इस आलेख का शीर्षक पढ़ कर हो सकता है आपको कोई आश्चर्य नहीं हो. ठीक भी है, क्योंकि लगता नहीं कि विदेश मंत्रालय ने कभी हिंदी को याद भी किया होगा.
दरअसल यह आलेख विदेश मंत्रालय (या Ministry of External Affairs की तर्ज़ पर भारत के बाह्य मामलों का मंत्रालय?) की वेबसाइट पर केंद्रित है. इस वेबसाइट का एक पेज हिंदी में है. परंपरा (कम-से-कम पिछले दो साल से) यह थी कि विदेश मंत्रालय के अतिसक्रिय नौकरशाह इस पेज को साल में तीन बार हिलाते थे या थोड़ी तकनीकी भाषा में कहें तो अपडेट करते थे.
अपडेट क्या होता था, उस पेज पर तीन भारी-भरकम भाषण डाल दिए जाते थे. ज़ाहिर है, भाषण का बोझ पड़ने के कारण पेज हिल जाता था.
ये तीन भाषण हैं: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का भाषण, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का भाषण और स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री का भाषण.
लेकिन पता नहीं करोड़ों की प्यारी (लेकिन बेचारी) हिंदी से क्या गुस्ताख़ी हो गई, कि विदेश मंत्रालय के बाबुओं ने इस साल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के भाषण को अपनी वेबसाइट के हिंदी पेज पर जगह नहीं देने का फ़ैसला कर लिया. विश्वास नहीं हो नीचे दिए गए 'स्क्रीन ग्रैब' को देखें जो कि मैंने भारतीय समयानुसार 10 जुलाई की आधी रात को लिया है.
फ़ॉरेन सर्विस वाले बाबुओं से विनती है कि कम-से-कम स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर हिंदी को नहीं भूलें. माना हिंदी ने कोई ग़लती कर दी होगी, लेकिन इस साल गणतंत्र दिवस के मौक़े पर आपके हाथों उपेक्षित होकर वह सज़ा भी तो काट चुकी है.
अन्य विभाग और कार्यालय
विदेश मंत्रालय के हिंदी से नाममात्र का भी राजनयिक संबंध नहीं रखने के फ़ैसले की जानकारी मिलने के बाद मैंने बाक़ी मंत्रालयों, विभागों और कार्यालयों की वेबसाइटों का भी औचक निरीक्षण किया. प्रस्तुत हैं कुछ रोचक तथ्य:-
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वेबसाइट पर एक ही जगह हिंदी है. वो जगह है अशोक स्तंभ के चित्र नीचे का स्थल जहाँ देवनागरी में 'सत्यमेव जयते' लिखा है. लेकिन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की वेबसाइट पर तो हिंदी की एक झलक तक नहीं मिलती.
रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय की वेबसाइटों पर हिंदी को जगह नहीं दी गई है.
मुझे लगा देहाती शैली में हिंदी बोलने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह के ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर हिंदी होगी. इस सरकारी लिंक http://rural.nic.in/ ने काम नहीं किया तो दूसरे रास्ते से रघुवंश बाबू के मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अपनी उम्मीदों पर पानी फेरा.
निरक्षरों को पढ़ना-लिखना सिखाने वाले राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की वेबसाइट पर भी हिंदी नहीं है. उम्मीद के अनुरूप रेल मंत्रालय की वेबसाइट हिंदी में भी है. लेकिन उसके कुछ हिस्से में 'कार्य प्रगति पर है.' का बोर्ड लगा मिला.
भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर हिंदी के नाम पर प्रेस विज्ञप्तियों का एक लिंक मात्र है. दूसरी ओर प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी करने वाले पत्र सूचना कार्यालय की वेबसाइट पर मुझे 10 जुलाई को अंग्रेजी में जहाँ कुल 10 सरकारी बयान मिले, वहीं हिंदी में मात्र तीन.
भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर ही संविधान के हिंदी पेज का लिंक ढूँढा. वहाँ गया तो पहली नज़र में सब कुछ अंग्रेज़ी में ही दिखा. हालाँकि पेज पर कई अघोषित लिंक हैं जिन्हें क्लिक करने पर हिंदी दिखती है.
सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर हिंदी नहीं है. दूरदर्शन की वेबसाइट पर भी हिंदी दर्शन नहीं होता.
लोकसभा की वेबसाइट पर हिंदी नहीं है. कुछ बहसों के अंश हिंदी में देखने के लिए हिंदी फ़ोंट डाउनलोड करने के लिए एक लिंक ज़रूर है. राज्यसभा की वेबसाइट का सीमित हिंदी संस्करण है, लेकिन योगेश और सुरेख नामक फ़ोंट डाउनलोड करने होंगे.
इसी तरह आकाशवाणी की वेबसाइट के हिंदी संस्करण को देखने के लिए कृतिदेव020 फ़ोंट डाउनलोड करना पड़ा. हालाँकि इसके बाद भी वहाँ ज़्यादातर अंग्रेज़ी माल ही दिखा या फिर खाली डिब्बा.
राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर हिंदी को लेकर बहुत अच्छी-अच्छी बातें की गई हैं. लेकिन वहाँ उसकी हिंदी पत्रिका राजभाषा भारती के लेखों के बज़ाय, उनकी सूची मात्र से काम चलाइए.
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8 टिप्पणियां:
यह सचमुच बहुत दुख की बात है कि सरकारी विभाग उदासीन हैं।
सामूहिक भर्त्सना की जानी चाहिये इन अंग्रेजीदां नौकरशाहों की।
मैने इंडिया.ओर्ग के वेबमास्टर को मेल किया था कि इस पोर्टल को हिन्दी में भी विकसित करें. उन्होने मुझे भरोसा दिलाया था कि वे इसपर काम करेंगे.
अब सरकारी भरोसा तो भरोसा ही रहेगा ना.
क्या? हिन्दी में भी वेब साइट बन सकती हैं? लो बोलो मुझे तो पता ही नही था. थेंक्यु जो आपने बता दिया.
हमार विभाग जल्दी ही इस पर कार्यवाही शुरू करेगा....दुनियाँ देखेगी हिन्दी भी कैसे नेट पर आगे बढती हैं.... हम देश को ...
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है, कि हमारे देश का शासक वर्ग,उस हिन्दी भाषा का जानबूझ कर अपमान करता रहता हैं जिस भाषा का इस्तेमाल अपने भारतिय परिवेश में कहीं ना कहीं हमेशा इन्हे इस्तेमाल करना पडता ही है उस भाषा को भुलना और बनावटी अंग्रेज बने रहना । ये हिन्दी प्रेमियों और संपुर्ण राष्ट का अपमान है,23:30-2अक्टूबर06संजय तिवारी
नयी अथ्ाव्यवस्थ्ाा में हिन्दी काे राजभ्।।ष्ा। के रूप
में काेइ स्थ्ा।न नहीं है बस कुछ श्ा।ेर मचा सकते हैं
अब संसदीय समिित का डर भ्।ी नहीं रहा
RBI, SEBI And IRDA Site Hindi ME kya hai
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