गुरुवार, नवंबर 10, 2005

पड़ोसी देश की नई राजधानी

संभव है बहुत से लोग अब भी पीनमना का नाम पहली बार सुन रहे हों, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि कुछ महीनों के भीतर यह बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर हो. बात यह है कि भारत के पड़ोसी देश बर्मा की सैनिक सरकार ने अचानक रंगून से अपना डेरा-डंडा उठाना शुरू कर दिया है. सरकारी मशीनरी रंगून से 400 किलोमीटर उत्तर पीनमना को अपना नया ठिकाना बना रही है.

आपको तो पता ही है कि सामान्य ज्ञान के नाम पर भारत के स्कूलों में बच्चों को जो बातें सिखाई जाती है, उनमें से एक है दुनिया के प्रमुख देशों और उनकी राजधानियों के नाम. जहाँ तक मेरी बात है मैं अभी तक इस बात को आत्मसात नहीं कर पाया हूँ कि हमारे पड़ोसी बर्मा का आधिकारिक नाम म्यांमार और उसकी राजधानी रंगून का आधिकारिक नाम यांगून है. भारत में तो म्यांमार-यांगून काफ़ी हद तक प्रचलित भी है, लेकिन पश्चिमी मीडिया में अब भी बर्मा-रंगून का ही प्रयोग होता है.

बर्मा की सैनिक सरकार ने क्यों रंगून छोड़ने का फ़ैसला किया ये बात किसी को समझ नहीं आ रही है. पहले से न तो इस बात के स्पष्ट संकेत दिए गए, न ही पड़ोसी देशों को ख़बर दी गई और न ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों को बताया गया. कई मंत्रालयों के कारिंदे फ़ाइलों के साथ जब पीनमना पहुँच गए और बात धीरे-धीरे मीडिया तक पहुँच गई, तब इस सप्ताह एक सैनिक अधिकारी ने स्वीकार किया कि बर्मा की सरकार रंगून छोड़ कर पीनमना को अपना नया ठिकाना बना रही है. अधिकारी ने यह भी कहा कि पीनमना के देश के बीच में होने के कारण शासन की सुविधा के लिए ऐसा किया जा रहा है.

लेकिन बात इतनी सरल लगती नहीं है. सरकार के स्पष्ट कारण नहीं देने के कारण तरह-तरह की चर्चाएँ चल रही हैं. उनमें से एक यह भी है कि हो सकता है कि बर्मा में सत्तारूढ़ सैनिक जुंटा के वरिष्ठ जनरल थान श्वे ने किसी ज्योतिषीय सलाह के अनुरूप यह फ़ैसला किया हो. एक धारणा यह भी है कि जब से अमरीकी विदेश मंत्री कोंडोलीज़ा राइस ने बर्मा को उत्तर कोरिया, क्यूबा, ईरान, ज़िम्बाब्वे और बेलारूस के साथ रखते हुए दुनिया की बचीखुची तानाशाही सरकारों में से एक बताया है, सैनिक सरकार को अमरीकी हमले का डर सता रहा है. और चूँकि बर्मा की नौसेना उसकी थल सेना से कहीं कमज़ोर है, इसलिए समुद्र के पास राजधानी रखना कोई बुद्धिमानी नहीं होगी.

चित्र- जनरल थान श्वे
पीनमना चूँकि जंगलों के बीच है सो किसी भी बाह्य हमले की स्थिति में गुरिल्ला लड़ाई छेड़कर दुश्मनों से लोहा लेना ज़्यादा आसान होगा. वैसे विश्लेषकों को ये नहीं लगता कि अमरीका को बर्मा पर हमला करने में कोई रूचि है. और यदि अचानक बदले सामरिक समीकरणों के कारण कभी अमरीका हमले की सोचता भी है तो ज़ाहिर है अपनी बेजोड़ एयर पॉवर के दम पर वह किसी भी शहर को मरघट में बदल सकता है, अब चाहे वो समुद्र के किनारे का शहर हो, पहाड़ों के बीच बसा शहर हो या फिर जंगलों में बसा कोई सैनिक मुख्यालय.

पीनमना में 10 वर्गकिलोमीटर के एक इलाक़े में पिछले कुछ महीनों से सैनिक सरकार के मुख्यालय के लिए ताबड़तोड़ निर्माण कार्य चल रहा था. देश से बाहर रह कर प्रचार अभियान चलाने वाले बर्मी असंतुष्टों की मानें तो वहाँ सुरंगों और बंकरों का जाल बिछाया गया है. ये बात तो तय है कि पीनमना को चुनने के पीछे इस शहर के ऐतिहासिक महत्व को भी ध्यान में रखा गया होगा क्योंकि इसी स्थान से जनरल आंग सान(पिछले एक दशक से नज़रबंद रखी गईं लोकतंत्रवादी बर्मी नेता आंग सान सू ची के पिता) ने आज़ादी की लड़ाई का बिगुल फूंका था.

पीनमना की मौजूदा स्थिति के बारे में सारी जानकारी शायद तभी मिलेगी जब विदेशी दूतावासों को वहाँ अपने केंद्र खोलने की इजाज़त दी जाएगी. जो भी हो हमारे स्कूलों के सामान्य ज्ञान के पाठ में दो शब्द और जुड़ जाना तय है. पहला शब्द है बर्मा की नई राजधानी पीनमना, और दूसरा शब्द है यांलोन जो कि पीनमना का आधिकारिक नाम होगा. बर्मी भाषा में यांलोन का मतलब होता है संघर्ष से सुरक्षित. (मौजूदा राजधानी के लिए प्रयुक्त नाम यांगून का मतलब है संघर्ष की समाप्ति.)

3 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

बड़ा जानकारी पूर्ण लेख लिखा है। बधाई!

मिर्ची सेठ ने कहा…

राजधानियाँ बदलने के नाम पर तो मुझे तुगलक की याद आती है। देखते हैं यह तुगलकी कारनामा है कि नहीं।

हिन्दी ब्लॉगमंडल में आपका चिट्ठा एक सितारे की तरह उभरा है। आपके लिखने का तरीका व लेखन के पीछे की गई रिसर्च पसंद आती है। लिखते रहिए। कुछ अपने बारे में भी लिखिए।

पंकज नरुला

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger ने कहा…

अनूप जी और पंकज जी, बहुत-बहुत शुक्रिया!

रिसर्च ज़ाहिर है अपनी जानकारी के लिए करता हूँ. फिर यह सोच कर लिखने का फ़ैसला करता हूँ कि शायद बाकी लोगों की भी ऐसी ही जिज्ञासा हो.

लेकिन ज़रूरी नहीं कि सबकी जिज्ञासें एक जैसी हों. कम से कम हमेशा तो ऐसी अनुकूल स्थिति नहीं ही होती है. ऐसे में कभी आपकी रूचि से बेमेल कुछ छप जाए तो माफ़ कीजिएगा. लेकिन उस स्थिति में भी मैं संदेह-लाभ लेना चाहूँगा यानि आग्रह करूँगा कि मुझे बुरी रूचि वाला नहीं माना जाए.