मंगलवार, सितंबर 09, 2008

...इसलिए धरती नष्ट नहीं होगी!

लार्ज हैडरॉन कोलाइडर सुरंग का एक हिस्सापिछले कुछ महीनों से जैसे-जैसे अब तक के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग की उल्टी गिनती ने ज़ोर पकड़ी, इस प्रयोग के चलते ब्लैकहोल उत्पन्न होने और उसमें धरती के समा जाने की प्रलयवाणी भी तेज़ हो गई. और आज 10 सितंबर 2008 को फ़्रांस-स्विटज़रलैंड की सीमा पर एक भूमिगत प्रयोगस्थल में जब Large Hadron Collider को स्टॉर्ट किया जाएगा, तब जाकर शायद महाप्रलय का गीत गा रहे मीडिया को चैन आए कि अरे धरती तो पहले की ही तरह मस्त घूम रही है.

इस सारे शोर के केंद्र में है European Organization for Nuclear Research जिसे कि फ़्रेंच भाषा में इसके पुराने नाम Conseil Européen pour la Recherche Nucléaire के आधार पर आज भी CERN/सर्न के नाम से जाना जाता है.

सर्न यों तो उपनाभिकीय या Particle Physics के क्षेत्र में 1954 से काम कर रहा है, और अपने मुख्य अनुसंधान क्षेत्र में कई बेहतरीन उपलब्धियाँ हासिल करने के साथ-साथ हमें सूचना क्रांति संभव कराने वाला वर्ल्ड वाइड वेब(www) दे चुका है.

लेकिन आज लंदन से बेतिया और काठमांडू तक आमलोगों की सर्न में रूचि इसकी महामशीन Large Hadron Collider या LHC को लेकर है. इसके नाम से ही ज़ाहिर हो जाती है इसकी प्रकृति. ज़मीन के 100 मीटर नीचे 27 किलोमीटर परिधि वाली वृताकार महामशीन को Large तो कहा ही जाएगा. ये एक Collider है यानि टक्कर कराने वाला. इसमें टक्कर कराई जाएगी Hadrons की, यानि क़्वार्क से बने प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे नाभिकीय पदार्थों की. बुधवार को जिस प्रयोग का शुभारंभ हो रहा है, वो प्रोटॉनों को टकराने के लिए है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लगभग प्रकाश की गति से कराए जाने वाली इस महाभंजक टक्कर से ब्रह्मांड की बनावट जानने में मदद मिलेगी, अस्तित्व का कुछ अंदाज़ा लग सकेगा कि आख़िर शुरुआत कैसे हुई होगी.

इस महत्वपूर्ण प्रयोग से मिनी-ब्लैकहोल बनने और उसमें धीरे-धीरे सब कुछ, यहाँ तक कि पूरी धरती समा जाने की अफ़वाह कहाँ से शुरू हुई पता लगाना मुश्किल है. हालाँकि इसमें जर्मनी के Tubingen University में सैद्धांतिक रसायन विज्ञान के प्रोफ़ेसर ओट्टो ई रोज़लर का नाम प्रमुखता से आता है. प्रो. रोज़लर ने ये बताने की कोशिश की, कि कैसे सर्न के LHC प्रयोग के दौरान मिनी-ब्लैकहोल का निर्माण हो सकता है, जो कि संभव है पैदा होने के बाद स्वत: ख़त्म न हो और लगातार बढ़ता जाए. ये तो सब जानते हैं कि ब्लैकहोल अपनी महागुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सब कुछ डकार सकता है. प्रकाश तक बाहर नहीं आ पाता है उसकी पकड़े, और इसीलिए तो वो ब्लैक है, अप्रकाशित है, अबूझ है.

प्रो. रोज़लर अपने सिद्धांत से इतने संतुष्ट नज़र आते हैं कि उन्होंने सर्न के LHC प्रयोग को रुकवाने के लिए यूरोपीय मानवाधिकार अदालत का दरवाज़ा तक जा खटखटाया. दुहाई दी ज़िंदगी जीने के अधिकार की. प्रो.रोज़लर के अलावा उनके जैसे कुछ अन्य वैज्ञानिकों के साथ-साथ कुछ शुद्ध षड़यंत्रदर्शियों ने भी प्रयोग स्थगित कराने के लिए क़ानूनी पेंच लगाए. लेकिन सौभाग्य से इनमें से किसी का दाँव चल नहीं पाया.

मेरे समान ही बहुसंख्य लोग इस बात से आश्वस्त हैं कि गड़बड़ी की आशंका नहीं के बराबर है. आश्वस्त कराने में सर्न के प्रेस बयानों से ज़्यादा उन भौतिकविदों की भूमिका रही है जो LHC परियोजना से सीधे तौर पर जुड़े हुए भी नहीं हैं.

सबसे पहले बात करें मशहूर भौतिकविद प्रोफ़ेसर स्टीफ़न हॉकिंग की. पिछले दिनों छपी 'द बिग बैंग मशीन' नामक एक पुस्तिका के प्राक्कथन में प्रो.हॉकिंग कहते हैं-

प्रोफ़ेसर स्टीफ़न हॉकिंग"कुछ लोगों ने मुझसे पूछा है कि क्या LHC से कोई विनाशकारी या अकल्पनीय परिणाम निकल सकता है. निश्चय ही स्थानकाल से जुड़े कुछ सिद्धांतों में कहा गया है कि नाभिकीय पदार्थों की महाटक्कर में सूक्ष्म ब्लैकहोल उत्पन्न हो सकते हैं. यदि ऐसा होता भी है, तो मेरे ही द्वारा प्रतिपादित एक सिद्धांत के अनुसार ऐसे ब्लैकहोल उपनाभिकीय पदार्थों का विकिरण करते हुए विलीन हो जाएँगे. यदि LHC में ब्लैकहोल दिखे तो ये भौतिकी के लिए ये एक नए काल की शुरुआत होगी, और संभव है अपने सिद्धांत के साबित होने पर मैं नोबेल पुरस्कार भी जीत जाऊँ. लेकिन कम-से-कम मुझे इसकी कोई उम्मीद नज़र नहीं आती."

न्यूयॉर्क के सिटी यूनीवर्सिटी मे सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफ़ेसर और Physics of the Impossible नामक किताब के लेखक प्रो. मिशियो काकु कहते हैं-

"इसी तरह मानव जाति के समाप्त होने का डर पैदा किया गया था 1910 में. तब मीडिया ने सही रिपोर्टिंग की थी कि धरती एक अन्य ब्रह्मांडीय पिंड के संपर्क में आने वाला है जो कि ज़हरीली गैसों से भरा है. बात धरती के हैली पुच्छल तारे की गैसीय पूँछ से होकर गुजरने की थी. मीडिया में ये ख़बर आनी शुरू होते ही प्रलय की भविष्यवाणियाँ करने वाले लोग जहाँ-तहाँ नज़र आने लगे. मीडिया ने सही रिपोर्ट ज़रूर दी थी, लेकिन रिपोर्ट अधूरी थी. ये नहीं बताया गया था कि धूमकेतु की पूँछ इतनी झीनी है कि उसकी गैसें और अन्य तमाम पदार्थ सूटकेस के आकार के किसी बर्तन में समा जाएँ. यानि गैसों के ज़हरीली होने के बाद भी धरती के जीवों पर उसका कोई असर नहीं होगा. अंतत: ऐसा ही हुआ. हैली आया और गया, धरती को खरोंच तक लगाए बिना."

प्रो. मिशियो काकु"हैली धूमकेतु वाले मामले की तरह ही इस बार भी मीडिया ने सही जानकारी दी कि LHC प्रयोग में सूक्ष्म ब्लैक़होल बन सकते हैं. मीडिया ने ब्लैकहोल की भयावह ताक़त का भी तार्किक ब्यौरा दिया. लेकिन इस मामले में भी मीडिया ने अधूरी तस्वीर पेश की. मीडिया इस बात को दबा गया कि प्रकृति में उपनाभिकीय पदार्थ कहीं बड़ी मात्रा में और कहीं ज़्यादा ऊर्जा के साथ उत्पन्न होते रहते हैं, जिसकी किसी मानवीय प्रयोग में कल्पना भी नहीं की जा सकती है. नैसर्गिक रूप से सतत पैदा होते रहते उपनाभिकीय पदार्थ ब्रह्मांड के विशाल चुंबकीय और विद्युत क्षेत्रों से गुजर कर अतिशय ऊर्जावान बौछारों के रूप में अरबों वर्षों से धरती से टकरा रहे हैं."

"इसके अलावा LHC में यदि ब्लैकहोल पैदा भी हुए तो वे उपनाभिकीय स्तर के यानि इलेक्ट्रॉन या प्रोटॉन के आकार से तुलना करने लायक़ होंगे. इसमें कितनी कम ऊर्जा होगी उसका अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि यदि LHC को सैंकड़ो वर्षों तक लगातार चलाया गया तो भी इससे पैदा हुए असंख्य सूक्ष्म ब्लैकहोल मिल कर भी एक बल्ब जलाने लायक़ ऊर्जा नहीं पैदा कर सकेंगे."

"यों तो LHC में उत्पन्न उपनाभिकीय पदार्थों में खरबों इलेक्ट्रॉन वोल्ट की ऊर्जा होगी, लेकिन उनके बीच ब्लैकहोल पैदा हुए तो भी अधिकतम प्रति सेकेंड एक की दर से. उनका आकार इतना छोटा होगा कि उससे किसी तरह का ख़तरा हो ही नहीं सकता."

"ये भी बात ग़ौर करने की है कि LHC में पैदा कोई भी ब्लैकहोल बिल्कुल अस्थिर होगा, जिसका तत्काल विलोप हो जाएगा. ऐसे ब्लैकहोल परस्पर मिल कर बड़ा होते जाने के बजाय विकिरण छोड़ते हुए एक-दूसरे दूर जाएँगे और अंतत: अपनी मौत मर जाएँगे, जैसा कि प्रो. स्टीफ़न हॉकिंग का सिद्धांत कहता है."

"यदि LHC में कोई सूक्ष्म ब्लैकहोल पैदा हुआ तो उसके धरती के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में आने की भी संभावना नगण्य ही है. ऐसा हुआ तो भी वो सूक्ष्म ब्लैकहोल तुरंत अपनी मौत मर जाएगा, विलीन हो जाएगा."

"वेर्नर हाइज़नबर्ग के अनिश्चितता के सिद्धांत के अनुसार कुछ भी घटित होने की अतिक्षीण संभावना हमेशा रहती है. यानि इस असत्यापित क़्वांटम सिद्धांत के अनुसार तो LHC के प्रयोग के दौरान आग उगलने वाले ड्रैगन भी पैदा हो सकते हैं. लेकिन वास्तविकता के धरातल पर विचार करें तो ऐसा होने के आसार कम-से-कम इस ब्रह्मांड के रहते तो नहीं ही हैं."

प्रलयवादियों अभी करो इंतज़ार

प्रो. स्टीफ़न हॉकिंग और प्रो. मिशियो काकु के समझाने से भी यदि कोई प्रलयवादी नहीं मानता हो, तो उसके लिए एक और तथ्य ये कि आज LHC को सिर्फ़ चालू किया जा रहा है.
हिग्स बोसॉन की कल्पनाजिस परियोजना को पूरा करने में दो दशक से ज़्यादा लगे हों, भला उसमें पहले ही दिन मुख्य प्रयोग करने की बात की कल्पना भी कैसे की जा सकती है. पहले कुछ हफ़्ते तो ये देखने में ही गुजरेंगे कि लाखों कलपुर्ज़ों में से एक-एक ठीक से काम कर रहा है कि नहीं. फिर धीरे-धीरे प्रोटॉन धारा की गति बढ़ाई जाएगी. पूरी ऊर्जा यानि 14 TeV या टेट्राइलेक्ट्रॉनवोल्ट की ऊर्जा के साथ प्रोटॉन-प्रोटॉन टक्कर का समय आने में अभी महीनों लगेंगे. उस समय जहाँ दुनिया भर के भौतिकविद कथित ईश्वरीय कण या हिग्स बोसॉन उत्पन्न होने की उम्मीद करेंगे, वहीं प्रलयवादियों का मिनी-ब्लैकहोल का भय चरम स्थिति में होगा. यानि हर तरह से समझाने के बावजूद नहीं मानने वाले प्रलयवादियों को भी तब तक के लिए चिंतामुक्त रहना चाहिए.

इंडियन कनेक्शन

यहाँ एक भारतीय के रूप में उल्लेख करना ज़रूरी है कि सर्न परियोजना में अपेक्षाकृत छोटे स्तर पर ही सही, भारतीय वैज्ञानिकों का भी योगदान है. और, जिस ईश्वरीय कण 'हिग्स बोसॉन' की उम्मीद की जा रही है उसमें बोसॉन को महान भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस का नाम मिला है. जबकि हिग्स ब्रितानी वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम से आया है. वैज्ञानिक आशा लगाए बैठे हैं कि यदि अभी तक मात्र सिद्धांत के रूप में मौजूद 'हिग्स बोसॉन' प्राप्त होता है, तो उसके रूप में क़्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों की ग़ायब कड़ी मिल जाएगी. इससे न सिर्फ़ ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में जानकारी का दायरा अचानक बहुत बढ़ जाएगा, बल्कि कई अधूरे क़्वांटम सिद्धांतों को भी पूरा किया जा सकेगा.

9 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत सारी जानकारियाँ एक साथ मिलीं। आप का आभार।

Smart Indian ने कहा…

चलो जान में जान आयी! आभार!

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत जानकारी मिली। गलतफहमियां दूर हुईं। हमलोगों के मन में यह धारणा थी कि यह मात्र एक सेकण्ड या मिनट भर का प्रयोग है और तुरंत ही इसका प्रभाव पृथ्वी पर पड़ जाएगा। या तो वैज्ञानिकों को कुछ रहस्य ज्ञात हो पाएंगे या फिर प्रलय का काला बुधवार ही होगा।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

यह पोस्ट तो हिन्दी ब्लॉगजगत की उपलब्धि है। बहुत शानदार।
स्टार चयन पोस्ट!

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत शानदार लेख।
तभी तो हम आपके मुरीद है। आप बहुत अच्छा लिखते हो, पूरे होमवर्क के साथ।

काश! हम भी ऐसा कुछ लिख पाते। खैर आपका सानिध्य रहेगा तो वो दिन भी आ जाएगा। आपकी हर पोस्ट से कुछ नया सीखने को मिलता है।

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा आलेख!!बहुत बधाई.

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन लेख। कल इसे पढ़ा रात को। आज दुबारा पढ़कर तारीफ़ कर रहे हैं।

रवि रतलामी ने कहा…

तारीफेक़ाबिल, विषय पर परिपूर्ण, जानकारीपरक आइडियल आलेख.

Unknown ने कहा…

Ye prakriti ke Saath chhedchhad hai. Iskay gambhir parinaam bhugatanay padaepadaengay. Maanav sabhyata ne hazaro varshon main itnay avishkaar nahi kar paaya jo pichhlay pandrah varshon main huey hai . ...kya manav kisi alean sabhyata ke sampark main hain?