जलदस्यु समस्या सोमालिया के पास ही क्यों?
इसके दो प्रमुख कारण हैं- पहला सोमालिया में किसी प्रभावी सरकार का नहीं होना, और दूसरा सोमालिया से लगे समुद्र से होकर होने वाला विशद समुद्री व्यापार.
पहले कारण की बात करें तो पिछले दो दशकों से सोमालिया में सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है. सोमालिया के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग गुटों या गिरोहों के प्रभाव में हैं. अभी सोमालिया की जिस अंतरिम सरकार या Transitional Federal Government (TFG) को संयुक्तराष्ट्र संघ की मान्यता मिली हुई है, वो सच कहें तो राजधानी मोगादिशू पर भी पूरा नियंत्रण करने में नाकाम रही है. TFG को अमरीका की शह पर पड़ोसी देश इथियोपिया की सैनिक मदद मिली हुई है, लेकिन उसके बाद भी वह Union of Islamic Courts का सामना करने में सक्षम नहीं है. चरमपंथियों, मुल्लों और कुछ बड़े व्यवसायिओं के गुट Islamic Courts ने देश के बड़े भाग पर नियंत्रण कर रखा है. इससे अलग हुए एक अतिचरमपंथी धड़े अल-शबाब का भी देश के कुछ हिस्सों पर प्रभावी नियंत्रण है. लेकिन सोमालिया के कई बड़े हिस्से ऐसे हैं जो कि इन तीनों गुटों के नियंत्रण से भी बाहर हैं. इन हिस्सों में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला क़ानून चलता है जो कि करोड़ों डॉलर की नकदी और भारी-भरकरम असलहों से लैस समुद्री लुटेरों के लिए आदर्श स्थिति बनाता है.
बात करें दूसरे कारण की तो अराजक स्थिति वाले सोमालिया से लगते अदन की खाड़ी से होकर दुनिया का 8 प्रतिशत व्यापार होता है. सिर्फ़ तेल की बात करें तो दुनिया के तेल व्यापार का आठवाँ हिस्सा अदन की खाड़ी से होकर गुजरता है. इस आँकड़े में पूर्वी अफ़्रीकी तट से होकर गुजरने वाले मालवाहकों और तेल टैंकरों को भी शामिल कर लें, तो सोमाली समुद्री लुटेरों के पास लूटमार और अगवा करने के असीमित अवसर हैं.
इसके अलावा एक तीसरा महत्वपूर्ण कारण भी है- गृहयुद्ध में फंसे सोमालिया में न तो हथियारों की कमी है, और न ही जान हथेली लेकर चलने वाले लड़ाकों की. पारंपरिक रूप से समुद्र में मछली मार कर आजीविका चलाने वाले सोमाली कबीलों में बड़ी संख्या में ऐसे युवक भी हैं जो कि विकसित देशों के मछुआरों के अपने परंपरागत इलाक़े में नियमित अतिक्रमण के कारण बेरोज़गार हो गए हैं. स्थानीय समुद्र के बारे में पीढ़ियों से संग्रहित पारंपरिक जानकारियों और ख़ुद के अनुभव के कारण ऐसे युवक लुटेरों के किसी गिरोह के लिए ज्ञानेन्द्रियों का काम करते हैं.
लुटेरे बड़े-बड़े पोतों पर आसानी से क़ब्ज़ा कैसे कर लेते हैं?
दरअसल बड़े असैनिक पोतों पर क़ब्ज़ा करना बड़ा ही आसान होता है. उदाहरण के लिए सोमाली जलदस्युओं ने जिस सबसे बड़े पोत पर क़ब्ज़ा किया है वो सउदी अरब का सुपर-टैंकर सीरियस स्टार है. ऐसे सुपर-टैंकर VLCC या Very Large Crude Carriers की श्रेणी में आते हैं. आकार की बात करें तो ये एक विमानवाही पोत से तीन गुना बड़े आकार के होते हैं. लेकिन जब किसी VLCC पर पर्याप्त मात्रा में तेल लदा हो तो उसका डेक पानी से मात्र साढ़े तीन से चार मीटर ऊपर होता है. तेल से लदा एक सुपर-टैंकर बमुश्किल 15 से 20 नॉट प्रति घंटे की रफ़्तार से चलता है, लेकिन लुटेरों की स्पीडबोट इससे कहीं तेज़ी से चलती हैं. ऐसे में 10-20 हथियारबंद लुटेरे बिना किसी समस्या के महापोत के डेक पर पहुँच कर 20-25 की संख्या में मौजूद निहत्थे जहाज़कर्मियों को अपने क़ब्ज़े में लेकर जहाज़ को अगवा कर लेते हैं.
लुटेरों के काम करने के तरीक़े के बारे में कुछ बताएँ?
अभी तक आमतौर पर यही माना जाता है कि लुटेरे किसी ख़ास जहाज़ को निशाना बनाने के बजाय जो हाथ लग गया उसी को अगवा कर लेने की नीति पर चलते हैं. लेकिन अब विशेषज्ञों का मानना है कि सोमाली गिरोहों ने दुबई और जिबूति जैसे मुख्य बंदरगाहों पर अपने जासूस लगा रखे हैं जो उन्हें मालदार लक्ष्यों के बारे में सारी ज़रूरी जानकारी(क्या लदा है, कितने लोग हैं, क्या टाइमिंग है...आदि) अग्रिम मुहैय्या करा देते हैं. इसके अलावा किसी जहाज़ की राह पर इंटरनेट के ज़रिए नज़र रखना या जहाज़ विशेष की स्थिति की जानकारी ट्रांसमीट करने वाले AIS (automatic identification system)के संदेश को पकड़ना भी बिल्कुल आसान हो गया है.
एक बार अपना टार्गेट तय कर लेने के बाद लुटेरे किसी मच्छीमार पोत(आमतौर पर लूटा हुआ पोत) पर मछुआरों की भूमिका में अपने लक्ष्य के आसपास आते हैं. ऐसे मच्छीमार पोत पर वे अपना सारा असलहा और स्पीडबोट भी साथ लेकर चलते हैं. इसके बाद क्लाशनिकोफ़ राइफ़लों और ग्रेनेड लॉन्चरों(RPGs) से लैस लुटेरे अचानक तीन-चार स्पीड बोटों में लद कर लक्षित जहाज़ को चारों तरफ़ से घेर लेते हैं. जिस जहाज़ पर हमला किया गया उस पर लुटेरों को भगाने की कोई व्यवस्था नहीं होती है. ज़्यादा-से-ज़्यादा वे पानी की बौछार के ज़रिए लुटेरों को डेक पर आने से रोकने की नाकाम कोशिश भर ही की जाती है. दो हफ़्ते पहले एक निजी सुरक्षा कंपनी के जवानों ने पानी की बौछार के बजाय Magnetic Audio Devices के ज़रिए असहनीय शोर मचा कर कथित रूप से लुटेरों को भगाने का प्रदर्शन ज़रूर किया है, लेकिन समुद्री सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है ऐसे उपकरण लुटेरों के ख़िलाफ़ गारंटी बिल्कुल नहीं बन सकते हैं.
आँकड़ों की बात करें तो इस साल सोमाली लुटेरों ने कम-से-कम 90 जहाज़ों पर हमले किए हैं. इनमें से 39 जहाज़ों को अगवा किया गया. कुल 500 से ज़्यादा जहाज़कर्मियों को बंधक बनाया गया. फ़िरौती में मोटी रकम लेने के बाद ही जहाजों और उनके कर्मचारियों को छोड़ा गया. कीनिया के विदेश मंत्री ने कहा है कि लुटेरे इस साल 15 करोड़ डॉलर फ़िरौती में वसूल भी चुके हैं. इस समय भी सउदी सुपर-टैंकर समेत 15 जहाज़ और उनके 250 से ज़्यादा कर्मचारी लुटेरों की गिरफ़्त में फंसे हुए हैं. उल्लेखनीय है कि अभी तक एक भी बंधक को नुक़सान नहीं पहुँचाया गया है. हाँ ब्रितानी, फ़्रांसीसी और भारतीय नौसेना की कार्रवाइयों में कुछ लुटेरों के मारे जाने की ख़बरें ज़रूर प्रसारित की गई हैं.
शिपिंग कंपनियाँ अपने जहाज़ों और उस पर मौजूद कर्मचारियों की सुरक्षा की व्यवस्था क्यों नहीं करतीं?
एक तो जहाज़ और उस पर लदे माल का बीमा होने के कारण शिपिंग कंपनियों को सुरक्षा पर ध्यान देने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं होती. उन्हें लगता है कभी-कभार एकाध मामले में फ़िरौती देनी पड़ भी गई तो क्या है! दूसरी बात ये कि शिपिंग कंपनियाँ जहाज़ों पर मील-दो मील तक नज़र रखने वाले CCTV कैमरे, हमला होते ही कंपनी मुख्यालय में ख़तरे की घंटी बजा देने वाले उपकरण या ज़्यादा-से-ज़्यादा जहाज़ के पीछे के कुछ किलोमीटर के इलाक़े पर भी नज़र रखने वाले रडार उपकरण लगवा सकते हैं. अव्वल इनसे सचमुच के मच्छीमार पोत और लुटेरों के मदर-शिप में अंतर कर पाना ही हमेशा संभव नहीं होगा, और यदि लुटेरों की गतिविधियाँ पता चल भी गईं तो उन्हें जहाज़ पर क़ब्ज़े करने से रोकना असंभव ही होगा.
जहाज़ पर तैनात कर्मचारियों को हथियारबंद करने का पहले तो प्रावधान नहीं है(क्योंकि एक व्यापारिक जहाज़ अलग-अलग देशों की सीमा से होकर गुजरता है) और यदि मान लीजिए चार-पाँच सुरक्षा गार्ड तैनात कर दिए तो भी लुटेरों के मशीनगनों और रॉकेट लॉन्चरों के मुक़ाबले जब तक उन्हें तोप और हेलीकॉप्टर गनशिप जैसे साज़ोसमान नहीं दिए जाते हैं, बेचारे सुरक्षा गार्ड मुफ़्त में मारे जाएँगे!
अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलजुल कर कुछ क्यों नहीं करता, क्योंकि लुटेरों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को भी तो बाधित कर रखा है?
अंतरराष्ट्रीय समुदाय सचमुच में चिंतित है- ख़ास कर भारत, रूस, ब्रिटेन और अमरीका जैसे देशों की चिंता बहुत ज़्यादा है. या तो बड़ी मात्रा में इनका व्यापार अदन की खाड़ी से होकर चलता है, या इनके नागरिक शिपिंग के क्षेत्र में बड़ी संख्या में नौकरियों में हैं- ख़ास कर जहाज़ों पर. मुश्किल ये है कि आप सोमालिया की समुद्री सीमा में जाकर लुटेरों की मार-कुटाई करना चाहें तो सोमालिया में भले ही दशकों से सरकारविहीन अराजकता हो, अंतरराष्ट्री क़ानून किसी दूसरे देश को उसकी जलसीमा में घुस कर बेरोकटोक कार्रवाई करने की अनुमति नहीं देता. अंतत: 2 जून 2008 को पारित सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 1816 में अपने जहाज़ों या अपने व्यापार के हक़ में देशों को सोमालिया की जलसीमा में जाने की अनुमति ज़रूर दी गई है, लेकिन उसके साथ बहुत सारे किंतु-परंतु लगे हुए हैं. आप ख़ुद देखें प्रस्ताव का एक हिस्सा-
Acting under Chapter VII of the Charter of the United Nations, the Security Council,
7. Decides that for a period of six months from the date of this resolution, States cooperating with the TFG in the fight against piracy and armed robbery at sea off the coast of Somalia, for which advance notification has been provided by the TFG to the Secretary-General, may:
(a)Enter the territorial waters of Somalia for the purpose of repressing acts of piracy and armed robbery at sea, in a manner consistent with such action permitted on the high seas with respect to piracy under relevant international law; and
(b)Use, within the territorial waters of Somalia, in a manner consistent with action permitted on the high seas with respect to piracy under relevant international law, all necessary means to repress acts of piracy and armed robbery;
8. Requests that cooperating states take appropriate steps to ensure that the activities they undertake pursuant to the authorization in paragraph 7 do not have
the practical effect of denying or impairing the right of innocent passage to the ships of any third State;
इस बारे में सुरक्षा परिषद ने 7 अक्तूबर 2008 को एक और प्रस्ताव(संख्या 1836) पारित किया है, जिसमें कहा गया है- The Security Council calls upon States interested in the security of maritime activities to take part actively in the fight against piracy on the high seas off the coast of Somalia, in particular by deploying naval vessels and military aircraft, in accordance with international law, as reflected in the Convention;
लेकिन इन प्रस्तावों के बाद भी इस समस्या से पार पाना मुश्किल ही लगता है. भारत ने भले ही लुटेरों के एक मदरशिप को डुबोने सफलता हासिल की हो, लेकिन सच कहा जाए तो सोमाली लुटेरों से पार पाना अकेले भारतीय नौसेना के बूते की बात नहीं है. ऐसा विश्वास के साथ इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि अमरीका ने पहले अपने हाथ खड़े कर रखे हैं कि अकेले दम पर वह भी इस समस्या से नहीं निपट सकता है.
मौजूदा अंतरराष्ट्रीय क़ानून भारत या अमरीका की नौसेना को किसी तीसरे देश के नागरिकों को छुड़ाने के लिए किसी अन्य देश के जहाज़ पर कार्रवाई करने की अनुमति नहीं है. यहाँ तक कि यदि लुटेरे उन पर सीधे हमला नहीं कर रहे हों तो इन तीसरे पक्ष की सेनाओं को लुटेरों को मार गिराने का भी अधिकार नहीं है. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 1816 ने भले ही सोमालिया की अंतरिम सरकार की स्वीकृति के साथ शुरुआती छह महीनों के लिए विदेशी नौसेनाओं को सोमाली जलसीमा में जाने की इजाज़त दे दी है, लेकिन सोमालिया के भीतर जाकर ज़मीनी कार्रवाई करने की अनुमति तो फिर भी नहीं दी गई है. ऐसी अनुमति मिले बिना इस समय सक्रिय सोमालिया के क़रीब 1000 समुद्री लुटेरों को पूरी तरह निष्क्रिय करना लगभग असंभव ही होगा.
एक और अनुत्तरित सवाल ये है कि यदि अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई में लुटेरे पकड़े जाते हैं तो उनका क्या किया जाएगा? क्योंकि सोमाली लुटेरों को सोमालिया की नाम भर की सरकार को सौंपा गया तो उन्हें बिना किसी मान्य न्यायिक प्रक्रिया से गुजारे सीधे मार डाले जाने की आशंका रहेगी. पकड़े गए लुटेरों के लिए अंतरराष्ट्रीय युद्धापराध न्यायालय जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं है. न ही उनके लिए ग्वान्तानामो जैसी कोई जगह निश्चिंत की गई है. जिस देश की नौसेना सोमाली लुटेरों को समुद्र में पकड़ती है वो अपने देश के न्यायालय में भी नहीं ले जा सकता क्योंकि न तो उस देश का क़ानून इसकी इजाज़त देगा और न ही अंतरराष्ट्रीय संधियों में ऐसी कोई व्यवस्था है.
मलक्का जलडमरुमध्य और पूर्वी एशिया में जलदस्यु समस्या पर क्या क़ाबू नहीं पा लिया गया है?
हाँ, क़ाबू पा लिया गया है ऐसा कहा जा सकता है क्योंकि इस साल उस इलाक़े से इक्का-दुक्का घटनाओं की ही सूचनाएँ आई हैं. वहाँ इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया की सरकारों ने मिलजुल कर(चीन सरकार के आशीर्वाद के साथ, क्योंकि उस मार्ग से होकर उसका खरबों डॉलर का व्यापार होता है) व्यापारिक जहाज़ों को सुरक्षा कवच मुहैय्या कराया. यहाँ जलदस्यु समस्या से प्रभावति मार्ग अपेक्षाकृत बहुत छोटा है. संकरा होने के कारण इस पर निगरानी भी आसान है. इन सबसे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि इस इलाक़े के लुटेरों के पास सोमालिया जैसा अराजक आधार शिविर भी उपलब्ध नहीं है, कि भाग कर वे वहाँ शरण ले लें. साथ ही जिन सरकारों ने इस जलमार्ग की सुरक्षा की ज़िम्मेवारी उठाई है, उनसे अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अक्षरश: पालन की ज़्यादा अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है.
इसकी तुलना में सोमाली लुटेरों की बात करें तो न सिर्फ़ अदन की खाड़ी, बल्कि हिंद महासागर के एक तिहाई हिस्से में वो जहाज़ों पर हमले कर चुके हैं. सउदी सुपर-टैंकर का उदाहरण ही देखें तो उस पर कीनिया तट से 450 मील दूर जाकर क़ब्ज़ा किया गया. इन लुटेरों से सीधे टकराव की नीति अपनाई गई तो डर ये है कि वे न सिर्फ़ ख़ून-ख़राबे पर उतर सकते हैं बल्कि पर्यावरणीय विभीषिका भी ला सकते हैं. कल्पना कीजिए यदि लाखों बैरल तेल से लदे सुपर-टैंकर में आग लगा दी जाती है, या सारा तेल समुद्र में बहा दिया जाता है!?
लेकिन हाथ-पर-हाथ धरे बैठा भी तो नहीं जा सकता?
इस समस्या का दीर्घावधि का एकमात्र समाधान है सोमालिया में एक मज़बूत सरकार की स्थापना. उदाहरण के लिए दो साल पहले जब वहाँ इस्लामी कोर्ट्स ने शासन पर पकड़ मज़बूत की थी तो जलदस्यु गिरोह बहुत दिनों तक सुसुप्तावस्था में जाने पर मजबूर हो गए थे. मुश्किल ये है कि सोमालिया में एक मज़बूत सरकार स्थापित करने के ईमानदार अंतरराष्ट्रीय प्रयास आज शुरू किए जाएँ, तो सार्थक परिणाम मिलने में पाँच से दस साल तक लग सकते हैं.
तब तक एक अंतरराष्ट्रीय नौसैनिक गश्ती दस्ता बनाया जा सकता है, जिसकी बात अब खुल कर की भी जाने लगी है. ऐसा होने तक फ़ारस की खाड़ी और हिंद महासागर में सक्रिय नौसेनाओं वाले देश जहाजों को समूह में अदन की खाड़ी से पार कराने की ज़िम्मेवारी बारी-बारी से उठाएँ, जैसा कि पिछले दिनों रूस ने किया है.
इसके अतिरिक्त अदन की खाड़ी के दूसरे किनारे के देश यमन की भी मदद करने की ज़रूरत होगी. अभी जलदस्युओं से खदबदाते अपने 1100 मील लंबे तट पर पेट्रोलिंग के लिए उसके पास मात्र नौ गश्ती जहाज़ हैं.
एक तात्कालिक विकल्प की घोषणा की है सबसे बड़ी शिपिंग कंपनियों में से एक एपी-मोलर-मेर्स्क ने. उसने कहा है कि अदन की खाड़ी में स्थिति सुधरने तक वह अपने बड़े जहाज़ों को अफ़्रीका का चक्कर लगा कर आगे की यात्रा पर भेजेगा. लेकिन यहाँ याद रहे कि अफ़्रीकी महाद्वीप का चक्कर काट कर माल यूरोप या अमरीका पहुँचाने में 10 से 14 दिन की देरी होगी. और हर दिन की यात्रा पर शिपिंग कंपनियों को 30 से 40 हज़ार डॉलर का अतिरिक्त ख़र्चा उठाना पड़ेगा. ज़ाहिर है इस अतिरिक्त परेशानी और ख़र्चे का असर अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर और अंतत: उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा!
रविवार, नवंबर 23, 2008
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