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हाँ, मौजूदा रूप में मशाल दौड़ की शुरुआत 1936 के बर्लिन ओलम्पिक के दौरान हुई थी. माना जाता है कि हिटलर के प्रचार मंत्री जोज़ेफ़ गोयबल्स को मशाल दौड़ की योजना डॉ. कार्ल डीम ने बताई थी. डीम ने ओलम्पिक के प्रचार का काम भी देख रहे गोयबल्स को बताया कि एथेंस में माउंट ओलिम्पस के हेरा मंदिर से बर्लिन तक की 3422 किलोमीटर की दूरी 3422 आर्य युवा मशाल के साथ पूरा करें तो दुनिया को एक ख़ास तरह का संदेश मिलेगा. मशाल के रूट में बुल्गारिया, युगोस्लाविया, हंगरी, ऑस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया आया. इन सभी देशों पर आगे चल कर नाज़ियों का क़ब्ज़ा हुआ.
वैसे, सही मामलों में पहली विश्वव्यापी ओलम्पिक मशाल दौड़ 2004 के एथेंस ओलम्पिक के लिए आयोजित की गई.
2. मशाल की बनावट के बारे में कुछ बताएँ, और ये भी कि इसमें ईंधन के रूप में क्या होता है?
मशाल का डिज़ायन मेज़बान देश तय करता है. बीजिंग ओलम्पिक की मशाल 72 सेंटीमीटर ऊँची है.
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3. किसी कारणवश कभी मशाल बुझी भी है?
पेरिस में यात्रा के दौरान 7 अप्रैल 2008 को मशाल को तीन बार बुझाना पड़ा. ऐसा चीन विरोधी प्रदर्शनों के कारण ऐहतियात के तौर पर करना पड़ा. इससे पहले मात्र दो अवसर और आए जब ओलम्पिक मशाल बुझी. 1976 में मॉन्ट्रियल में अचानक हुई तेज़ बारिश के कारण मशाल बुझ गई. किसी ने आनन-फ़ानन में सिगरेट लाइटर से उसे जला दिया जो कि ठीक बात नहीं मानी गई. इसलिए फिर बैकअप लैम्प से दौड़ में प्रयुक्त मशाल को नए सिरे से जलाया गया. 2004 में भी एक बार मशाल तेज़ हवा के कारण बुझी थी.
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जहाँ तक एक देश से दूसरे देश की यात्रा की बात है, तो हवाई जहाज़ पर ले जाने से पहले मशाल को बुझा दिया जाता है. लेकिन दौड़ के लिए एथेंस में तापक शीशे के सहारे जो अग्नि जलाई जाती है, उस मातृज्योति को सुरक्षित लैम्पों में जलते रहने दिया जाता है. इन लैम्पों को आयोजक देश के अधिकारी विमान में संभाले रखते हैं. मशाल दौड़ के विभिन्न चरणों के बीच रातों में विश्राम के वक़्त भी मशाल बुझा दी जाती है, सिर्फ़ लैम्प ही हमेशा जलते रहते हैं.
4. मशाल दौड़ में शामिल होने के लिए लोगों का चुनाव कौन करता है?
ओलम्पिक मशाल थामने के लिए लोगों का चुनाव कई तरह से किया जाता है. ज़्यादातर तो उस देश के अधिकारियों की सलाह पर चुने जाते हैं, जहाँ कि मशाल दौड़ हो रही होती है. इस कोटि में खेल की दुनिया के लोगों की तादात ज़्यादा होती है, हालाँकि समाज के दूसरे तबकों के प्रतिष्ठित लोगों को भी मौक़ा दिया जाता है. मशाल लेकर दौड़ने के लिए कुछ लोगों का चुनाव आयोजक देश की सरकार की तरफ़ से होता है. जैसे लंदन में मशाल थामने वालों में ब्रिटेन में चीन की राजदूत भी शामिल थीं. तीसरी कोटि के लोग मशाल दौड़ के प्रायोजकों की तरफ़ से लगाए जाते हैं. इस बार की प्रायोजक कंपनियाँ हैं- सैमसंग, कोका-कोला और लेनोवो.
5. इस बार मशाल के इर्दगिर्द प्रथम सुरक्षा घेरा बना कर चल रहे नीली-सफ़ेद ट्रैकसूट वाले रक्षकों का क्या मामला है?
ब्लू-एंड-व्हाइट ब्रिगेड के ये लोग दरअसल चीनी सुरक्षा बल के अतिविशिष्ट दस्ते के सदस्य हैं. इस बार लंदन में मशाल दौड़ में शामिल कुछ धावकों की मानें तो चीनी मशाल-रक्षकों का शालीनता से कोई वास्ता नहीं है. टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में ये धावकों को 'हाथ ऊपर उठा कर रखो, सीधा चलो...' जैसे आदेश देते रहते हैं. लंदन में 2012 के ओलम्पिक आयोजन से जुड़े एक बड़े खेल अधिकारी ने चीनी मशाल रक्षकों को 'Thugs' की उपमा दी है.
नीले-सफ़ेद पहनावे वाले चीनी मशाल रक्षकों का सबसे ज़्यादा विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि ये चीनी सुरक्षा बलों की उन्हीं टुकड़ियों से हैं जिन पर कि तिब्बत में दमनात्मक कार्यों में शामिल होने का आरोप रहा है. और अंतत:, मशाल दौड़ में शामिल ब्रिटेन, फ़्रांस, अमरीका और अर्जेंटीनी जैसे देशों की चुप्पी के बाद जापान ने चीनियों से ये कहने का साहस किया है कि उसके यहाँ चीनी रक्षकों को मशाल के साथ दौड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि जापान अपने दम पर मशाल की सुरक्षा-व्यवस्था सुनिश्चित कर सकता है.