गुरुवार, नवंबर 24, 2005

रेल हो तो ऐसी!

देखिए इन तस्वीरों को. आज ही खींची है जर्मनी में फ़्रांकफ़ुर्ट के पास रेल यात्रा के दौरान. यूरोप में बहुत रेल यात्राएँ करने का मौक़ा मिला है लेकिन ब्लॉग जगत में सक्रिय होने के बाद पहली बार कोई लंबी रेल यात्रा कर रहा था तो सोचा कि क्यों न कुछ तस्वीरें खींची जाए. इन तस्वीरों को देख कर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क को यानि भारतीय रेल को अभी शताब्दी एक्सप्रेस और राजधानी एक्सप्रेस से कहीं आगे का सफ़र तय करना है.





ये चारों तस्वीरें जर्मनी की प्रसिद्ध इंटरसिटी एक्सप्रेस में से एक की हैं. इन ट्रेनों को जर्मनी में ICE नाम से जाना जाता है. पहली आईसीई ट्रेन 1991 में जनता की सेवा में आई थी और ऐसी 150 से ज़्यादा ट्रेनें आज औसत 270 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से जर्मनी के कोने-कोने में जाती हैं. तीसरी पीढ़ी की आईसीई ट्रेनों को सिद्धांतत: 330 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ाने की इजाज़त है. मैं म्यूनिख़-डोर्टमुंड रूट पर ट्रेन संख्या ICE 612 पर यात्रा कर रहा था. हमारी ट्रेन कभी-कभी ही 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से नीचे आती थी वो भी स्टॉप के क़रीब आने पर रूकने की तैयारी में.

जैसा कि आप तस्वीर में पाएँगे आईसीई का सेकेंड क्लास भी आपको फ़र्स्ट क्लास में होने की ग़लतफ़हमी में डाल सकता है. चाहे लेग-रूम की बात हो, सुविधाओं की बात हो या फिर बात हो साज-सज्जा की.

आईसीई ट्रेनों को प्रमुख शहरों के बीच विशेष रूप से तैयार ट्रैक पर पूरी स्पीड से दौड़ाया जाता है. हालाँकि आम ट्रैकों पर भी इन्हें 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चलाया जाता है. जर्मनी से ऑस्ट्रिया, स्विटज़रलैंड और इटली तक की यात्राओं में भी इन ट्रेनों की सेवाएँ ली जा सकती हैं.

जहाँ तक सुरक्षा की बात है तो पिछले पंद्रह साल में मात्र एक दुर्घटना आईसीई ट्रेनों के नाम है. इस दृष्टि से यह फ़्रांस की TGV ट्रेनों से पिछड़ जाती हैं क्योंकि पिछले दो दशकों के दौरान टीजीवी(Train à Grande Vitesse या High Speed Train) ट्रेनें किसी बड़ी दुर्घटना का शिकार नहीं बनी हैं. उल्लेखनीय है कि विशेष पटरियों की व्यवस्था के कारण आईसीई और टीजीवी जैसी ट्रेनों की गति पर ख़राब मौसम यानि कोहरा, हिमपात, बारिश आदि का कोई असर नहीं पड़ता है.

बाकी मामलों में तुलना करें तो ICE और TGV दोनों ही अमूमन अधिकतम 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से पटरियों को नापती हैं. लेकिन प्रायोगिक परिस्थितियों में जहाँ आईसीई 400 का आँकड़ा पार कर एक समय दुनिया की सबसे तेज़ ट्रेन घोषित हुई थी, वहीं टीजीवी 515 की गिनती गिन कर आज भी सिद्धांतत: दुनिया की सबसे तेज़ ट्रेन बनी हुई है. ( हालाँकि परीक्षण अवस्था की बात न करते हुए दिन-प्रतिदिन की सेवा में रफ़्तार की बात करें तो यूरोप की ट्रेनों को कहीं पीछे छोड़ती हैं 350 का आँकड़ा छूने वाली जापान की बुलेट ट्रेन और शंघाई के एक छोटे-से रूट पर क़रीब 450 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से पटरी छोड़ कर दौड़ने वाली मैगलेव ट्रेन.)

अपने अनुभव से मैं कह सकता हूँ कि सुविधा और आराम के मामले में आईसीई निश्चय ही टीजीवी से आगे है, और इसे यूरोप की बेहतरीन ट्रेन कहा जा सकता है.

लेकिन यूरोप की रेल यात्राओं में मुझे मिलान-ज़्यूरिख़ रूट पर चार महीने पहले की गई यात्रा की याद सबसे ज़्यादा रोमांचित करती है. दरअसल मैं पहली बार किसी टिल्टिंग ट्रेन की सवारी कर रहा था, हालाँकि यूरोप के कुछ रूट पर ऐसी ट्रेनें पिछले छह-सात साल से चल रही हैं. स्विटज़रलैंड की नैसर्गिक ख़ूबसूरती को निहारते हुए टिल्टिंग ट्रेन की सवारी करने के अनुभव को तो अदभुत कहा ही जा सकता है. इन अत्याधुनिक ट्रेनों के बारे में फिर कभी चर्चा होगी.

अपने अनुभव के आधार पर ही चलते-चलते ये भी बताता चलूँ कि ब्रिटेन की रेल-व्यवस्था बाकी यूरोप से बहुत-बहुत पीछे है,...यों कहें कि भारत से थोड़ा ही आगे!

7 टिप्‍पणियां:

मिर्ची सेठ ने कहा…

वाह इस के अलावा और कोई उद्गार क्या निकलेगा इसे पढ़ने के बाद। कभी यूरोप आने का मौका लगा तो TGV व ICE की सवारी तो पक्की रही यानि फ्रांस व जर्मनी दोनों ही जाना पड़ेगा।

पंकज

Jitendra Chaudhary ने कहा…

TGV तो विश्व स्तर की ट्रेन है, एक बार सफ़र करने का मौका मिला।सच मे बहुत मजा आया।लेकिन अन्दर बैठकर पता ही नही लगता कि ट्रेन इतनी तेज चलती है। एक बार फ़्रान्स मे सड़क यात्रा(UK to France) के दौरान ये ट्रेन बगल मे निकली, इतनी तेजी से निकली, लेकिन आवाज बिल्कुल भी नही, यही तो कमाल है लेटेस्ट टैक्नोलाजी का।

Pratik Pandey ने कहा…

आपका लेख पढ़ कर और कुछ पिछले अनुभवों के आधार पर मुझे ऐसा लगता है कि ट्रेनों की तुलना करने से ही यह जाना जा सकता है कि कौन सा देश विकसित है और कौन सा विकासशील। आपका क्‍या ख्‍याल है?

बेनामी ने कहा…

आपका लेख बहुत ही उत्तम है. इतनी जानकारी यूरोप की ट्रेनों के बारे में पाकर मज़ा आ गया. आप बस ऐसे ही लिखते रहें और हमारा ज्ञान बढाते रहें.

अनुनाद सिंह ने कहा…

जनता को इसके बाद यह जानने का हक बनता है कि वे कौन से तत्व या कारक हैं जो भारतीय गाडियों की चाल बढाने नहीं देते |

RC Mishra ने कहा…

पिछ्ले दिनों मैने, इटली और फ्रांस मे काफी रेल यात्रायें की, यहा पर मैने फ्रांस की टर मे भी यात्रा की और पाया कि गाडिया वहा भी लेट होती है, और टी जी वी से भी ज्यादा आनन्द दायक यात्रा रही लियोन से ग्रीनोबल के बीच टी ई आर द्वारा ||

Unknown ने कहा…

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