पाकिस्तान की मेहमान टीम के हाथों अपनी ही ज़मीन पर मात खा चुकी भारतीय क्रिकेट टीम के नए स्वरूप पर बहस बेहद ज़रूरी है. ये तो साफ़ ज़ाहिर है कि पड़ोसी देश की टीम के मुक़ाबले भारतीय टीम कहीं ज़्यादा अनुभवी है, लेकिन उसमें उस 'किलर-इन्सटिंक्ट' का अभाव है जो कि पाकिस्तानी टीम में बहुत ज़्यादा है.
अब समय आ गया है कि सौरभ गांगुली और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ियों के बिना भी टीम को मैदान में उतारने पर न सिर्फ़ विचार किया जाना चाहिए, बल्कि ये मान कर चलना चाहिए आगे से ऐसा नियमित रूप से करना पड़ेगा.
भारत में एक टेलीविज़न चैनल स्टार न्यूज़ के विशेषज्ञों और दर्शकों ने सचिन तेंदुलकर को 'सिरीज़ का मुज़रिम' चुना, जिस पर घनघोर सचिन प्रशंसकों ने भी कोई आपत्ति नहीं की. क्या ही अच्छा हो जो भारतीय क्रिकेट के चयनकर्ता भी इस तरह बिना किसी पूर्वाग्रह के मुज़रिमों की पहचान कर पाता. सचिन तेंदुलकर अब भी नहीं मान रहे कि उनका खेल ख़राब हो चुका है.
शुक्रवार, अप्रैल 29, 2005
गुरुवार, अप्रैल 28, 2005
अन्नान ने दिया झटका
अपनी भारत यात्रा के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफ़ी अन्नान ने कहा कि उन्होंने सुरक्षा परिषद के विस्तार का जो प्रस्ताव रखा है उसमें नए सदस्यों को वीटो का अधिकार दिए जाने की बात नहीं है. अभी तो भारत को स्थायी सदस्यता मिलने का ठोस भरोसा भी नहीं मिला है, और यदि ऐसा हुआ तो दूसरे दर्जे की ये सदस्यता कितनी फ़ायदेमंद होगी.
आख़िर किसके इशारे पर अन्नान ऐसा बोल रहे हैं? शक की सुई तो अमरीका की ओर ही इशारा करती है.
ज़रूरी हो गया है कि विस्तारित सुरक्षा परिषद में स्थायी जगह पाने की उम्मीद रखने वाले सारे देश संयुक्त राष्ट्र(अमरीका) के इस दोगलेपन का विरोध करें. लेकिन भारत को जर्मनी, जापान और ब्राज़ील जैसे देशों को साथ लेकर चलने का इंतज़ार किए बिना विरोध का झंडा ख़ुद बुलंद करना चाहिए. भारत अब कोई दीनहीन देश रहा नहीं, इसलिए निश्चय ही उसके अभियान का असर होगा.
आख़िर किसके इशारे पर अन्नान ऐसा बोल रहे हैं? शक की सुई तो अमरीका की ओर ही इशारा करती है.
ज़रूरी हो गया है कि विस्तारित सुरक्षा परिषद में स्थायी जगह पाने की उम्मीद रखने वाले सारे देश संयुक्त राष्ट्र(अमरीका) के इस दोगलेपन का विरोध करें. लेकिन भारत को जर्मनी, जापान और ब्राज़ील जैसे देशों को साथ लेकर चलने का इंतज़ार किए बिना विरोध का झंडा ख़ुद बुलंद करना चाहिए. भारत अब कोई दीनहीन देश रहा नहीं, इसलिए निश्चय ही उसके अभियान का असर होगा.
बुधवार, अप्रैल 27, 2005
ये क्या हो रहा है?
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भारतीय संसद में गतिरोध बना हुआ है. भाजपा की अगुआई वाले विपक्ष को रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की गर्दन से कम कुछ नहीं चाहिए. लालू के इस्तीफ़े की माँग को लेकर विपक्षी दलों ने संसद की कार्यवाही का बहिष्कार कर रखा है. और तो और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक ने भी संसद में लालू के इस्तीफ़े की माँग की.
लेकिन क्या लालू ही भ्रष्ट मंत्री या सांसद हैं? बाकियों का क्या हाल है? मुझे तो लगता है 60 फ़ीसदी से ज़्यादा सांसद किसी न किसी मामले से जुड़े हैं- भूमि विवाद हो, गबन का मामला हो, डकैती या हत्या का केस हो या फिर बलात्कार का. भ्रष्टाचार तो जैसे संसद सदस्य बनने की पूर्व योग्यता बन चुका है.
ऐसे में लालू से इस्तीफ़ा मांगते हुए संसद को ठप करना देश के साथ मजाक ही है. बात दूसरे को ख़ुद से ज़्यादा भ्रष्ट बताने की रह गई है. हमाम में सब नंगे हैं. विवाद इस बात का है कि 'तेरी नंगई मुझसे ज़्यादा गई बीती है.'
हे भगवान भारत में नेताओं की अच्छी नस्ल क्या इस सदी में आ सकेगी?
लेकिन क्या लालू ही भ्रष्ट मंत्री या सांसद हैं? बाकियों का क्या हाल है? मुझे तो लगता है 60 फ़ीसदी से ज़्यादा सांसद किसी न किसी मामले से जुड़े हैं- भूमि विवाद हो, गबन का मामला हो, डकैती या हत्या का केस हो या फिर बलात्कार का. भ्रष्टाचार तो जैसे संसद सदस्य बनने की पूर्व योग्यता बन चुका है.
ऐसे में लालू से इस्तीफ़ा मांगते हुए संसद को ठप करना देश के साथ मजाक ही है. बात दूसरे को ख़ुद से ज़्यादा भ्रष्ट बताने की रह गई है. हमाम में सब नंगे हैं. विवाद इस बात का है कि 'तेरी नंगई मुझसे ज़्यादा गई बीती है.'
हे भगवान भारत में नेताओं की अच्छी नस्ल क्या इस सदी में आ सकेगी?
श्री गणेशाय नम:
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ईश्वर, 'देश-दुनिया' को विचारवान लोगों तक पहुँचाना. यह एक गंभीर विचार-मंच का रूप ले सके...स्वस्थ वाद-विवाद का केंद्र बने...अभिनव विचारों का स्रोत बने.
सबका भला हो. जय हो!
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