अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यह कह कर चौंका दिया है कि धरती को नुक़सान पहुँचाने में सक्षम अंतरिक्षीय पिंडों का समय रहते पता लगाने की क़ाबिलियत तो उसके पास है, लेकिन इस काम के लिए ज़रूरी धन उसके पास नहीं है. नासा की यह परेशानी वाशिंग्टन में Planetary Defense Conference में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में सामने आई है. सौर मंडल में अपनी कक्षाओं में घूमते या भटकते हुए धरती के पास आ सकने वाले ऐसे पिंडों(धूमकेतु भी शामिल) को वैज्ञानिकों ने Near-Earth Objects या 'निओ' नाम दिया है.
धरती को 20 हज़ार से ज़्यादा अंतरिक्षीय पिंडों से ख़तरा बताया जाता है. अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी का कहना है कि वर्ष 2020 तक वह इनमें से कम से कम 90 प्रतिशत का पता लगाने में सक्षम है, लेकिन इसके लिए ज़रूरी एक अरब डॉलर की राशि की व्यवस्था कर पाना उसके लिए संभव नहीं है. (मालूम रहे कि अमरीका इराक़ में इतना धन हर पखवाड़े ख़र्च कर रहा है.)
अंतरराष्ट्रीय खगोलविदों को सबसे ज़्यादा डर एपोफ़िस नामक उल्का पिंड को लेकर है. करीब 400 मीटर आकार के इस एस्टेरॉयड के 2036 में धरती के पास होने की गणना की गई है. इसके धरती से टकराने की आशंका 45,000 में एक मानी जा रही है. यदि मौजूदा अनुमानों के मुताबिक यह किसी आबादी वाले इलाक़े पर नहीं, बल्कि प्रशांत महासागर में गिरता है तो भी इससे होने वाले नुक़सान की कल्पना नहीं की जा सकती. बहुत कम विनाश हुआ तो भी प्रशांत महासागर से जुड़े कई देश तबाह हो जाएँगे, और सुनामी के चलते अमरीका के पश्चिमी तट पर मौत का तांडव होगा.
इस सप्ताह वाशिंग्टन में हुए सम्मेलन में जिन बातों पर विचार किया गया उनमें प्रमुख थे- किस आकार के निओ पिंडों को धरती के लिए वास्तविक ख़तरा माना जाए, धरती से भिड़ने को तत्पर अंतरिक्षीय पिंडों से किन उपायों से पार पाया जा सकता है और यदि ऐसी कोई टक्कर टालने से भी नहीं टल रही हो तो लोगों को ख़तरे की पूरी जानकारी दी जाए या नहीं!
धरती से टक्कर लेने को तैयार दिख रहे किसी अंतरिक्षीय पिंड से निपटने के जिन तरीक़ों की चर्चा अक्सर की जाती हैं, वे हैं- मिसाइल प्रहार से पिंड को नष्ट कर देना; उसके क़रीब परमाणु बम फोड़ कर उसकी राह बदल देना; धरती तक पहुँचने से बरसों पहले पिंड के ऊपर एक विशालकाय यान उतार कर उसे राह से भटकाने का प्रयास करना; या उस पर शक्तिशाली लेज़र बीम डाल कर उसकी कक्षा बदलने की कोशिश करना.
टक्कर मारने का विकल्प सबसे आसान, लेकिन सबसे ख़तरनाक है क्योंकि टक्कर के बाद पिंड के टुकड़े भी धरती की दिशा में बढ़ते रह सकते हैं. या टक्कर धरती से ज़्यादा दूर नहीं हुई तो अतिरिक्त ऊर्जा का प्रवाह धरती तक पहुँच कर नुक़सान कर सकते हैं. एस्टेरॉयड को दूर ठेलने का उपाय सबसे भरोसेमंद माना जाता है, बशर्ते संभावित टक्कर से कम से कम एक दशक पहले ये प्रयास शुरू कर दिया जाए.
लेकिन इन उपायों को आजमाने के लिए ज़रूरी है कि समय रहते सभी ख़तरनाक निओ पिंडों का पता लगाया जाए. वैज्ञानिकों का मानना है कि 40 मीटर आकार तक के पिंड धरती के वायुमंडल को पार करते-करते ही स्वाहा हो जाते हैं. इससे बड़े पिंड को वायुमंडल नहीं रोक पाएगा. एक किलोमीटर आकार तक के निओ पिंड टक्कर वाले इलाक़े में कहर बरपा सकते हैं. इससे भी बड़े पिंड की टक्कर का प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पूरी धरती पर पड़ेगा. और वैज्ञानिकों की ही मानें तो एक किलोमीटर से बड़े आकार के 1100 निओ पिंडों का अस्तित्व तो ज़रूर ही होगा.
नासा के ताज़ा आंकड़ों की बात करें तो फ़रवरी महीने के अंत तक कुल 4566 निओ पिंड खोजे जा चुके थे, जिनमें से 705 का आकार एक किलोमीटर से बड़ा है. खोजे गए निओ पिंडों में से 847 को ख़तरनाक एस्टेरॉयड के रूप में चिन्हित किया गया है.
धरती को संभावित विनाश(डायनोसोर किसी एस्टेरॉयड के धरती से टकराने के कारण ही विलुप्त हुए) से बचाने के लिए पहला काम है सारे निओ पिंडों का पता लगाना. ख़ुशी की बात है कि संयुक्तराष्ट्र ने इस मामले में पहल कर दी है. इसी साल मई में स्ट्रॉसबर्ग में एक सम्मेलन में एस्टेरॉयड के धरती से टक्कर की आशंका के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि की रूपरेखा तय की जाएगी. आशा है, सम्मेलन में नासा के धनाभाव के बहाने पर भी विचार किया जाएगा.
गुरुवार, मार्च 08, 2007
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