
21 जुलाई 1969 को जब नील आर्मस्ट्राँग ने चाँद की सतह पर क़दम रखा तो निसंदेह वह मानव के अब तक के सबसे साहसिक अन्वेषण अभियान का उदाहरण था. पहली बार किसी व्यक्ति ने दूसरी दुनिया में क़दम रखा था. अंतरिक्ष में मानव के पहुँचने के आठ साल के भीतर धरती से ढाई लाख मील दूर चाँद पर जाना-आना संभव हो सकना, हर तरह से एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी. तभी तो अपोलो 11 के लैंडर मॉड्यूल ईगल से नीचे चाँद की सतह पर उतर कर जब आर्मस्ट्राँग ने 'One small step for man; one giant leap for mankind.' कहा तो तब पूरी दुनिया उनसे सहमत थी. नील आर्मस्ट्राँग के ही साथ चाँद पर गए थे बज़ एल्ड्रिन, और बाद के अपोलो अभियानों में 10 अन्य अमरीकियों ने चाँद पर क़दम रखे. लेकिन दर्ज़न भर लोगों को चाँद पर पहुँचाने का क्या परिणाम निकला?
सबसे पहले चाँद पर मानव को पहुँचाने की परियोजना की लागत की बात करें तो 1960 के दशक में अपोलो अभियान पर अमरीका ने 24 अरब डॉलर ख़र्च किए थे, यानि आज की परिस्थिति में लगभग एक ख़रब डॉलर. ये इतनी बड़ी रकम थी कि कई साल तक अमरीका के बजट का लगभग 5 प्रतिशत भाग अपोलो अभियान पर ख़र्च हो रहा था. स्पेस-सूट से लेकर रॉकेट इंजन तक बनाने में क़रीब 4 लाख कर्मचारियों ने योगदान दिया. चूंकि पूरी परियोजना को देश की गरिमा से, सोवियत संघ से दो क़दम आगे रहने के अमरीका के सामर्थ्य से जोड़ दिया गया था, इसलिए इन कर्मचारियों में से हज़ारों ने सामान्य काम के घंटों से दोगुना तक का समय बिना कोई अतिरिक्त पैसे के श्रमदान के रूप में दिया. परियोजना से इस क़दर भावनात्मक (और शारीरिक)रूप से जुड़े होने के कारण सैंकड़ो कर्मचारी हृदयाघात की लपेट में आकर असमय भगवान के प्यारे हो गए.
लेकिन अपोलो अभियान की कुल उपलब्धि क्या रही? मुख्य उपलब्धियों में अंतरिक्ष की होड़ में अमरीका की सोवियत संघ पर जीत और ब्रह्मांड के अन्वेषण को लेकर पूरी दुनिया के बढ़े आत्मविश्वास को गिनाया जा सकता है. इसके अलावा अपोलो अभियान से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ भी हैं:- चाँद के लिए कुल नौ अपोल मिशन रवाना हुआ. इनमें से कुल छह मिशन चाँद की सतह तक पहुँचने का था. कुल 24 अंतरिक्ष यात्रियों ने इन चंद्र अभियानों में भाग लिया, जिनमें से तीन दो-दो बार मिशन में शामिल हुए. कुल 12 अंतरिक्ष यात्री चाँद पर उतरे (जिनमें से 9 अभी जीवित हैं). ये बारह के बारह अमरीकी थे. इनमें से मात्र एक वैज्ञानिक था.

इसी तरह एक लेज़र दर्पण प्रयोग भी 40 साल से लगातार जारी है. दरअसल आर्मस्ट्राँग और एल्ड्रिन ने चाँद पर एक दर्पण रख छोड़ा था जिस पर टेक्सस के मैकडोनल्ड लेज़र रेन्जिंग स्टेशन के वैज्ञानिक लेज़र किरणें परावर्तित करा के चंद्रमा की कक्षा की माप लेते हैं. इस अध्ययन की सबसे बड़ी उपलब्धि ये जानकारी है कि चाँद हर साल धरती से ढाई इंच दूर खिसकता जा रहा है. लेकिन इसी हफ़्ते सरकार ने मैकडोनल्ड लेज़र रेन्जिंग स्टेशन के वैज्ञानिकों को सालाना सवा लाख डॉलर की लागत वाले इस प्रयोग को रोकने की सूचना दी है. (हालाँकि दर्पण तो चाँद पर आगे भी रहेगा ही, सो किसी अन्य प्रयोगशाला वाले ज़रूरत पड़ने पर लेज़र प्रयोग कर सकेंगे.)
अब फिर से मूल सवाल पर आते हैं कि आर्मस्ट्राँग ने मानवता की जिस छलाँग की बात की थी, क्या वो छलाँग लग पाई? जवाब है- बिल्कुल नहीं. सच्चाई तो ये है कि अपोलो अभियान के लिए विकसित ज़्यादातर प्रौद्योगिकी उसके बाद के अभियानों में काम नहीं आ सकी. राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी ने जब 1961 में दशक भर के भीतर चाँद पर मानव को उतारने का भरोसा दिलाया था तब तक अमरीका को कुल 20 मिनट की मानव अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव था. ऐसे में नासा अंतरिक्ष संस्था की सारी ऊर्जा केनेडी के सपने को साकार करने में लगा दी गई. इसके लिए मुख्य तीन साधन- सैटर्न V रॉकेट, अपोलो कैप्सूल और चंद्र मॉड्यूल- इस तरह डिज़ायन किए गए कि उनका किसी अन्य प्रकार के अंतरिक्ष अभियान के लिए फ़ायदा नहीं उठाया जा सकता था.
अपोलो की जगह मानव को अंतरिक्ष में भेजने के काम में लगाए गए अंतरिक्ष शटल मौत का वाहन साबित हुए. दो शटल दुर्घटनाओं में भारतीय मूल की कल्पना चावला समेत कुल 14 अंतरिक्ष यात्री काल के गाल में समा गए. अंतरिक्ष शटलों को अगले साल सेवामुक्त किया जा रहा है. उसके बाद क्या होगा ये कहा नहीं जा सकता है क्योंकि राष्ट्रपति बराक ओबामा मानव को अंतरिक्ष अभियानों पर भेजने को लेकर ज़्यादा उत्साहित नहीं दिखते हैं. हाँ इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि मौजूदा अंतरिक्ष शटलों को रिटायर किए जाने के बाद कम-से-कम कुछ समय के लिए अमरीका के पास अंतरिक्ष में यात्री भेजने के लिए अपना कोई साधन नहीं होगा, क्योंकि डिज़ायन किए जा रहे नए रॉकेट 2016 तक ही(यदि ओबामा प्रशासन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश प्रशासन की इस योजना को पूरा समर्थन दे पाया) तैयार हो सकेंगे.

कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि अपोलो 11 अभियान की सफलता ने सुदूर अंतरिक्ष में मानव को भेजने की संभावनाओं को कई दशकों के लिए पीछे धकेल दिया. सौभाग्य से चाँद एक बार फिर मानव को अपनी ओर बुलाने में सफल होता दिख रहा है. ख़ुशी की बात ये भी है कि इस बार अमरीका के साथ-साथ यूरोप, जापान, चीन और भारत भी चाँद की ओर हाथ बढ़ाते हुए उचक रहे हैं!