मोबाइल फ़ोनों का चलन इतना व्यापक हो गया है कि आधुनिकता से दूर माने जाने वाले किसी इलाक़े में भी कुछ लोग ऐसे ज़रूर मिल जाते हैं जो संचार के इस क्रांतिकारी साधन को भलीभाँति जानते हैं. लेकिन स्टेटस-सिंबल के रूप में महँगे और दसियों अतिरिक्त सुविधाओं से लैस मोबाइल फ़ोन लेकर चलने वालों में से भी कुछ ही को पता होता है कि आख़िर यह बेतार-यंत्र काम कैसे करता है. जानने की कोई ज़रूरत भी नहीं है.
लेकिन यदि किसी भूगर्भशास्त्री को उसके मोबाइल फ़ोन सेट के बारे में पूछें तो वो गर्व से बताएगा कि धरती की कोख से निकले कितने तत्वों की सहायता से काम करता है यह स्मार्ट यंत्र. आप भी जानिए एक भूगर्भशास्त्री के मोबाइल फ़ोन को-
1.एबीएस और पॉलिकार्बोनेट-Acrylonitrile Butadiene Styrene/Polycarbonate alloy- इस पदार्थ का उपयोग मोबाइल फ़ोन का बाहरी प्लास्टिक आवरण बनाने में होता है. एक मोबाइल फ़ोन के ABS/PC आवरण के निर्माण में लगभग दो किलोग्राम पेट्रोलियम का इस्तेमाल होता है. एबीएस की तरह ही पॉलिकार्बोनेट भी एक हल्का प्लास्टिक उत्पाद है, लेकिन कहीं ज़्यादा मज़बूत, इसलिए अपेक्षाकृत महँगा भी.
2. ताँबा- मोबाइल फ़ोन के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का महत्वपूर्ण अंग ताँबे का बना होता है. ताँबे की ख़ासियत है कि इसे किसी भी रूप में ढाल सकते हैं, और यह बिजली का बेहतरीन सुचालक भी है. इन्हीं दो गुणों के कारण सर्किट की बारीक संचार व्यवस्था के लिए ताँबा उपयुक्त माना जाता है. यह मानव को सबसे पहले ज्ञात धातुओं में से है. प्राचीन सभ्यताओं के ईसा पूर्व 8700 के ताम्र आभूषणों के अवशेष मिल चुके हैं. इस समय चिली दुनिया के एक तिहाई ताँबे का उत्पादन करता है.
3. काँच- पाषाण युग में पहली बार मानव ने ज्वालामुखी से निकले नैसर्गिक काँच को काटने के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया होगा. कृत्रिम काँच बनाने की विधि मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता में सामने आई, जब किसी ने भट्टे में पड़े रेत को काँच के मनके के रूप में परिवर्ति पाया. किसी स्तरीय मोबाइल फ़ोन के कैमरे की लेंस में उच्च कोटि के काँच का उपयोग किया जाता है, जो कि आज भी रेत में पाए जाने वाले सिलिका से ही बनाया जाता है.
4. अल्युमिनियम- इसका उपयोग भी ताँबे की ही तरह ही मोबाइल फ़ोन के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में होता है. अल्युमिनियम भी बिजली का बढ़िया सुचालक है, लेकिन ताँबे के मुक़ाबले 65 प्रतिशत ही. इसके बावजूद चूँकि अल्युमिनियम ताँबे के मुक़ाबले बहुत हल्का और बहुत सस्ता है, इसलिए मोबाइल फ़ोनों में इसकी भी मौजूदगी होती है. धरती के गर्भ में भारी मात्रा में अल्युमिनियम है, लेकिन बॉक्साइट के रूप में. बॉक्साइट से अल्युमिनियम बनाने की विधि 1827 में खोजी जा सकी. चीन, रूस, कनाडा और अमरीका अल्युमिनियम के बड़े उत्पादकों में से हैं.
5. लोहा- मोबाइल फ़ोन के महँगे मॉडलों का बाहरी आवरण आमतौर पर स्टेनलेस स्टील का होता है, जो कि लोहा, कार्बन और क्रोमियम के मिश्रण से तैयार होता है. क़रीब 6000 साल पहले मिस्र के लोगों द्वारा लोहे का इस्तेमाल किए जाने के सबूत उपलब्ध हैं.
6. सिलिकॉन- अपने मूल रूप में सिलिकॉन मोबाइल फ़ोन के माइक्रोचिप और लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले में प्रयुक्त होता है. जबकि इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में इसका उपयोग डाइऑक्साइड के रूप में होता है. धरती की ऊपरी सतह में सबसे ज़्यादा मात्रा में पाया जाने वाला तत्व सिलिकॉन ही है.
7. निकेल- इस धातु का उपयोग मोबाइल फ़ोन के माइक्रोफ़ोन में होता है. इसकी खोज 1751 में तब हुई जब कुपरनिकल(शैतानी ताँबा) नामक एक अयस्क से ताँबा निकालने की कोशिश हो रही थी. जब एक्सेल फ़्रेडरिक को अपने प्रयास में ताँबे की जगह एक श्वेत धातु मिला तो उसने इसे ओल्ड निक(शैतान) नाम दिया था. आज दुनिया का 30 प्रतिशत निकेल कनाडा के एक ऐसे इलाक़े से आता है जहाँ 1.85 अरब साल पहले एक बड़े उल्का-पिंड की टक्कर से धरती पिचक गई थी.
8. टिन- टिन की सहायता से ही प्राचीन मानव ने कांस्य युग में कदम रखा था. मोबाइल फ़ोन में इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्ज़ों को सही जगह टिका कर रखने के लिए टिन की सोल्डरिंग की जाती है. चीन और इंडोनेशिया टिन के बड़े उत्पादक हैं. माना जाता है कि अगले 40-50 वर्षों में दुनिया में टिन के ज्ञात स्रोत समाप्त हो जाएँगे.
9. लिथियम- बिग बैंग के दौरान अस्तित्व में आए कुछेक तत्वों में से एक माने जाने वाले लिथियम का उपयोग मोबाइल फ़ोन की बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट के रूप में होता है.
10. कोबाल्ट- मोबाइल फ़ोन की बैटरी के कैथोड छोर(ऋणाग्र) में कोबाल्ट लगा होता है. विटामिन बी12 में भी इसका अंश होता है, जबकि इसके एक अन्य रूप कोबाल्ट-60 का रेडियोथेरेपी में उपयोग होता है.
11. ग्रैफ़ाइट- मोबाइल फ़ोन की लिथियम ऑयन बैटरी के एनोड छोर(धनाग्र) में इसका उपयोग होता है. ग्रैफ़ाइट को कार्बन के सर्वाधिक स्थाई रूपों में गिना जाता है. ग्रैफ़ाइट को उच्चतम स्तर का कोयला भी मान सकते हैं, लेकिन ईंधन के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि इसमें आग लगाना लगभग असंभव है.
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2 टिप्पणियां:
बड़ी जानकारी वाली पोस्ट है। कुपरनिकल को शैतानी तांबा कहते हैं यह पता ही नहीं था।
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