आमिर ख़ान हिंदी सिनेमा या बॉलीवुड के मौजूदा कलाकारों में से सबसे अलग हैं. उनसे हाल ही में ही मिलने का मौक़ा मिला. बिल्कुल सीधे-सरल और सच्चे व्यक्ति लगे. किसी तरह का बनावटीपन नहीं.
काम के प्रति उनके समर्पण की बात करें तो उसकी मिसाल कम-से-कम भारत में तो नहीं ही है. अब जैसे 12 अगस्त 2005 को रिलीज़ हो रही द राइज़िंग (दो अलग-अलग नामों से प्रदर्शित) को ही लें. मंगल पांडे के किरदार से न्याय करने के लिए उन्होंने न सिर्फ़ डेढ़ साल तक बाल और मूँछ बढ़ाई(पहेली में शाहरूख़ की तरह नकली मूँछ नहीं) बल्कि बदन को डंड-बैठक टाइप(सलमान की तरह दवाई-पोषित माँसपेशियाँ नहीं) बनाने के लिए उन्होंने ख़ूब कसरतें भी कीं(ऊपर की तस्वीर में ख़ुद देखें). ये तो हुई किरदार के शारीरिक रूप की बात. मंगल पांडे के मन में उतरने के लिए उन्होंने दर्जनों किताबें पढ़ीं. (हालाँकि जैसा कि उन्होंने बताया कि मंगल पांडे की ज़िंदगी के बारे ज़्यादा प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है.)
एक बार में एक फ़िल्म में ही काम करने के अपने उसूल पर वह हमेशा ही क़ायम रहे हैं.
रही बात उनके व्यक्तिगत जीवन में पिछले कुछ वर्षों में हुई उथल-पुथल की, तो वो इसे भी ईमानदारी से स्वीकार करते हैं.
ऐसे में द राइज़िंग में टोबी स्टीवेन्स जैसे अंग्रेज़ी के मँजे हुए कलाकार पर भारी साबित हुए हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. अधिकतर फ़िल्म समीक्षक ही नहीं, आम दर्शक भी मानते हैं कि आमिर ख़ान पहले भारतीय अभिनेता हैं जो हॉलीवुड के बड़े से बड़े पेशेवर कलाकारों को टक्कर देने में सक्षम हैं.
काश हॉलीवुड के किसी निर्माता को आमिर ख़ान की क्षमताओं का अंदाज़ा लग पाए. तब दुनिया सॉफ़्टवेयर और ऑफ़शोरिंग के अलावा अभिनय के क्षेत्र में भी भारतीय प्रतिभा का लोहा मान सकेगी.
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