाने की बात नहीं है. अभी तो भारत को स्थायी सदस्यता मिलने का ठोस भरोसा भी नहीं मिला है, और यदि ऐसा हुआ तो दूसरे दर्जे की ये सदस्यता कितनी फ़ायदेमंद होगी.
आख़िर किसके इशारे पर अन्नान ऐसा बोल रहे हैं? शक की सुई तो अमरीका की ओर ही इशारा करती है.
ज़रूरी हो गया है कि विस्तारित सुरक्षा परिषद में स्थायी जगह पाने की उम्मीद रखने वाले सारे देश संयुक्त राष्ट्र(अमरीका) के इस दोगलेपन का विरोध करें. लेकिन भारत को जर्मनी, जापान और ब्राज़ील जैसे देशों को साथ लेकर चलने का इंतज़ार किए बिना विरोध का झंडा ख़ुद बुलंद करना चाहिए. भारत अब कोई दीनहीन देश रहा नहीं, इसलिए निश्चय ही उसके अभियान का असर होगा.
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