मंगलवार, अगस्त 08, 2006

अच्छा हुआ कोलंबस भारत नहीं पहुँचा

कोलंबसये जाना माना तथ्य है कि महान नाविक क्रिस्टोफ़र कोलंबस भारत और पूर्वी एशियाई देशों के लिए सीधा समुद्री रास्ता खोजने के नाम पर कैरीबियन द्वीपों के रास्ते अमरीका तक पहुँचा था.

कोलंबस का इस बात पर पक्का यक़ीन था कि धरती गोल है, लेकिन तब मौज़ूद अपूर्ण भौगोलिक सूचनाओं के आधार पर कोलंबस को ये ग़लतफ़हमी हो गई थी कि यूरोप से पश्चिम की ओर समुद्री यात्रा करते हुए महान पूर्वी सभ्यताओं तक पहुँचने में बहुत ज़्यादा दूरी नहीं तय करनी पड़ेगी.

कोलंबस अपनी यात्रा के लिए पहले पुर्तगाल के शासक की शरण में गया, लेकिन पुर्तगालियों को एक तो कोलंबस की दलीलों में ज़्यादा दम नहीं दिखा, और दूसरा पुर्तगाली ख़ुद अफ़्रीकी महाद्वीप का चक्कर लगाते हुए भारत पहुँचने की योजना में लगे हुए थे. लंबे समय तक चली बातचीत के बाद अंतत: स्पेन के शासकों ने कोलंबस की यात्रा में पैसा लगाने की हामी भरी.

वो तो अच्छा हुआ कोलंबस भारत पहुँचने से रह गया, वरना स्पेन के शासकों के साथ उसके क़रार के अनुसार वो भारत या कम-से-कम भारत के किसी इलाक़े का गवर्नर या वॉयसराय तो ज़रूर ही होता. ऐसा होने पर भारतीय आबादी को कोलंबस के कुशासन और उसकी क्रूरता का उसी प्रकार सामना करना पड़ता जैसा कि कैरीबियन जनता को करना पड़ा.

स्पेन में मिले पाँच सदी पहले के एक दस्तावेज़ में महान नाविक कोलंबस के चरित्र के काले पक्ष को विस्तार से उजागर किया गया है. दस्तावेज़ में कोलंबस पर चलाए गए मुक़दमे का विवरण है. इसमें बताया गया है कि इंडीज़(कोलंबस ने कैरीबियन द्वीपों को भारत का हिस्सा मानते हुए यही नाम दिया था) का गवर्नर और वॉयसराय रहने के दौरान महान नाविक कोलंबस क्रूरता की सीमाओं का लाँघ गया था. कोलंबस के तानाशाही शासन में दी जाने वाली सज़ाओं में शामिल थे: लोगों के नाक-कान कटवा देना, औरतों को सरेआम नंगा घुमाना और लोगों को ग़ुलामों के रूप में बेचना.

जिस दस्तावेज़ में कोलंबस की तानाशाही का सबूत मिला है वो दरअसल कोलंबस पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच-रिपोर्ट है. स्पेन के राजा फ़र्डिनांड और रानी इसाबेला के आदेश पर यह जाँच फ़्रांसिस्को डि बोबादिला ने की थी जो कि पद से हटाए गए कोलंबस की जगह इंडीज़ का गवर्नर बना. बोबादिला की जाँच-रिपोर्ट स्पेनी शहर वलादोलिद के पुरालेखागार में धूल फाँक रही थी. पिछले साल एक इतिहासकार की नज़र इस 48 पेजी दस्तावेज़ पर पड़ी, और अब 2006 में इसे सार्वजनिक किया जा सका, जो कि कोलंबस की 500वीं बरसी का साल है. कोलंबस का 1506 में एक धनी किंतु बदनाम व्यक्ति के रूप में निधन हो गया था.

बोबादिला की जाँच-रिपोर्ट का अध्ययन करने वाले दो इतिहासकारों के अनुसार इसमें इंडीज़ में सात साल के शासन के दौरान कोलंबस और उसके भाइयों की करतूतों का ख़ुलासा है. कैरीबियन द्वीपों, ख़ास कर मौज़ूदा डोमिनिकन गणतंत्र वाले इलाक़े, से आने वाली अत्याचार की ख़बरों ने स्पेन के शासकों को बाध्य किया कि वो कोलंबस को वापस बुलाएँ. कोलंबस को बेड़ियों में जकड़ कर स्पेन लाया गया. उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला जिसके लिए बोबादिला ने 23 गवाहों से सबूत जुटाए. कोलंबस की पदवी छीन ली गई, हालाँकि उसे कोई कड़ी सज़ा नहीं दी गई.

ये सब जानने के बाद यही लगता है कि चलो अच्छा हुआ जो कोलंबस भारत तक नहीं पहुँचा.

7 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

(काहे का लार्ड) क्लाइव भी भ्रष्टाचार मेँ कोलम्बस का चाचा था| उस पर भी भ्रष्टाचार का मुकदमा चला था | उसके शैतानियत के किस्से किसी को नहीं मालूम, क्योंकि शायद अंगरेज स्पेनी लोगों से ज्यादा कुटिल हैं|

Pratik Pandey ने कहा…

सभी यूरोपीय अन्वेषकों की खोजों का असली कारण येन-केन-प्रकारेण धन कमाना था, न कि दुनिया को जानने की जिज्ञासा। इस वजह से वे जहाँ भी गए, वहाँ की जनता का भरपूर शोषण किया। पश्चिमी यूरोप के विकसित होने के मूल में अफ़्रीकी और एशियाई देशों का रक्तपान ही है।

ई-छाया ने कहा…

अच्छा लेख, जानकारी के लिये साधुवाद।

बेनामी ने कहा…

मैं प्रतीक भाई से सहमत हूँ। लगभग सभी योरोपीय अन्वेशकों का उद्देश्य धन कमाना था, और नए भूमिखंड के खोजक के रूप में यश प्राप्ति और अपना नाम अमर करवाना होता था।

मुग़ल और अंग्रेज़ी शासकों ने तो इससे भी अधिक घिनौने कृत्य किए हैं, गुलामों की तरह तो अंग्रेज़ भी भारतीयों को समझते और बर्ताव करते थे, कौन सी नई बात है!!

बेनामी ने कहा…

अच्छा लेख, जानकारी के लिये धन्यवाद. मैं प्रतीक के विचारों से काफी हद तक सहमत हूँ।

बेनामी ने कहा…

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