आधुनिक इतिहास में जितना विवादास्पद अध्याय ब्रितानी साम्राज्य का है, उतना और कुछ नहीं. ब्रितानी साम्राज्य की अच्छाइयों और बुराइयों की लंबी सूची लिए लोग आपको पूरी दुनिया में मिल जाएँगे. इस मुद्दे पर सबसे ज़्यादा विवाद या बहस ब्रिटेन और भारत में देखने को मिलती है.
ब्रिटेन के एक अत्यंत ही प्रतिभाशाली इतिहासकार हैं- प्रोफ़ेसर नियल फ़र्गुसन. मात्र 42 साल के हैं, यानि इतनी उम्र जब आमतौर पर इतिहासकारों के दूध के दाँत टूटते हैं. फ़र्गुसन के लेखन पर दुनिया भर में बहस छिड़ जाती है. वो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे. लेकिन जब ब्रिटेन में उतना भाव नहीं मिला तो अटलांटिक पार का रुख़ किया और अमरीका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में जा टिके. वहाँ इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं, हालाँकि अब भी किसी न किसी रूप में ऑक्सफ़ोर्ड से भी नाता जोड़ रखा है. स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से भी रिश्ता है.
अब नियल फ़र्गुसन की ताज़ा किताब द वार ऑफ़ द वर्ल्ड चर्चा में है. इसे लेकर उन्होंने चैनल4 के लिए एक धांसू डॉक्यूमेंट्री भी बना डाली है. प्रोफ़ेसर फ़र्गुसन ने अपनी ताज़ा किताब में इस बात को जम कर उछाला है कि पिछली सदी मानव इतिहास की सबसे ख़ूनी सदी थी. इस बात पर किसी को ज़्यादा आपत्ति भी नहीं. लेकिन अनेक लोगों को फ़र्गुसन की किताब में ब्रितानी साम्राज्य की तारीफ़ किए जाने पर आपत्ति है.
ब्रितानी साम्राज्य के बारे में फ़र्गुसन से बिल्कुल विपरीत मान्यता रखने वाले ब्रिटेन के ही एक इतिहासकार हैं- रिचर्ड गॉट. वो ब्रितानी साम्राज्य का प्रतिरोध करने वालों को केंद्र में रख कर एक किताब लिख रहे हैं. अभी पिछले दिनों उन्होंने गार्डियन अख़बार में एक लेख में ब्रितानी साम्राज्य की ख़ूनी विरासत की चर्चा की. रिचर्ड गॉट का कहते हैं कि दुनिया में अनेकों मौज़ूदा संघर्ष उन क्षेत्रों में हो रहे हैं जो पहले ब्रितानी साम्राज्य का हिस्सा थे, और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद थके और लुटे-पिटे साम्राज्यवादियों ने जहाँ से निकलने में अपनी भलाई समझी थी. उन इलाकों में से अधिकांश आज दुनिया में हिंसा और अस्थिरता के स्रोत माने जाते हैं.
ये रही ब्रितानी साम्राज्य की ख़ूनी विरासत की एक संक्षिप्त सूची:
1. फ़लस्तीनी क्षेत्र- एक ब्रितानी उपनिवेश जिसे उसने मात्र 30 वर्षों के शासन के बाद 1947 में छोड़ दिया. अपने अधिकतर उपनिवेशों की तरह यहाँ भी अंग्रेज़ों ने यूरोपीय लोगों को लाकर बसाया. दुर्भाग्य से बाहर लाकर थोपे गए लोगों के पास इतना समय नहीं था कि वे स्थानीय लोगों पर पूरी तरह काबू पा सकें(जैसा कि ऑस्ट्रेलिया के मामले में हुआ था), क्योंकि उस दौरान ब्रितानी साम्राज्य का सूरज अस्ताचलगामी हो चुका था. ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय लोगों यानि आदिवासियों के विपरीत फ़लस्तीनियों ने साम्राज्यवादियों द्वारा लाकर पटके गए यहूदियों का प्रतिरोध पहले दिन से ही शुरू कर दिया. अरब जगत के समर्थन और अपनी धार्मिक परंपराओं से ली गई प्रेरणा के बल पर उनका प्रतिरोध लगातार चलता रहा, और आगे भी जारी रहेगा.
2. सियरालियोन- अपनी नीति के अनुरूप ब्रितानी साम्राज्यवादियों ने यहाँ भी बाहर से लाकर लोगों को बसाया. बाहर से लाए गए लोग थे तो अश्वेत ही, लेकिन मुख्य तौर पर ईसाई. दूसरी ओर जब ये सब हो रहा था सियरालियोन के स्थानीय लोग इस्लाम के प्रभाव में पूरी तरह आ चुके थे. सियरालियोन में ब्रितानी शासकों का ज़ोरदार प्रतिरोध हुआ. और अब स्थानीय लोगों और बाहर से लाकर बसाई गई आबादी के बीच संघर्ष रह-रह कर गृहयुद्ध का रूप ले लेता है.
3. अन्य अफ़्रीकी देश- दक्षिणी अफ़्रीका, ज़िम्बाब्वे और कीनिया में भी बाहर से लाकर बसाए गए लोगों और स्थानीय आबादी के बीच मनमुटाव बना हुआ है. हालाँकि इन देशों में बसाए गए लोग अब रक्षात्मक मुद्रा में आने को मज़बूर हो चुके हैं.
4. श्रीलंका और फ़िजी- इन दो देशों में अंग्रेज़ों ने अलग तरह का खेल खेला. यहाँ भारत से मज़दूर बना कर लाए गए लोगों को स्थानीय आबादी पर थोपा गया. हालाँकि ब्रितानी साम्राज्यवादी भारत से लोगों को अपने बगानों में काम कराने के लिए लाए थे, लेकिन उपनिवेश के ख़ात्मे के बाद स्थानीय आबादी और भारत से लाए गए लोगों के बीच जो मनमुटाव शुरू हुआ, वो आज भी बहुत तल्ख़ है. श्रीलंका में सैंकड़ो लोग हर साल इस ख़ूनी विरासत की भेंट चढ़ते हैं.
5. उत्तरी आयरलैंड- ब्रिटेन का हिस्सा बने उत्तरी आयरलैंड में स्थानीय कैथोलिक आबादी पर प्रोटेस्टेंट ईसाइयों को थोपा गया. कोई आश्चर्य नहीं कि आधुनिक आतंकवाद का जन्म वहीं उत्तरी आयरलैंड में ही हुआ.
6. भारत- द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद के काल में साम्राज्यवादियों ने जिस हड़बड़ी में भारत को विभाजित करते हुए छोड़ा. विलायती शासकों ने ये भी नहीं सोचा कि जिस उपमहाद्वीप को दो शताब्दियों तक एकजुट रखने का श्रेय उन्हें दिया जाता हो, उसे सांप्रदायिक आधार पर बाँटते हुए भागना कितना उचित था. इतनी हड़बड़ी थी कि कश्मीर पर कोई सर्वमान्य फ़ैसला करने की भी ज़रूरत नहीं समझी गई. भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे पर कितना संदेह करते हैं, और कश्मीर का नासूर भारत की कितनी ऊर्जा खींचता है, बयान करने की ज़रूरत नहीं.
7. साइप्रस- भारत की तरह ही ब्रितानी साम्राज्यवादियों ने साइप्रस को भी बुरी तरह दो हिस्सों में बाँट दिया. दोनों हिस्सों की आबादी एक-दूसरे पर कभी भरोसा नहीं कर सकी. शर्मनाक रूप से ब्रिटेन अब भी साइप्रस में दो संप्रभु सैनिक अड्डे बनाए हुए हैं, विभाजित साइप्रस पर निगरानी रखने के लिए.
8. नाइजीरिया और सोमालिया- अंग्रेज़ साम्राज्यवादियों ने नाइजीरिया को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से कृत्रिम रूप से एक राष्ट्र का रूप दिया, जबकि सोमालिया को अपनी सुविधा के लिए पहले उपनिवेश बनाया और बाद में अपनी ज़रूरतों के अनुरूप ही उसे उसके हाल पर छोड़ा. दोनों देशों के भीतर आबादी के बीच स्पष्ट विभाजन और परस्पर घृणा देखी जा सकती है.
9. इराक़- इराक़ ब्रितानी साम्राज्य में शामिल होने वाला अंतिम क्षेत्र था, और साम्राज्य की पकड़ से बाहर होने वाला पहला देश. इराक़ से ब्रितानी सैनिक अड्डे 1950 के दशक में जाकर हटाए गए. आज इराक़ में अघोषित गृहयुद्ध चल रहा है, और विडंबना देखिए कि बसरा वाले इलाक़े में सुरक्षा स्थापित करने का ज़िम्मा ब्रिटेन के हाथों में है.
10. अफ़ग़ानिस्तान- ब्रितानी साम्राज्य के दिनों में कहने को तो अफ़ग़ानिस्तान स्वतंत्र रहा, लेकिन असल में उस पर साम्राज्यवादियों की पूरी पकड़ रही. अंग्रेज़ों ने अफ़ग़ानों से तीन ख़ूनी युद्ध लड़े. चौथे युद्ध के लिए एक बार फिर ब्रितानी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में हैं, और लगता नहीं कि पिछले तीन मौक़ों के विपरीत उन्हें इस बार जीत नसीब होगी.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
इतनी जानकारी भरा अपका यह लेख दिमाग पर सीधा असर किया| दुनिया के नक्शे पर ब्रितेन का बने रहने तक उसके कुकृत्य दुनिया के दिलों को कचोटते रहेंगे|
Enjoyed a lot! » » »
एक टिप्पणी भेजें