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रविवार, नवंबर 26, 2006

पेंटागन को हिंदी से प्यार हो गया!

यूटी ऑस्टिन टॉवरइस आलेख का शीर्षक हो सकता है बहुतों को अटपटा लगे. ख़ास कर उन लोगों को जो हिंदी से प्रेम तो करते हैं, लेकिन इसकी स्वीकार्यता को लेकर चिंतित भी हैं. लेकिन विश्वास कीजिए, अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागन को हिंदी से प्यार हो गया है.

हालाँकि इस आशय की ख़बर भारत के अंग्रेज़ीदाँ मीडिया की उपेक्षा का शिकार बन गई. कोई आश्चर्य भी नहीं, जो उन्होंने हिंदी के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते महत्व को रेखांकित करती इस ख़बर की ज़्यादा चर्चा नहीं की. गूगल करने से पता चलता है कि अमरीकी मीडिया ने इसे ख़ासा महत्व दिया.

आपको शायद याद हो कि कुछ महीने पहले अपने एक भाषण में अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अमरीकियों से अंग्रेज़ी के अलावा जिन गिनीचुनी विदेशी भाषाओं में दक्षता हासिल करने की अपील की थी, उनमें हिंदी का भी नाम था. बुश ने इस घोषणा के साथ हिंदी को 'राष्ट्रीय सुरक्षा भाषा पहल' में शामिल करने की घोषणा भी की थी.(उस समय भी भारत के अंग्रेज़ीदाँ मीडिया टीकाकारों ने बुश के इस भाषण को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया था.)

लेकिन बुश ने वास्तव में बहुत गंभीरता से अपनी बात रखी थी. इसका प्रमाण है बुश के गृह प्रांत के विश्वविद्यालय यूनीवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस की घोषणा कि वह हिंदी(और उर्दू) भाषा के एक चार-वर्षीय कोर्स की शुरूआत करने जा रहा है. इस 'Hindi and Urdu Flagship Program' नामक विशेष कोर्स(विश्वविद्यालय में इन भाषाओं के सामान्य कोर्स चार दशकों से जारी हैं) के तहत हिंदी के छात्रों को तीन साल अमरीका में और एक साल भारत में रह कर पढ़ाई करनी होगी.

लेकिन पूरी ख़बर का मूल तत्व ये है कि यूनीवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस के इस विशेष हिंदी-उर्दू कार्यक्रम के लिए सात लाख डॉलर का पूरा बजट अमरीकी रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से आएगा. अमरीका में पेंटागन संचालित कार्यक्रमों में से एक है- राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा कार्यक्रम. इस कार्यक्रम के तहत अमरीकियों को राष्ट्रीय और वैश्विक सुरक्षा की दृष्टि से अहम विदेशी भाषाओं में दक्षता प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं. (अमरीकी सरकार कहे या नहीं, उसकी इस पहल के पीछे एक उद्देश्य भारत के सुपरफ़ास्ट आर्थिक विकास का ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाना भी है.)

कहने की ज़रूरत नहीं कि भारत और पाकिस्तान दोनों के परमाणु ताक़त के रूप में स्थापित होने, और दोनों के अमरीका से निकट संबंध होने के कारण अमरीका के लिए हिंदी और उर्दू की अहमियत बहुत बढ़ जाती है. (भारत के आर्थिक ताक़त के रूप में उभरने के कारण भी सामरिक दृष्टि से हिंदी का महत्व बढ़ा है. दूसरी ओर पाकिस्तान के अल-क़ायदा का अभ्यारण्य होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से उर्दू का महत्व बढ़ा है.)

यूनीवर्सिटी ऑफ़ टेक्सस ने अगले सत्र से शुरू अपने विशेष हिंदी कोर्स के प्रचार के लिए टेक्सस के विद्यालयों में हिंदी भाषा की कार्यशालाएँ लगाने की शुरुआत भी कर दी है. विशेष कोर्स का पहला सत्र भले ही दस छात्रों से शुरू किया जाएगा, लेकिन निश्चय ही यह एक अहम शुरुआत होगी.

शुक्रवार, जुलाई 21, 2006

आईआईटी-मुंबई का कमाल 'हिंदी शब्दतंत्र'

इंटरनेट में अचानक ही कई बेजोड़ चीज़ें मिल जाती हैं. ऐसी ही एक बेजोड़ चीज़ है- हिंदी शब्दतंत्र और उसी से जुड़ा बेहतरीन हिंदी शब्दकोश.

जैसा कि हमारी सरकारी एजेंसियों के अधिकतर अच्छे कामों के बारे में होता आया है, हिंदी शब्दतंत्र के बारे में भी ढंग से कोई प्रचार नहीं किया गया. कुछ वैज्ञानिक गोष्ठियों में इस पर चर्चा ज़रूर हुई होगी.

थोड़ी छानबीन के बाद पता चला कि हिंदी शब्दतंत्र और कुछ नहीं बल्कि भविष्य के एक चमत्कार का आधारभूत ढाँचा है. आने वाले वर्षों में जब एक भाषा से दूसरे में ढंग का मशीनी अनुवाद संभव हो पाएगा, तब हम हिंदी शब्दतंत्र के महत्व को ठीक से समझ सकेंगे.

ज़्यादा तकनीकी ब्यौरे में नहीं जाते हुए बताया जाए तो शब्दतंत्र या WORDNET भाषा और कंप्यूटर प्रोग्राम का ऐसा सुमेल है, जो कि एक भाषा के माल को दूसरी भाषा में ढालने का कारखाना साबित हो सकता है. भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्र में ये कितना उपयोगी साबित हो सकता है, इसकी सहज कल्पना भी संभव नहीं है.

शब्दतंत्र को बाकी मशीनी शब्दकोशों से इस मामले में अलग माना जा सकता है कि यह सिर्फ़ पारिभाषिक अर्थों पर नहीं, बल्कि शब्द विशेष के विभिन्न उपयोगों पर भी गौर फ़रमाता है. कंप्यूटर किसी शब्द का इतना वास्तविक वर्गीकरण SYNSET के सिद्धांत पर करता है. SYNSET यानि a set of one or more synonyms, मतलब समानार्थक शब्दों का वर्ग या मुद्रिका.

आइए हिंदी शब्दतंत्र में एक शब्द 'आम' के उदाहरण के ज़रिए SYNSET के कमाल को देखते हैं.


आम...

Noun(2)
(R) आम, रसाल, आम्र, अंब, अम्ब - एक फल जो खाया या चूसा जाता है "तोता पेड़ पर बैठकर आम खा रहा है / शास्त्रों ने आम को इंद्रासनी फल की संज्ञा दी है"
(R) आम, आम वृक्ष, पिकप्रिय, पिकदेव, पिकबंधु, पिकबन्धु, पिकबंधुर, पिकबन्धुर, पिकराग - एक बड़ा पेड़ जिसके फल खाए या चूसे जाते हैं "आम की लकड़ी का उपयोग साज-सज्जा की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है"

Adjective(2)
(R) सामान्य, आम, साधारण, कामचलाऊ, मामूली, अविशिष्ट, अविशेष, अदिव्य - जिसमें कोई विशेषता न हो या अच्छे से कुछ हल्के दरज़े का "यह सामान्य साड़ी है"
(R) सामूहिक, आम, सार्वजनिक, सामुदायिक, सामान्य - प्रायः सभी व्यक्तियों,अवसरों,अवस्थाओं आदि में पाया जानेवाला या उनसे संबंध रखनेवाला "साक्षरता पर विचार-विमर्श हेतु एक सामूहिक सभा का आयोजन किया गया"

ऊपरोक्त विवरण में हरे में है समानार्थक शब्दों का समूह, नीले में है परिभाषा और बैंगनी में है वाक्य के रूप में उदाहरण.

आज 22 जुलाई 2006 की बात करें तो हिंदी शब्दतंत्र में 47076 अलग-अलग शब्द, और 22469 SYNSETs हैं.

मुंबई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी केन्द्र ने हिंदी शब्दतंत्र का विकास किया है. इसका आधार प्रिंसटन विश्वविद्यालय के वर्डनेट को माना जा सकता है. जहाँ तक मुझे पता चला है शब्दतंत्र के विकास में ढाई साल लगे और इसी साल दो अप्रैल को आईआईटी-मुंबई में ही एक वैज्ञानिक संगोष्ठी में इसका लोकार्पण किया गया. आईआईटी-मुंबई ने हिंदी के साथ ही मराठी भाषा के लिए भी मराठी शाब्दबंध नाम से एक शब्दतंत्र का विकास किया है.

बात यहीं पर आकर अटक नहीं जाती आईआईटी-मुंबई के विशेषज्ञों ने एक बेहतरीन शब्दकोश भी बना डाला है. इसमें अंग्रेज़ी-हिंदी के अलावा हिंदी-अंग्रेज़ी में भी शब्दों के अर्थ देखने की सुविधा है. यूनीवर्सल वर्ड- हिंदी लेक्सिकन नामक यह शब्दकोश कई विशेषताएँ लिए हैं. मसलन EXACT के साथ-साथ LIKE श्रेणी में भी अर्थ ढूँढने की सुविधा. और आपने LIKE श्रेणी में अर्थ ढूँढे तो शब्द से जुड़े मुहावरे भी सामने आ सकते हैं. इसी तरह यहाँ हिंदी टंकण के लिए झंझटमुक्त की-बोर्ड की भी व्यवस्था की गई है.

शब्दतंत्र और शब्दकोश दोनों विकास की अवस्था में हैं. इसलिए हमारी राय आईआईटी-मुंबई के विशेषज्ञों के लिए ख़ास महत्व रखती है. शब्दकोश पर मैंने भी एक सलाह दी कि वैसी व्यवस्था ज़रूर की जाए जिसमें पूरा शब्द टाइप करने की ज़रूरत नहीं हो. यानि दो-तीन मात्राएँ टाइप करते ही संभावित शब्दों के विकल्प सामने आ जाएँ, जिनमें से इच्छित पर क्लिक करने मात्र से ही काम बन जाए.

हमलोगों में से कई लोग कंप्यूटर के महारथी और सच्चे अर्थों में हिंदी सेवी हैं. आप महानुभावों से अनुरोध है कि आईआईटी-मुंबई के कर्मयोगियों को अपनी सलाह उपलब्ध कराने की कृपा करें.

सोमवार, जुलाई 10, 2006

विदेश मंत्रालय ने हिंदी को भुलाया

इस आलेख का शीर्षक पढ़ कर हो सकता है आपको कोई आश्चर्य नहीं हो. ठीक भी है, क्योंकि लगता नहीं कि विदेश मंत्रालय ने कभी हिंदी को याद भी किया होगा.

दरअसल यह आलेख विदेश मंत्रालय (या Ministry of External Affairs की तर्ज़ पर भारत के बाह्य मामलों का मंत्रालय?) की वेबसाइट पर केंद्रित है. इस वेबसाइट का एक पेज हिंदी में है. परंपरा (कम-से-कम पिछले दो साल से) यह थी कि विदेश मंत्रालय के अतिसक्रिय नौकरशाह इस पेज को साल में तीन बार हिलाते थे या थोड़ी तकनीकी भाषा में कहें तो अपडेट करते थे.

अपडेट क्या होता था, उस पेज पर तीन भारी-भरकम भाषण डाल दिए जाते थे. ज़ाहिर है, भाषण का बोझ पड़ने के कारण पेज हिल जाता था.

ये तीन भाषण हैं: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का भाषण, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का भाषण और स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री का भाषण.

लेकिन पता नहीं करोड़ों की प्यारी (लेकिन बेचारी) हिंदी से क्या गुस्ताख़ी हो गई, कि विदेश मंत्रालय के बाबुओं ने इस साल गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के भाषण को अपनी वेबसाइट के हिंदी पेज पर जगह नहीं देने का फ़ैसला कर लिया. विश्वास नहीं हो नीचे दिए गए 'स्क्रीन ग्रैब' को देखें जो कि मैंने भारतीय समयानुसार 10 जुलाई की आधी रात को लिया है.


फ़ॉरेन सर्विस वाले बाबुओं से विनती है कि कम-से-कम स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर हिंदी को नहीं भूलें. माना हिंदी ने कोई ग़लती कर दी होगी, लेकिन इस साल गणतंत्र दिवस के मौक़े पर आपके हाथों उपेक्षित होकर वह सज़ा भी तो काट चुकी है.

अन्य विभाग और कार्यालय

विदेश मंत्रालय के हिंदी से नाममात्र का भी राजनयिक संबंध नहीं रखने के फ़ैसले की जानकारी मिलने के बाद मैंने बाक़ी मंत्रालयों, विभागों और कार्यालयों की वेबसाइटों का भी औचक निरीक्षण किया. प्रस्तुत हैं कुछ रोचक तथ्य:-

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वेबसाइट पर एक ही जगह हिंदी है. वो जगह है अशोक स्तंभ के चित्र नीचे का स्थल जहाँ देवनागरी में 'सत्यमेव जयते' लिखा है. लेकिन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की वेबसाइट पर तो हिंदी की एक झलक तक नहीं मिलती.

रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय की वेबसाइटों पर हिंदी को जगह नहीं दी गई है.

मुझे लगा देहाती शैली में हिंदी बोलने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह के ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर हिंदी होगी. इस सरकारी लिंक http://rural.nic.in/ ने काम नहीं किया तो दूसरे रास्ते से रघुवंश बाबू के मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर अपनी उम्मीदों पर पानी फेरा.

निरक्षरों को पढ़ना-लिखना सिखाने वाले राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की वेबसाइट पर भी हिंदी नहीं है. उम्मीद के अनुरूप रेल मंत्रालय की वेबसाइट हिंदी में भी है. लेकिन उसके कुछ हिस्से में 'कार्य प्रगति पर है.' का बोर्ड लगा मिला.

भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर हिंदी के नाम पर प्रेस विज्ञप्तियों का एक लिंक मात्र है. दूसरी ओर प्रेस विज्ञप्तियाँ जारी करने वाले पत्र सूचना कार्यालय की वेबसाइट पर मुझे 10 जुलाई को अंग्रेजी में जहाँ कुल 10 सरकारी बयान मिले, वहीं हिंदी में मात्र तीन.

भारत के राष्ट्रीय पोर्टल पर ही संविधान के हिंदी पेज का लिंक ढूँढा. वहाँ गया तो पहली नज़र में सब कुछ अंग्रेज़ी में ही दिखा. हालाँकि पेज पर कई अघोषित लिंक हैं जिन्हें क्लिक करने पर हिंदी दिखती है.

सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर हिंदी नहीं है. दूरदर्शन की वेबसाइट पर भी हिंदी दर्शन नहीं होता.

लोकसभा की वेबसाइट पर हिंदी नहीं है. कुछ बहसों के अंश हिंदी में देखने के लिए हिंदी फ़ोंट डाउनलोड करने के लिए एक लिंक ज़रूर है. राज्यसभा की वेबसाइट का सीमित हिंदी संस्करण है, लेकिन योगेश और सुरेख नामक फ़ोंट डाउनलोड करने होंगे.

इसी तरह आकाशवाणी की वेबसाइट के हिंदी संस्करण को देखने के लिए कृतिदेव020 फ़ोंट डाउनलोड करना पड़ा. हालाँकि इसके बाद भी वहाँ ज़्यादातर अंग्रेज़ी माल ही दिखा या फिर खाली डिब्बा.

राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर हिंदी को लेकर बहुत अच्छी-अच्छी बातें की गई हैं. लेकिन वहाँ उसकी हिंदी पत्रिका राजभाषा भारती के लेखों के बज़ाय, उनकी सूची मात्र से काम चलाइए.

सोमवार, जुलाई 03, 2006

मिलियन-बिलियन दूर नहीं

मेरे पिछले पोस्ट पर आई टिप्पणियों में आलोक भाई की टिप्पणी सबसे अलग हट कर है. उन्होंने लिखा है- "800 अरब डॉलर- यानी आठ खरब, न? ये अखबार वालो ने - ख़ासतौर पर अङ्ग्रेज़ी अखबार वालो ने - ये मान्यता फैला दी है कि करोड़ के ऊपर हिन्दुस्तानी गिनती में कुछ नहीं होता है। कम से कम अरब की सङ्ख्या देख के तो खुशी हुई, पर इसे भी 8 खरब लिखा जा सकता है।"

मैं आलोक जी से पूरी तरह सहमत हूँ. लेकिन ख़ुद को असहाय पाता हूँ.

सच कहें तो अब तो मुझे मात्र धार्मिक साहित्य में ही खरब का ज़िक्र नज़र आता है(जैसे: अरबों-खरबों जीवों में से प्रत्येक में ईश्वर का अंश है), या फिर खगोल विज्ञान के कतिपय लेखों में(जैसे: हमारी आकाशगंगा में खरबों की संख्या में तारे हैं).

ग़लती जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थानों और मीडिया प्रतिष्ठानों की है. मीडिया संस्थानों में पढ़ाया जाता है- 'करोड़ से ऊपर जाने से बचो क्योंकि लोग अरब-खरब में कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं.' कहने का मतलब एक अरब की जगह सौ करोड़ लिख मारो. अब जब पढ़ाई के दौरान ही इस तरह की घुट्टी पिलाई जाती हो, तब भला क्या किया जाए!

इसी तरह भारतीय प्रकाशनों में भारत से जुड़े आर्थिक आँकड़े भी डॉलरों में देने का चलन भी बहुत ख़राब माना जा सकता है. भारत में उपलब्ध अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में डॉलर का प्रयोग बिल्कुल सही है. यहाँ तक कि भारतीय पाठकों के लिए ही लेकिन अंतरराष्ट्रीय आँकड़ों के साथ लिखे गए लेखों में भी डॉलर चलेगा. लेकिन भारत में खपत के लिए, भारत से जुड़े विषयों पर, भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों में डॉलर लिखने की बाध्यता से तो बचा जा सकता है.

मुझे तो लगता है स्थिति और बुरी होने वाली है. मैंने ख़ुद कई समाचार प्रतिष्ठानों में अनेक पत्रकारों को 'मिलियन' को 'लाख' में बदलते हुए झल्लाते देखा है. हिंदी मीडिया में अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े लोगों की बढ़ती घुसपैठ को देखते हुए कुछ वर्षों के भीतर हिंदी लेखन में 'मिलियन' का महामारी की तरह फैलना तय माना जाना चाहिए.

हमें नहीं लगता इस तरह के चलन को रोकना आसान होगा क्योंकि सूचना की बौछार के बीच काम करते लोग डॉलर को रुपये में और मिलियन को लाख में बदलने का अतिरक्त बोझ उठाने को तैयार नहीं दीखते. ('टाइट डेडलाइन' में काम करते हुए उन्हें मिलियन-लाख के खेल में दशमलव के सही जगह से इधर-उधर खिसकने का भी डर रहता है.) जब मीडिया का रवैया ऐसा है तो हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं कि हम आने वाले वर्षों में हिंदी में भी मिलियन-बिलियन झेलने के लिए ख़ुद को तैयार रखें.

स्टार न्यूज़, ज़ी न्यूज़, नवभारत टाइम्स जैसे कई स्वनामधन्य मीडिया प्रतिष्ठान हिंदी के अंग्रेज़ीकरण के सबल वाहक बने हैं. स्वास्थ्य, विज्ञान और कुछ हद तक आर्थिक ख़बरों में अंग्रेज़ी के शब्दों का बढ़ता प्रचलन तो समझ में आता है क्योंकि नए-नए पारिभाषिक शब्द आ रहे हैं. लेकिन जानबूझकर हिंदी की जगह अंग्रेज़ी लिखना क्यों ज़रूरी होता जा रहा है, पता नहीं. एक छोटा-सा उदाहरण: आज 'स्टार न्यूज़' पर कोई प्रस्तुतकर्ता या संवाददाता 'टीम इंडिया' की जगह 'भारतीय टीम' कहने की ज़ुर्रत नहीं कर सकता!

सोमवार, जून 26, 2006

इंडिक ब्लॉगर्स अवार्ड्स में छाई हिंदी

बंधुओं इंडिक ब्लॉगर्स अवार्ड्स घोषित हो चुके हैं. कब हुई घोषणा पता नहीं. ख़बर पुरानी हो चुकी हो, तो माफ़ी चाहूँगा. मुझ तक यह ख़बर आज ही पहुँची है.

रवि रतलामी जी को बहुत-बहुत बधाई, सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग का लेखक होने के लिए!

ख़ुशी की बात है कि हिंदी वालों ने तमिलभाषियों को कड़ी टक्कर दी है. मतलब ज़्यादा लिखें या नहीं, विजेताओं की सूची में ऊपर. (चलो कहीं तो सक्रिय हैं हिंदी से प्यार करने वाले!)

रमन जी को बधाई पुरस्कार जीतने के लिए, और धन्यवाद इस आयोजन की ख़बर ब्लॉगिस्तान में फैलाने के लिए. सर्वाधिक सक्रिय ब्लॉगर डॉ. सुनील को बधाई जो न कह सके के चुने जाने पर. डॉ. जगदीश व्योम जी को भी बधाई हिंदी साहित्य के पुरस्कृत होने पर. आशा है, ब्लॉग जगत में उनकी सक्रियता दोबारा देखने को मिलेगी. संत जनों ने देश-दुनिया को भी एक अवार्ड दिला दिया है. धन्यवाद!


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