ब्रिटेन में इन दिनों इराक़ युद्ध के बारे में एक जाँच आयोग की सुनवाई में ये बात एक बार फिर स्पष्ट हो रही है कि 11 सितंबर 2001 के हमलों से कई महीने पहले से ही अमरीका इराक़ पर हमले की योजना बना रहा था.
ज़ाहिर है अमरीकी सरकार ने ऊर्जा सुरक्षा या ईरान को घेरने जैसे बड़े सामरिक लक्ष्यों पर विचार कर इराक़ पर हमले की योजना बनाई होगी. बड़े सामरिक लक्ष्य दीर्घावधि के होते हैं जो कि कई बार पूरे होते भी नहीं. लेकिन हमले का शिकार बने किसी देश को लूटे जाने का सिलसिला पहले ही दिन से शुरू हो जाता है. इराक़ में भी यही हो रहा है. इस लूट में मुख्य रूप से अमरीका और ब्रिटेन की सुरक्षा कंपनियाँ भाग ले रही हैं.
इसी महीने न्यूयॉर्क टाइम्स ने इराक़ को 8 करोड़ डॉलर का चूना लगाए जाने के एक विचित्र-किंतु-सत्य टाइप प्रकरण को उजागर किया था. उसके बाद में ब्रिटेन के गार्डियन और टाइम्स जैसे अख़बारों ने इस मामले में आगे छानबीन की. अब जाकर इराक़ी संसद की नींद टूटी है, और उसने पूरे मामले की जाँच की घोषणा की है.
मामला ब्रिटेन की एक निजी कंपनी का है जिसने इराक़ को ऐसी जादुई छड़ी की खेप बेची जो कि कथित रूप से बम, गोला-बारूद, हथियार, नशीले पदार्थ, अवैध हाथी दाँत जैसी तमाम चीजों का पाँच किलोमीटर तक की दूरी से पता लगा लेती है.
कथित चमत्कारी उपकरण को देखने से तो यही लगता है कि प्लास्टिक के एक हत्थे पर रेडियो वाला सामान्य टेलीस्कोपिक एंटीना लगा दिया गया हो. इस उपकरण का नाम है ADE651. इसकी अलग-अलग आकार और कथित क्षमता वाली डेढ़ हज़ार यूनिट इराक़ सरकार को बेची गई हैं, प्रति नग 60 हज़ार डॉलर तक के दाम में.
उल्लेखनीय है कि इराक़ में तैनात अमरीकी सेना ADE651 का इस्तेमाल नहीं करती है. वरिष्ठ अमरीकी सैनिक अधिकारियों ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि ये उपकरण किसी भी काम का नहीं है और 60 हज़ार डॉलर में तो गोला-बारूद का पता लगाने मे निपुण पाँच से आठ प्रशिक्षित कुत्ते खरीदे जा सकते हैं. जब अख़बार ने ये सुझाव इराक़ के बमरोधी पुलिस विभाग के प्रमुख मेजर जनरल जेहाद अल-जबीरी के सामने रखा तो उनका जवाब बेमिसाल था- "आप बग़दाद के 400 सुरक्षा चौकियों पर कुत्तों की तैनाती के बारे में सोच भी सकते हैं? शहर एक चिड़ियाघर में तब्दील हो जाएगा."
ADE651 बनाने वाली कंपनी ATSC का अपने उत्पाद के बारे में दावा गज़ब का है- 'ADE651 से बम, बंदूक, कारतूस, मादक पदार्थ, लाश यहाँ तक कि हाथी दाँत का भी पता चल सकता है. ये ज़मीन के नीचे, पानी में या दीवारों के पीछे छुपी इन चीज़ों का एक किलोमीटर दूर से पता लगा सकता है. जहाँ तक हवा की बात है तो इस उपकरण के ज़रिए नीचे ज़मीन से ही पाँच किलोमीटर ऊपर उड़ रहे विमान में इन चीज़ों का पता लगाया जा सकता है.'
इस उपकरण की एक और विचित्र विशेषता है- 'इसे काम करने के लिए न किसी बैटरी की ज़रूरत होती है और न ही ऊर्जा के किसी अन्य प्रकार की.'
इतना ही नहीं ADE651 में कोई इलेक्ट्रॉनिक सर्किट भी नहीं है. इसके काम करने का तरीक़ा भी बड़ा सरल बताया गया है. एंटीना यूनिट तार के ज़रिए प्लास्टिक के डिब्बे से जुड़ा होता है जिसके खांचे में उस चीज़ के गुणों से युक्त(electromagnetic resonance) प्लास्टिक का एक कार्ड लगता है जिसकी कि तलाश की जानी हो. मतलब यदि बारूद का पता लगाना हो तो बारूद के विशेष भौतिक गुणों से युक्त कार्ड खांचे में डलेगा. बारूद वाले उदाहरण को ही आगे बढ़ाएँ तो आप एंटीना को सतह के क्षैतिज पकड़े रहें, बस. यदि एक किलोमीटर की दायरे में कहीं बारूद रहा तो एंटीना ख़ुद-ब-ख़ुद उस ओर झुक जाएगा!
ब्रितानी अख़बार टाइम्स का पत्रकार जब ATSC के कर्ताधर्ता पूर्व पुलिस अधिकारी जिम मैक्कॉर्मिक से मिलने गया तो उसने पत्रकार को ADE651 का इस्तेमाल करने दिया. लेकिन उपकरण उसके कार्यालय जैसी छोटी-सी जगह में छुपाए गए बारूद का पता लगाने में भी नाकाम रहा. रही बात इराक़ में ADE651 के 'असल प्रभाव' की तो उसके लिए पिछले महीने का एक उदाहरण ही काफ़ी होगा. 25 अक्तूबर को बग़दाद में एक आत्मघाती हमलावर ने तीन मंत्रालयों की इमारतों को ध्वस्त करते हुए 155 लोगों को मार डाला था. हमलावर ADE651 उपकरण से लैस एक चेकपोस्ट से हो कर दो टन बारूद से भरा ट्रक ले गया था! इसी तरह न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने दो लोगों को AK47 राइफ़लों और कारतूसों के साथ ADE651 का इस्तेमाल करने वाली नौ इराक़ी पुलिस चौकियों से होकर गुजारा, एक भी जगह जादुई छड़ी को हथियारों की हवा नहीं लगी.
अमरीकी जादूगर जेम्स रैंडी ने ADE651 की निर्माता कंपनी ATSC को खुली चुनौती दे रखी है कि वो वैज्ञानिक जाँच में ये दिखा दे कि उसका उपकरण सचमुच में बारूद का पता लगा लेता है तो वह उसे 10 लाख डॉलर देंगे. साल भर बीत चुका है लेकिन ATSC ने रैंडी की चुनौती को स्वीकार नहीं किया है. अब रैंडी ने चुनौती का दायरा और बढ़ा दिया है. उनका कहना है कि ADE651 और कुछ नहीं बल्कि शुद्ध जालसाज़ी है. यदि आप उनके इस विश्वास को ग़लत साबित कर सकें तो 10 लाख डॉलर का पुरस्कार आपका!
ये कोई संयोग नहीं है कि किसी भी विकसित देश की सेना या पुलिस इस उपकरण का इस्तेमाल नहीं करती. सिर्फ़ कुछ विकासशील देशों में ही इसे बेचा जा सका है. लंदन के टाइम्स अख़बार से बातचीत में ATSC के मालिक मैककॉर्निक ने अपने ग्राहकों में भारत की पुलिस का भी नाम गिनाया है. कंपनी की वेबसाइट अभी डाउन चल रही है, वरना ये जानना रोचक होगा कि भारत के किस राज्य की पुलिस ने जादुई छड़ी ख़रीदी है !
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3 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया जानकारी दी है . धन्यवाद
जैसे बुलेटप्रूफ जैकेट लिये थे, वैसे यह भी खरीदा होगा किसी राज्य की पुलीस ने! :-)
साहब,आपको ही याद कर रहे थे, आपके लिखे का मैं सिरे से कायल हो गया हूँ. आपके कहने का अंदाज़ बेमिसाल है. आपकी सारी रचनाएँ मैंने पूरे ध्यान से पढ़ी है. साबह आप का कोई जवाब नहीं, हर लेख एक से बढ़ कर एक होता है. कमाल है आप की क़लम का जादू.
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