शनिवार, मई 27, 2006

कैसी-कैसी नौसेनाएँ!

दक्षिणी पूर्वी यूरोप में बाल्कन के लोगों ने पिछले दिनों राष्ट्र के बँटवारे यानि बाल्कनाइज़ेशन का एक और फ़ैसला किया. इस बार मॉन्टिनीग्रो की जनता ने जनमत संग्रह में सर्बिया से अलग अपना देश बनाने के बारे में जनादेश दिया है. भारी मन से ही सही, सर्बिया ने जनादेश का आदर करने का फ़ैसला किया है. इसी के साथ यूरोप के शक्तिशाली देशों में से एक यूगोस्लाविया की अंतिम निशानी भी ख़त्म हो रही है, क्योंकि अकेले सर्बिया में यूगोस्लाविया का उत्तराधिकारी कहलाने की कोई विशेषता नहीं रह जाएगी.

मॉन्टिनीग्रो के अलग होने के फ़ैसले से सर्बिया की जनता में भारी निराशा है क्योंकि इस बार मुसलमानों या किसी अन्य जातीयता के लोगों ने उससे अलग होने का फ़ैसला नहीं किया है. दरअसल मॉन्टिनीग्रो में भी सर्ब मूल के लोगों की बहुलता है, इसलिए सर्बिया के लोगों को इस विभाजन को स्वीकार करने में बहुत पीड़ा का अनुभव हुआ होगा. लेकिन सर्बियाई नौसेना की पीड़ा कुछ ज़्यादा ही है. इसे समझने के लिए साथ लगे मानचित्र पर एक नज़र डालना ही काफ़ी होगा. बात ये है कि दो स्वायत्त प्रांतों सर्बिया और मॉन्टिनीग्रो के संघ सर्बिया-मॉन्टिनीग्रो राष्ट्र का समुद्र से वास्ता मॉन्टिनीग्रो के तटों के ज़रिए ही था और अब मॉन्टिनीग्रो के अलग होने के बाद सर्बियाई नौसेना के अस्तित्व का कोई कारण ही नहीं बचता है.

इस समय सर्बियाई नौसेना के पास पनडुब्बियों समेत 30 युद्धपोत हैं. समुद्र तक पहुँच या किसी नौसैनिक अड्डे के अभाव में उनका क्या होगा, कहा नहीं जा सकता. सर्बियाई नौसैनिकों के पास दो विकल्प ज़रूर हैं- या तो वे डैन्यूब नदी में कुछ गश्ती नौकाएँ डाल कर ख़ुद को व्यस्त रखें या फिर अलग राष्ट्र के रूप में जन्म ले रहे मॉन्टिनीग्रो में काम करने को तैयार हो जाएँ. मॉन्टिनीग्रो सरकार के एक सलाहकार ने पत्रकारों से बातचीत में सर्बियाई नौसैनिकों को अपने यहाँ आमंत्रित भी किया है, हालाँकि वहाँ भी नौसैनिकों का काम सीमित ही होगा क्योंकि अलग मॉन्टिनीग्रो राष्ट्र नौसेना के बजाय मात्र तटरक्षक बल से ही काम चलाने की सोच रहा है. मॉन्टिनीग्रो की सरकार बंद किए जाने वाले सर्बियाई नौसैनिक अड्डों को पर्यटक केंद्रों के रूप में विकसित करने पर विचार कर रही है.

सर्बिया की सरकार प्रथम विश्व युद्ध में पराजय के साथ अपनी समुद्री सीमा से हाथ धोने वाले ऑस्ट्रिया का उदाहरण अपनाती है या फिर चिली से हार कर समुद्री सीमाएँ खो देने वाले बोलीविया का ये देखने वाली बात होगी. ऑस्ट्रिया ने जहाँ अपनी नौसेना भंग कर दी थी, वहीं बोलीविया ने 1884 में प्रशांत महासागर तट पर स्थित एरिका बंदरगाह चिली के हाथों गँवाने के बाद आज तक अपनी नौसेना भंग नहीं की है. बोलीविया ने टिटिकाका झील में अपनी नौसेना तैनात कर रखी है. उसके पास 4,000 से भी ज़्यादा नौसैनिक हैं. इतना ही नहीं बोलीविया के पास एक युद्धक पोत भी है. स्वतंत्रता सेनानी साइमन बोलिवर के नाम वाले इस युद्धपोत को अर्जेंटीना के रोज़ैरियो बंदरगाह पर तैनात रखा गया है.

समुद्र को लेकर बोलीविया में काफ़ी उन्माद रहा है. अभी भी हर साल 23 मार्च को समुद्र दिवस मनाया जाता है और समुद्र का एक हिस्सा वापस लेने की कसमें खायी जाती हैं. माना जाता है कि चिली से हार का पुराना ज़ख़्म पाले बोलीविया ने 1932 में पारागुए पर यह सोच कर हमला किया, कि हथियाए गए इलाक़े से नदियों के ज़रिए (अर्जेंटीना होते हुए) अटलांटिक महासागर तक पहुँच बनाई जा सके. हालाँकि बोलीविया को पारागुए से भी हार का ही मुँह देखना पड़ा. उल्लेखनीय है कि पारागुए भी एक भूबद्ध राष्ट्र है, लेकिन उसने भी एक नौसेना बना रखी है. (संभवत: बोलीवियाई नौसेना के मुक़ाबले के लिए!)

जब लैटिन अमरीका में पागलपन की हद तक नौसेना की चाहत हो, तो फिर अफ़्रीका के देश क्यों पीछे रहें. जब कुख़्यात ईदी अमीन युगांडा का शासक था तो उसने विक्टोरिया झील में अपनी नौसेना बना रखी थी. हालाँकि सच कहा जाए तो ईदी अमीन की कथित नौसेना में तीन गश्ती नौकाएँ भर ही थीं. मलावी ने तो न्यासा झील में आज भी अपनी नौसेना तैनात कर रखी है जिसके पास मात्र दो गश्ती नौकाएँ हैं. स्वाज़िलैंड के पास हाल तक एक नौसेना थी लेकिन उसके एकमात्र पोत स्वाज़िमार के लापता हो जाने के बाद उसकी नौसेना का अस्तित्व नही रह गया है.

स्विटज़रलैंड के पास झीलों में निगरानी व्यवस्था के लिए 18 गश्ती नौकाएँ हैं लेकिन उसे नौसेना के बज़ाय पुलिस व्यवस्था का ही अंग बताया जाता है.

इसी तरह फ़लस्तीनियों के पास भी एक नौसेना है, लेकिन इसराइल ने उसे समुद्र में नौसैनिकों की तैनाती का कोई मौक़ा ही नहीं दे रखा है. जो भी हो फ़लस्तीनियों की बात अलग है क्योंकि उन बेचारों के पास तो अपना राष्ट्र तक नहीं है, लेकिन राष्ट्रपति है.

10 टिप्‍पणियां:

Manish Kumar ने कहा…

बहुत रोचक विषय चुना आपने अपने लेख के लिये ! इतनी जानकारी देने का शुक्रिया ।

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

बहुत रोचक जानकारी! शुक्रिया!!

अनुनाद सिंह ने कहा…

जानकारी बहुत अच्छी लगी |

विजय वडनेरे ने कहा…

कहानी-किस्सों, व्यंग्य, कविताओं, शेरो-शायरियों के साथ-साथ आपके ज्ञानवर्धक लेख पढने में भी मुझे उतना ही आनंद आता है.

इसको उपर रखें ( ही ही ही - अरे! कीप इट अप)

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत अच्छा जानकारी पूर्ण लेख।
आपके लेख जब भी पढो, अच्छे लगते है।
आप हर लेख में काफ़ी मेहनत करते है।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही ज़बरदस्त जानकारी लेख है और ऐसी जानकारी देने के लिऐ आप का धनय्वाद

बेनामी ने कहा…

धन्यवाद

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger ने कहा…

भाई लोगों, हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद!
विश्व कप के कारण माहौल फ़ुटबॉलमय हो रहा है, सो कोशिश कर रहा हूँ इस महान खेल पर कुछ विशेष प्रस्तुत करने की. जानकारी जुटा चुका हूँ...आत्मसात कर रहा हूँ और उम्मीद है जल्दी लिख सकूँगा.

ई-छाया ने कहा…

विवरण अच्छा तथा जानकारीप्रद है। धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

Hindi Blogger Bhai,

You have made me a regular reader of your column. Well I was loosing touch with my hindi language but thanks to you I am now a regular and do try to read blogs of those guys who reply to your blog ;-). All the best and keep it up.

Regards
Mansfield House