अलग राष्ट्र के गठन की माँग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से उठती ही रहती है. कहीं संघीय सरकार की पकड़ से छूटने की हसरत होती है, तो कहीं अपने समुदाय के बेहतर विकास और सुरक्षा की बात होती है, तो कहीं बिछुड़े हिस्से से जुड़ने की लालसा. नवराष्ट्र के सृजन के लिए विभिन्न समुदाय या तो हिंसक-अहिंसक आंदोलनों को ज़रिया बनाते हैं, या फिर जनमत संग्रह जैसे क़ानूनी रास्तों को अपनाते हैं.
अंग्रेज़ी की पत्रिका Monocle ने उन दस इलाक़ों पर रोशनी डाली है, जो कि निकट भविष्य में सारे अधिकारों से सुसज्जित नए राष्ट्रों के रूप में सामने आ सकते हैं. आइए देखें नवसृजित संप्रभु राष्ट्रों की सूची में शामिल होने की संभावना लिए ये इलाक़े कौन-कौन से हैं-
1. फ़लस्तीन- पश्चिम एशिया या मध्य-पूर्व के संकट का समाधान एक संप्रभु फ़लस्तीनी राष्ट्र की स्थापना से ही संभव हो सकता है. लेकिन दो फ़लस्तीनी धड़ों फ़तह और हमास के बीच के भारी मनमुटाव को देखते हुए एक संयुक्त फ़लस्तीन की जगह दो अलग-अलग राष्ट्रों के उदय की संभावना ज़्यादा बन रही है. ये होंगे पूर्वी फ़लस्तीन यानि फ़तह के नियंत्रण वाला पश्चिम तट, और पश्चिमी फ़लस्तीन या हमास के नियंत्रण वाला गज़ा इस्लामी गणतंत्र. यदि ऐसा हुआ तो शायद इसराइल भी इन राष्ट्रों को परोक्ष रूप से मान्यता दे देगा, क्योंकि एक की जगह दो फ़लस्तीनी राष्ट्रों का वज़ूद उसकी सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर विकल्प साबित हो सकता है.
2. शिन्जियांग- पश्चिमोत्तर चीन के इस इलाक़े के लोगो ने 60 साल पहले भी पूर्वी तुर्केस्तान के नाम से अलग राष्ट्र की माँग ज़ोरशोर से रखी थी. यहाँ कि मुस्लिम उइग़ुर लोग अपनी माँग को लेकर हिंसा पर भी उतारू रहे हैं. लेकिन मौजूदा चीन सरकार आज़ादी की माँग करने वाले इन आंदोलनकारियों को आतंकवादी घोषित कर चुकी है. लेकिन जैसा कि अल्जीरिया में फ़्रांस को सबक मिला था, कि जब आतंकवाद उफ़ान पर होता है तो कितनी भी निष्ठुर सेना हो, उसकी नाक में दम किया जा सकता है.
3. दक्षिणी कैमरून- फ़्रांसीसी भाषी कैमरून के दो अंग्रेज़ीभाषी प्रांतों में एक अलग राष्ट्र की माँग को लेकर एक अहिंसक आंदोलन चल रहा है. कैमरून में तानाशाही जैसा शासन चलाने वाले पॉल बिया अहिंसक आंदोलनकारियों के ख़िलाफ़ दमनकारी क़दम उठाते रहे हैं. यदि दमन बढ़ा या जारी रहा, तो स्वंत्रता की माँग के ज़ोर पकड़ने की पूरी संभावना है.
4. संयुक्त कोरिया गणतंत्र- ये नवस्वतंत्र नहीं बल्कि दो स्वतंत्र राष्ट्रों के संयोग से बनने वाला नवसृजित राष्ट्र होगा. कम्युनिस्ट उत्तर कोरिया की आर्थिक परेशानियों ने उसे परमाणु कार्यक्रम छोड़ने के अमरीकी प्रस्ताव को स्वीकार करने पर मज़बूर किया है. यदि आर्थिक मुश्किलें आगे भी जारी रहती हैं, और वह शरारत के बजाय सहयोग पर राज़ी हो जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका पड़ोसी दक्षिण कोरिया उसे उसी तरह आत्मसात करने पर गंभीरता से विचार करेगा- जैसा कि पश्च्मी जर्मनी ने 1990 में पूर्वी जर्मनी को आत्मसात किया था.
5. कुर्दिस्तान- इराक़ पर अमरीकी हमले का एकमात्र अच्छा परिणाम है वहाँ के कुर्द लोगों की ख़ुशहाली. इराक़ी कुर्द इलाक़ा आमतौर पर हिंसारहित है, वहाँ के राजनीतिक आपसी रंजिशों को ताक पर रख चुके हैं, उनका अपना एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय उड़ाने भर रहा है. कुर्दों को तुर्की सेना की धमकियाँ मिलती रहती हैं, लेकिन यूरोपीय संघ में शामिल होने की आकांक्षा रहते तुर्की कोई परेशानी खड़ा करने से बचेगा. वैसे भी कुर्द पहले इराक़ी इलाक़े में राष्ट्र की नींव डालना चाहेंगे, और संयुक्त कुर्दिस्तान की माँग को आगे के लिए टाल देंगे. ईरान भी अपने परमाणु कार्यक्रम संबंधी अंतरराष्ट्रीय दबाव से जूझने पर ध्यान केंद्रित किए हुए है. अमरीकी हमेशा के लिए इराक़ में रहेगा नहीं, तो ऐसे में एक आज़ाद कुर्दिस्तान की संभावना भरी पूरी लगती है.
6. सोमालीलैंड- सोमालीलैंड सोमालिया को वह हिस्सा है जो कभी ब्रिटिश प्रभुत्व में हुआ करता था. यों तो सोमालीलैंड ने 1991 में आज़ादी का ऐलान कर दिया था, लेकिन उसे अभी भी अंतरराष्ट्रीय मान्यता का इंतज़ार है. लेकिन हाल के दिनों में सोमालीलैंड ने अपनी अलग सरकार, अलग सेना और अलग न्यायपालिका का गठन कर लिया है. अपनी करेंसी और अलग पासपोर्ट भी जारी किया है. ऐसे में लगता है कि कुछ अफ़्रीकी सरकारें उसे मान्यता देने पर ज़रूर ग़ौर कर रही होंगी.
7. कोसोवा- कोसोवो या कोसोवा पिछले आठ वर्षों से संयुक्तराष्ट्र के संरक्षण में है. यूगोस्लाव नेता स्लोबोदान मिलोसेविच की सेनाओं ने कोसोवो की अल्बानियाई मूल की जनता पर भारी अत्याचार किया था. संयुक्तराष्ट्र ने कोसोवो को एक अलग संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का एक प्रस्ताव सुरक्षा परिषद के समक्ष रखा है. ज़ाहिर है सर्बिया और रूस को इस प्रस्ताव पर आपत्ति है, और रूस को तो सुरक्षा परिषद में वीटो का भी अधिकार है. ऐसे में आज़ादी की राह में अड़चनें आ सकती हैं. लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कोसोवो की आज़ादी को लेकर आमतौर पर सहमति हो तो लगता नहीं कि कोसोवो राष्ट्र की स्थापना को रोका जा सकेगा. और इसका नाम कोसोवा होगा, कोसोवो नहीं. क्योंकि पहला अल्बानियाई उच्चारण है, जबकि दूसरा सर्ब उच्चारण.
8. ताइवान- वैसे तो ताइवान का एक अलग राष्ट्र के रूप में अस्तित्व है, लेकिन आधिकारिक रूप से उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मान्यता नहीं मिली है. क्योंकि चीन उसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है. लेकिन ताइवान के राष्ट्रवादी नेता आज़ादी की खुली घोषणा करने को तैयार बैठे हैं. ऐसा हुआ तो सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या चीन ताइवान के ख़िलाफ़ सैनिक कार्रवाई करने के विकल्प को चुनता है, और चुनता ही है तो क्या अमरीकी ताइवान के समर्थन में आगे आता है.
9. शियास्तान- सिद्धान्तत: इसका कोई कारण नहीं दिखता कि क्यों इराक़ का दक्षिणी शहर बसरा भी दुबई की तरह संपन्न नहीं हो सकता. ब्रिटेन को शिया बहुल दक्षिणी इराक़ में टिके रहने में ज़्यादा लाभ नहीं दिख रहा, जबकि अमरीका को भी इस कबाइली इलाक़े के आंतरिक खींचतान का सिरदर्द ईरान को देने में ज़्यादा ऐतराज़ नहीं होगा.
10. स्कॉटलैंड- स्वतंत्र स्कॉटलैंड की हामी स्कॉटिश नेशनल पार्टी स्कॉटलैंड की क्षेत्रीय संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है. पार्टी आज़ादी के मुद्दे पर जनमत संग्रह की बात औपचारिक रूप से उठा भी चुकी है. यदि जनमत संग्रह होता है, और उसमें आज़ादी के पक्ष में फ़ैसला आता है, तो स्वतंत्र स्कॉटलैंड की स्थापना को ज़्यादा दिन तक टाल पाना संभव नहीं होगा. यहाँ उल्लेखनीय है कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड की क्रिकेट और फ़ुटबॉल की टीमें अलग-अलग हैं. इतना ही नहीं, ब्रिटेन में दो तरह की पाउंड करेंसी भी चलती है, जिनमें से एक है- स्कॉटिश पाउंड. हालाँकि बैंक ऑफ़ इंग्लैंड के पाउंड और रॉयल बैंक ऑफ़ स्कॉटलैंड के पाउंड के लेनदेन या प्रचलन में कोई अंतर नहीं है.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
आपने काफी विस्तार में सचित्र जानकारी दी है. आभार. कृपया देशदुनिया की खबरें देते रहें -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
एक टिप्पणी भेजें