रविवार, अक्तूबर 07, 2007

क्या विज्ञान दुनिया को बचा सकता है?

धरती मातादुनिया में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए कई संधियाँ हो चुकी हैं. निजी कंपनियाँ भी ग्लोबल वार्मिंग के ख़िलाफ़ नई-नई घोषणाएँ कर रही हैं. ज़िम्मेदार लोग निजी कारों की बजाय ज़्यादा-से-ज़्यादा सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर, और कम-से-कम हवाई यात्राएँ कर अपना 'कार्बन फ़ुटप्रिंट' छोटा करने की कोशिश कर रहे हैं.

लेकिन दुनिया भर में बड़ी संख्या में ऐसे वैज्ञानिक हैं, जो मानते हैं कि मात्र जीवन के रंग-ढंग बदलकर पर्यावरण को हुए नुक़सान की भरपाई नहीं की जा सकती. क्योंकि दशकों की बेफ़िक्री ने जलवायु परिवर्तन की समस्या को बहुत ही जटिल और गंभीर बना दिया है. वैज्ञानिकों की इस जमात का दृढ़ विश्वास है कि जलवायु में कार्बन डाइऑक्साइड की लगातार बढ़ती मात्रा पर विज्ञान के ज़रिए ही रोक लगाई जा सकती है. इस तरह के वैज्ञानिक उपायों को जियो-इंजीनियरिंग (Geo-engineering) का नाम दिया गया है.

संडे ऑब्जर्वर ने उन छह जियो-इंजीनियरिंग उपायों का आकलन किया है, जो कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार पर रोक लगा सकते हैं. आइए इन उपायों पर एक नज़र डालें-

1. समुद्री पम्प-

ब्रिटेन के दो प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, क्रिस रैप्ली और जेम्स लवलॉक को पूरा विश्वास है कि समुद्र में बड़ी संख्या में पाइप डाल कर कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा को वायुमंडल से अलग किया जा सकता है. उनका कहना है कि पानी के भीतर खड़ा किए गए इन पाइपों से पंप का काम लेते हुए समुद्र की गहराई के ठंडे पानी को सतह तक लाएगा. चूँकि ठंडे पानी में गर्म पानी के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा जीवन पाया जाता है, इसलिए समुद्र के गर्म सतह वाले हिस्सों में अपेक्षाकृत ठंडे पानी को ऊपर ला कर जीवन के ज़्यादा प्रकारों को वायुमंडल के संपर्क में लाया जा सकेगा. ऐसी जीव और पौध प्रजातियाँ बड़ी मात्रा में वायुमंडल के कार्बन डाइऑक्साइड को सोख सकेगी. अपनी उम्र पूरी होने के बाद ये नीचे समुद्र की तलहटी से जा लगेंगी, और इस तरह इनके साथ ही बड़ी मात्रा में कार्बन भी अनंत काल के लिए वायुमंडल से दूर चला जाएगा.

वैज्ञानिक इस उपाय की सफलता की संभावना को 3/5 आँकते हैं. और इसके विरोधियों का कहना है कि इस तरह समुद्र में बड़ी संख्या में पाइपें खड़ी करने से व्हेल और डॉलफ़िन जैसी जीव प्रजातियों को बहुत नुक़सान पहुँचेगा.

2. गंधकीय चादर-

बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के बाद पूरी धरती का तापमान कम हो जाता है. उदाहरण के लिए 1991 में फ़िलिपींस में माउंट पिनातुबो के फटने के बाद पूरी दुनिया के तापमान में 0.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी. वैज्ञानिकों ने ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमंडल के मध्यवर्ती हिस्से स्ट्रैटोस्फेअर मे एक करोड़ टन गंधक रसायन के आने को तापमान में गिरावट का कारण बताया. ऐसे में ओज़ोन लेयर पर अपने काम के कारण 1995 में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वैज्ञानिक पॉल क्रूटज़ेन की तरफ़ से सुझाव आया कि क्यों नहीं माउंट पिनातुबो के उदाहरण को अपनाया जाए! प्रोफ़ेसर क्रूटज़ेन का कहना है कि वायुमंडल में गंधक की एक चादर तैयार कर धरती की सतह पर पहुँचने वाली सूर्य की किरणों की मात्रा को कम किया जा सकेगा. उनका कहना है कि रॉकेटों के ज़रिए स्ट्रैटोस्फेअर में क़रीब दस लाख टन गंधक रसायन पहुँचा कर धरती को ठंडा किया जा सकेगा.

वैज्ञानिक इस उपाय की सफलता की संभावना को 1/5 मानते हैं. इसके विरोधियों का कहना है वायुमंडल में इतनी ज़्यादा मात्रा में गंधक रसायन डालने से अम्लीय वर्षा बढ़ सकती है, और इस उपाय से ओज़ोन सतह को भी नुक़सान पहुँच सकता है.

3. अंतरिक्षीय दर्पण-

सूर्य की विकिरण धरती को गर्म करती है और यहाँ जीवन को संभव बनाती है. लेकिन जैसे-जैसे धरती गर्म होती जा रही है, धरती पर पहुँचने वाली सौर विकिरण की मात्रा को कम करने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है. कैलिफ़ोर्निया की लॉरेंस लाइवमोर राष्ट्रीय प्रयोगशाला के भौतिकविद लॉवेल वुड का मानना है कि वायुमंडल में अत्यंत पतले अल्युमिनियम धागे की जाली तान कर बड़ी मात्रा में विकिरण को परावर्तित किया जा सकता है. उनका कहना है कि एक ईंच के दस लाखवें हिस्से की मोटाई वाली अल्युमिनियम की तार की जाली एक विंडो-स्क्रीन का काम करेगी. इससे सूर्य का प्रकाश तो नहीं रुकेगा, लेकिन अवरक्त किरणें ज़रूर परावर्तित हो जाएँगी.

इस उपाय की सफलता की संभावना 1/5 मानी जाती है, और इस पर संदेह करने वालों का कहना है कि सौर विकिरण में एक प्रतिशत की भी कटौती करने के लिए कुल मिला कर छह लाख वर्गमील आकार की जाली ताननी होगी, जिस पर बहुत ही ज़्यादा लागत आएगी.

4. मेघ आवरण-

कोलोराडो के राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान केंद्र के जॉन लैथम और एडिनबरा विश्वविद्यालय के स्टीफ़न साल्टर का कहना है कि बादलों की मात्रा में चार प्रतिशत की वृद्धि कर धरती पर सौर विकिरण की मात्रा में पर्याप्त कमी लाई जा सकती है. इन दोनों महानुभावों का कहना है कि 'क्लाउड सीडिंग' की 'सीवॉटर स्प्रे' प्रक्रिया के ज़रिए कृत्रिम रूप से बादलों का आवरण तैयार करना आसान है, और इस पर अपेक्षाकृत बहुत कम ख़र्च आएगा.

इस उपाय की सफलता की संभावना 2/5 बताई जाती है, और इसके विरोधियों का कहना है कि बड़ी मात्रा में कृत्रिम बादल पैदा करने से मौसम का पैटर्न गड़बड़ा सकता है.

5. कृत्रिम पेड़-

कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम करने के लिए पेड़ लगाने का तरीका बहुत ही लोकप्रिय है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रकार के कृत्रिम पेड़ लगा कर कहीं ज़्यादा कार्बन वायुमंडल से बाहर करने का उपाय खोजा है. इस उपाय का प्रतिपादन सबसे पहले कोलंबिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक क्लाउस लैकनर ने किया. विशेष रसायनों से निर्मित ये पेड़ न बढ़ेंगे, न फलेंगे, न फूलेंगे...लेकिन लैकनर का दावा है कि उनके द्वारा विकसित प्रत्येक कृत्रिम पेड़ वायुमंडल से प्रतिवर्ष 90 हज़ार टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख सकेगा. यानि कार्बन डाइऑक्साइड सोखने (Carbon Sequestration) के मामले में कृत्रिम पेड़ एक वास्तविक पेड़ के मुक़ाबले एक हज़ार गुना ज़्यादा कारगर होगा.

वैज्ञानिक इस उपाय की सफलता की संभावना को 4/5 बताते हैं, और इसके विरोधियों का कहना है कि ऐसे पेड़ तैयार करने की प्रक्रिया में वायुमंडल को फ़ायदे की तुलना में नुक़सान ज़्यादा होगा, क्योंकि पेड़ बनाने के कारखानों में ऊर्जा की बहुत ज़्यादा खपत होगी.

6. जल पौध-

समुद्र की सतह पर उतराती सूक्ष्म पौध प्रजातियाँ(Plankton और Algae) कार्बन डाइक्साइड की भक्षक मानी जाती हैं. अपनी उम्र पूरी होने के बाद वे अपने साथ बड़ी मात्रा में कार्बन लिए समुद्र की तलहटी में जा बैठती हैं. यानि समुद्र की सतह पर शैवाल और अन्य सूक्ष्म पौध प्रजातियों की मात्रा बढ़ाओ, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्र अपने-आप कम हो जाएगी. अमरीका के वुड्स होल समुद्र विज्ञान संस्थान में हाल ही में एक सम्मेलन में इस उपाय पर व्यापक चर्चा की गई. इस सम्मेलन में अनेक विशेषज्ञों की राय थी कि लौह उर्वरक का इस्तेमाल कर समुद्री पौध प्रजातियों की मात्रा बढ़ाना संभव है. घुलनशील लौह यौगिकों को समुद्र में डालते हुए दुनिया भर में इस उपाय से जुड़े प्रयोग शुरू भी किए जा चुके हैं.

इस उपाय की सफलता की संभावना 2/5 मानी जाती है, और इसके विरोधियों का कहना है कि इस विधि से ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड नहीं सोखा जा सकता, जबकि इससे समुद्र में अत्यंत ख़तरनाक प्रदूषण फैल सकता है.

8 टिप्‍पणियां:

Neeraj Rohilla ने कहा…

बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद !!!

अनिल रघुराज ने कहा…

सुंदर जानकारी। इसमें से मुझे भी कृत्रिम पेड़ और जल पौध के उपाय सबसे ज्यादा व्यवहार्य लग रहे हैं।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत बढ़िया. ब्लॉगिंग में इसी प्रकार के लेखों की कमी महसूस होती है.
भविष्य के बारे में विश्वस्त होता हूं यह पढ़ कर!

ePandit ने कहा…

अच्छी जानकारी दी आपने, इन सब सुझावों में सो कौन से व्यावहारिक हैं? मुझे तो कोई भी नहीं लगा ठीक से।

निवेश गुरु ने कहा…

vigyan ke bare mei tabhi to kaha gaya hai ki ye wardan aur abhishap dono ki tarah kam kerta hai...ye kewal ispar nirbhar kerta hai ki aap iska upyog kaise ker rahe hai.halanki carbon credit ka bisuness bhi isme yogdan ker sakta hai. carbon credit ke bare mei www.niveshguru.blogspot per ek chhoti si jankari hai.

sajith90 ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Yashwant ने कहा…

हमारी धरती वास्तव में खतरे में है...
हम इसे बचा सकते है...

जब तक हम मूल कारणों को स्थापित नहीं कर लेते तब तक धरती को बचने के लिए सोचे गए उपाय लागू नहीं कर सकते...

भारत सरकार और NASA में सूचना अधिकार के तहत जाकारियां मांगी गयी... जिसका जवाब मिला की अभी तक चाही गयी सूचना पर शोध ही नहीं किये गए... और सूचना उपलब्ध नहीं है...

तत्पश्चात प्रधानमंत्री जी को पात्र लिखा गया, जिसमे दुनिया ख़तम होने की संकल्पना समझाई गयी है...

@ http://save-earth2012.blogspot.in/p/save-earth.html

Unknown ने कहा…

fundabook.com पर प्रकाशित लेख इस लिख में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को रोकने के लिए 10 आसान उपाय दिए गये है. यह उपाय बहुत ही साधारण से हैं जिन्हें अपनी दैनिक आदतों में शामिल करके हम भी पर्यावरण संरक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं. ये हैं वे 10 आसान उपाय: http://fundabook.com/how-to-contribute-envoirnment-sustainability-protection/