सोमवार, जुलाई 03, 2006

मिलियन-बिलियन दूर नहीं

मेरे पिछले पोस्ट पर आई टिप्पणियों में आलोक भाई की टिप्पणी सबसे अलग हट कर है. उन्होंने लिखा है- "800 अरब डॉलर- यानी आठ खरब, न? ये अखबार वालो ने - ख़ासतौर पर अङ्ग्रेज़ी अखबार वालो ने - ये मान्यता फैला दी है कि करोड़ के ऊपर हिन्दुस्तानी गिनती में कुछ नहीं होता है। कम से कम अरब की सङ्ख्या देख के तो खुशी हुई, पर इसे भी 8 खरब लिखा जा सकता है।"

मैं आलोक जी से पूरी तरह सहमत हूँ. लेकिन ख़ुद को असहाय पाता हूँ.

सच कहें तो अब तो मुझे मात्र धार्मिक साहित्य में ही खरब का ज़िक्र नज़र आता है(जैसे: अरबों-खरबों जीवों में से प्रत्येक में ईश्वर का अंश है), या फिर खगोल विज्ञान के कतिपय लेखों में(जैसे: हमारी आकाशगंगा में खरबों की संख्या में तारे हैं).

ग़लती जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थानों और मीडिया प्रतिष्ठानों की है. मीडिया संस्थानों में पढ़ाया जाता है- 'करोड़ से ऊपर जाने से बचो क्योंकि लोग अरब-खरब में कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं.' कहने का मतलब एक अरब की जगह सौ करोड़ लिख मारो. अब जब पढ़ाई के दौरान ही इस तरह की घुट्टी पिलाई जाती हो, तब भला क्या किया जाए!

इसी तरह भारतीय प्रकाशनों में भारत से जुड़े आर्थिक आँकड़े भी डॉलरों में देने का चलन भी बहुत ख़राब माना जा सकता है. भारत में उपलब्ध अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में डॉलर का प्रयोग बिल्कुल सही है. यहाँ तक कि भारतीय पाठकों के लिए ही लेकिन अंतरराष्ट्रीय आँकड़ों के साथ लिखे गए लेखों में भी डॉलर चलेगा. लेकिन भारत में खपत के लिए, भारत से जुड़े विषयों पर, भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों में डॉलर लिखने की बाध्यता से तो बचा जा सकता है.

मुझे तो लगता है स्थिति और बुरी होने वाली है. मैंने ख़ुद कई समाचार प्रतिष्ठानों में अनेक पत्रकारों को 'मिलियन' को 'लाख' में बदलते हुए झल्लाते देखा है. हिंदी मीडिया में अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े लोगों की बढ़ती घुसपैठ को देखते हुए कुछ वर्षों के भीतर हिंदी लेखन में 'मिलियन' का महामारी की तरह फैलना तय माना जाना चाहिए.

हमें नहीं लगता इस तरह के चलन को रोकना आसान होगा क्योंकि सूचना की बौछार के बीच काम करते लोग डॉलर को रुपये में और मिलियन को लाख में बदलने का अतिरक्त बोझ उठाने को तैयार नहीं दीखते. ('टाइट डेडलाइन' में काम करते हुए उन्हें मिलियन-लाख के खेल में दशमलव के सही जगह से इधर-उधर खिसकने का भी डर रहता है.) जब मीडिया का रवैया ऐसा है तो हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं कि हम आने वाले वर्षों में हिंदी में भी मिलियन-बिलियन झेलने के लिए ख़ुद को तैयार रखें.

स्टार न्यूज़, ज़ी न्यूज़, नवभारत टाइम्स जैसे कई स्वनामधन्य मीडिया प्रतिष्ठान हिंदी के अंग्रेज़ीकरण के सबल वाहक बने हैं. स्वास्थ्य, विज्ञान और कुछ हद तक आर्थिक ख़बरों में अंग्रेज़ी के शब्दों का बढ़ता प्रचलन तो समझ में आता है क्योंकि नए-नए पारिभाषिक शब्द आ रहे हैं. लेकिन जानबूझकर हिंदी की जगह अंग्रेज़ी लिखना क्यों ज़रूरी होता जा रहा है, पता नहीं. एक छोटा-सा उदाहरण: आज 'स्टार न्यूज़' पर कोई प्रस्तुतकर्ता या संवाददाता 'टीम इंडिया' की जगह 'भारतीय टीम' कहने की ज़ुर्रत नहीं कर सकता!

8 टिप्‍पणियां:

आलोक ने कहा…

ख़ुद
खुद - मेरे खयाल से

आलोक ने कहा…

मीडिया संस्थानों में पढ़ाया जाता है- 'करोड़ से ऊपर जाने से बचो क्योंकि लोग अरब-खरब में कन्फ़्यूज़ हो जाते हैं.'

आश्चर्य। मैं तो सोचता था कि अङ्ग्रेज़ी पत्रकारों व आलस्य ही इसका कारण है, लेकिन अगर यही पढ़ाया भी जाता है तो बहुत खराब बात है। इन्हें चाहिए एक मिलयन से लाख का स्वतः परिवर्तक। इसपर काम करता हूँ।

Atul Arora ने कहा…

भारतीय गिनती खरब से भी ऊपर जाती है।


१०० खरब = एक शँख
१०० खँख = एक महाशँख

आगर गलत हो तो आलोक जी सुधार करें, बचपन की पढ़ी गणित जो हिंदी माध्यम में थी से याद कर लिख रहा हूँ , यहाँ ऐसी कोई हिंदी माध्यम की गणित की किताब उपलब्ध नही जिसमें संख्या पद्धति का उल्लेख हो।

अनुनाद सिंह ने कहा…

जहाँ तक मुझे याद रह गया है, अरब के बाद खरब, खरब के बाद नील, नील के बाद पद्म, पद्म के बाद शंख और अंत में महाशंख |

Sagar Chand Nahar ने कहा…

अनुनाद जी सही है, खरब के बाद,नील पद्म, शंख और महाशंख आते है,
मेरे ६ वर्षीय पुत्र जो तीसरी कक्षा में पढ़ता है आज उस्को पढा़ रहा था उसकी कक्षा कार्य की पुस्तिका देखी उसमें करोड़ के लिये लिखाया गया था, Hundred Thousand,और Million करोड़ नहीं, शिक्षिका पूछने पर उसने बताया, यह इन्टरनेशनल तरीका है, अब यही पढ़ाया जाता है। बड़ा दुख हुआ पर मजबूरी बन गई है।

नीरज दीवान ने कहा…

ये नासमिटे मीडियावाले हिन्दी की मैयत निकालने पर आमादा हैं. मैं खुद शंख-महाशंख भूल गया था. अलबत्ता शंखपुष्पी और शिलाजीत या है.

नीरज दीवान ने कहा…

याद हैं - पढ़ें.

santosh ने कहा…

सही है भाई