शनिवार, जनवरी 27, 2007
हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति
आधुनिक भारत के महान साहित्यकारों में से एक कमलेश्वर जी हमारे बीच नहीं रहे. 27 जनवरी 2007 को उन्होंने अंतिम साँस ली.
कमलेश्वर जी संभवत: भारत के एकमात्र साहित्यकार थे जिन्हें विशुद्ध साहित्य और फ़िल्म, दोनों ही क्षेत्रों में पूरी सफलता मिली. साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने महती काम किया था.
कमलेश्वर जी ने अपनी रचनाओं में कस्बाई और महानगरीय ज़िंदगी, दोनों ही को बहुत बारीकी से उतारा है.
कमलेश्वर जी ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में काम किया था, लेकिन कहानी की विधा से उन्हें विशेष लगाव था. कहानियों के अलावा उन्हें अपनी कृतियों में उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' बेहद पसंद था.
अभी-अभी उन्होंने इंदिरा गांधी के जीवन पर एक फ़िल्म की पटकथा पूरी की थी. अंतिम दिन तक वो लेखन से जुड़े रहे.
उनको श्रद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत है पिछले साल डॉयचे वेले की नन्दिनी से उनकी बेबाक बातचीत का ऑडियो.
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4 टिप्पणियां:
कमलेश्वर जी के निधन से हिन्दी साहित्य, फिल्म, टेलीविजन और पत्रकारिता को अपूरणीय क्षति हुई है। वह इस दुनिया को छोड़ कर चले गए हैं लेकिन अपनी रचनाओं में वह जो अपनी अमिट छाप कर गए हैं उससे पाठकों को हमेशा नया सोचने और समझने के लिए प्रेरणा मिलती रहेगी। परमपिता से हम दिवंगत आत्मा को परम मुक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
हार्दिक श्रृंद्धाजली एवं नमन.
कमलेश्वर जी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजली !
हाल ही मे मैने उनकी कालजयी रचना "कितने पाकिस्तान' पढी थी।
वे एक जमीन से जुडे महान लेखक थे। वे अपनी रचनाओ के द्वारा हमेशा अमर रहेंगें।
कमलेश्वर जी को मेरी श्रद्धांजली !
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