हम सोते क्यों हैं? लॉस एंजिल्स में दुनिया की पहली नींद प्रयोगशाला की स्थापना के 80 साल बीत जाने और सो रहे लोगों के मस्तिष्क के हरसंभव परीक्षण के बाद भी इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है.
सोना और सपने देखना मानव शरीर के बड़े रहस्यों में शामिल हैं. नींद जीवन के लिए ज़रूरी है, लेकिन ये अब भी एक अबूझ पहेली बनी हुई है.
नींद के कारण ही जीवन का एक बड़ा हिस्सा निठल्ला बीतता है. हम अपनी ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्सा सोते हुए गुजार देते हैं. कल्पना कीजिए यदि नींद की ज़रूरत बिल्कुल नहीं होती,...तब एक औसत ज़िंदगी में 25 से 30 वर्षों के बराबर अतिरिक्त समय कामकाज़ के लिए उपलब्ध होता.
अधिकांश लोगों को लगता है कि उन्हें पूरी नींद मयस्सर नहीं होती. इनमें वैसे लोग भी शामिल हैं जिनके पास आलीशान घर और आरामदायक गद्दे हैं. नींद पूरी नहीं होने की शिकायत इतनी आम है कि डॉक्टरों ने नींद के बारे में अत्यधिक चिंता करने को ही बीमारी की श्रेणी में डाल दिया है. डॉक्टरों की मानें तो नींद का सबसे बड़ा शत्रु है नींद पूरी नहीं होने की चिंता.
किसी एक रात पूरी नींद नहीं मिलना कोई चिंता की बात नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिकांश व्यक्ति अधूरी नींद की भरपाई अगले दिन कर लेता है. लेकिन लगातार अनिद्रा की बात निश्चय ही चिंताजनक है. लगातार दो दिन बिना सोए बिताने का अनुभव याद करें, तो इस बात का भलीभाँति अहसास हो जाएगा कि नींद कितनी ज़रूरी है.
न्यूयॉर्क के डिस्क जॉकी पीटर ट्रिप ने जनवरी 1959 में पोलियो उपचार के अनुसंधान के वास्ते धन जुटाने के लिए बिना सोए ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताने की कोशिश की. ट्रिप 201 घंटे तक नींद को धत्ता बताने में सफल रहा. लेकिन इस दौरान उसकी दशा विक्षिप्तों जैसी हो गई. इतने समय तक सोए बिना रहने के बाद भी वो जीवित तो रहा, लेकिन इस प्रयोग के बाद उसके चाल-चलन, बात-व्यवहार में हमेशा के लिए बदलाव आ गया. वह बाक़ी जीवन में बड़ा ही चिड़चिड़े स्वभाव वाला और असामान्य मनोदशा वाला व्यक्ति साबित हुआ. ट्रिप के रिकॉर्ड को 1964 में तोड़ा रैन्डी गार्डनर नामक एक व्यक्ति ने लगातार 11 दिन जग कर. गार्डनर भी जीवन भर चिड़चिड़ेपन का शिकार रहा.
नींद पर The Independent अख़बार में छपे एक विस्तृत लेख में कई बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं का कारण अनिद्रा को बताया गया है. इनमें चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर दुर्घटना और चैलेंजर स्पेस शटल दुर्घटना शामिल हैं. बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं की छोड़ भी दें तो अधिकतर सड़क दुर्घटनाओं का कारण, चालक के पूरी नींद नहीं लेने को माना जाता है.
नींद के पीछे भले ही ज़िंदगी का एक तिहाई हिस्सा 'बर्बाद' होता हो, लेकिन नींद के जिस हिस्से में सपने आते हों उसे बहुत ही क्रियाशील माना जाता है. पॉल मैकार्टनी ने दावा किया था कि उन्हें बीटल्स के हिट गाने 'येस्टर्डे' का आइडिया एक सपने से जगने के दौरान आया था. रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन ने एक बार कहा था कि डॉ. जेकल और मिस्टर हाइड की कहानी सोते हुए उनके दिमाग़ में आई थी. इसी तरह दिमित्री मेंडिलीव ने दावा किया था कि तत्वों की आवर्त सारणी का विचार तब उनके दिमाग़ में आया था, जब वे अपने डेस्क पर झपकी ले रहे थे.
आज हम 24/7 समाज में रहते हैं, जहाँ हमारी नींद शरीर की जैविक घड़ी से नहीं, बल्कि अलार्म घड़ी से, कृत्रिम प्रकाश से और क्षणिक उत्तेजना देने वाले रसायनों से निर्धारित होती है. इस समाज के एक बड़े वर्ग के लिए हर दिन छह से आठ घंटे की नींद एक ऐसी बात है, जिसका सपना मात्र ही देखा जा सकता है.
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2 टिप्पणियां:
नींद का कष्ट हमें भी है। पर इश्वर का शुक्र, आज तो नीद पूरी आयी है।
वैसे मुझे लगता है कि मेरी अनिद्रा का सम्बन्ध मेरे हाइपोथायराइडिज्म से भी है।
नींद् से संबंधित जानकारी अच्छी लगी। दुनिया की तमाम बड़ी दुर्घटनाओं का नींद से जरूर सम्बन्ध रहा होगा। रेल दुर्घटनायें और सड़क दुर्घटनायें भी नींद की कमी के चलते ही होती होंगी।
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