कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के विभिन्न मोर्चों पर झटके खाती अमरीकी सरकार को इस सप्ताह एक महत्वपूर्ण सफलता मिली है. दरअसल अमरीकी सरकार इंटरनेट पर अपने परोक्ष नियंत्रण पर विश्व समुदाय की मुहर लगवाने में सफल रही है.
कई महीनों से इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि ट्यूनीशिया में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित सूचना समाज विश्व शिखर सम्मेलन(WSIS) में सिर्फ़ एक ही मुद्दा हावी रहेगा कि इंटरनेट को अमरीका की निगरानी में छोड़ दिया जाए या फिर उस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगरानी रहे. विभिन्न देशों, ख़ास कर चीन और यूरोपीय संघ ने दो साल पहले WSIS के जिनीवा सम्मेलन के बाद से ही इंटरनेट को अमरीका के पहलू से दूर ले जाने के प्रयास शुरू कर दिए थे.
इंटरनेट के विकास में अमरीका की भूमिका से कोई इनकार नहीं करता, लेकिन कई देश ये मानने को तैयार नहीं कि सिर्फ़ इस कारण उस पर परोक्ष ही सही, लेकिन मात्र अमरीका का नियंत्रण हो. दरअसल कैलीफ़ोर्निया स्थित अलाभकारी संगठन इंटरनेट कॉर्पोरेशन फ़ॉर असाइन्ड नेम्स एंड नंबर्स(Icann) यानी आइकैन को इंटरनेट के डोमेन नेम प्रबंधन की ज़िम्मेवारी मिली हुई है. आइकैन के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक नियामक अधिकार होने के कारण इसे किसी न किसी सरकार के प्रति जवाबदेह होना ही था. ऐसे में 1998 में आइकैन के गठन के समय ही अमरीका सरकार ने इसे अमरीकी वाणिज्य विभाग के प्रति जवाबदेह बना दिया.
बात इतने तक ही सीमित रहती तब तो कोई विवाद ही नहीं होता क्योंकि हाल तक आइकैन ख़ुद को अमरीकी सरकार या उसकी नीतियों से दूर रखने में सफल रहा था और इसके के प्रबंधन बोर्ड में चार विदेशी निदेशकों की व्यवस्था से दुनिया आश्वस्त थी. लेकिन आइकैन के अमरीका सरकार के प्रभाव में आ जाने की आशंका ने तब ज़ोर पकड़ी जब अमरीकी वाणिज्य विभाग ने आइकैन को लिखा कि वो पोर्नोग्राफ़िक वेबसाइटों के लिए विशेष .xxx डोमेन की अपनी योजना पर पुनर्विचार करे. वाणिज्य विभाग ने रूढ़ीवादी ईसाई गुटों की शिकायत पर यह पहल की थी. और ये किसे नहीं पता कि बुश प्रशासन और रूढ़ीवादी ईसाई गुटों के बीच कितने प्रगाढ़ आत्मीय संबंध हैं. तो आकाओं के आँखें तरेरते ही आइकैन ने अपनी .xxx योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया, भले ही उसका दावा है कि पहले से ही इस योजना से किनारा किए जाने पर विचार चल रहा था.
निश्चय ही .xxx डोमेन नेम विवाद ने आइकैन पर अमरीकी प्रभुत्व का विरोध करने वालों को एक ठोस आधार दे दिया. इनका कहना है कि अगले साल जब आइकैन अपने 'लाइसेंस' की अवधि समाप्त होने के बाद अमरीकी सरकार के साथ भावी तौर-तरीकों पर बातचीत शुरू करेगा तो बुश प्रशासन अपनी मर्ज़ी घुसेड़ने का कोई भी मौक़ा शायद ही छोड़ेगा.
दूसरी ओर अमरीका सरकार का दावा है कि वो आइकैन के कामकाज़ को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करती. आइकैन का भी यही कहना है. न्यू साइंटिस्ट के 12 नवंबर 2005 अंक में एक विशेष लेख में आइकैन के प्रमुख पॉल ट्वोमी कहते हैं, "आइकैन सहयोग और भागीदारी के मौजूदा इंटरनेट मॉडल पर काम करता है. यह ग्लोबल इंटरनेट समुदाय के सभी सदस्यों को इसके विकास में और ज़्यादा भागीदारी करने के लिए प्रोत्साहित करता है. यह व्यवस्था बहुत अच्छे तरीके से काम कर रही है. लेकिन ये मल्टी-स्टेकहोल्डर तरीका कई सरकारों के लिए अब भी अजूबा है. कम से कम इन सरकारों के कूटनीतिक प्रतिनिधियों के बारे में तो ऐसा कहा ही जा सकता है. वो इसे समझने में नाकाम रहे हैं इसका उदाहरण उनके इस बात की रट लगाने से ज़ाहिर हो जाता है कि 'आइकैन को इंटरनेट चलाने देना नहीं चाहिए.' जबकि आइकैन ऐसा कोई काम कर ही नहीं रहा है. न ही आइकैन अमरीकी हितों का प्रतिनिधित्व करता है, जैसाकि आरोप लगाया जाता रहा है."
ट्वोमी आगे लिखते हैं, "आइकैन का अमरीकी वाणिज्य विभाग के साथ क़रार है जो कि इसके काम का ऑडिट करता है. लेकिन वाणिज्य विभाग ने कभी आइकैन के कामकाज़ में दखल देने की कोशिश नहीं की है."
अब ये सवाल उठता है कि जब आइकैन इंटरनेट नहीं चला रहा तो कर क्या रहा है? जवाब इसके प्रमुख पॉल ट्वोमी इन शब्दों में देते हैं- "यदि इंटरनेट की कल्पना एक डाक व्यवस्था के रूप में करें तो आइकैन समुदाय यह सुनिश्चित करता है कि लिफ़ाफ़े पर लिखे पते काम करें. यह इस बात में दखल नहीं देता कि लिफ़ाफ़े में है क्या, या फिर लिफ़ाफ़ा किसे सौंपा जाए या फ़िर चिट्ठी कौन पढ़े. आइकैन के गंभीर काम का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह इस बात को सुनिश्चित करता है कि परस्पर जुड़े क़रीब 250,000 निजी नेटवर्क करोड़ों उपयोगकर्ताओं को एकल इंटरनेट के रूप में दिखें."
ट्वोमी चार बातों पर ज़ोर देते हैं- 1. आइकैन की अगुआई में इंटरनेट व्यवस्था भलीभाँति काम कर रही है, 2. हमें इंटरनेट में स्थायित्व, भरोसे व सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, 3. इंटरनेट को दिन-प्रतिदिन की राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए, 4. सरकारों को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि इंटरनेट से जुड़े तकनीकी सहयोग में इस बात की कोई जगह नहीं है कि विश्वव्यापी वेब पर किस तरह की सामग्री प्रसारित होती है.
ये तो हुआ आइकैन प्रमुख का तर्क, लेकिन सवाल उठता है कि इसके विरोध में खड़ी सरकारों ने आख़िर क्यों मौजूदा व्यवस्था को जारी रहने देने की हामी भरी. दरअसल, इंटरनेट प्रबंधन के मुद्दे पर अमरीका और उसके ख़िलाफ़ खड़े देशों के बीच जिस दस्तावेज़ पर सहमति हुई है उसमें संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में एक अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम के गठन की बात है. ये फ़ोरम इंटरनेट प्रबंधन से जुड़े विषयों पर विचार करेगा. आइकैन की मौजूदा व्यवस्था के विरोधी देश दस्तावेज़ में ऐसे वाक्य डलवाने में क़ामयाब रहे जो कि पहली बार इंटरनेट प्रबंधन में सभी राष्ट्रों की बराबर की भूमिका और ज़िम्मेदारी की बात करता है. इसमें स्थायित्व, सुरक्षा और निरंतरता बनाए रखने में भी सभी राष्ट्रों की समान जवाबदेही की भी बात है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा है कि भले ही अमरीका एक बार फिर इंटरनेट पर अपना परोक्ष नियंत्रण बनाए रखने में सफल रहा हो लेकिन 16 नवंबर 2005 को WSIS के ट्यूनिश सम्मेलन के औपचारिक उदघाटन से कुछ घंटे पूर्व जिस दस्तावेज़ पर सहमति बनी वो आगे चल कर यह सुनिश्चत करेगा कि भविष्य में 'इंटरनेट एड्रेसिंग एंड ट्रैफ़िक डायरेक्शन सिस्टम' के विकास में अमरीका के अलावा अन्य राष्ट्रों को भी शामिल होने का मौक़ा मिल सके.
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