रविवार, अक्टूबर 15, 2006

शतरंज का अविवादित बादशाह क्रैमनिक

टॉयलेटगेट के कारण बिना खेले एक मैच में पराजित करार दिए जाने के बाद भी आख़िरकार रूस के व्लादिमीर क्रैमनिक ही अजेय बन कर निकले. रूसी गणतंत्र कलमीकिया की राजधानी इलिस्ता में संपन्न पहली फ़िडे-पीसीए संयुक्त विश्व चैम्पियनशिप में क्रैमनिक ने बुल्गारिया के वेसेलिन तोपालोव को चौथे और अंतिम टाईब्रेकर में हरा कर ख़िताब अपने नाम कर लिया.

बारह नियमित मैचों के बाद दोनों खिलाड़ी 6-6 से बराबरी पर थे. लेकिन टाईब्रेकर में क्रैमनिक 2.5-1.5 से आगे रहे और अविवादित विश्व चैम्पियन बने. पहली बार ख़िताब का फ़ैसला टाईब्रेकर से हुआ, वरना अब तक नियमित मैचों में मुक़ाबला बराबरी पर रहने पर ख़िताब पूर्व चैम्पियन के पास ही रह जाता था.

क्रैमनिक 2000 में कास्पारोव को हराने के बाद से शतरंज के क्लासिक विश्व चैम्पियन तो माने जाते थे, लेकिन अनधिकृत या बेताज बादशाह. अधिकृत चैम्पियन तोपालोव ही थे.

दरअसल क्रैमनिक ने शतरंज की मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय संस्था फ़िडे के नेतृत्व को मानने से इनक़ार कर शतरंज के तत्कालीन बेताज बादशाह और पीसीए यानि पेशेवर शतरंज संघ के संस्थापक कास्पारोव को चुनौती दी थी, और उन्हें हराया था. जबकि दूसरी तरफ़ नियमित विश्व चैम्पियनशिप में पिछले साल तोपालोव विजेता बन कर सामने आए थे.(भारत के विश्वनाथन आनंद उपविजेता रहे थे.)अंतरराष्ट्रीय शतरंज के 13 साल के विभाजन को पाटने के लिए ही इस बार कलमीकिया में दोनों मौजूदा विश्व चैम्पियनों के बीच मुक़ाबला कराया गया था, ताकि शिखर पर एक ही खिलाड़ी रहे.

तो क्या अगले साल मेक्सिको में होने वाली नियमित विश्व चैम्पियनशिप में गत विजेता तोपालोव की जगह क्रैमनिक पहुँचेंगे ख़िताब की रक्षा के लिए? यदि मेक्सिको में होने वाली प्रतियोगिता की आधिकारिक वेबसाइट की मानें तो ऐसा ही होगा. वेबसाइट पर दो दिन पहले तक जहाँ तोपालोव का नाम था, वहाँ अब क्रैमनिक विराजमान हैं.

लेकिन अंतरराष्ट्रीय शतरंज की दुनिया इतनी सीधी भी नहीं है. वहाँ ढाई घर कूदने वाली चालें अक्सर देखने को मिलती हैं. अगले साल की निर्धारित विश्व चैम्पियनशिप की राह में कम-से-कम दो पेंच तो अभी ही दिख रहे हैं. पहली बात तो ये कि क्रैमनिक ने अभी तक खिताब की रक्षा के लिए मेक्सिको में खेलने की हामी ही नहीं भरी है. और, फ़िडे और उसकी प्रतियोगिताओं के प्रति क्रैमनिक कितनी बेरूख़ी रखते रहे हैं, वो जगजाहिर है. ऊपर से क्रैमनिक अभी ये भी नहीं कह रहे कि एक मैच में खेले बिना उन्हें पराजित घोषित किए जाने के फ़ैसले पर वो फ़िडे को अदालत में नहीं घसीटेंगे!

दूसरा पेंच ये कि तोपालोव ने क्रैमनिक को अगले साल विश्व ख़िताबी मुक़ाबले में चुनौती देने के संकेत दिए हैं. बुल्गारिया वापस लौटने पर तोपालोव के मैनेजर दनाइलोव ने पत्रकारों को बताया कि मौजूदा फ़िडे नियमों के अनुसार ख़िताबी टक्कर में पराजित खिलाड़ी विजेता को चुनौती दे सकता है, बशर्ते वो 15 लाख यूरो की पुरस्कार राशि का इंतज़ाम करे. दनाइलोव ने कहा कि वह जल्दी ही पुरस्कार राशि के लिए प्रायोजकों को जुटाना शुरू कर देंगे. हालाँकि, दनाइलोव इस बात का जवाब नहीं दे रहे हैं कि फ़िडे संयुक्त चैम्पियनशिप 2006 के विजेता क्रैमनिक को अगले साल मेक्सिको में चैम्पियनशिप के हैसियत से खेलने से किस आधार पर रोक सकता है?

ख़ैर, ये तो हुई आगे की बात. पीछे मुड़कर देखें कि आख़िरकार टॉयलेटगेट का रहस्य क्या था? तोपालोव का दल तो अब भी यही कह रहा है कि मैच के दौरान क्रैमनिक के बार-बार टॉयलेट जाने का साफ़ मतलब था कि वहाँ कुछ था जिसकी सहायता रूसी खिलाड़ी को मिल रही थी. लेकिन अविवादित विश्व विजेता बनने के दो दिनों बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए क्रैमनिक ने आरोप को बकवास बताया है. उनका कहना है कि चहलक़दमी करने से मैच के दौरान एकाग्रता बनाए रखने में उन्हें मदद मिलती है. और, चूँकि उन्हें मिला रेस्टरूम छोटा था सो वे चहलक़दमी करते हुए आगे टॉयलेट तक चले जाते थे!

रविवार, अक्टूबर 08, 2006

विश्व शतरंज चैम्पियनशिप या टॉयलेटगेट

क्रैमनिक और तोपालोवइन दिनों कलमीकिया में शतरंज की विश्व चैम्पियनशिप चल रही है. अभी 23 सितंबर को शुरू हुई चैम्पियनशिप आधे रास्ते भी नहीं पहुँची थी, कि इसे 'टॉयलेटगेट' का नाम दिया जाने लगा...जी हाँ, शौचालय से जुड़ा कांड या मज़ाक!

संक्षेप में इस टॉयलेटगेट की अब तक की कहानी इस प्रकार है:-

कलमीकिया रूस के दक्षिणी भाग में एक छोटा-सा गणतंत्र है. इसके राष्ट्रपति किर्सन इल्युमझिनोव शतरंज की मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय संस्था विश्व शतरंज परिसंघ या FIDE के अध्यक्ष भी हैं. कलमीकिया और इल्युमझिनोव पर विस्तार से चर्चा अगले किसी पोस्ट में करूँगा, पहले टॉयलेटगेट की कहानी पर आता हूँ.

जब इस साल FIDE प्रमुख के चुनाव का वक़्त आया तो पदासीन अध्यक्ष इल्युमझिनोव के कुर्सी पर आगे भी काबिज़ रहने की संभावना कम हो चली थी. ऐसे में इल्युमझिनोव ने तुरुप का पत्ता खोला. उन्होंने कहा कि हमें पद पर बनाए रखो तो FIDE के मौजूदा चैम्पियन बुल्गारिया के वेसेलिन तोपालोव और पेशेवर शतरंत महासंघ या PCA के विश्व चैम्पियन रूस के व्लादिमीर क्रैमनिक के बीच मुक़ाबला करा देंगे. यानि शतरंज के वास्तविक विश्व चैम्पियन का फ़ैसला हो जाएगा. FIDE के सदस्य देशों के खेल पदाधिकारियों ने इल्युमझिनोफ़ पर भरोसा व्यक्त करते हुए उन्हें अध्यक्ष के रूप में पुनर्निर्वाचित करा दिया.

वर्ष 1993 के बाद से दुनिया में शतरंज के दो विश्व चैम्पियन रहे हैं. मौजूदा दो चैम्पियनों में से एक हैं तोपालोव जोकि FIDE आयोजित आधिकारिक विश्व चैम्पियनशिप 2005 के विजेता हैं. दूसरे, अनधिकृत लेकिन विश्वसनीय विश्व चैम्पियन हैं क्रैमनिक, जिन्होंने 2000 में शतरंज के बेताज बादशाह गैरी कास्पारोव को हराया था. (उस मुक़ाबले में कास्पारोव को क्रैमनिक के ख़िलाफ़ एक भी मैच में जीत नसीब नहीं हो पाई थी.) कास्पारोव ने ही 1993 में ख़ुद को FIDE से अलग करते हुए, ब्रिटेन के ग्रैंड मास्टर नाइजल शॉर्ट के साथ मिल कर PCA की नींव रखी थी. हालाँकि उनके PCA को ओलंपिक कमेटी की मान्यता नहीं मिली, और शतरंज का आधिकारिक विश्व संगठन FIDE ही बना रहा.

ख़ैर, बात बात हो रही थी इल्युमझिनोव की. अध्यक्ष के रूप में अगले कार्यकाल के लिए चुन लिए जाने के बाद उन्होंने तोपालोव और क्रैमनिक को विश्व चैम्पियनशिप मुक़ाबले में भाग लेने के लिए राज़ी कर शतरंजप्रेमियों को चौंका दिया. इस 10 लाख डॉलर पुरस्कार राशि वाली चैम्पियनशिप का आयोजन स्थल कलमीक राजधानी इलिस्ता को बनाया गया.

चैम्पियनशिप में 12 मैच रखे गए, इस शर्त के साथ कि जो पहले 6.5 अंक ले आएगा वो शतरंज का विश्व चैम्पियन घोषित होगा.

सितंबर की 23 और 24 तारीख़ को पहले और दूसरे मैच को क्रैमनिक ने जीता और 2-0 की बढ़त बना ली. तीसरे और चौथे मैच अनिर्णीत छूटे, यानि चार मैचों के बाद 27 सितंबर को क्रैमनिक 3-1 से आगे थे. तोपालोव की स्थिति कमज़ोर हो चली और शतरंज विशेषज्ञों के कॉलमों में लिखा जाने लगा कि वे अब शायद ही मुक़ाबले में आगे निकल पाएँ. हालाँकि, तोपालोव भी बेहतरीन खिलाड़ी माने जाते हैं, और उनमें किसी भी विपरीत परिस्थिति से उबरने की क्षमता है. इसलिए लगता नहीं कि वो हताश हो गए होंगे. लेकिन उनके मैनेजर सिल्वियो दनाइलोव ज़रूर हताश हो चुके थे.

तोपालोव के मैनेजर दनाइलोव ने आरोप लगाया कि मैच के बीच में क्रैमनिक बीसियों बार टॉयलेट जाते हैं, जो कि दाल में काले जैसी बात है. ख़ुद उन्होंने खुल कर और ज़्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन दबी ज़ुबान में दनाइलोव के गुर्गों ने आरोप लगाया कि क्रैमनिक बार-बार टॉयलेट इसलिए जाते हैं कि उन्होंने वहाँ कंप्यूटर और अन्य उपकरण जमा रखा है, जिनके ज़रिए वे आगे की चाल का फ़ैसला करते हैं.

चैम्पियनशिप में दोनों खिलाड़ियों को अपना-अपना व्यक्तिगत टॉयलेट सुलभ कराया गया था. दनाइलोव ने कहा कि तोपालोव पाँचवें मुक़ाबले में तभी उतरेंगे जबकि क्रैमनिक के टॉयलेट में ताला लगा दिया जाए, और वो उसी शौचालय का उपयोग करें जो कि तोपालोव करते हैं.

ये सब नाटक ऐसे समय हुआ जब FIDE प्रमुख इल्युमझिनोव रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ एक बैठक के लिए कलमीकिया से दूर मॉस्को में थे. जब 29 सितंबर को पाँचवाँ मैच शुरू होने का वक़्त आया तो तोपालोव शतरंज की बिसात पर आए, लेकिन क्रैमनिक अपने बंद पड़े टॉयलेट के सामने खड़े रहे. बाद में क्रैमनिक अपने रेस्ट-रूम में वापस लौट गए, जबकि तोपालोव बिसात पर अकेले पड़े रहे. अधिकारियों ने बिना कोई चाल वाले इस पाँचवें मुक़ाबले में तोपालोव को विजेता घोषित कर उन्हें पूरे अंक दे दिए.

इस अपमानजनक स्थिति के बाद क्रैमनिक ने चैम्पियनशिप में आगे खेलने से मना कर दिया. कहा कि शर्तों के मुताबिक उन्हें सिर्फ़ उनके लिए व्यक्तिगत शौचालय उपलब्ध कराया जाया, तभी बात आगे बढ़ सकती है. उन्होंने साफ़ कर दिया कि प्रतिद्वंद्वी के साथ वे किसी भी क़ीमत पर टॉयलेट शेयर नहीं करने जा रहे. ऐसे में यही लग रहा था कि पहली शतरंज विश्व चैम्पियनशिप टॉयलेट में बहने ही वाली है.

ख़ैर, FIDE प्रमुख इल्युमझिनोव की मान-मनौव्वल और राष्ट्रपति पुतिन के क्रैमनिक से खेल जारी रखने के आग्रह के बाद अंतत: दो अक्तूबर को छठा मुक़ाबला शुरू हुआ. दोनों खिलाड़ियों के दलों ने एक-दूसरे के रेस्ट-रूम का निरीक्षण किया. क्रैमनिक को व्यक्तिगत टॉयलेट उपलब्ध दोबारा उपलब्ध करा दिया गया, लेकिन इससे पहले तोपालोव के दल ने क्रैमनिक के टॉयलेट का निरीक्षण किया.

मामला तो सुलझ गया, और तोपालोव ने मुक़ाबले में शानदार वापसी भी की छठा-सातवाँ मैच ड्रॉ कर, और आठवाँ-नौवाँ मैच जीत कर. अंतत: आज आठ अक्तूबर को क्रैमनिक टॉयलेटगेट के बेहूदा हादसे से उबर पाए और दसवाँ मैच जीत कर मामला 5-5 से बराबरी पर ला दिया.

आगे के दो मैचों में कुछ भी हो सकता है. बेहतर हो क्रैमनिक जीत जाएँ या कम-से-कम संयुक्त विजेता तो ज़रूर बनें, क्योंकि टॉयलेट के चलते तोपालोव के दल ने उन्हें बेमतलब मानसिक प्रताड़ना दी. क्रैमनिक के साथ इससे भी बड़ा अन्याय ये हुआ कि पाँचवें मैच में बिना किसी चाल चले तोपालोव को पूरे अंक दे दिए गए. यदि न हुए मैच का अंक दोनों में बाँटा जाता, तो दसवें मैच के अंत में आज क्रैमनिक 5.5-4.5 से आगे चल रहे होते.

और अंत में देखिए ये चित्र. शायद तोपालोव के मैनेजर दनाइलोव की कल्पना में क्रैमनिक का टॉयलेट कुछ ऐसा ही होगा-

हाइटेक टॉयलेट

सोमवार, अक्टूबर 02, 2006

सर्दी-ज़ुकाम से छुटकारा नहीं

सर्दी-ज़ुकाम से परेशानचिकित्सा विज्ञान ने इतनी ज़्यादा प्रगति कर ली है कि क्लोनिंग और डिज़ायनर बेबी की चर्चा भी बिना किसी आश्चर्य भाव के साथ की जाने लगी है. लेकिन ऐसे में क्या ये विरोधाभास नहीं है कि अभी तक सर्दी-ज़ुकाम या common cold का कोई विश्वसनीय इलाज़ नहीं खोजा जा सका है?

पहली नज़र में यही लगता है कि बड़ी दवा कंपनियाँ और चिकित्सा संस्थान एड्स, कैंसर, पार्किन्संस जैसी बीमारियों का इलाज़ ढूँढने में इतने व्यस्त हैं कि सर्दी-ज़ुकाम को किसे फ़िक्र! लेकिन नहीं, ऐसी बात नहीं है. चिकित्सा जगत में ये सर्वमान्य तथ्य है कि सर्दी-ज़ुकाम 200 से ज़्यादा प्रकार के विषाणुओं की करतूत है, यानि बहुत ही जटिल बीमारी है. ज़ाहिर है इससे पार पाने के लिए सारे ज़िम्मेवार विषाणुओं से निपटना होगा, यानि बहुत ज़्यादा संसाधन झोंकने पड़ेंगे. लेकिन ये कोई जानलेवा बीमारी तो है नहीं, तो क्यों नहीं संसाधनों को अन्य बीमारियों के उपचार ढूँढने में खपाया जाए. ऐसे में कार्डिफ़ विश्वविद्यालय के कॉमन कोल्ड सेंटर के निदेशक प्रोफ़ेसर रॉन इकल्स का कहना सही है कि जब तक मानव के पास नाक रहेगी, सर्दी-ज़ुकाम भी रहेगा!

प्रोफ़ेसर इकल्स सर्दी-ज़ुकाम की समस्या की अनदेखी से ख़ासे क्षुब्ध हैं. उनका मानना है कि इस आम बीमारी को झेलने की बहुत भारी आर्थिक क़ीमत चुकानी पड़ रही है. उन्होंने कहा, "यदि आप 75 साल की उम्र तक जीते हैं तो आपको औसत 200 बार सर्दी-ज़ुकाम अपनी चपेट में लेगा...मतलब आपकी ज़िंदगी के पूरे तीन साल छींकते-खाँसते गुजरेंगे. और यदि आप 75 साल पूरे कर चुके हैं तो इस उम्र में 85 प्रतिशत मौत श्वसन संबंधी बीमारियों से होती है...मतलब पकी उम्र में सर्दी-ज़ुकाम की चपेट में आने पर राम-नाम-सत्त होने की बहुत ज़्यादा आशंका रहती है."

तो आख़िर कैसे निपटा जा सकता है हमेशा ही आसपास रहने वाले इस ख़तरे से? प्रोफ़ेसर इकल्स भी मानते हैं कि बड़ी ही मुश्किल चुनौती है. उनके अनुसार फ़्लू के असरदार टीके बनाए जा चुके हैं क्योंकि फ़्लू के लिए ज़िम्मेवार अधिकतर विषाणुओं की चाल-ढाल एक जैसी ही होती है. लेकिन सर्दी-ज़ुकाम के लिए ज़िम्मेवार माने जाने वाले 200 से ज़्यादा विषाणुओं में से अनेक अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं. इसलिए सर्दी-ज़ुकाम के ख़िलाफ़ किसी टीके के क़ामयाब होने की थोड़ी भी संभावना उसी स्थिति में होगी, जब वो इनमें से कम-से-कम 100 विषाणुओं को अप्रभावी करने में सक्षम हो. ज़ाहिर है, इस तरह का कोई भी टीका बनाना अव्यावहारिक लगता है...बनाया भी तो पता नहीं कितनी ज़्यादा लागत आएगी. ये तो हुआ सर्दी-ज़ुकाम के किसी प्रभावी टीके के निर्माण का एक पक्ष.

दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है साइट-इफ़ेक्ट्स का. कम से कम सौ तरह के विषाणुओं को बेअसर करने वाले किसी टीके के अनेक तरह के साइड-इफ़ेक्ट्स हो सकते हैं. किसी को कोई असाध्य बीमारी हो तो वह तमाम साइड-इफ़ेक्ट्स झेलने के लिए तैयार होगा, लेकिन सर्दी-ज़ुकाम के नाम पर कोई हल्का-सा भी साइड-इफ़ेक्ट्स लेने के लिए तैयार होगा...ऐसा लगता नहीं.

राइनोवायरस14अभी हाल ही में सर्दी-ज़ुकाम के आधे मामलों के लिए मुख्य तौर पर ज़िम्मेवार राइनोवायरस वर्ग के विषाणुओं को बेअसर करने वाली एक दवा बनाई गई थी. चिकित्सा जगत में ख़ुशी का माहौल था कि चलो कम से कम सर्दी-ज़ुकाम के आधे मामलों से तो निपटा जा सकेगा. लेकिन ये ख़ुशी जल्दी ही ग़ायब हो गई, जब दवा के परीक्षण के दौरान पता चला कि ये शरीर के उन रसायनों के साथ प्रतिक्रिया करती है जो कि female sex hormones को प्रभावित करते हैं. हुआ ये कि सर्दी-ज़ुकाम की इस दवा को खाने पर गर्भनिरोधक गोलियाँ ले रही एक महिला गर्भवती हो गई. ये पता चलते ही इस दवा पर काम करना बंद कर दिया गया. हो भी क्यों नहीं, सर्दी-ज़ुकाम से बचने की कोशिश में गर्भवती होना कुछ ज़्यादा ही बड़ा साइड-इफ़ेक्ट है!

माना जाता है शहरों में आबादी की सघनता, तनावपूर्ण जीवनशैली और अपौष्टिक आहार के कारण सर्दी-ज़ुकाम का प्रकोप बहुत ज़्यादा बढ़ गया है. और आजकल जिस तरह का मौसम है (यानि गर्मी अपने समापन के दिनों में है और जाड़ा दस्तक दे रहा है), उसे सर्दी-ज़ुकाम का स्वर्णिम काल कह सकते हैं. सितंबर-अक्तूबर के बाद जनवरी-फ़रवरी में भी विषाणुओं के लिए इस तरह की आदर्श अवस्था बनती है. इस तरह के दिनों में यदि सर्दी-ज़ुकाम का वायरस आपके शरीर तक पहुँच चुके हैं(जहाँ जाइएगा वहीं पाइएगा!), तो शरीर के तापमान में अचानक आई गिरावट के साथ ही आप पूरी तरह उसकी गिरफ़्त में होंगे.


अनुसंधान में पाया गया है कि तनावमुक्त और ख़ुश रहने वाले लोगों को सर्दी-ज़ुकाम की चपेट में आने की संभावना अपेक्षाकृत कम रहती है. ऐसा संभव नहीं हो तो, सर्दी-ज़ुकाम के विषाणुओं से बचने की कोशिश ज़रूर करें. अपने आसपास किसी को छींकते-खाँसते देखें तो उन्हें दूर करें या ख़ुद दूर हो जाएँ.

यदि आप ख़ुद चपेट में हैं तो छींकते-खाँसते समय मुँह को रूमाल से ढंकना कैसे भूल सकते हैं...पूरी नींद लें, विक्स लगाएँ, मसालेदार भोजन का सेवन करें, जम कर गर्म पेय और सूप पीयें...साथ ही ज़रूरत से ज़्यादा पानी पीयें. सामिष हैं तो मेरा जाँचा-परखा नुस्खा:- बकरे की टाँग का शोरबा बहुत लाभकारी रहता है.

जहाँ तक दवाओं के सेवन की बात है तो सर्दी-ज़ुकाम के दौरान बुख़ार चढ़ जाए या शरीर में दर्द हो तो ही कोई दवा लेने की सलाह दी जाती है. वरना, सर्दी-ज़ुकाम के बारे में तो मशहूर है:- दवाओं का सेवन करो तो एक सप्ताह में राहत मिल जाएगी, वरना सात दिन तक लग सकते हैं!