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लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन 29 फ़रवरी इसलिए महत्वपूर्ण है कि ये प्रकृति द्वारा...सौर मंडल और इसके नियमों के सौजन्य से आता है. ये धरती के सूर्य की परिक्रमा करने से जुड़ा हुआ है.
जैसा कि स्कूलों में शुरू से ही बताया जाता है, धरती को सूरज का एक चक्कर लगाने में 365.242 दिन लगते हैं. मतलब एक कैलेंडर वर्ष से चौथाई दिन ज़्यादा. इसीलिए हर चौथे साल कैलेंडर में एक दिन अतिरिक्त जोड़ना पड़ता है. इस बढ़े दिन वाले साल को लीप वर्ष या अधिवर्ष कहते हैं. ये अतिरिक्त दिन ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप वर्ष का 60वाँ दिन बनता है, यानि 29 फ़रवरी.
यदि 29 फ़रवरी की व्यवस्था नहीं हो तो हम हर साल प्रकृति के कैलेंडर से लगभग छह घंटे आगे निकल जाएँगे, यानि एक सदी में 24 दिन आगे. ऐसा होता तो मौसम को महीने से जोड़ कर रखना मुश्किल हो जाता. मसलन यदि लीप वर्ष की व्यवस्था ख़त्म कर दें तो आजकल जिसे मई-जून की सड़ी हुई गर्मी कहते हैं वैसी 'सूरज तपता धरती जलती' की स्थिति 500 साल बाद दिसंबर में आएगी.
ईसा पूर्व 46 में जूलियस सीज़र द्वारा लाए गए जूलियन कैलेंडर में लीप वर्ष की व्यवस्था की गई. उन दिनों कैलेंडर का अंतिम महीना फ़रवरी होता था, जोकि सबसे छोटा महीना भी था. इसलिए अतिरिक्त दिन फ़रवरी में जोड़ा गया. जूलियस सीज़र ने मौसम को महीने से ठीक-ठीक मिलाने की कोशिश में उस साल यानि 46BC में कुल 90 अतिरिक्त दिन भी जोड़े..यानि कुल 445 दिनों का वर्ष जिसे ख़ुद सीज़र ने 'भ्रम का अंतिम वर्ष' कहा था.
हालाँकि 42BC में पहला लीप वर्ष अपनाए जाने के बाद भी भ्रम बना रहा, जब जूलियस सीज़र के किसी अधिकारी की ग़लती के कारण हर तीसरे साल को लीप वर्ष बनाया जाने लगा. इसे 36 साल बाद ठीक किया जूलियस के उत्तराधिकारी ऑगस्टस सीज़र ने. उसने तीन लीप वर्ष बिना किसी अतिरिक्त दिन जोड़े गुजर जाने दिए और 8AD से दोबारा हर चौथे साल लीप वर्ष को नियमपूर्वक लागू करना सुनिश्चित किया.
लेकिन जूलियन कैलेंडर को लागू किए जाने के बाद भी एक कमी रह गई थी. जिसे दूर किया लुइजि गिग्लियो ने. गिग्लियो ने 1580 के आसपास ये सिद्ध किया कि प्रकृति की घड़ी के साथ पूरी तरह ताल मिला कर चलने के लिए हर चौथे वर्ष एक दिन जोड़ने की व्यवस्था में कुछ अपवाद लगाने होंगे. उसने कहा कि कोई वर्ष जो कि 4 से विभाजित होता हो, उसमें फ़रवरी 29 दिन का होगा. लेकिन यदि 4 से विभाजित साल 100 से भी विभाजित होता है तो उसमें फ़रवरी 28 दिन का ही होगा. इसके ऊपर गिग्लियो ने एक और व्यवस्था दी, वो ये कि 4 और 100 से विभाजित होने वाला साल यदि 400 से भी विभाजित होता हो तो उसे लीप वर्ष माना जाए. इसीलिए 1700, 1800 और 1900 जहाँ सामान्य वर्ष माना गया, वहीं 2000 को लीप वर्ष का सम्मान मिला.
पोप ग्रेगोरि के आदेश के बाद कैथोलिक देशों ने संशोधित जूलियन कैलेंडर या नए ग्रेगोरियन कैलेंडर को 1582 में लागू किया. नए कैलेंडर में साल का अंतिम महीना फ़रवरी नहीं, बल्कि दिसंबर निश्चित किया गया.(हालाँकि लीप वर्ष का अतिरिक्त दिन फ़रवरी के लिए ही रहने दिया गया.) उस साल नए कैलेंडर लागू करने की प्रक्रिया में 5 से 14 अक्टूबर की तारीख़ ग़ायब करनी पड़ी. इसी तरह जब 1752 में ब्रिटेन और उसके अधीनस्थ देशों ने अंतत: ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया तो उन्हें उस साल 3 से 13 सितंबर की तिथियाँ हटानी पड़ीं.
लेकिन इसके बाद भी सर्वमान्य ग्रेगोरियन वर्ष अभी सौर वर्ष से 27 सेकेंड बड़ा है. मतलब कैलेंडर में कोई सुधार नहीं किया गया तो दस हज़ार साल बाद हम प्रकृति के कैलेंडर से तीन दिन आगे होंगे. यानि इससे बचने के लिए कोई 3236 साल बाद एक बार फ़रवरी को 30 दिन का बनाना पड़ सकता है.

क़ानून में 29 फ़रवरी को लेकर बड़ी ही अज़ीबोग़रीब स्थिति है. कई देशों में ऋण से जुड़े अदालती फ़ैसलों में इसके अस्तित्व तक को नकार दिया गया है. इस दिन पैदा हुए लोगों (लीपर्स या लीपलिंग्स) ने हर साल अपना जन्मदिन मनाने के लिए एक अतिरिक्त जन्मदिन तय कर रखा होता है- आमतौर पर 28 फ़रवरी या 1 मार्च. (अपने स्वर्गीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी 29 फ़रवरी को ही पैदा हुए थे.)
नौकरीपेशा लोगों को लीप वर्ष में एक अतिरिक्त दिन काम करना पड़ता है, वो भी बिना किसी अतिरिक्त वेतन के. शायद इसीलिए ब्रिटेन में नौकरीपेशा लोगों ने 29 फ़रवरी के बदले एक दिन का अतिरिक्त अवकाश घोषित करने के लिए प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर एक माँग पत्र डाला है.
ये तो हुई लीप वर्ष की बात. यानि एक ऐसा प्रयास जो सूरज के साथ क़दम मिला कर चलने की कोशिश है. लेकिन एक पचड़ा लीप सेकेंड का भी है. ये हमें प्रकृति से भी कहीं ज़्यादा सटीक 'टाईमकीपर' बनाने के दावे के साथ शुरू किया गया है. लीप सेकेंड के पचड़े पर चर्चा फिर कभी.