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इनसे मिलिए- ये हैं जेम्स रैण्डी. अमरीका के हैं. जादूगर हैं. कलाकार हैं. लेकिन इनकी असल ख़्याति होम्योपैथी से जुड़ी हुई है. दरअसल जेम्स रैण्डी ने खुला ऑफ़र दे रखा है कि वैज्ञानिक विधि से यह साबित कर दिखाओ कि होम्योपैथिक उपचार सचमुच में बीमारी दूर करता है, और ले जाओ 10 लाख डॉलर का पुरस्कार.
होम्योपैथिक दवाएँ वास्तव में दवाएँ हैं, या मात्र छलावा?- ये सवाल मेडिकल रिसर्च में लगे लोगों को एक अरसे से बहस में उलझाता रहा है. यह सवाल एक बार फिर नए सिरे से उछला है. उछले भी क्यों नहीं, जब प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लान्सेट इस पर सवाल उठा रहा हो.
अपने ताज़ा अंक में लान्सेट पत्रिका ने ब्रिटेन और स्विटज़रलैंड के विशेषज्ञों की एक संयुक्त टीम द्वारा किए गए 110 परीक्षणों की रिपोर्ट प्रकाशित की है.
अध्ययन टीम ने ये परीक्षण अस्थमा, एलर्जी और माँसपेशियों से जुड़ी बीमारियों समेत विभिन्न बीमारियों पर किए हैं. छोटे नमूने वाले सामान्य परीक्षणों में तो होम्योपैथिक और सामान्य अंग्रेज़ी दवाओं को ज़्यादा या कम असरदार पाया गया, लेकिन उच्च कोटि के परीक्षण में होम्योपैथिक दवाओं का वही असर देखा गया जो कि अक्रिय नकली गोलियों का था.
अध्ययन से जुड़े बर्न विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर मैथियस एगर के अनुसार कुछ लोगों ने होम्योपैथिक दवाओं के असरदार होने की बात की है वो इलाज़ के पूरे अनुभव के कारण ऐसा कहते होंगे क्योंकि होम्योपैथ डॉक्टर रोगी को पूरा समय देते हैं, उन पर ध्यान देते हैं.
सोसायटी ऑफ़ होम्योपैथ्स ने न सिर्फ़ लान्सेट की रिपोर्ट पर बल्कि अक्रिय नकली गोलियों के मुक़ाबले किसी दवा के असर के परीक्षण की प्रक्रिया पर ही सवाल उठा दिया है.
उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में होम्योपैथिक दवाओं को गुण-रहित गोलियों से बेहतर माना गया है. लेकिन लान्सेट की मानें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का आधार पुराने और आसान परीक्षण हैं. मतलब उस पर पूरी तरह यक़ीन नहीं किया जा सकता है.
लेकिन सवाल यह भी है कि लान्सेट की रिपोर्ट को ही हूबहू क्यों स्वीकार किया जाए! यानी सवाल बना ही रहेगा कि होम्योपैथी एक चिकित्सा प्रणाली है या मात्र आस्था का एक रूप?